हाल में एक छोटी
सी खबर पढ़ने को मिली कि कोविड-19 को देखते हुए 25 मार्च से माताओं और दो साल तक के बच्चों की ठप पड़ी टीकाकरण
स्कीम फिर से शुरू हो गई है। पूरे देश में अभी सामान्य व्यवस्था कायम हुई नहीं है,
इसलिए कहना मुश्किल है कि देशभर का क्या हाल हैं, पर इतना जाहिर है कि कोरोना
वायरस के कारण छोटे बच्चों का टीकाकरण प्रभावित हुआ है। इस दौरान अप्रेल के अंतिम
सप्ताह में हमने वैश्विक टीकाकरण सप्ताह भी मनाया, पर टीकाकरण की गाड़ी ठप पड़ी रही।
कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में भारत का सकारात्मक पहलू है हमारा अनिवार्य टीकाकरण
कार्यक्रम। माना जा रहा कि भारत के लोगों में कई प्रकार के रोगों की प्रतिरोधक
शक्ति है। कम से कम 20 ऐसे रोग हैं, जिन्हें टीके की मदद से रोका जा सकता है।
इन दिनों हम
कोरोना के खिलाफ जिन आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका की प्रशंसा कर रहे
हैं, वे हमारे मातृ एवं शिशु कार्यक्रम की ध्वजवाहक हैं। उनकी तारीफ के साथ यह
बताना भी जरूरी है कि कोविड-19 की अफरातफरी ने टीकाकरण कार्यक्रम को धक्का
पहुँचाया है। केवल टीकाकरण की बात ही नहीं है। कोरोना के
खिलाफ लड़ाई के इस दौर में जल्दबाजी, असावधानी या प्राथमिकताओं के निर्धारण में
बरती गई नासमझी में सामान्य स्वास्थ्य की जो अनदेखी हुई है, अब उसकी तरफ भी ध्यान
दिया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य सेवाओं पर लॉकडाउन
लॉकडाउन के साथ-साथ अचानक दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं की तरफ से
हमारा ध्यान हट गया। ऐसे में कैंसर, हृदय, लिवर और किडनी और दूसरी बीमारियों से
परेशान रोगियों के लिए आवश्यक सुविधाओं में कमी आ गई। कोविड-19 लिए विशेष
अस्पतालों की व्यवस्थाओं को स्थापित करने के कारण अस्पतालों की ओपीडी सेवाएं बंद
हो गईं। डायलिसिस और कीमोथिरैपी जैसी जरूरी चिकित्सा सुविधाएं भी प्रभावित हुईं। केवल
स्वास्थ्य सुविधाएं ही नहीं दुनियाभर के बच्चों की पढ़ाई को नुकसान पहुँचा है। इन
दिनों बच्चे और किशोर किस मनोदशा से गुजर रहे हैं, इसका अनुमान लगाना काफी मुश्किल
है।