25 दिसंबर को क्रेमिलन में खामोशी का आलम था. राष्ट्रपति भवन पर पूरी तरह से बोरिस येल्तसिन का नियंत्रण था. गोर्बाचेव अपने दफ़्तर और कुछ कमरों में सिमट कर रह गए थे.उसी शाम 7:32 मिनट पर सोवियत संघ के रेड फ्लैग की जगह रूस के पहले राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन की अगुवाई में रूसी संघ का झंडा लहरा दिया गया. दुनिया के सबसे बड़े कम्युनिस्ट देश के विघटन के साथ 15 स्वतंत्र गणराज्यों- आर्मीनिया, अज़रबैजान, बेलारूस, एस्स्तोनिया, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, लात्विया, लिथुआनिया, मालदोवा, रूस, ताजकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, यूक्रेन और उज़्बेकिस्तान का उदय हुआ.
रूस से जुड़ी दो महत्वपूर्ण तारीखें हाल में गुज़री हैं. नवंबर, 1917 की बोल्शेविक क्रांति के बाद 30 दिसंबर, 1922 को सोवियत संघ की स्थापना की घोषणा हुई थी. उसके 100 साल गत 30 दिसंबर को पूरे हुए. आज रूस में इस शताब्दी का समारोह मनाने के लिए कम्युनिस्ट सरकार नहीं है, पर यह पिछली सदी की सबसे बड़ी परिघटनाओं में से एक थी.
इस बात को याद करने की
एक बड़ी वजह है यूक्रेन-युद्ध, जिसके पीछे कुंठित रूसी साम्राज्यवाद की
आहट भी है, जो बीसवीं सदी में ही हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और अफगानिस्तान में नज़र
आया था. पिछले साल फरवरी में यूक्रेन पर हमला करने के पहले व्लादिमीर पुतिन के
भाषण में रूसी-राष्ट्रवाद की गंध आ रही थी. वह अपने पुराने रसूख को कायम करना चाहता
है. हालांकि लड़ाई जारी है, पर लगता नहीं कि रूस अपने उस मकसद को पूरा कर पाएगा, जिसके लिए यह लड़ाई शुरू हुई है.
पिछले महीने रूस की
कम्युनिस्ट पार्टी ने सोवियत संघ की शताब्दी का समारोह मनाया, पर इसे रूस में ही
खास महत्व नहीं दिया गया. पचास साल पहले जब 1972 में सोवियत संघ के पचास साल का
समारोह मनाया गया था, तब वह अमेरिका के मुकाबले की ताकत था. कोई कह नहीं सकता था
कि अगले बीस साल में यह व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी.
दूसरी परिघटना थी सोवियत संघ का विघटन जो 26 दिसंबर, 1991 को हुआ. इस परिघटना की प्रतिक्रिया हमें यूक्रेन-युद्ध के रूप में दिखाई पड़ रही है, जो पिछले साल फरवरी में शुरू हुआ था. एक सदी पहले सोवियत संघ के उदय ने एक नई विश्व-व्यवस्था का स्वप्न दिया था, जो पूँजीवादी-साम्यवाद के विरोध में सामने आई थी. इस व्यवस्था ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में प्रगति के नए मानक स्थापित किए, और एक नई सैन्य-शक्ति को खड़ा किया.