ऐसा लगता है कि इसराइली सेना गज़ा पट्टी में प्रवेश करने वाली है, पर बड़े स्तर पर नरसंहार को रोकने के लिए उसने उत्तरी गज़ा में रहने वाले करीब 11 लाख लोगों को 24 घंटे के भीतर वहाँ से हटने का आदेश जारी किया है। चूंकि संयुक्त राष्ट्र ने नरसंहार का संदेह व्यक्त किया था, संभवतः इसलिए इसराइली सेना ने यह आदेश संयुक्त राष्ट्र संघ को दिया है। इस आदेश का पालन किस तरह संभव होगा, यह देखना है। इस बीच सीरिया से खबर आई है कि गुरुवार को इसराइल ने दमिश्क और उत्तरी शहर अलेप्पो के हवाई अड्डों पर मिसाइलों से हमले किए हैं। ये हमले क्यों किए हैं और वहाँ कितनी नुकसान हुआ है, इसकी ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है।
बीबीसी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने इसराइल को
उस आदेश को वापस लेने को कहा है, जिसमें उसने 11
लाख लोगों को उत्तरी से दक्षिणी गज़ा जाने के लिए कहा है। यूएन का कहना है कि अगर
ऐसा कोई आदेश दिया गया है तो इसे तुरंत रद्द करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो
त्रासदी के हालात और भी भयावह हो जाएंगे।
दरअसल इसराइली सेना के प्रतिनिधियों ने गज़ा
पट्टी में यूएन का नेतृत्व कर रहे लोगों को इस आदेश की जानकारी दी थी। लेकिन
इसराइल के दूतों ने कहा है कि गज़ा पट्टी खाली करने के आदेश पर यूएन की
प्रतिक्रिया 'शर्मनाक' है।
संयुक्त राष्ट्र में इसराइल के दूत ने कहा
कि इसराइल गज़ा के लोगों को पहले से सावधान कर रहा था ताकि हमास से युद्ध के दौरान
उन लोगों को कम से कम नुकसान पहुंचे, जो बेकसूर हैं।
इसराइल के राजदूत ने कहा, ''पिछले कई साल से संयुक्त राष्ट्र हमास को और अधिक हथियारों से लैस
करने की कोशिशों से आंखें मूंदे रहा है। उसने हमास की ओर से और आम नागरिकों और गज़ा
पट्टी पर होने वाले हमलों पर भी ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब वो इसराइल के साथ खड़ा
होने के बजाय उसे नसीहत दे रहा है।''
इसराइली सेना ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि गज़ा
में रहने वाले 11 लाख लोग अगले 24
घंटों में दक्षिणी गज़ा चले जाएं। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता ने बताया कि 11 लाख लोगों की ये आबादी गज़ा पट्टी की आबादी की लगभग आधी है। इसराइली
हमले से सबसे ज़्यादा प्रभावित घनी आबादी वाला गज़ा शहर है। इसराइली सेना ने गज़ा
और यरुसलम के समय के मुताबिक़ ये चेतावनी आधी रात से पहले दी।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान में कहा है
कि उसका मानना है कि इतने लोगों का दक्षिणी गज़ा की ओर जाना इतना आसान नहीं होगा।
इसमें लोग हमले के शिकार हो सकते हैं। सेनाधिकारियों ने बयान में कहा है, “गज़ा शहर में आप तब ही वापस लौटकर आएंगे जब दोबारा घोषणा की जाएगी।”
आईडीएफ़ ने कहा है कि हमास चरमपंथी शहर के नीचे
सुरंगों और आम लोगों के बीच इमारतों के अंदर हैं। आम लोगों से अपील है कि वो शहर खाली
करके ‘अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए चले जाएं और ख़ुद को हमास के
आतंकियों से दूर रखें ताकि वो उन्हें मानव ढाल न बना सकें।’ इसमें कहा गया है,
“आने वाले दिनों में आईडीएफ़ गज़ा शहर में अपने महत्वपूर्ण ऑपरेशन
चलाएगी और पूरी कोशिश करेगी कि आम लोगों को नुक़सान न पहुंचे।”
इसराइल ने ये घोषणा तब की है जब अनुमान है कि
उसकी सेना गज़ा में ज़मीनी हमला शुरू कर सकती है क्योंकि उसके हज़ारों सैनिक सीमा
पर इकट्ठे हो रहे हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने मज़बूत अपील करते
हुए इस फ़ैसले को रद्द करने की अपील की है और कहा है कि इलाक़े को खाली कराने से ‘नुकसानदेह
स्थिति’ पैदा हो सकती है।
भारतीय-नीति में बदलाव नहीं
गत 7 अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट से ऐसा लगा कि भारत की फलस्तीन नीति में बदलाव आ गया है। प्रधानमंत्री ने हमास के हमले को आतंकी कार्रवाई बताया था और यह भी कहा था कि हम इसराइल के साथ खड़े हैं। इसमें नई बात इतनी थी कि उन्होंने हमास की कार्रवाई को आतंकी कार्रवाई बताया, पर उन्होंने फलस्तीन को लेकर देश की नीति में किसी प्रकार के बदलाव का संकेत नहीं किया था।
इस ट्वीट के पाँच दिन बाद विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि फलस्तीन के बारे में भारत की जो नीति रही है, उसमें कोई बदलाव नहीं है। उन्होंने कहा, ‘अंतरराष्ट्रीय मानवीय-कानूनों के तहत एक सार्वभौमिक-दायित्व है’ और आतंकवाद के किसी भी तौर-तरीके और स्वरूप से लड़ने की एक वैश्विक-जिम्मेदारी भी है।