Thursday, November 24, 2022

भारत को ही चलानी होगी आतंक-विरोधी वैश्विक मुहिम


 देस-परदेश

वैश्विक-आतंकवाद को लेकर हाल में भारत से जुड़ी कुछ गतिविधियों ने ध्यान खींचा है. भारत ने संरा सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति (सीटीसी) की दिल्ली तथा मुंबई में हुई बैठकों की मेजबानी की. इनके अलावा दिल्ली में गत 18-19 नवंबर को हुआ नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन. दोनों कार्यक्रमों का उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ ढीली पड़ती वैश्विक मुहिम की तरफ दुनिया का ध्यान खींचना था. इनका एक निष्कर्ष यह भी है कि इसे तेज करने के लिए अब भारत को आगे आना होगा.

आगामी 15-16 दिसंबर को वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों से जुड़ी चुनौतियों पर संरा सुरक्षा परिषद की एक विशेष ब्रीफिंग की मेजबानी भी भारत करेगा. भारत की पुरजोर कोशिश इस विषय को प्रासंगिक बनाए रखने में होनी चाहिए. बावजूद इसके कि दुनिया ने अब दूसरी तरफ देखना शुरू कर दिया है.

चीन की भूमिका

इस दौरान एक और घटना ऐसी हुई है, जिसपर ध्यान देने की जरूरत है. मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के बेटे हाफिज तल्हा सईद को संरा सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में डालने के प्रस्ताव पर चीन ने फिर रोक लगा दी है. इस मामले में पाकिस्तान को चीन सुरक्षा-कवच उपलब्ध कराता रहा है. पाकिस्तान से चलने वाले कई चरमपंथी संगठनों के कमांडरों को वैश्विक आतंकवादी ठहराए जाने कोशिशों को चीन ने बार-बार रोका है.

मुंबई हमले के संदर्भ में भारत का अनुभव रहा है कि आतंकवाद जैसे मसलों पर विश्व समुदाय की बातें बड़ी-बड़ी होती हैं, पर कार्रवाई करने का मौका जब आता है, तब सब हाथ खींच लेते हैं. काउंटर-टेरर संस्थाएं नख-दंत विहीन साबित हुई हैं. हाल में भारत ने इस बात को रेखांकित करने के लिए जो पहल की हैं, उनपर ध्यान देने की जरूरत है.

नो मनी फॉर टेरर

दिल्ली में हुए नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जो देश आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उन्हें इसकी क़ीमत चुकानी चाहिए. गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अपनी पहचान छिपाने और कट्टरपंथी सामग्री फैलाने के लिए आतंकवादी डार्क नेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी संपत्ति का उपयोग भी बढ़ रहा है.

नो मनी फॉर टेरर सम्मेलन पहली बार 2018 में पेरिस में हुआ था. उसके बाद 2019 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित किया गया था. भारत को इसकी मेजबानी 2020 में करनी थी, लेकिन महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. इस समूह का कोई स्थायी कार्यालय नहीं है. इसका सचिवालय भी भारत में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है.

Sunday, November 20, 2022

जी-20 और भारत की वैश्विक-भूमिका


वेदवाक्य है, ‘यत्र विश्वं भवत्येक नीडम।’ यह हमारी विश्व-दृष्टि है। 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ‘ग्लोबलाइजेशन’ या ‘ग्लोबल विलेज’ जैसे रूपकों से कहीं व्यापक है। संयोग से यह भारत का पुनरोदय-काल है। अतीत में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में हुआ करता था। वैसा ही समय अब आ रहा है, जब भारत को दुनिया का नेतृत्व करना होगा। कोरोना संकट के बाद दुनिया यूक्रेन-युद्ध और आर्थिक-मंदी की आशंकाओं का सामना कर रही है। भारत की भूमिका ऐसे संकटकाल में बढ़ गई है। पिछले कुछ समय से भारत ने एक के बाद एक अनेक अवसरों पर पहल करके अपनी मनोभावना को व्यक्त किया है। आगामी 1 दिसंबर को जी-20 समूह की अध्यक्षता एक साल के लिए भारत के पास आ जाएगी और 2023 में इस समूह का शिखर सम्मेलन भारत में होगा। इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर आयोजित जी-20 देशों की शिखर बैठक में इंडोनेशिया के राष्‍ट्रपति जोको विडोडो ने पीएम मोदी को जी-20 की अध्‍यक्षता सौंप दी।

बाली में क्या हुआ

इस संदर्भ में फौरी तौर पर दो बातों पर ध्यान देना है। एक, बाली के शिखर सम्मेलन में क्या हुआ और दूसरे, भारत के अध्यक्ष बनने का व्यावहारिक अर्थ क्या है?  वस्तुतः यह अध्यक्षता एक साल पहले ही मिलने वाली थी, पर भारत ने कुछ जरूरी कारणों से इंडोनेशिया के साथ अदला-बदली कर ली थी। शुरुआत में, यह घोषणा की गई थी कि भारत 2022 में जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। जी-20 रियाद समिट लीडर्स डिक्लरेशन के अनुसार, भारत वर्ष 2023 में शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए इंडोनेशिया के साथ जी-20 के अध्यक्ष पद की अदला-बदली करेगा। बाली की थीम थी, मिलकर हालात सुधारें। इसका फोकस वैश्विक स्वास्थ्य, संधारणीय ऊर्जा, पर्यावरण और डिजिटलीकरण पर था। पर यूक्रेन युद्ध के कारण लगा कि सब कुछ ढहने वाला है। ऐसे में भारत की अध्यक्षता से विश्व को उम्मीदें हैं। भारत के शिखर सम्मेलन की थीम है एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य। भारत किस तरह इस भूमिका को निभाएगा यही देखना है।

यूक्रेन युद्ध का असर

यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया दो भागों में बँट गई है। जी-20 में दोनों ही गुटों के समर्थक देश शामिल हैं। भारत का संपर्क पश्चिमी देशों और रूस दोनों के साथ ही घनिष्ठ है। यही वजह है कि पिछले दिनों पश्चिमी मीडिया ने जोर देकर कहा था कि भारत यूक्रेन युद्ध में शांति कराने की क्षमता रखता है। भारत क्या वास्तव में शांति-स्थापित करा पाएगा? क्या वैश्विक-संकटों का कोई समाधान हमारे पास है? ऐसे तमाम सवाल मुँह बाए खड़े हैं। यूक्रेन जी-20 का सदस्य देश नहीं है, फिर भी वहाँ के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को जी-20 को संबोधित करने दिया गया। दूसरे इस सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नहीं आए। स्पष्ट है कि जी-20 का राजनीतिकरण हो रहा है। साथ ही यह बात चुनौती के रूप में सामने आ रही है, जिसका सामना भारत को करना है।

बढ़ते मतभेद

बाली सम्मेलन में मतभेद इस स्तर पर थे कि एक सर्वसम्मत घोषणापत्र बन पाने की नौबत नहीं आ रही थी। ऐसे में भारत की पहल पर घोषणापत्र बन पाया। इस घोषणापत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस प्रसिद्ध वाक्य को शामिल किया गया कि आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है। यह बात उन्होंने समरकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में कही थी। बाली-घोषणा में इस वाक्य के जुड़ जाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की है। 15 दौर की मंत्रिस्तरीय वार्ता के बावजूद पूरा संगठन दो खेमे में बंटा हुआ था।  अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश बगैर घोषणापत्र के ही बाली बैठक का समापन चाहते थे। तब भारतीय प्रतिनिधियों ने संगठन के दूसरे विकासशील देशों के साथ मिल कर सहमति बनाने की कोशिश की जिसके बाद बाली घोषणापत्र जारी हो पाया। घोषणापत्र जारी जरूर हो गया है, पर आने वाले समय की जटिलताएं भी उजागर हो गई हैं। संयुक्त घोषणापत्र जारी होने के बावजूद सदस्य देशों के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई। उधर 14-15 नवंबर को पोलैंड पर मिसाइलों के गिरने से स्थिति और खराब हो गई। इस कड़वाहट को प्रतीक रूप में इस तथ्य से समझा जा सकता है कि बाली बैठक के दौरान सभी राष्ट्र प्रमुखों का संयुक्त फोटो नहीं लिया जा सका। जी-20 बैठक के दौरान यह पहला मौका है, जब सदस्य देशों के प्रमुखों की कोई ग्रुप फोटो नहीं हुई।  

Friday, November 18, 2022

विक्रम-एस के साथ भारत के निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष में लंबी छलाँग

 


निजी क्षेत्र के पहले अंतरिक्ष रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ इसरो और हैदराबाद की कंपनी स्काईरूट ने इतिहास रच दिया। स्काईरूट एयरोस्पेस के रॉकेट विक्रम-एस की यह परीक्षण उड़ान थी। इसे नाम दिया गया मिशन प्रारंभ। इस मिशन के तीन पेलोड थे और यह सब ऑर्बिटल मिशन था। विक्रम-एस उप-कक्षीय उड़ान में चेन्नई के स्टार्टअप स्पेस किड्ज, आंध्र प्रदेश के स्टार्ट-अप एन-स्पेस टेक और आर्मेनियाई स्टार्ट-अप बाजूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब के तीन पेलोड ले गया था। यानी पृथ्वी की सतह से 89.5 किलोमीटर की अधिकतम ऊँचाई तक जाने के बाद रॉकेट समुद्र में गिर गया। इसरो ने इस मिशन के प्रक्षेपण के लिए स्काईरूट एयरोस्पेस को 12 नवंबर से 16 नवंबर का विंडो दिया था, लेकिन मौसम को देखते हुए इसका प्रक्षेपण 18 नवंबर को सुबह 11.30 बजे किया गया।

इसरो ने किया प्रक्षेपण

यह पहली बार था जब इसरो ने किसी निजी कंपनी के मिशन का अपने लॉन्चिंग पैड से प्रक्षेपण किया है। इसकी वजह है कि भारतीय निजी क्षेत्र अभी इतना सबल नहीं है कि अपने प्रक्षेपण स्थल विकसित कर सके। स्काईरूट एयरोस्पेस एक स्टार्टअप है, जो चार साल से काम कर रहा है। उसने इस अभियान के साथ अपनी महत्वाकांक्षा को उजागर कर दिया है। अब जब भी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में निजी क्षेत्र का जिक्र होगा, उसका नाम सबसे पहले लिया जाएगा।

इसरो के पूर्व वैज्ञानिक पवन कुमार चंदन और नागा भारत डाका ने 2018 में स्टार्टअप के रूप में स्काईरूट एयरोस्पेस की स्थापना की थी। इसके सीईओ पवन कुमार चंदन ने बताया कि इस मिशन के लिए इसरो की ओर से कई तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराई गईं। वे कहते हैं, इसरो ने इसके लिए बहुत ही मामूली फ़ीस ली है। अगले एक दशक में कंपनी ने 20,000 छोटे सैटेलाइट छोड़ने का लक्ष्य रखा है। कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है कि “अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना अब टैक्सी बुक करने जैसा, तेज़, सटीक और सस्ता हो जाएगा।” 

भारत सरकार इन दिनों हर क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है और जल्द ही अंतरिक्ष अनुसंधान में निजी क्षेत्र की भूमिका के सिलसिले में नई नीतियों की घोषणा करने वाली है। जून 2020 में मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में बदलाव की शुरुआत की थी, जिसके बाद निजी कंपनियों के लिए रास्ता खुला। इसके लिए इन-स्पेस ई नामक एक नई संस्था बनाई गई जो इसरो और स्पेस कंपनियों के बीच पुल का काम करती है। सरकार चाहती है कि छोटे मिशनों का भार, जो इसरो पर रहा है वह अब प्राइवेट सेक्टर को दिया जाए, ताकि इसरो बड़े मिशनों पर फोकस कर सके। भारत में कॉमर्शियल मार्केट भी बढ़ेगा, जिससे इसरो को अपने बड़े मिशन पर काम करने का वक्त मिल पाएगा।

Wednesday, November 16, 2022

अजय माकन का इस्तीफा और खड़गे की पहली परीक्षा


कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अभी अपना काम ठीक से संभाला भी नहीं है कि वह पहला विवाद उनके सामने आ गया है, जिसका अंदेशा था. कांग्रेस नेता अजय माकन ने पार्टी के राजस्थान प्रभारी के रूप में इस्तीफा दे दिया है. यह इस्तीफा उन कारणों से महत्वपूर्ण है, जो पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के ठीक पहले उठे थे और जिनके बारे में माना जा रहा था कि वे खड़गे को परेशान करेंगे. राजस्थान-संकट का समाधान खड़गे के सांगठनिक कौशल की पहली बड़ी परीक्षा होगी.

अगले पखवाड़े में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान में प्रवेश कर सकती है. उस समय यह विवाद तेजी पकड़ेगा. अजय माकन ने अपना यह इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पत्र लिखने के कुछ दिनों बाद दिया है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि वह अब इस जिम्मेदारी को जारी नहीं रखना चाहते हैं.

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार माकन, 25 सितंबर को जयपुर में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के समानांतर बैठक आयोजित करने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के तीन वफादारों को कारण बताओ नोटिस देने के बाद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न करने से नाराज हैं.

सूत्रों ने कहा कि इससे माकन परेशान थे क्योंकि जिन विधायकों को कारण बताओ नोटिस दिया गया था, वे राहुल गांधी के नेतृत्व वाली यात्रा का समन्वय कर रहे हैं. एआईसीसी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया, ‘राहुल गांधी की यात्रा आयोजित करने के लिए अजय माकन किस नैतिक अधिकार के साथ राजस्थान जाएंगे, अगर सीएलपी बैठक का मजाक उड़ाने वाले लोग ही इसका समन्वय करेंगे?’

माकन के करीबी सूत्रों ने बताया कि पार्टी नेतृत्व ने उन्हें अपना फैसला वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे. खड़गे के नाम माकन के पत्र को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा राज्य में युवा नेतृत्व को ‘मौका’ देने से इनकार करने से पैदा हुए संकट के खिलाफ पार्टी आलाकमान पर दबाव बनाने की कोशिश के रूप में देखा गया.

8 नवंबर को लिखे गए अपने पत्र में माकन ने कहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के प्रदेश में प्रवेश करने और राज्य विधानसभा उपचुनाव होने से पहले एक नए व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए. उन्होंने लिखा, ‘मैं राहुल गांधी का सिपाही हूं. मेरे परिवार का पार्टी से दशकों पुराना नाता है.’

कुंठित पाकिस्तान के जख्मों पर क्रिकेट की सफलता ने मरहम लगाया

 देश-परदेस


पाकिस्तान की टीम टी-20 विश्व कप के फाइनल में हालांकि हार गई, पर उसने देश के राजनीतिक अनिश्चय और असंतोष के गहरे जख्मों पर मरहम पर लगाने का काम किया है. भले ही वे चैंपियन नहीं बने, पर उन्हें संतोष है कि जब हमें प्रतियोगिता से बाहर मान लिया गया, हमने न केवल वापसी की, बल्कि फाइनल में भी लड़कर हारे. इससे देश के स्वाभिमान को सिर उठाने का मौका मिला है. फिलहाल देश के अखबारों के पहले सफे पर फौरन चुनाव कराने की माँग की जगह क्रिकेट के किस्सों ने ले ली है.

पाकिस्तानी समाज तमाम मसलों पर मुख्तलिफ राय रखता है, आपस में लड़ता रहता है, पर जब क्रिकेट की बात होती है, तब पूरा देश एक हो जाता है. फाइनल मैच का गर्द-गुबार बैठ जाने के बाद भी क्रिकेट या यह खेल लोक-साहित्य, संगीत, गीतों और यूट्यूबरों के वीब्लॉगों में दिखाई पड़ रहा है. इसे देखना, पढ़ना और सुनना बड़ा रोचक है.  

राजनीतिक दृष्टि

पाकिस्तान में खेल और राजनीति को किस तरीके से जोड़ा जाता है, उसपर गौर करने की जरूरत भी है. फाइनल मैच के पहले एक पाकिस्तानी विश्लेषक ने लिखा, पाकिस्तान जीता तो मैं मानूँगा कि देश में पीएमएल(नून) की सरकार भाग्यशाली है. 1992 में इसी पार्टी की सरकार थी और आज भी है. बहरहाल टीम चैंपियन तो नहीं बनी, पर देश इस सफलता से भी संतुष्ट है.

इमरान खान के जिन समर्थकों ने इस्लामाबाद जाने वाली सड़कों की नाकेबंदी कर रखी थी, वे कुछ समय के लिए खामोश हो गए और उन्होंने बैठकर सेमीफाइनल और फाइनल मैच देखे. ऐसा कब तक रहेगा, पता नहीं पर इतना साफ है कि भारत की तरह पाकिस्तान भी क्रिकेट के दीवानों का मुल्क है. बल्कि हमसे एक कदम आगे है.