बांग्लादेश में डॉ मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार पद की शपथ लेने के बाद देश की कमान संभाल ली है. उन्हें मुख्य सलाहकार कहा गया है, पर व्यावहारिक रूप से यह प्रधानमंत्री का पद है. उनके साथ 13 अन्य सलाहकारों ने भी शपथ ली है. पहले दिन तीन सलाहकार शपथ नहीं ले पाए थे. शायद इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक ले चुके होंगे.
इन्हें प्रधानमंत्री या मंत्री इसलिए नहीं कहा गया
है, क्योंकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. देश में अब जो हो रहा है, उसे
क्या कहेंगे, यह कुछ समय बाद स्पष्ट होगा. पर ज्यादा बड़े सवाल
सांविधानिक-संस्थाओं से जुड़े हैं, मसलन अदालतें.
पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया को राष्ट्रपति
के आदेश से रिहा कर दिया गया. क्या यह संविधान-सम्मत कार्य है? इसी तरह एक अदालत ने मुहम्मद यूनुस को आरोपों से मुक्त कर दिया. क्या
यह न्यायिक-कर्म की दृष्टि से उचित है? ऐसे सवाल आज कोई नहीं पूछ रहा है, पर आने
वाले समय में पूछे जा सकते हैं.
न्यायपालिका
आंदोलनकारियों की माँग है कि सुप्रीम कोर्ट के
जजों को बर्खास्त किया जाए. यह माँग केवल सुप्रीम कोर्ट तक सीमित रहने वाली नहीं
है. अदालतें, मंडलों और जिलों में भी हैं और शिकायतें इनसे भी कम नहीं हैं.
सरकारी विधिक अधिकारियों यानी कि अटॉर्नी जनरल वगैरह
को राजनीतिक पहचान के आधार पर नियुक्त किया जाता है. बड़ी संख्या में विधिक
अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है, पर अदालतों और जजों का क्या होगा?
डॉ यूनुस की सरकार को कानून-व्यवस्था कायम करने
के बाद राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश-नीति को सुव्यवस्थित करना होगा. हमारे
पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश कमोबेश
मिलती-जुलती समस्याओं के शिकार हैं. यही हाल पड़ोसी देश म्यांमार का भी है.
इन सभी देशों में ‘क्रांतियों’ ने यथास्थिति को तोड़ा तो है, पर सब के सब असमंजस में हैं. इन ज्यादातर देशों में मालदीव और बांग्लादेश के ‘इंडिया आउट’ जैसे अभियान चले थे. और अब सब भारत की सहायता भी चाहते हैं.