Wednesday, January 22, 2014

राजनीति की आइटम गर्ल 'आप'

दिल्ली में आप का आंदोलन वापस हो गया, पर तमाम सवाल छोड़ गया। क्या साबित करने के लिए यह आंदोलन हुआ था? दिल्ली की जनता को प्रयोगशाला के  जानवरों की तरह इस्तेमाल क्यों किया जाता है? केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार चाहतीं तो यह विवाद खड़ा ही नहीं होता। इस आंदोलन के कारण आम आदमी पार्टी ्वधारमा पर गम्भीर बहस भी शुरू हो गई है। क्या यह आंदोलन किसी नई राजनीति की शुरूआत है या पुरानी राजनीति में जगह न बना पाने वालों की अतृप्त मनोकामना पूरी करने का रास्ता है? आज दैनिक भास्कर में चेतन भगत का रोचक लेख है 'राजनीति की आइटम गर्ल है आप।' देखें आज की कुछ कतरनें

                                              नई दुनिया



नवभारत टाइम्स

Tuesday, January 21, 2014

सड़क पर सरकार

आज के अखबारों पर दिल्ली की सड़कों पर उतरी केजरीवाल सरकार की आंदोलनकारी भूमिका छाई है। क्या यह अराजकता है? क्या यह नई राजनीति है? क्या यह आप को खत्म करने की योजना का हिस्सा है? और क्या इसके सहारे आप की जड़ें और मजबूत होंगी? क्या यह लोकसभा चुनाव की तैयारी है? साथ ही यह भी कि इसका अंत कहाँ है। महात्मा गाधी अराजकतावादी नेता माने जाते थे। अराजकतावाद एक राजनीतिक अवधारणा है, जिसके मूल में राज्यसत्ता का विरोध है। क्या आम आदमी पार्टी वैसी ही पार्टी है या ममता बनर्जी की राह पर चल पड़ी लोकलुभावन पार्टी है? इन प्रश्नों के जवाब हम सबको मिलकर देने हैं। आप विचार करें

बीबीसी हिंदी वैबसाइट
 मंगलवार, 21 जनवरी, 2014 को 08:07 IST तक के समाचार
केंद्र सरकार के अधीन आने वाली दिल्ली पुलिस के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने को लेकर धरने पर बैठे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मंगलवार को सभी प्रमुख अख़बारों में छाए रहे.
 बीबीसी हिंदी डॉट कॉम पर पढ़ें पूरा लेख

इंडियन एक्सप्रेस

अमर उजाला


Monday, January 20, 2014

चिदम्बरम के अनुसार 'आप' के बाबत फैसला गलत था

देश के अखबारों का ध्यान कल दिल्ली में मोदी की रैली या सुनंदा पुष्कर थरूर के निधन पर था। उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं। ऐस में इंडियन एक्सप्रेस ने पी चिदम्बरम का वक्तव्य प्रकाशित किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि आप को समर्थन देने का फैसला अनावश्यक था। चिदम्बरम के अनुसार हम जीते नहीं थे, हम ऐसी स्थिति में भी नहीं थे कि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते। ऐसे में हमें खामोश रहना चाहिए थे। चिदम्बरम ने राष्ट्रीय संदर्भ में यह भी कहा कि हमारे बड़े नेताओं ने जनता को जानकारियाँ देने में उदासीनता बरती। आज की कुछ कतरनों पर नजर डालें

इंडियन एक्सप्रेस

Sunday, January 19, 2014

दिल्ली में आप की कांग्रेस से सीधी तकरार

आज सुबह के अखबार सुनंदा पुष्कर थरूर के निधन की खबरों से भरे पड़े थे। ऐसे विषयों को उछालने में मीडिया को मजा आता है। ऐसे में भाजपा कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद को वह कवरेज नहीं मिल पाई जो मिल सकती थी। वह कमी आज दिन में नरेंद्र मोदी के भाषण के बाद पूरी हो गई। शायद कल के अखबारों में भी यही खबर प्रभावी होगी। बहरहाल कुछ ध्यान खींचने वाली कतरनें इस प्रकार हैंः-

नवभारत टाइम्स

अब आप के कर्णधारों को सोचना चाहिए

पिछले महीने दिल्ली में आम आदमी पार्टी की अचानक जीत के बाद राहुल गांधी ने कहा था, नई पार्टी को जनता से जुड़ाव के कारण सफलता मिली और इस मामले में उससे सीखने की जरूरत है। हम इससे सबक लेंगे। पर इसी शुक्रवार को कांग्रेस महासमिति की बैठक में उन्होंने कहा, विपक्ष गंजों को कंघे बेचना चाहता है और नया विपक्ष कैंची लेकर गंजों को हेयर स्टाइल देने का दावा कर रहा है। आम आदमी पार्टी के प्रति उनका आदर एक महीने के भीतर खत्म हो गया। उन्होंने अपने जिन कार्यक्रमों की घोषणा की उनमें कार्यकर्ताओं की मदद से प्रत्याशी तय करने और चुनाव घोषणापत्र बनने की बात कही, जो साफ-साफ आप का असर है।

राहुल को आप के तौर-तरीके पसंद हैं, पर आप नापसंद है। भारतीय जनता पार्टी ने तो पहले दिन से उसकी लानत-मलामत शुरू कर दी थी। उसने दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान इस बात पर जोर देकर कहा कि 'आप' और कुछ नहीं, कांग्रेस की बी टीम है। जनता के मन में मुख्यधारा की पार्टियों को लेकर नाराजगी है। 'आप' को उस नाराजगी का फायदा मिला। उसने खुद को आम आदमी जैसा साबित किया, भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ा कानून बनाने की घोषणा की, लालबत्ती संस्कृति का तिरस्कार किया। शपथ लेने के दिन मेट्रो से यात्रा की। बंगला-गाड़ी को लेकर अपनी अरुचि व्यक्त की वगैरह।

Saturday, January 18, 2014

राहुलमय कांग्रेस और 'आप' का टूटता जादू

पिछले दो दिन के अखबार राहुल के प्रधानमंत्रित्व को समर्पित थे। सभी चैनलों पर बहस का मुद्दा भी यही था। बहरहाल कांग्रेस महासमिति की बैठक का निष्कर्ष यह निकला कि अब राहुल नए अवतार में हैं। उनकी बोली और अंदाज बदला है। पार्टी की इस बैठक में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हिंदी में बोले। अपने संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने हिंदी में पूछे गए सवालों के जवाब भी अंग्रेजी में दिए थे। इससे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस अब अपनी आर्थिक नीति को लेकर जवाब देने की स्थिति में है। उसके प्रवक्ताओं को होमवर्क के साथ भेजा जा रहा है। राहुल ने मणिशंकर की तारीफ की तो उन्हें भी ताव आ गया और उन्होंने नरेंद्र मोदी को चायवाला बना दिया। रोचक बात यह कि जिस नरेंद्र मोदी के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर आगमन से लेकर सभा स्थल तक जाने का आँखों देखा हाल प्रसारित होता था, वे दो दिन से दिल्ली में पड़े थे उनकी कोई खबर नहीं। खबरें हैं 'आप' की दुर्दशा की। अब इस आशय की खबरें भी आने लगी हैं कि किस तरह से आप की टोपी पहने लोग सरकारी अफसरों को फटकार रहे हैं। दिल्ली में स्टिंग ऑपरेशन वाले उपकरणों की बिक्री हो रही है। पर उससे ज्यादा है मंत्री-पुलिस संवाद। लोकतंत्र अपने अगले पायदान पर आ गया है। 

दैनिक भास्कर 


Thursday, January 16, 2014

भास्कर ने अपने सिर ताज रखा

दैनिक भास्कर

दैनिक भास्कर के इंटरव्यू की ओर दुनिया भर का ध्यान गया। इसकी वजह इंटरव्यू नहीं था, बल्कि वह घोषणा थी जो राहुल गांधी ने की थी। पर यह शुद्ध रूप से पीआर एक्ससाइज थी। राहुल गांधी चाहते तो यह घोषणा किसी और माध्यम से हो सकती थी। हाँ यह सवाल जरूर मन में आता है कि राहुल को हिंदी मीडिया इस वक्त क्यों याद आया। आज की कतरनों में सबसे ज्यादा 'आप' के तबेले में लतिहाव से जुड़ी हैं। शशि थरूर और सुनंदा के तलाक की संभावनाओं से जुड़ी खबर भी रोचक है। 

‘आप’ की तेजी क्या उसके पराभव का कारण बनेगी?

दिल्ली में 'आप' सरकार ने जितनी तेजी से फैसले किए हैं और जिस तेजी से पूरे देश में कार्यकर्ताओं को बनाना शुरू किया है, वह विस्मयकारक है। इसके अलावा पार्टी में एक-दूसरे से विपरीत विचारों के लोग जिस प्रकार जमा हो रहे हैं उससे संदेह पैदा हो रहे हैं। मीरा सान्याल और मेधा पाटकर की गाड़ी किस तरह एक साथ चलेगी? इसके पीछे क्या वास्तव में जनता की मनोकामना है या मुख्यधारा की राजनीति के प्रति भड़के जनरोष का दोहन करने की राजनीतिक कामना है?  अगले कुछ महीनों में साफ होगा कि दिल्ली की प्रयोगशाला से निकला जादू क्या देश के सिर पर बोलेगा, या 'आप' खुद छूमंतर हो जाएगा?

फिज़ां बदली हुई थी, समझ में आ रहा था कि कुछ नया होने वाला है, पर 8 दिसंबर की सुबह तक इस बात पर भरोसा नहीं था कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में इतनी बड़ी सफलता मिलेगी। ओपीनियन और एक्ज़िट पोल इशारा कर रहे थे कि दिल्ली का वोटर ‘आप’ को जिताने जा रहा है, पर यह जीत कैसी होगी, यह समझ में नहीं आता था। बहरहाल आम आदमी पार्टी की जीत के बाद से यमुना में काफी पानी बह चुका है। पार्टी की इच्छा है कि अब राष्ट्रीय पहचान बनानी चाहिए। पार्टी अपनी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है। 10 जनवरी से देश भर में ‘आप’ का देशव्यापी अभियान शुरू होगा। इस अभियान का नाम ‘मैं भी आम आदमी’ रखा गया है। सदस्यता के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।

Wednesday, January 15, 2014

कतरनें काफी कुछ कहती हैं-3

आज के इंडियन एक्सप्रेस में खबर है कि सीबीआई ने आरटीआई के तहत आंशिक छूट माँगी थी, पर पीएमओ की कृपा से पूरी छूट मिल गई।

Tuesday, January 14, 2014

कतरनें काफी कुछ कहती हैं-2

दैनिक भास्कर में आज राहुल गांधी का इंटरव्यू छपा है। अभी तक राहुल गांधी या कांग्रेस की मीडिया मंडली हंदी मीडिया की उपेक्षा करती थी। इस बार के चुनाव परिणामों ने उन्हें कुछ सोचने को मजबूर किया है। पर क्या वे हिंदी बोलने वालों के दिल और दिमाग को समझते हैं? जल्द सामने आएगा। इससे एक बात यह झलकती है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की घोषणा होने वाली है। अलबत्ता यह इंटरव्यू पीआर एक्सरसाइज जैसा लगता  है। इंटरव्यूअर की भूमिका क्रॉस क्वेश्चन की होती है जो इसमें दिखाई नहीं पड़ती।


भारत-अमेरिका रिश्तों में बचकाना बातें

देवयानी खोब्रागडे के मामले को लेकर हमारे मीडिया में जो उत्तेजक माहौल बना उसकी जरूरत नहीं थी. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता था. इसे भारत-अमेरिका रिश्तों के बनने या बिगड़ने का कारण मान लिया जाना निहायत नासमझी होगी. दो देशों के रिश्ते इस किस्म की बातों से बनते-बिगड़ते नहीं है. भारत में इस साल चुनाव होने हैं और यह मामला बेवजह गले की हड्डी बन सकता है. सच यह है कि यह एक बीमारी का लक्षण मात्र है. बीमारी है संवेदनशील मसलों की अनदेखी. बेहतर होगा कि हम बीमारी को समझने की कोशिश करें. हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए.

Sunday, January 12, 2014

कांग्रेस को जरूरत है एक जादुई चिराग की

आम आदमी पार्टी हालांकि सभी पार्टियों के लिए चुनौती के रूप में उभरी है, पर उसका पहला निशाना कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। पर आप की जीत के बाद राहुल गांधी ने कहा कि हमें जनता से जुड़ने की कला आप से सीखनी चाहिए। सवा सौ साल पुरानी पार्टी के नेता की इस बात के माने क्या हैं? राहुल की ईमानदारी या कांग्रेस का भटकाव? पार्टी को पता नहीं रहता कि जनता के मन में क्या है। राहुल गांधी ने इसके फौरन बाद लोकपाल विधेयक का मुद्दा उठाया और कोई कुछ सोच पाता उससे पहले ही वह कानून पास हो गया। लोकसभा चुनाव होने में तकरीबन तीन महीने का समय बाकी है। अब कांग्रेस को तीन सवालों के जवाब खोजने हैं। क्या राहुल गांधी के नाम की औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में की जाएगी? क्या सरकार कुछ और बड़े राजनीतिक फैसले करेगी? कांग्रेस कौन सी जादू की पुड़िया खोलेगी जिसके सहारे सफलता उसके चरण चूमे?

पिछले मंगलवार को राहुल गांधी के घर पर प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के बड़े नेताओं की बैठक करने के बाद इतना जाहिर कर दिया कि वे भी अब सक्रिय रूप से चुनाव में हिस्सा लेंगी। राहुल गांधी को अपने साथ विश्वसनीय सहयोगियों की जरूरत है। अगले कुछ दिनों में महत्वपूर्ण नेताओं को सरकारी पदों को छोड़कर संगठन के काम में लगने के लिए कहा जाएगा। इस बार एक-एक सीट के टिकट पर राहुल गांधी की मोहर लगेगी। महासचिवों के स्तर पर भारी बदलाव होने जा रहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और अन्य हिंदी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस के पास प्रभावशाली चेहरों की कमी है। कांग्रेस ने खुद भी इन इलाकों को त्यागा है। इसके पहले प्रियंका गाँधी को मुख्यधारा की राजनीति में लाने की कोशिश नहीं की है। अमेठी और रायबरेली के सिवा वे देश के दूसरे इलाकों में प्रचार करने नहीं जातीं। उन्हें राहुल की पूरक बनाने का प्रयास अब किया जा रहा है। लगता है संगठन के काम अब वे देखेंगी। प्रचार के तौर-तरीकों में भी बुनियादी बदलाव के संकेत हैं। हिंदी इलाकों में अच्छे ढंग से हिंदी बोलने वाले प्रवक्ताओं को लगाने की योजना है। सोशल मीडिया में पार्टी की इमेज सुधारने के लिए बाहरी एजेंसियों की मदद ली जा सकती है।

जीएसएलवी :भारतीय विज्ञान-गाथा का एक पन्ना

दुनिया के किसी भी देश के अंतरिक्ष अभियान पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि हर सफलता के पीछे विफलताओं की कहानी छिपी होती। हर विफलता को सीढ़ी की एक पायदान बना लें वह सफलता के दरवाजे पर पहुँचा देती है। यह बात जीवन पर भी लागू होती है। भारत के जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच वेहिकल (जीएसएलवी) के इतिहास को देखें तो पाएंगे कि यह रॉकेट कई प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हुए तैयार हुआ है। इसकी सफलता-कथा ही लोगों को याद रहेगी, जबकि जिन्हें जीवन में चुनौतियों का सामना करना अच्छा लगता है, वे इसकी विफलता की गहराइयों में जाकर यह देखना चाहेंगे कि वैज्ञानिकों ने किस प्रकार इसमें सुधार करते हुए इसे सफल बनाया।

जीएसएलवी की चर्चा करने के पहले देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर नजर डालनी चाहिए। यह समझने की कोशिश भी करनी चाहिए कि देश को अंतरिक्ष कार्यक्रम की जरूरत क्या है। कुछ लोग मानते हैं कि जिस देश में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हों और जहाँ चालीस करोड़ से ज्यादा लोग खुले में शौच को जाते हों उसे अंतरिक्ष में रॉकेट भेजना शोभा नहीं देता। पहली नजर में यह बात ठीक लगती है। हमें इन समस्याओं का निदान करना ही चाहिए। पर अंतरिक्ष कार्यक्रम क्या इसमें बाधा बनता है? नहीं बनता बल्कि इन समस्याओं के समाधान खोजने में भी अंतरिक्ष विज्ञान मददगार हो सकता है।

Tuesday, January 7, 2014

'आप' का जादू क्या देश पर चलेगा?

 मंगलवार, 7 जनवरी, 2014 को 17:22 IST तक के समाचार
आम आदमी पार्टी, केजरीवाल
आम आदमी पार्टी की दिल्ली की प्रयोगशाला से निकला जादू क्या देश के सिर पर बोलेगा? इस जीत के बाद से यमुना में काफी पानी बह चुका है. वह अपनी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है.
इसके लिए 10 जनवरी से देश भर में ‘मैं भी आम आदमी’ अभियान शुरू होगा. खबरों के मुताबिक पार्टी में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोग आगे आ रहे हैं लेकिन भीड़ बढ़ाने के पहले पार्टी को अपनी राजनीतिक धारणाओं को देश के सामने भी रखना होगा.
'आप' के कामकाज की शुरूआत मेट्रो पर सवार होकर शपथ लेने जाने, लालबत्ती संस्कृति को खत्म करने जैसी प्रतीकात्मक बातों से हुई.
जनता पर उसका अच्छा असर भी पड़ा लेकिन सरकार बनने के बाद उसके फैसलों और तौर-तरीकों को लेकर काफी लोगों की नाराज़गी भी उजागर हुई है.

फैसलों पर विवाद

विश्वास मत पर बहस के दौरान कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों ने सरकार को बिजली-पानी के फैसलों के बाबत निशाना बनाया था. कहा गया कि पानी की कीमत कम होने का लाभ ग़रीबों को कम, पैसे वालों को ज़्यादा मिलेगा.

Sunday, January 5, 2014

कांग्रेस की ‘मोदी-रोको’ रणनीति

कांग्रेस पार्टी क्या नरेंद्र मोदी को लेकर घबराने लगी है? उसे क्या वास्तव में मोदी का सामना करने की कोई रणनीति समझ में नहीं आ रही है? या फिर उसे मोदी का तोड़ मिल गया है, जिसके तहत नई रणनीति बनाई जा रही है? इस वक्त प्रधानमंत्री के संवाददाता सम्मेलन की जरूरत क्या थी? क्या यह उनके रिटायरमेंट की घोषणा थी और वे राहुल गांधी के आगमन की घोषणा कर रहे हैं? या वे अपने दस साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को गिनाना चाहते हैं? या कांग्रेस पार्टी की नई रणनीति के रूप में नरेंद्र मोदी को निशाना बनाकर लोकसभा चुनाव के कांग्रेस अभियान का श्रीगणेश कर रहे हैं? प्रधानमंत्री इसके पहले भी नरेंद्र मोदी की आलोचना करते रहे हैं, पर इस बार सन 2007 में सोनिया गांधी के 'मौत के सौदागर' बयान को पीछे छोड़ते हुए उन्होंने अहमदाबाद की गलियों में बेगुनाह लोगों के खून का ज़िक्र किया है।  

Saturday, January 4, 2014

कांग्रेस के पास राहुल के अलावा कोई विकल्प नहीं

 शनिवार, 4 जनवरी, 2014 को 09:40 IST तक के समाचार
राहुल गाँधी
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने साफ़ कर दिया है कि वे यूपीए के प्रधानमंत्री पद के अगले उम्मीदवार नहीं होंगे. ऐसे में सवाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का मुक़ाबला करने के लिए फिर कांग्रेस के पास कौन है?
अगर यह मान भी लें कि यूपीए सरकार आगे आने वाली है या संभावित है तो सबसे पहले राहुल गाँधी का नाम आएगा. 17 जनवरी को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक में संभवतः राहुल गाँधी के नाम की घोषणा भी हो जाए.
अगर राहुल गाँधी का नाम घोषित नहीं हुआ, तो किसका नाम सामने आएगा? यह सवाल बहुत सहज इसलिए भी है क्योंकि राहुल गाँधी ने अभी तक कभी भी नहीं कहा है कि वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं.
इससे पहले राहुल गाँधी से जब भी सरकार में आने का आग्रह किया गया, उन्होंने मना ही किया है. ऐसे में संभवतः अंतिम क्षण में राहुल गाँधी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए मना भी कर दें.
ऐसे में कांग्रेस के नेताओं में से एक या दो के नाम ज़ेहन में आते हैं. सबसे पहला नाम है वित्त मंत्री पी चिदंबरम और दूसरा नाम है एके एंटनी. दोनों ही नेता दक्षिण भारत से हैं. एक तमिलनाडु के हैं, तो दूसरे केरल के. हाल ही में चिदंबरम ने ज़ोर देकर कहा था कि कांग्रेस को अब पीएम पद के उम्मीदवार की घोषणा करनी चाहिए. हालाँकि वे यह भी कहते रहे हैं कि मुझे अपनी सीमाएं मालूम हैं.

Friday, January 3, 2014

‘अच्छी छवि’ के दौर में खराब छवि के शिकार मनमोहन

 शुक्रवार, 3 जनवरी, 2014 को 15:07 IST तक के समाचार
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संवाददाता सम्मेलन में किसी बड़ी घोषणा की उम्मीद नहीं थी. सिवाय इसके कि उनके इस्तीफ़े को लेकर क़्यास थे, जिन्हें उन्होंने दूर कर दिया. यह भी साफ़ कर दिया कि वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के इच्छुक नहीं हैं.
उनका संवाददाता सम्मेलन एक माने में जनता को संबोधित करने का तीसरा मौक़ा था. सन 2011 के फ़रवरी और 2012 में टेलिविज़न पर दो बार वे चुनिंदा मीडियाकर्मियों से रूबरू हुए थे. हाल के चुनावों में कांग्रेस की हार और पार्टी नेतृत्व को लेकर पैदा हो रहे असमंजस को दूर करना शायद इस संवाददाता सम्मेलन का उद्देश्य था.
एक और उद्देश्य नरेंद्र मोदी के ख़तरे की ओर जनता का ध्यान खींचना था. पिछले डेढ़ साल से नरेंद्र मोदी ने मनमोहन सिंह को सीधा निशाना बना रखा है. इस बार मनमोहन सिंह ने उन्हें निशाना बनाया. शायद यह पार्टी की लोकसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा है.
प्रधानमंत्री ने अपने दस साल के पूरे कार्यकाल की उपलब्धियों का ज़िक्र भी इस मौक़े पर किया, पर होता हमेशा यही है कि सारी बहस उनके नेतृत्व पर उठे सवालों तक सिमट जाती है. सच यह है कि उन्होंने यूपीए-2 की विफलताओं के जो कारण गिनाए उनसे सामान्य व्यक्ति की सहमति नहीं है. वे मानते हैं कि हम महंगाई को नियंत्रित नहीं कर पाए और पर्याप्त संख्या में रोज़गार पैदा नहीं कर पाए. पर केवल इसी वजह से यूपीए सरकार को लेकर जनता के मन में रोष नहीं है.

दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल का भाषण

विश्वास मत  पर दिल्ली विधानसभा में हुई चर्चा  का जवाब देते हुए अरविंद केजरीवाल ने जो बातें कहीं उन्हें विस्तार से आज दैनिक भास्कर ने इस रूप में प्रकाशित किया हैः-
दैनिक भास्कर में प्रकाशित

कांग्रेस और भाजपा ने 'आप' से क्या सीखा?


हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून
गुरुवार को जिस वक्त दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार के विश्वासमत पर चर्चा चल रही थी, टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आई कि महाराष्ट्र सरकार ने आदर्श मामले पर गठित आयोग की रपट को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया है। इस खबर से दो बातें ज़ाहिर हुईं। एक 'आप' परिघटना ने कांग्रेस को भीतर तक हिला दिया है। साथ में दूसरी बात यह भी साबित हुई कि कांग्रेस के नेता इस बात से कोई सबक सीखना नहीं चाहते। महाराष्ट्र सरकार ने आंशिक रूप से रपट स्वीकार करके जनता की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश की है। उसने अब अफसरों को नापने और राजनेताओं को बचाने का काम शुरू किया है। नीचे पढ़ें आज के हिंदू में प्रकाशित रपट का एक अंश

Five days after Congress vice-president Rahul Gandhi criticised the Maharashtra government’s rejection of the Adarsh Commission of Inquiry report, the State Cabinet revised its stand and accepted the report on Thursday.

However, the Action Taken Report (ATR), issued upon acceptance of the report recommends no action against the six politicians indicted by the Commission for extending “political patronage” to the controversial building project on the grounds that there were “no allegations of criminality” against them.

The 12 IAS officers named for violating All India Service Conduct Rules will be proceeded against. The Commission’s report indicted four former Congress Chief Ministers, including Sushilkumar Shinde, now Union Home Minister, Vilasrao Deshmukh, Ashok Chavan and Shivajirao Nilangekar Patil.

It had also indicted two NCP Ministers of State, Sunil Tatkare and Rajesh Tope. In the case of the latter two, the ATR goes a step further and says they had not dealt with any files related to the building. The Bharatiya Janata Party was quick to denounce this.

अरुण जेटली का लेख 

कांग्रेस के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी ने भी 'आप' परिघटना से कुछ सीखने का निश्चय किया है। भारतीय जनता पार्टी की वैबसाइट पर अरुण जेटली का लेख गुरुवार को प्रकाशित हुआ है जिसमें उन्होंने लिखा है कि हाल के चुनाव परिणामों का संदेश साफ है कि भारत में वोटर की अपेक्षाएं बढ़ रहीं हैं। हमें इन परिणामों से सबक सीखने चाहिए। इस लेख के अंशः-

Is 2014 going to be substantially different in terms of India’s polity and governance? The bar of expectation of Indian people has been raised high. It is not merely the Indian middle class which is the strong opinion maker. There is additionally a substantial aspirational class in India whose level of expectations is entirely different. They are going to judge Indian politics, persons in public life and the quality of governance harshly. They will vote in governments and vote out governments if they found them not meeting popular aspirations. पूरा लेख यहाँ पढ़ें

Thursday, January 2, 2014

प्रतीकों से बाहर अब काम पर आना होगा 'आप' को

 गुरुवार, 2 जनवरी, 2014 को 17:05 IST तक के समाचार
इस बात को लेकर संशय नहीं कि दिल्ली की सरकार अपना बहुमत आसानी से साबित करेगी. मेट्रो यात्रा, लालबत्ती का तिरस्कार, मुफ़्त पानी और सस्ती बिजली, मीटरों और खातों की जाँच और विश्वासमत के आगे अब क्या?
कांग्रेस, ‘आप’ और भाजपा के ‘प्रेम-घृणा और ईर्ष्या की इस त्रिकोण कथा’ का पहला अध्याय प्रतीकों को समर्पित रहा. इस दौरान राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने ‘आप’ के उदय को क्रांतिकारी घटना के रूप में देखा. अब उसका उस अग्निपरीक्षा से सामना है, जिसे उसने खुद चुना है.
‘आप’ की ओर से बार-बार कहा गया कि हम सरकार बनाने के इच्छुक नहीं हैं. हमने किसी से समर्थन नहीं माँगा. जनता ने सरकार बनाने का आदेश दिया. हम अपना काम कर रहे हैं.

मुरव्वत का दौर खत्म

तीनों पार्टियाँ अब अपने कदम तौल रही हैं. भारतीय जनता पार्टी ने ‘आप’ और कांग्रेस पर एक साथ हमला बोला है और दोनों के बीच साठ-गांठ साबित करने की कोशिश की है.

टेक्नोट्रॉनिक क्रांति 2014

हर रोज़ कुछ नया, कुछ अनोखा
 हाल में दिल्ली में हुए इंडो-अमेरिकन फ्रंटियर्स ऑफ इंजीनियरिंग सिंपोज़ियम में कहा गया कि सन 2014 में बिगडेटा, बायोमैटीरियल, ग्रीन कम्युनिकेशंस और सिविल इंजीनियरी में कुछ बड़े काम होंगे. बिगडेटा यानी ऐसी जानकारियाँ जिनका विवरण रख पाना ही मनुष्य के काबू के बाहर है. मसलन अंतरिक्ष से जुड़ी और धरती के मौसम से जुड़ी जानकारियाँ. इनके विश्लेषण के व्यावहारिक रास्ते इस साल खुलेंगे. सन 2014 में साइंस और टेक्नॉलजी की दुनिया में क्या होने वाला है, इसपर नज़र डालते हैं.

Tuesday, December 31, 2013

आज का सूर्यास्त ‘आप’ के नाम


दिल्ली में शपथ लेने के बाद अरविंद केजरीवाल ने गीत गाया, इंसान का इंसान से हो भाईचारा, यही पैगाम हमारा. ऐसे तमाम गीत पचास के दशक की हमारी फिल्मों में होते थे. नए दौर और नए इंसान की नई कहानी लिखने का आह्वान उन फिल्मों में था. पर साठ साल में राजनीति के ही नहीं, फिल्मों, नाटकों, कहानियों और सीरियलों के स्वर बदल गए. सन 1952 के चुनाव में आम आदमी पार्टी की ज़रूरत नहीं थी. सारी पार्टियाँ आप थीं. तब से अब में पहिया पूरी तरह घूम चुका है. जो हीरो थे, वे विलेन हैं.

Sunday, December 29, 2013

राहुल बनाम मोदी बनाम 'आप'

सन 2013 में साल की शुरुआत नौजवानों, खासकर महिलाओं की नाराजगी के साथ हुई थी। दिल्ली गैंगरेप के खिलाफ वह आंदोलन किसी भी नज़रिए से राजनीतिक नहीं था। पर उस आंदोलन ने बताया कि भारतीय राजनीति में युवाओं और महिलाओं की उपस्थिति बढ़ रही है। राजनीति का समुद्र मंथन निरंतर चलता रहता है। साल का अंत होते-होते सागर से लोकपाल रूपी अमृत कलश निकल कर आया है। रोचक बात यह है कि पार्टियों की कामधेनु बने वोटर को यह अमृत तब मिला जब वह खुद इसके बारे में भूल चुका था। संसद के इस सत्र में लोकपाल विधेयक पास करने की योजना नहीं थी। पर उत्तर भारत की चार विधानसभाओं के चुनाव परिणामों ने सरकार को इतना भयभीत कर दिया कि आनन-फानन यह कानून पास हो गया।

बावजूद इसके इस साल की सबसे बड़ी राजनीतिक घटना लोकपाल विधेयक का पास होना नहीं है। बल्कि आम आदमी पार्टी का उदय है। विडंबना है कि जिस लोकपाल कानून के नाम पर आप का जन्म हुआ, वही इसकी सबसे बड़ी विरोधी है। आप किसी सकारात्मक राजनीति का परिणाम न होकर विरोध की देन है। दिसंबर 2011 के अंतिम सप्ताह में लोकपाल विधेयक को लोकसभा से पास करके जिस तरह राज्यसभा में अटका दिया गया, उससे अन्ना हजारे को नहीं देश की जनता के मन को ठेस लगी थी। अन्ना के आंदोलन के साथ यों भी पूरा देश नहीं था। वह आंदोलन दिल्ली तक केंद्रित था और मीडिया के सहारे चल रहा था। पर भ्रष्टाचार को लेकर जनता की नाराजगी अपनी जगह थी। इस साल मार्च में पवन बंसल और अश्विनी कुमार को अलग-अलग कारणों से जब पद छोड़ने पड़े तब भी ज़ाहिर हुआ कि जनता के मन में यूपीए सरकार के खिलाफ नाराज़गी घर कर चुकी है। उन्हीं दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को तोता नाम से विभूषित किया था।

सीले पटाखों से कैसे मनेगी कांग्रेस की दीवाली?

पाँच राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव परिणाम आने के पहले राहुल गांधी के चेहरे पर हल्की सी दाढ़ी बढ़ी होती थी। पिछली 22 दिसंबर को फिक्की की सभा में राहुल गांधी का या दूसरे शब्दों में कांग्रेस नया चेहरा सामने आया। इस सभा में राहुल चमकदार क्लीनशेव चेहरे में थे। उद्योग और व्यवसाय के प्रति वे ज्यादा संवेदनशील नज़र आए। संयोग से उसी दिन पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने इस्तीफा दिया था। उस इस्तीफे को लोकसभा चुनाव के पहले की संगठनात्मक कवायद माना गया था। अंदरखाने की खबरें हैं कि देश के कॉरपोरेट सेक्टर को सरकार से शिकायतें हैं। विधानसभा चुनाव के पहले तक राहुल गांधी का ध्यान गाँव और गरीब थे। अब शहर, मध्य वर्ग और कॉरपोरेट सेक्टर भी उनकी सूची में है।