लोकसभा चुनाव में
मिली भारी पराजय के बाद कांग्रेस पार्टी को संभलने का मौका भी नहीं मिला था कि
कर्नाटक और तेलंगाना में बगावत हो गई। राहुल गांधी के इस्तीफे के कारण पार्टी के
सामने केंद्रीय नेतृत्व और संगठन को फिर से खड़ा करने की चुनौती है। फिलहाल सोनिया
गांधी को फिर से सामने लाने के अलावा पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं था। अब पहले
महाराष्ट्र और हरियाणा और उसके बाद झारखंड और फिर दिल्ली में विधानसभा चुनावों की
चुनौती है। इनका आगाज़ भी अच्छा होता नजर नहीं आ रहा है।
महाराष्ट्र में
संजय निरुपम और हरियाणा में अशोक तँवर के बगावती तेवर ‘प्रथम ग्रासे मक्षिका पातः’ की कहावत को दोहरा रहे
हैं। महाराष्ट्र में संजय निरुपम भले ही बहुत बड़ा खतरा साबित न हों, पर हरियाणा
में पहले से ही आंतरिक कलह के कारण लड़खड़ाती कांग्रेस के लिए यह अशुभ समाचार है। संजय
और अशोक दोनों का कहना है कि पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है।
दोनों की बातों से लगता है कि पार्टी में राहुल गांधी के वफादारों की अनदेखी की जा
रही है।