गुजरे हफ्ते गुरुवार और शुक्रवार को हुए
‘वॉयस
ऑफ ग्लोबल-साउथ समिट’ ने दो बातों की तरफ ध्यान खींचा है। कुछ
लोगों के लिए ‘ग्लोबल-साउथ’ शब्द नया है। उन्हें इसकी पृष्ठभूमि को
समझना होगा। भारत की विदेश-नीति के लिहाज से इसके महत्व को रेखांकित करने की जरूरत
भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके उद्घाटन और
समापन सत्रों को संबोधित किया। सम्मेलन में 120 से ज्यादा विकासशील देशों की शिरकत
के साथ यह ‘ग्लोबल-
साउथ’ की सबसे बड़ी वर्चुअल सभा साबित हुई। इन देशों में दुनिया की करीब
तीन-चौथाई आबादी निवास करती है। वस्तुतः पूरी दुनिया का दिल इन देशों में धड़कता
है।
वैश्विक-संकट
यह सम्मेलन कोविड-19, जलवायु-परिवर्तन और
वैश्विक-मंदी की पृष्ठभूमि के साथ आयोजित हुआ है। इन तीनों बातों की तपिश विकासशील
देशों को झेलने पड़ी है, जबकि तीनों के लिए ग्लोबल साउथ के ये देश जिम्मेदार नहीं
है। दूसरी तरफ वैश्विक-संकट गहरा रहा है। ऐसे में भारत समाधान देने और खासतौर से ‘ग्लोबल
साउथ’ यानी इन विकासशील देशों की आवाज़ बनने जा रहा
है। इस वर्ष भारत जी-20 और शंघाई सहयोग
संगठन का अध्यक्ष भी है, इस लिहाज से यह समय भी महत्वपूर्ण है। पिछले मंगलवार को इंदौर में संपन्न हुए 17वें
प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के अंतिम दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक तरफ
गुयाना के राष्ट्रपति इरफान अली और दूसरी तरफ सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद
संतोखी थे। यह पहल भारतवंशियों के मार्फत दुनिया से जुड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाएगी।
विकासशील-आवाज़
शिखर सम्मेलन में विदेशमंत्री
एस जयशंकर ने कहा कि विकासशील दुनिया की प्रमुख चिंताओं को जी-20 की चर्चाओं
में शामिल नहीं किया जा रहा है। कोविड-19, खाद्य एवं ऊर्जा
सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, कर्ज-संकट और रूस-यूक्रेन संघर्ष का समाधान तलाशने में
विकासशील देशों की जरूरतों को तवज्जोह नहीं दी गई। हम सुनिश्चित करना चाहते हैं कि
जी-20 में भारत की अध्यक्षता के दौरान विकासशील देशों की आवाज, मुद्दे, दृष्टिकोण और ग्लोबल
साउथ की प्राथमिकताएं सामने आएं। इस पूरी परियोजना के साथ भू-राजनीति से
जुड़े मसले हैं, जो यूक्रेन-युद्ध और दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव के रूप में
नजर आ रहे हैं।
व्यापक दायरा
सम्मेलन का फलक काफी व्यापक था। इसके
व्यावहारिक-प्रतिफल भी सामने आए हैं। सम्मेलन में कुल दस सत्र हुए, जिनमें वित्तीय-परिस्थितियों,
ऊर्जा, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े सत्र महत्वपूर्ण थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने समिट के समापन सत्र में कहा कि नए साल की शुरूआत एक नई आशा का समय है। विकासशील
देश ऐसा वैश्वीकरण चाहते हैं, जिससे जलवायु संकट या ऋण संकट उत्पन्न
न हो, जिसमें वैक्सीन का असमान वितरण न हो, जिसमें
समृद्धि और मानवता की भलाई हो। उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक 'ग्लोबल साउथ सेंटर ऑफ एक्सेलेंस' स्थापित
करेगा। उन्होंने एक नए प्रोजेक्ट 'आरोग्य मैत्री' की
जानकारी भी दी। इसके तहत भारत प्राकृतिक आपदाओं और मानवीय संकट का सामना कर रहे
विकासशील देशों को मेडिकल सहायता उपलब्ध कराएगा। विकासशील देशों के छात्रों के लिए
भारत में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए ग्लोबल साउथ स्कॉलरशिप भी शुरू होगी।
बदलती भूमिका
आर्थिक-विकास और कल्याणकारी-व्यवस्था की पहली
शर्त है विश्व-शांति। इस परियोजना के साथ आर्थिक और डिप्लोमैटिक दोनों पहलू जुड़े
हैं। संयुक्त राष्ट्र समेत सभी अंतरराष्ट्रीय संगठनों में भारत की भूमिका बढ़ रही
है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा में हम केंद्रीय-भूमिका निभाने जा रहे हैं। शिखर-सम्मेलन
में चीन की भागीदारी से जुड़े कुछ सवाल भी उठे हैं। चीन की प्रत्यक्ष भागीदारी
इसमें नहीं थी, अलबत्ता चीनी विदेश-मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने गुरुवार
को संवाददाताओं को बताया कि भारत ने हमें इस सम्मेलन के बारे में सूचना दी थी। भारत
ने चीन को जानकारी क्यों दी, इसे भी विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा
ने स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि भारत का जी-20 से जुड़े मसलों पर अन्य देशों के
साथ मजबूत सहयोग है। यह उस विचार के तहत है कि हमने उस प्रत्येक देश से परामर्श
किया, जिसके साथ हमारी मजबूत विकास साझेदारी है। बदलते
वैश्विक-परिप्रेक्ष्य में भारत की इस भूमिका को विशेषज्ञों ने प्रशंसा की नज़रों
से देखा है।