Sunday, November 6, 2016

क्या एनडीटीवी को एकतरफा घेरा गया?

एनडीटीवी प्रकरण को लेकर यह बात कही जा रही है कि देश की सुरक्षा सर्वोपरि है। उस मामले में कोई समझौता नहीं किया जा सकता। केबल टीवी नेटवर्क्स रूल्स, 1994 में पिछले साल संशोधन करके आतंकी हमलों के समय की लाइव कवरेज को लेकर कड़ाई की व्यवस्था। इस संशोधन को लेकर भी आपत्तियाँ हैं। इसके अलावा एनडीटीवी के प्रसंग में कहा जा रहा है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसके आधार पर कहा जा सके कि देश की सुरक्षा संकट में पड़ गई। इस सिलसिले में वैबसाइट द वायर ने अपने सम्पादकीय में कहा है कि ऐसी पाबंदी, भले ही एक दिन के लिए लगाई जाए, खतरनाक है और इससे राजनेताओं और उनके चुनींदा नौकरशाहों के हाथ में एक हथियार आ जाएगा। द वायर का सम्पादकीय इस सिलसिले में एक दिशा को बताता है वहीं ब्लॉग Angry Lok में अमित सेन के नाम से प्रकाशित आलेख में घटनाक्रम का विस्तार से विवरण देते हुए बताया गया है कि एनडीटीवी को दूसरे चैनलों से अलग करते हुए खासतौर से निशाना बनाया गया है। पढ़ें द वायर का सम्पादकीय और ब्लॉग Angry Log का आलेख

Ever since the chaotic and unseemly media spectacle which unfolded in downtown Mumbai during the 26/11 attacks, government managers, the courts – and journalists – have been especially mindful of the need for restraint and sensitivity in news coverage of ongoing security operations against terrorists. After the Mumbai attack ended, it emerged that some of the terrorists had planned their next moves on the basis of instructions received by telephone from handlers in Pakistan who learned about impending commando deployments from the live coverage several Indian TV channels were providing. Last year, the Modi government amended the Cable TV Network Rules, 1994, to add a new clause, 6(1) p, prohibiting TV channels from carrying content  “which contains live coverage of any anti-terrorist operation by security forces, wherein media coverage shall be restricted to periodic briefing by an officer designated by the appropriate Government, till such operation concludes.”

उम्मीद की किरण है जीएसटी

लम्बे अरसे से टलती जा रही जीएसटी व्यवस्था आखिरकार शक्ल लेने लगी है। पिछले गुरुवार को जीएसटी कौंसिल ने आम सहमति से टैक्स की चार दरों पर सहमति कायम करके एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया है। अब जो सबसे जटिल मसला है वह यह कि इस राजस्व के वितरण का फॉर्मूला क्या होगा। चूंकि इसे 1 अप्रैल 2017 से लागू होना है, इसलिए यह काम जल्द से जल्द निपटाना होगा। चूंकि इस साल बजट भी अपेक्षाकृत जल्दी आ रहा है, इसलिए यह उत्सुकता बनी है कि यह सब कैसे होगा।

Friday, November 4, 2016

चिंता का विषय है एनडीटीवी को मिली सजा

एडिटर्स गिल्ड का वक्तव्य
 भारत सरकार ने टीवी चैनल एनडीटीवी इंडिया को एक दिन के लिए ऑफ-एयर करने को कहा है. यह आदेश भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भेजा है और यह मामला पठानकोट हमलों की कवरेज़ से जुड़ा है. पठानकोट हमलों के दौरान टीवी चैनलों की कवरेज़ को लेकर एक उच्च स्तरीय पैनल का गठन हुआ था. इस बैन को लेकर अधिकतर पत्रकार नाराज हैं, पर इसे उचित बताने वाले भी हैं. वस्तुतः इसके पीछे वही सामाजिक ध्रुवीकरण दिखाई पड़ रहा है, जो मोदी सरकार की देन बताया जाता है. 

कुछ लोगों ने इसे विनाशकाले विपरीत बुद्धि बताया है और कुछ ने इसे इमर्जेंसी की पुनरावृत्ति कहा है. पर क्या यह राजनीतिक सवाल है? क्या एनडीटीवी को राजनीतिक कारणों से सजा दी गई है? इस किस्म की पाबंदी अच्छे लक्षण नहीं हैं. एक दिन के लिए ही सही, पर यह रोक चिंता का विषय है. पर चिंता का विषय यह भी है कि मीडिया कवरेज के कारण रक्षा से जुड़ी संवेदनशील विवरणों पर रोशनी पड़ी. मीडिया की जिम्मेदारी भी बनती है. अलबत्ता सरकार को स्पष्ट करना ही चाहिए कि वे कौन सी बातें हैं, जिनके कारण यह कदम उठाया है. मीडिया हाउस कहता है कि हमारी तरफ से गलती नहीं हुई है, पर यह तय कौन करेगा कि गलत हुआ या नहीं. लगता यह है कि चैनल अब अदालत के दरवाजे खटखटाएगा. यही सबसे अच्छा रास्ता है.  

Thursday, November 3, 2016

इनोवेटिव विज्ञापन अखबारों की बिगड़ती साख के प्रतीक न बनें

नवभारत टाइम्स, दिल्ली के 3 नवम्बर के अंक में विज्ञापनदाता का जैकेट है। जैकेट इस तरह डिजाइन किया गया है, जिससे बाहर से देखने पर अख़बार का नाम न्यूट्रीचार्ज टाइम्स नजर आता है। अखबारों के चलन को देखते हुए यह बात विस्मयकारी नहीं लगती, पर अखबारों की बिगड़ती साख पर यह प्रतीकात्मक टिप्पणी जरूर है। यह कारोबार का मामला है। अखबारों में इनोवेटिव विज्ञापनों के नाम पर ऐसे विज्ञापनों की भरमार है। इनमें कभी-कभार इनोवेशन नजर आता है, पर जो बात सबसे ज्यादा दिखाई पड़ती है वह है विज्ञापनों को वहाँ जगह दिलाना जहाँ पहले वे नजर नहीं आते थे। भारतीय भाषाओं के कुछ अखबारों ने अब सम्पादकीय पेज पर विज्ञापन देने शुरू कर दिए हैं।

Wednesday, November 2, 2016

पाकिस्तानी उच्चायोग में जासूसी

 1 नवम्बर के डॉन में खबर थी कि पाकिस्तान सरकार सम्भवतः अपने चार राजनयिकों को वापस बुलाएगी। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि जिस राजनयिक को भारत ने जासूसी के आरोप में वापस भेजा है उसने पुलिस से पूछताछ के दौरान कुछ नाम बताए हैं, जिन्हें वापस लेने पर भारत सरकार दबाव बना रही है। खबर यह भी है कि इन्हें वापस बुलाने के साथ-साथ पाकिस्तान भारत के कुछ और राजनयिकों को भारत वापस भेजेगी। इस प्रकार राजनयिकों का यह जवाबी संग्राम अब शुरू हुआ है। 3 नवम्बर के डॉन में भारतीय उच्चायोग के आठ सदस्यों को अंडरकवर जासूस बताया गया। उधर भारतीय मीडिया में खबरें थीं कि भारत ने पाकिस्तान के छह राजनयिकों को वापस उनके देश भेजा है। 

डॉन के अनुसार  
The government is considering pulling out from India four of its officers posted in Pakistan’s High Commission in New Delhi, days after Indian authorities declared one official persona non grata.

“This is under consideration. A final decision would be taken shortly,” a source at the Foreign Office said on Monday.

The names of the officers — commercial counsellor Syed Furrukh Habib and first secretaries Khadim Huss­ain, Mudassir Cheema and Shahid Iqbal — were made public after Indian officials released to media a recorded statement of a high commission staffer Mehm­ood Akhtar, who was expelled from India after being declared persona non grata.
डॉन में पढ़ें पूरी खबर

उधर आज भारत के अखबार डीएनए ने खबर दी है कि दूतावास में पाकिस्तान के कॉमर्शियल काउंसलर सैयद फर्रुख हबीब आईएसआई के एजेंट हैं। उनके अलावा भी दूतावास के कई कर्मचारी केवल जासूसी का काम कर रहे हैं।
डीएनए के अनुसार
The reverberations of the Pakistani spy ring saga continue to impact New Delhi and Islamabad. What has baffled intelligence agencies in India is that the person in-charge of India-Pakistan trade relations has turned out to be a top Inter-Services Intelligence (ISI) officer and chief of intelligence operations in India.

This came to light after the interrogation of Mehmood Akhtar last week. Akhtar, an ISI officer and Pakistani High Commission staffer, was part of the spy ring.
Intelligence officers said that the top ISI officer, Syed Furrukh Habib, was posted as Commercial Counsellor in the Pakistani High Commission. This is a big worry for India's intelligence officials as it shows that Pakistan has even made trade as a means to gather intelligence.
डीएनए में पढ़ें पूरी खबर