Thursday, January 16, 2014

भास्कर ने अपने सिर ताज रखा

दैनिक भास्कर

दैनिक भास्कर के इंटरव्यू की ओर दुनिया भर का ध्यान गया। इसकी वजह इंटरव्यू नहीं था, बल्कि वह घोषणा थी जो राहुल गांधी ने की थी। पर यह शुद्ध रूप से पीआर एक्ससाइज थी। राहुल गांधी चाहते तो यह घोषणा किसी और माध्यम से हो सकती थी। हाँ यह सवाल जरूर मन में आता है कि राहुल को हिंदी मीडिया इस वक्त क्यों याद आया। आज की कतरनों में सबसे ज्यादा 'आप' के तबेले में लतिहाव से जुड़ी हैं। शशि थरूर और सुनंदा के तलाक की संभावनाओं से जुड़ी खबर भी रोचक है। 

‘आप’ की तेजी क्या उसके पराभव का कारण बनेगी?

दिल्ली में 'आप' सरकार ने जितनी तेजी से फैसले किए हैं और जिस तेजी से पूरे देश में कार्यकर्ताओं को बनाना शुरू किया है, वह विस्मयकारक है। इसके अलावा पार्टी में एक-दूसरे से विपरीत विचारों के लोग जिस प्रकार जमा हो रहे हैं उससे संदेह पैदा हो रहे हैं। मीरा सान्याल और मेधा पाटकर की गाड़ी किस तरह एक साथ चलेगी? इसके पीछे क्या वास्तव में जनता की मनोकामना है या मुख्यधारा की राजनीति के प्रति भड़के जनरोष का दोहन करने की राजनीतिक कामना है?  अगले कुछ महीनों में साफ होगा कि दिल्ली की प्रयोगशाला से निकला जादू क्या देश के सिर पर बोलेगा, या 'आप' खुद छूमंतर हो जाएगा?

फिज़ां बदली हुई थी, समझ में आ रहा था कि कुछ नया होने वाला है, पर 8 दिसंबर की सुबह तक इस बात पर भरोसा नहीं था कि आम आदमी पार्टी को दिल्ली में इतनी बड़ी सफलता मिलेगी। ओपीनियन और एक्ज़िट पोल इशारा कर रहे थे कि दिल्ली का वोटर ‘आप’ को जिताने जा रहा है, पर यह जीत कैसी होगी, यह समझ में नहीं आता था। बहरहाल आम आदमी पार्टी की जीत के बाद से यमुना में काफी पानी बह चुका है। पार्टी की इच्छा है कि अब राष्ट्रीय पहचान बनानी चाहिए। पार्टी अपनी सफलता को लोकसभा चुनाव में भी दोहराना चाहती है। 10 जनवरी से देश भर में ‘आप’ का देशव्यापी अभियान शुरू होगा। इस अभियान का नाम ‘मैं भी आम आदमी’ रखा गया है। सदस्यता के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।

Wednesday, January 15, 2014

कतरनें काफी कुछ कहती हैं-3

आज के इंडियन एक्सप्रेस में खबर है कि सीबीआई ने आरटीआई के तहत आंशिक छूट माँगी थी, पर पीएमओ की कृपा से पूरी छूट मिल गई।

Tuesday, January 14, 2014

कतरनें काफी कुछ कहती हैं-2

दैनिक भास्कर में आज राहुल गांधी का इंटरव्यू छपा है। अभी तक राहुल गांधी या कांग्रेस की मीडिया मंडली हंदी मीडिया की उपेक्षा करती थी। इस बार के चुनाव परिणामों ने उन्हें कुछ सोचने को मजबूर किया है। पर क्या वे हिंदी बोलने वालों के दिल और दिमाग को समझते हैं? जल्द सामने आएगा। इससे एक बात यह झलकती है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की घोषणा होने वाली है। अलबत्ता यह इंटरव्यू पीआर एक्सरसाइज जैसा लगता  है। इंटरव्यूअर की भूमिका क्रॉस क्वेश्चन की होती है जो इसमें दिखाई नहीं पड़ती।


भारत-अमेरिका रिश्तों में बचकाना बातें

देवयानी खोब्रागडे के मामले को लेकर हमारे मीडिया में जो उत्तेजक माहौल बना उसकी जरूरत नहीं थी. इसे आसानी से सुलझाया जा सकता था. इसे भारत-अमेरिका रिश्तों के बनने या बिगड़ने का कारण मान लिया जाना निहायत नासमझी होगी. दो देशों के रिश्ते इस किस्म की बातों से बनते-बिगड़ते नहीं है. भारत में इस साल चुनाव होने हैं और यह मामला बेवजह गले की हड्डी बन सकता है. सच यह है कि यह एक बीमारी का लक्षण मात्र है. बीमारी है संवेदनशील मसलों की अनदेखी. बेहतर होगा कि हम बीमारी को समझने की कोशिश करें. हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी रवैये और भारत के दब्बूपन पर केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए.