देश-परदेस
पाकिस्तान की टीम टी-20 विश्व कप के फाइनल में हालांकि हार गई, पर उसने देश के राजनीतिक अनिश्चय और असंतोष के गहरे जख्मों पर मरहम पर लगाने का काम किया है. भले ही वे चैंपियन नहीं बने, पर उन्हें संतोष है कि जब हमें प्रतियोगिता से बाहर मान लिया गया, हमने न केवल वापसी की, बल्कि फाइनल में भी लड़कर हारे. इससे देश के स्वाभिमान को सिर उठाने का मौका मिला है. फिलहाल देश के अखबारों के पहले सफे पर फौरन चुनाव कराने की माँग की जगह क्रिकेट के किस्सों ने ले ली है.
पाकिस्तानी समाज तमाम मसलों पर मुख्तलिफ राय
रखता है, आपस में लड़ता रहता है, पर जब क्रिकेट की बात होती है, तब पूरा देश एक हो
जाता है. फाइनल मैच का गर्द-गुबार बैठ जाने के बाद भी क्रिकेट या यह खेल
लोक-साहित्य, संगीत, गीतों और यूट्यूबरों के वीब्लॉगों में दिखाई पड़ रहा है. इसे
देखना, पढ़ना और सुनना बड़ा रोचक है.
राजनीतिक दृष्टि
पाकिस्तान में खेल और राजनीति को किस तरीके से
जोड़ा जाता है, उसपर गौर करने की जरूरत भी है. फाइनल मैच के पहले एक पाकिस्तानी
विश्लेषक ने लिखा, पाकिस्तान जीता तो मैं मानूँगा कि देश में पीएमएल(नून) की सरकार
भाग्यशाली है. 1992 में इसी पार्टी की सरकार थी और आज भी है. बहरहाल टीम चैंपियन
तो नहीं बनी, पर देश इस सफलता से भी संतुष्ट है.
इमरान खान के जिन समर्थकों ने इस्लामाबाद जाने वाली सड़कों की नाकेबंदी कर रखी थी, वे कुछ समय के लिए खामोश हो गए और उन्होंने बैठकर सेमीफाइनल और फाइनल मैच देखे. ऐसा कब तक रहेगा, पता नहीं पर इतना साफ है कि भारत की तरह पाकिस्तान भी क्रिकेट के दीवानों का मुल्क है. बल्कि हमसे एक कदम आगे है.