न्यायाधीशों तथा निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर सार्वजनिक विवाद चल रहा है। सरकार संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों के सहारे है और दलील दे रही है कि नियुक्तियों के निर्णय का अधिकार कार्यपालिका के पास है। जबकि इससे अलग नजरिया रखने वालों को संविधान की मूल भावना की चिंता है। सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया सर्वोच्च न्यायालय के 1993 और 1998 के निर्णयों पर आधारित है और यह चयन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का एक कॉलेजियम करता है जिसकी अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास होती है। कार्यपालिका उनसे पुनर्विचार करने को कह सकती है, लेकिन अगर कॉलेजियम अपनी अनुशंसा पर टिका रहता है तो उसे स्वीकार करना होगा। हालांकि सरकार इन अनुशंसाओं को महीनों तक रोककर नियुक्तियों को लंबित रख सकती है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना को लेकर संसद ने एक कानून भी बनाया, जिसके पास उच्च न्यायालय की नियुक्तियों का अधिकार होता। इस आयोग की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश के पास होती और इसमें दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय कानून मंत्री और दो ‘प्रतिष्ठित’ व्यक्ति शामिल होते, जिनकी सहमति मिलने पर ही नियुक्तियां होतीं। उच्चतम न्यायालय ने इसे असंवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया। दलील दी गई कि यह न्यायिक स्वायत्तता के साथ समझौता करने जैसा है जबकि वह संविधान की विशेषताओं में से एक है जिसमें संसद संशोधन नहीं कर सकती। बिजनेस स्टैंडर्ड में नितिन देसाई का पूरा लेख पढ़ें यहाँ
ब्रेक्जिट का
असर
ब्रिटिश साप्ताहिक इकोनॉमिस्ट ने इस असर को कुछ चार्टों और विशेषज्ञों के बातचीत से बताया है। मोटी राय है कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था की संवृद्धि, कारोबार और उससे जुड़ी सभी बातों पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। पूरी रिपोर्ट पढ़ें यहाँ
भारत-जोड़ो यात्रा
जय किसान आंदोलन और स्वराज इंडिया के
संस्थापकों में से एक योगेंद्र यादव भी राहुल गांधी की भारत-जोड़ो यात्रा के
सहयात्री हैं। उन्होंने वैबसाइट ‘द प्रिंट’
में एक लेख लिखा है, जिसमें कहा है कि संयोग देखिए कि यात्रा का देश की राजधानी
में पहुंचना और देश के मानस में पैठ बनाना एक साथ हुआ है. और, जो ऐसा हुआ है तो शुक्रिया कहना बनता है मुख्यधारा की मीडिया के उस बड़े
हिस्से का जिसने बड़ी देर और ना-नुकुर के बाद अब मान लिया है कि दिलों को जोड़ने
के लिए देश में एक यात्रा हो रही है. उनका
लेख पढ़ें यहाँ
हल्द्वानी में अतिक्रमण-आंदोलन
उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में रेलवे की जमीन
पर से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के विरोध में चार हजार से ज्यादा परिवार सड़कों
पर आ गए हैं। इनमें ज्यादातर मुस्लिम परिवार है। यह विवाद 2007 से चल रहा है और
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने का आदेश पारित किया है। अतिक्रमण
हटाए जाने का विरोध करने वालों ने धरने और रास्ता जाम का सहारा लिया है। ऑपइंडिया
की नूपुर जे शर्मा ने इस परिघटना के राजनीतिक पहलू को समेटते हुए जो रिपोर्ट लिखी
है, उसे
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