कोविड के नए वेरिएंट के सामने आने के बाद दुनिया के सामने कई प्रकार के खतरे खड़े हो रहे हैं। भारत में इसका सबसे बड़ा प्रभाव आर्थिक संवृद्धि पर पड़ सकता है। कम से कम दो जगहों पर हम प्रत्यक्ष रूप में इसे देख सकते हैं। एक, महंगाई और दूसरे बेरोजगारी। कच्चे माल की ऊँची कीमतों, परिवहन की लागत, सप्लाई चेन में अड़ंगों आदि के कारण लागत में वृद्धि के दबाव मुद्रास्फीति को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में ओमिक्रॉन, महंगाई और बेरोजगारी जैसे शब्द परेशान कर रहे हैं। उधर देश के विदेशी-मुद्रा भंडार में लगातार तीन सप्ताह से गिरावट है। गिरावट की वजह विदेशी मुद्रा आस्तियोंं (एफसीए) में गिरावट आना है, जो कुल मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
थोक मूल्य सूचकांक
देश में थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) 2011-12
सीरीज के अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है। उद्योग मंत्रालय ने 14 दिसंबर को थोक
महंगाई दर से जुड़े जो ताजा आँकड़े जारी किए हैं, उनके
मुताबिक, नवंबर 2021 में यह दर 14.23 प्रतिशत पर पहुंच
गई, जो पिछले 12 साल का उच्चतम स्तर है। एक साल
पहले नवंबर 2020 में यह 2.29 फीसदी थी। मुख्यतः खाद्य और ईंधन से जुड़ी ऊँची थोक
मुद्रास्फीति ने देश में महंगाई को रिकॉर्ड पर पहुँचा दिया। अब आशंका है कि आगामी
महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर पहुंच सकती है। ऐसा खाद्य
मुद्रास्फीति के 4.88 फीसदी पर पहुंचने और ईंधन महंगाई उच्च पेट्रोलियम कीमतों के
मुकाबले 39.81 फीसदी पर पहुंचने के कारण हुआ है। इस साल अप्रैल से लगातार आठवें
महीने थोक मुद्रास्फीति 10 फीसदी के ऊपर बनी हुई है।
बेमौसम तेजी
सब्जियों की कीमत में बेमौसम तेजी के साथ अंडों,
मांस और मछली के दामों में वृद्धि तथा मसालों के दाम में आई तेजी ने
प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति को नवंबर महीने में 4.9 फीसदी के साथ 13 महीनों के
उच्च स्तर पर पहुँचा दिया है। थोक बाजार में कीमतों में हुए बदलाव को बताया है थोक
मूल्य सूचकांक। इसका मकसद बाजार में उत्पादों की गतिशीलता पर नजर रखना है, ताकि माँग और आपूर्ति की स्थिति का पता चल सके। इससे निर्माण उद्योग
और उत्पादन से जुड़ी स्थितियों का पता भी लगता रहता है। पर इस सूचकांक में सर्विस
सेक्टर की कीमतें शामिल नहीं होतीं,
और यह बाजार के उपभोक्ता मूल्य की स्थिति को भी
नहीं दिखाता है। पहले डब्लूपीआई का बेस ईयर 2004-05 था, लेकिन
अप्रैल 2017 में इसे बदलकर 2011-12 कर दिया गया है।
नागरिकों पर प्रभाव
पुराने बेस ईयर के हिसाब से देखें, तो डब्लूपीआई अप्रैल 2005 से लेकर अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर है। ग्राहक के तौर पर हम खुदरा बाजार से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में बदलाव उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में दिखाई पड़ता है। सरकार ने डब्लूपीआई के साथ ही सीपीआई के ताजा आँकड़े भी जारी किए हैं। इसके मुताबिक, सीपीआई पर आधारित खुदरा महंगाई दर नवंबर 2021 में 4.91 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह दर तीन महीने के उच्चतम स्तर पर है। बहरहाल थोक मूल्य सूचकांक बढ़ा, तो उपभोक्ता सूचकांक भी बढ़ेगा। फिलहाल वह 4.91 प्रतिशत है, जो रिजर्व बैंक की संतोष-रेखा छह प्रतिशत के भीतर है। फिर भी थोक और खुदरा का असंतुलन चिंता पैदा कर रहा है।