Sunday, December 19, 2021

अर्थव्यवस्था पर महंगाई का खतरा


 कोविड के नए वेरिएंट के सामने आने के बाद दुनिया के सामने कई प्रकार के खतरे खड़े हो रहे हैं। भारत में इसका सबसे बड़ा प्रभाव आर्थिक संवृद्धि पर पड़ सकता है। कम से कम दो जगहों पर हम प्रत्यक्ष रूप में इसे देख सकते हैं। एक, महंगाई और दूसरे बेरोजगारी। कच्चे माल की ऊँची कीमतों, परिवहन की लागत, सप्लाई चेन में अड़ंगों आदि के कारण लागत में वृद्धि के दबाव मुद्रास्फीति को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में ओमिक्रॉन, महंगाई और बेरोजगारी जैसे शब्द परेशान कर रहे हैं। उधर देश के विदेशी-मुद्रा भंडार में लगातार तीन सप्ताह से गिरावट है। गिरावट की वजह विदेशी मुद्रा आस्तियोंं (एफसीए) में गिरावट आना है, जो कुल मुद्रा भंडार का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

थोक मूल्य सूचकांक

देश में थोक मूल्य सूचकांक (डब्लूपीआई) 2011-12 सीरीज के अपने अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है। उद्योग मंत्रालय ने 14 दिसंबर को थोक महंगाई दर से जुड़े जो ताजा आँकड़े जारी किए हैं, उनके मुताबिक, नवंबर 2021 में यह दर 14.23 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पिछले 12 साल का उच्चतम स्तर है। एक साल पहले नवंबर 2020 में यह 2.29 फीसदी थी। मुख्यतः खाद्य और ईंधन से जुड़ी ऊँची थोक मुद्रास्फीति ने देश में महंगाई को रिकॉर्ड पर पहुँचा दिया। अब आशंका है कि आगामी महीनों में खुदरा मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर पहुंच सकती है। ऐसा खाद्य मुद्रास्फीति के 4.88 फीसदी पर पहुंचने और ईंधन महंगाई उच्च पेट्रोलियम कीमतों के मुकाबले 39.81 फीसदी पर पहुंचने के कारण हुआ है। इस साल अप्रैल से लगातार आठवें महीने थोक मुद्रास्फीति 10 फीसदी के ऊपर बनी हुई है।

बेमौसम तेजी

सब्जियों की कीमत में बेमौसम तेजी के साथ अंडों, मांस और मछली के दामों में वृद्धि तथा मसालों के दाम में आई तेजी ने प्राथमिक खाद्य मुद्रास्फीति को नवंबर महीने में 4.9 फीसदी के साथ 13 महीनों के उच्च स्तर पर पहुँचा दिया है। थोक बाजार में कीमतों में हुए बदलाव को बताया है थोक मूल्य सूचकांक। इसका मकसद बाजार में उत्पादों की गतिशीलता पर नजर रखना है, ताकि माँग और आपूर्ति की स्थिति का पता चल सके। इससे निर्माण उद्योग और उत्पादन से जुड़ी स्थितियों का पता भी लगता रहता है। पर इस सूचकांक में सर्विस सेक्टर की कीमतें शामिल नहीं होतींऔर यह बाजार के उपभोक्ता मूल्य की स्थिति को भी नहीं दिखाता है। पहले डब्लूपीआई का बेस ईयर 2004-05 था, लेकिन अप्रैल 2017 में इसे बदलकर 2011-12 कर दिया गया है।

नागरिकों पर प्रभाव

पुराने बेस ईयर के हिसाब से देखें, तो डब्लूपीआई अप्रैल 2005 से लेकर अब तक के अपने उच्चतम स्तर पर है। ग्राहक के तौर पर हम खुदरा बाजार से सामान खरीदते हैं। इससे जुड़ी कीमतों में बदलाव उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में दिखाई पड़ता है। सरकार ने डब्लूपीआई के साथ ही सीपीआई के ताजा आँकड़े भी जारी किए हैं। इसके मुताबिक, सीपीआई पर आधारित खुदरा महंगाई दर नवंबर 2021 में 4.91 प्रतिशत पर पहुंच गई है। यह दर तीन महीने के उच्चतम स्तर पर है। बहरहाल थोक मूल्य सूचकांक बढ़ा, तो उपभोक्ता सूचकांक भी बढ़ेगा। फिलहाल वह 4.91 प्रतिशत है, जो रिजर्व बैंक की संतोष-रेखा छह प्रतिशत के भीतर है। फिर भी थोक और खुदरा का असंतुलन चिंता पैदा कर रहा है।

Thursday, December 16, 2021

बांग्लादेश के 50 वर्ष


दूसरे विश्वयुद्ध के बाद बांग्लादेश पहला ऐसा देश था, जो युद्ध के बाद नए देश के रूप में सामने आया था। इस देश के उदय ने भारतीय भूखंड के धार्मिक विभाजन को गलत साबित किया। पूर्वी पाकिस्तान हालांकि मुस्लिम-बहुत इलाका था, पर वह बंगाली था। यह बात शायद आज भी पाकिस्तान के सूत्रधारों को समझ में नहीं आती है। पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना को भी यह बात समझ में नहीं आई थी। उन्होंने 1948 में ढाका विवि में कहा कि किसी को संदेह नहीं रहना चाहिए, पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा उर्दू होगी। उन्होंने उर्दू के साथ बांग्ला को भी देश की राष्ट्रभाषा बनाने की माँग करने वालों को  इस भाषण से बांग्लादेश की नींव उसी दिन पड़ गई थी। यह सब अब इतिहास के पन्नों में दर्ज है, पर बांग्लादेश के पचास वर्ष पूरे होने पर भारतीय भूखंड के विभाजन की याद फिर से ताजा हो रही है।

दक्षिण एशिया में विभाजन की कड़वाहट अभी तक कायम है, पर यह एकतरफा और एक-स्तरीय नहीं है। पाकिस्तान का सत्ता-प्रतिष्ठान भारत-विरोधी है, फिर भी वहाँ जनता के कई तबके भारत में अपनापन भी देखते हैं। बांग्लादेश का सत्ता-प्रतिष्ठान भारत-मित्र है, पर कट्टरपंथियों का एक तबका भारत-विरोधी भी है। भारत में भी एक तबका बांग्लादेश के नाम पर भड़कता है। उसकी नाराजगी ‘अवैध-प्रवेश’ को लेकर है या उन भारत-विरोधी गतिविधियों के कारण जिनके पीछे सांप्रदायिक कट्टरपंथी हैं। पर भारतीय राजनीति, मीडिया और अकादमिक जगत में बांग्लादेश के प्रति आपको कड़वाहट नहीं मिलेगी। शायद इन्हीं वजहों से पड़ोसी देशों में भारत के सबसे अच्छे रिश्ते बांग्लादेश के साथ हैं।

पचास साल का अनुभव है कि बांग्लादेश जब उदार होता है, तब भारत के करीब होता है। जब कट्टरपंथी होता है, तब भारत-विरोधी। शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग की सरकार के साथ भारत के अच्छे रिश्तों की वजह है 1971 की वह ‘विजय’ जिसे दोनों देश मिलकर मनाते हैं। वही विजय कट्टरपंथियों के गले की फाँस है। पिछले 12 वर्षों में अवामी लीग की सरकार ने भारत के पूर्वोत्तर में चल रही देश-विरोधी गतिविधियों पर रोक लगाने में काफी मदद की है। भारत ने भी शेख हसीना के खिलाफ हो रही साजिशों को उजागर करने और उन्हें रोकने में मदद की है। 

Sunday, December 12, 2021

कोरोना और वैश्विक-जागरूकता


संयोग है कि आज अंतर्राष्ट्रीय सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज दिवसहै और हम  ओमिक्रॉन पर चर्चा कर रहे हैं, जो सार्वभौमिक-स्वास्थ्य के लिए नए खतरे के रूप में सामने आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिन हर साल 12 दिसंबर को मनाया जाता है। सार्वभौमिक-स्वास्थ्य वैसा ही एक अधिकार है, जैसे जीवित रहना, शिक्षा प्राप्त करना, रोजगार पाना और विचरण करना जैसे मानवाधिकार हैं। उद्देश्य सार्वभौमिक-स्वास्थ्य कवरेज के बारे में जागरूकता को बढ़ाना है। इस साल की थीम हैकिसी के स्वास्थ्य की उपेक्षा न हो, सबके स्वास्थ्य पर निवेश हो। आइए दुनिया के स्वास्थ्य और उससे जुड़ी जागरूकता पर एक नजर डालें।

गरीबों को मयस्सर नहीं

दूसरे से तीसरे साल में प्रवेश कर रही महामारी और वैश्विक स्वास्थ्य-कवरेज पर विचार के लिए यह उचित समय है। टीकाकरण ठीक से हुआ, तो सार्वभौमिक इम्यूनिटी पैदा हो सकती है। पर इसमें भारी असमानता वैश्विक गैर-बराबरी को रेखांकित कर रही है। टीके कारगर हैं, पर उस स्तर को नहीं छू पा रहे हैं, जिससे हर्ड इम्युनिटी पैदा हो। अमीर देशों में टीके इफरात से हैं और लगवाने वाले उनका विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ गरीब देशों में लोग टीकों का इंतजार कर रहे हैं, और उन्हें टीके मयस्सर नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है कि अमीर देश, वैक्सीन वितरण के लिए यूएन समर्थित ‘कोवैक्स’ पहल में मदद करने के बजाय, टीकों को अपने कब्जे में रखेंगे, तो महामारी का जोखिम बढ़ेगा।

अनैतिक-अत्याचार

तमाम नकारात्मक खबरों के बावजूद विशेषज्ञों को भरोसा है कि आने वाले साल में महामारी पर नियंत्रण पाना संभव है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की मुख्य विशेषज्ञ मारिया वान करखोव ने हाल में पत्रकारों से कहा था, महामारी को रोकने के औजार हमारे हाथों में है। जरूरत ऐसे पड़ाव पर पहुँचने की है जहाँ से कह सकें कि संक्रमण पर नियंत्रण पा लिया गया है। अब तक हम ऐसा कर भी सकते थे, पर कर नहीं पाए। अमीर देशों में करीब 65 प्रतिशत लोग टीके लगवा चुके हैं और गरीब देशों में सात प्रतिशत को टीके की कम से कम एक खुराक मिली है। यह असंतुलन अनैतिक और अत्याचार है। रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गुरुवार को अमीर देशों को चेतावनी दी कि वे अपने यहाँ बूस्टर शॉट्स की व्यवस्था के बारे में फिलहाल न सोचें, बल्कि गरीब देशों के लिए टीके भेजें, क्योंकि वहाँ टीकाकरण बहुत धीमा है।

जबर्दस्त असंतुलन

जनसंख्या के आधार पर देखें, तो अमीर देशों में गरीब देशों की तुलना में 17 गुना टीकाकरण हुआ है। पीपुल्स वैक्सीन अलायंस संगठन के अनुसार अकेले ब्रिटेन में तीसरे बूस्टर शॉट्स की संख्या निर्धनतम देशों के कुल वैक्सीनेशन से ज्यादा है। युनिसेफ के अनुसार 10 दिसंबर तक दुनिया के 144 देशों को कोवैक्स के माध्यम से केवल 65 करोड़ से कुछ ऊपर डोज़ मिल पाई हैं। अफ्रीका की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी को पहली डोज़ भी नहीं मिल पाई है। ये गरीब देश पूरी तरह से कोवैक्स-व्यवस्था पर ही निर्भर हैं। उदाहरण के लिए हेती में 1.00, कांगो में 0.02 और बुरुंडी में 0.01 फीसदी लोगों को कम से कम एक डोज़ लगी है।

Friday, December 10, 2021

किसान-आंदोलन के बाद अब क्या होगा?


करीब 14 महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसानों ने आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा की है। अब देखना होगा कि यह विषय राष्ट्रीय-विमर्श का विषय रहता है नहीं। किसान इसे अपनी विजय मान सकते हैं, पर सरकार को इसे अपनी पराजय नहीं मानना चाहिए। अभी तक कोई भी निर्णायक फैसला नहीं हुआ है, केवल वे तीन कानून वापस हुए हैं, जिन्हें सरकार लाई थी। इन कानूनों की प्रासंगिकता और निरर्थकता को लेकर अब विचार होना चाहिए।

कृषि-सुधार पर विमर्श

अभी इस विषय पर चर्चा नहीं हुई है कि सरकार कानून लाई ही क्यों थी। क्या भारतीय कृषि में सुधार की जरूरत है? सुधार किस प्रकार का हो और कैसे होगा? देश की राजनीतिक व्यवस्था और खासतौर से लोकलुभावन राजनीति ने कर्जों की माफी, सब्सिडी, मुफ्त बिजली, एमएसपी वगैरह को कृषि-सुधार मान लिया है। इन सारे प्रश्नों पर भी विचार की जरूरत है। सरकार ने भी कुछ छोटी-मोटी कोशिशों के अलावा इस विषय पर ज्यादा विमर्श की कोशिश नहीं की।

इस विमर्श में किसान-संगठनों को शामिल करना उपयोगी और जरूरी है। यह विमर्श पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ देशभर के किसानों के साथ देश के सभी क्षेत्रों के किसानों के साथ होना चाहिए। उनके दीर्घकालीन हितों पर भी विचार होना चाहिए, साथ ही अर्थव्यवस्था के दीर्घकालीन प्रश्नों पर उन्हें भी विचार करना चाहिए। यह केवल किसानों या केवल खेती का मामला नहीं है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था का मामला है। इसके साथ ग्रामीण-अर्थव्यवस्था के सवाल जुड़े हैं।

जब हम किसान की बात करते हैं, तब सारे मामले बड़ी जोत वाले भूस्वामियों तक सिमट जाते हैं। गाँवों में भूस्वामियों की तुलना में भूमिहीन खेत-मजदूरों का तादाद कई गुना ज्यादा है। उन्हें काम देने के बारे में भी विचार होना चाहिए।

15 जनवरी को समीक्षा

संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बार्डर पर अहम बैठक के बाद किसान आंदोलन का स्थगित करने का ऐलान किया। इसके साथ यह भी कहा गया है कि 15 जनवरी को मोर्चा की समीक्षा बैठक होगी। यदि केंद्र सरकार ने बातें नहीं मानीं तो आंदोलन फिर शुरू होगा। ऐसा इशारा भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की ओर से किया गया है। गुरनाम सिंह चढूनी ने भी कहा कि हम इस आंदोलन के दौरान सरकार से हुए करार की समीक्षा करते रहेंगे। यदि सरकार अपनी ओर से किए वादों से पीछे हटती है तो फिर से आंदोलन शुरू किया जा सकता है। इस आंदोलन ने सरकार को झुकाया है।

दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बार्डर (कुंडली बार्डर) शंभु बार्डर तक जुलूस के रूप में किसान प्रदर्शनकारी जाएंगे। इसके बीच में करनाल में पड़ाव हो सकता है। प्रदर्शनकारियों की वापसी के दौरान हरियाणा के किसान पंजाब जाने वाले किसानों पर जगह-जगह पुष्प वर्षा करेंगे। इसके बाद 13 दिसंबर को किसान अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में अरदास करेंगे और अपने घरों को चले जाएंगे।  

Thursday, December 9, 2021

देश ने उच्च-स्तरीय सैन्य-रणनीतिकार खोया


जनरल विपिन रावत के रूप में देश ने उच्च-स्तरीय सैन्य रणनीतिकार और अनुभवी जनरल को खोया है। जनरल विपिन रावत के निधन के बाद देश की सामरिक-रणनीति बनाने के काम को धक्का लगेगा, क्योंकि उच्च-स्तर पर शून्य पैदा हो गया है। उनकी भरपाई आसान नहीं होगी। जनरल रावत केवल सीडीएस ही नहीं थे, बल्कि सैनिक मामलों के विभाग के सचिव भी थे, जो एकदम नया विभाग है। सीडीएस के अलावा उनके पास तीन पद और थे। एक था सैनिक मामलों के विभाग (डीएमए) के सचिव का और दूसरे वे चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष थे और तीसरे रक्षामंत्री के प्रमुख सलाहकार थे।

उच्च-स्तर पर शून्य

आज के हिंदू में दिनकर पेरी ने इस विषय पर रिपोर्ट लिखी है। जनरल रावत देश की महत्वाकांक्षी थिएटर कमांड रणनीति बना रहे थे, जिस काम को अब धक्का लगेगा। वे साहसी, साफ फैसले करने वाले, किसी भी जोखिम से नहीं डरने वाले और निजी स्तर पर बेहद ईमानदार व्यक्ति थे। तीनों सेनाओं के बीच ऑपरेशंस, लॉजिस्टिक्स, परिवहन, ट्रेनिंग, सपोर्ट सेवाओं, संचार और रिपेयर-मेंटीनेंस जैसे कार्यों में एकता स्थापित करने के लिए संरचना के स्तर पर काफी काम करने बाकी हैं। इस काम को करने के लिए तीनों सेनाओं की सहमति और सक्रिय भागीदारी की जरूरत है।

जनरल रावत का कार्यकाल मार्च 2023 तक था। सीडीएस के पद पर काम करने की आयु सीमा 65 वर्ष है। तीनों सेनाओं में अब सबसे वरिष्ठ अधिकारी जनरल एमएम नरवणे हैं, जिनका कार्यकाल अप्रेल 2022 तक है। उनकी तुलना में शेष दोनों सेनाओं के अध्यक्ष अपेक्षाकृत नए हैं। नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर हरि कुमार ने अभी हाल में 30 नवंबर को कार्यभार संभाला है और वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी ने 30 सितंबर को।

दृष्टि, दिल और दिमाग

आज के हिंदू ने जनरल रावत के साथ (जब वे सेनाध्यक्ष थे) काम कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल एके भट्ट का लेख प्रकाशित किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि जनरल रावत के पास इन कार्यों को पूरा करने की दृष्टि, क्षमता, दिल और दिमाग  सब थे। वे सैन्य-कर्म के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध थे। उन्होंने लिखा है कि जब मैं डीजीएमओ था, तब केवल डोकलाम के मामले में ही नहीं ऑपरेशनल स्तर पर सभी मामलों में स्पष्ट निर्देश होते थे और जोखिम से बचने की कोई प्रवृत्ति नहीं थी।

क्रैश के बाद भी जीवित थे

नवभारत टाइम्स की वैबसाइट के अनुसार हेलीकॉप्टर दुर्घटना में जान गँवाने वाले के प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत क्रैश के बाद भी जिंदा थे। हादसे के बाद हेलीकॉप्टर के मलबे से निकाले जाने पर उन्होंने हिंदी में अपना नाम भी बताया था। यह जानकारी बचाव दल के एक सदस्य ने दी। जनरल रावत के साथ एक अन्य सवार को भी निकाला गया था। बाद में उनकी पहचान ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह के रूप में हुई। ग्रुप कैप्टन हादसे में जिंदा बचे एकमात्र व्यक्ति है। उनका अभी इलाज चल रहा है।

बीबीसी हिंदी ने कृष्‍णास्‍वामी नाम के व्यक्ति को उधृत किया है, जिसने बताया, "मैंने अपनी आंखों से सिर्फ़ एक आदमी को देखा. वो जल रहे थे और फिर वो नीचे गिर गए. मैं हिल गया।" कृष्णस्वामी बुधवार को हुए उस हेलिकॉप्टर हादसे के प्रत्यक्षदर्शी हैं, जिसमें देश के पहले चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत की मौत हो गई।

अपना नाम बताया

नवभारत टाइम्स के अनुसार दुर्घटना के बाद घटना स्थल पर पहुंचे वरिष्ठ फायरमैन और बचावकर्मी एनसी मुरली ने बताया कि हमने दो लोगों को जिंदा बचाया। इनमें से एक सीडीएस रावत थे। जैसे ही हमने उन्हें बाहर निकाला, उन्होंने रक्षा कर्मियों से हिंदी में धीमे स्वर में बात की और अपना नाम बोला। अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई। मुरली के अनुसार, वेे तुरंत दूसरे व्यक्ति की पहचान नहीं कर सके, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया और उनका अभी इलाज चल रहा है।