विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले मंगलवार को अपना पदभार ग्रहण करते हुए कहा था कि हमारा ध्यान चीन के साथ सीमा-विवाद और पाकिस्तान के साथ बरसों से चले आ रहे सीमा-पार आतंकवाद की समस्याओं को सुलझाने पर रहेगा.
उन्होंने कहा कि दुनिया ने देख लिया कि भारत
में अब काफी राजनीतिक स्थिरता है. जहाँ तक चीन और पाकिस्तान का सवाल है, हमारे
रिश्ते एक अलग सतह पर हैं और उनसे जुड़ी समस्याएं भी दूसरी तरह की हैं. 15 जून को
गलवान की घटना के चार साल पूरे हो गए हैं, पर सीमा-वार्ता जहाँ की तहाँ है.
आतंकी हमले
उधर हाल में एक के बाद एक हुए आतंकी हमलों की
रोशनी में लगता नहीं कि भारत सरकार, पाकिस्तान के साथ बातचीत का कोई कदम उठाएगी. माना
जा रहा है कि इन हमलों के मार्फत पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने संदेश दिया
है कि हम भारत को परेशान करने की स्थिति में अब भी हैं.
हाल में जम्मू-कश्मीर में हुए चुनाव में
इंजीनियर रशीद की जीत से भी वे उत्साहित हैं. उन्हें लगता है कि कश्मीर में हालात पर
काबू पाने में भारत की सफलता के बावजूद अलगाववादी मनोकामनाएं जीवित हैं.
मोदी सरकार
पाकिस्तानी प्रतिष्ठान को यह भी लगता है कि
मोदी सरकार अब राजनीतिक रूप से उतनी ताकतवर नहीं है, जितनी पहले थी, इसलिए वह दबाव
में आ जाएगी. उनकी यह गलतफहमी दूर होने में कुछ समय लगेगा. वे नहीं देख पा रहे हैं
कि भारत ने 2016 में ‘माइनस पाकिस्तान’ नीति पर चलने
का जो फैसला किया था, उसे फिलहाल बदलने की संभावना नहीं है.
हाल में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की चीन यात्रा
की समाप्ति पर जारी संयुक्त वक्तव्य में ‘सभी लंबित विवादों के समाधान की
आवश्यकता तथा किसी भी एकतरफा कार्रवाई के विरोध को रेखांकित’ करके पाकिस्तान और तीन ने अनुच्छेद-370 की वापसी के विरोध पर अड़े
रहने की रवैया अपनाया है.
इन बातों से लगता है कि पाकिस्तानी सेना किसी भी बातचीत के रास्ते में रोड़े बिछाएगी. अब देखना होगा कि अगले महीने 3-4 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के हाशिए पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की भेंट हो भी पाती है या नहीं.