भारत और चीन के
बीच लद्दाख में चल रहा टकराव टल भी जाए, यह सवाल अपनी जगह रहेगा
कि चीन से हमारे रिश्तों की दिशा क्या होगी?
क्या हम उसकी
बराबरी कर पाएंगे? या हम उसकी धौंस में आएंगे? पर पहले वर्तमान विवाद के पीछे चीनी मंशा का पता लगाने को
कोशिश करनी होगी। तीन बड़े कारण गिनाए जा रहे हैं। भारत ने वास्तविक नियंत्रण के
पास सड़कों और हवाई पट्टियों का जाल बिछाना शुरू कर दिया है। हालांकि तिब्बत में
चीन यह काम काफी पहले कर चुका है, पर वह भारत के साथ हुई
कुछ सहमतियों का हवाला देकर कहता है कि ये निर्माण नहीं होने चाहिए।
दूसरा कारण है
दक्षिण चीन सागर और हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारतीय नौसेना की भूमिका। हम कमोबेश
चतुष्कोणीय सुरक्षा व्यवस्था यानी ‘क्वाड’ में शामिल हैं। यों हम औपचारिक रूप से
कहते हैं कि यह चीन के खिलाफ नहीं है। इसी 4 जून को भारत और
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्रियों ने एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौते पर दस्तखत किए हैं, जिसपर चीनी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने कड़ी प्रतिक्रिया
व्यक्त की है। अखबार ने चीनी विशेषज्ञ सु हाओ के हवाले से कहा है कि भारत अपनी
डिप्लोमैटिक स्वतंत्रता का दावा करता रहा है,
पर देखना होगा कि
वह कितना स्वतंत्र है।