एकसाथ तीन देशों के यान मंगल ग्रह पर जा पहुँचे हैं। बुधवार 10 फरवरी को चीन ने दावा किया कि उसके अंतरिक्षयान तियानवेन-1 ने शाम 7.52 बजे (बीजिंग के समयानुसार) मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश कर लिया। उसके एक दिन पहले मंगलवार को संयुक्त अरब अमीरात का ऑर्बिटर ‘होप प्रोब’ मंगल की कक्षा में पहुंचा था। चीनी अभियान का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम मंगल ग्रह पर रोवर को उतारने का है, जिसकी कोशिश मई या जून में की जाएगी। वहाँ उसकी असली परीक्षा है। यदि चीनी रोवर मंगल पर उतरने में कामयाब हुआ, तो वह दुनिया का दूसरा ऐसा देश होगा। अब तक केवल अमेरिका ही नौ बार अपने रोवर मंगल पर उतारने में कामयाब हुआ है।
चीनी सफलता के एक
सप्ताह बाद 18 फरवरी को
अमेरिकी यान ‘पर्सीवरेंस’ न केवल मंगल ग्रह की सतह पर उतरा,
बल्कि उसके रोवर और एक प्रयोगात्मक
हेलीकॉप्टर ने अपना काम भी शुरू कर दिया। ‘पर्सीवरेंस’ मामूली रोवर मिशन नहीं है, बल्कि अबतक का सबसे उन्नत श्रेणी का अनुसंधान
कार्यक्रम है। यह अपने आप में पूरी प्रयोगशाला है। यह अभियान आने वाले समय में
मनुष्य के मंगल अभियानों की दिशा निर्धारित करेगा।
यह रेस क्यों?
एकसाथ तीन अभियानों की सफलता के साथ एक सवाल पूछा जा सकता है कि मंगल ग्रह में ऐसा क्या है, जो वहाँ तक जाने की होड़ लगी है? इस सवाल का जवाब देने के पहले यह समझना जरूरी है कि मंगल ग्रह तक जाने के लिए हर दो साल में एकबार ऐसा मौका आता है, जब यह ग्रह धरती के सबसे नजदीक होता है। वहाँ अंतरिक्ष यान भेजने के लिए यह सबसे अच्छा समय होता है। इसलिए हमें एकसाथ तीनों अभियानों की खबरें मिली हैं। पर यह बात केवल मंगल अभियान से ही नहीं जुड़ी है। अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर दुनिया ने अचानक ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया है।