Tuesday, February 12, 2019

अफ़ग़ानिस्तान में भारतीय भूमिका की परीक्षा

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अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी अब लगभग निश्चित है. अमेरिका मानता है कि पाकिस्तानी सहयोग के बिना यह समझौता सम्भव नहीं था. उधर तालिबान भी पाकिस्तान का शुक्रगुजार है. रविवार 10 फरवरी को पाकिस्तान के डॉन न्यूज़ टीवी पर प्रसारित एक विशेष इंटरव्यू में तालिबान प्रवक्ता ज़बीउल्ला मुजाहिद ने कहा कि हम सत्ता में वापस आए तो पाकिस्तान को भाई की तरह मानेंगे. उन्होंने कहा कि इस वक्त अफ़ग़ानिस्तान में जो संविधान लागू है, वह अमेरिकी हितों के अनुरूप है. हमारा शत-प्रतिशत मुस्लिम समाज है और हमारा संविधान शरिया पर आधारित होगा.

इसके पहले 6 फरवरी को मॉस्को में रूस की पहल पर हुई बातचीत में आए तालिबान प्रतिनिधियों ने कहा कि हम समावेशी इस्लामी-व्यवस्था चाहते हैं, इसलिए नया संविधान लाना होगा. तालिबानी प्रतिनिधिमंडल के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ाई ने कहा कि काबुल सरकार का संविधान अवैध है. उसे पश्चिम से आयात किया गया है. वह शांति के रास्ते में अवरोध बनेगा. हमें इस्लामिक संविधान लागू करना होगा, जिसे इस्लामिक विद्वान तैयार करेंगे.

सवाल है कि अफ़ग़ानिस्तान की काबुल सरकार को मँझधार में छोड़कर क्या अमेरिकी सेना यों ही वापस चली जाएगी? पाकिस्तानी सेना के विशेषज्ञों को लगता है कि अब तालिबान शासन आएगा. वे मानते हैं कि तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत में उनके देश ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है और इसका पुरस्कार उसे मिलना चाहिए. अख़बार ‘दुनिया’ में प्रकाशित एक आलेख के मुताबिक़ पाकिस्तान ने तालिबान पर दबाव डाला कि वे अमेरिका से बातचीत के लिए तैयार हो जाएं. इस वक्त वह ऐसा भी नहीं जताना चाहता कि तालिबान उसके नियंत्रण में है. अलबत्ता अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान की सरकार को आश्वस्त किया है कि हम उसे मँझधार में छोड़कर जाएंगे नहीं. अमेरिका शुरू से मानता रहा है कि तालिबान को पाकिस्तान में सुरक्षित पनाह मिली हुई है.

Monday, February 11, 2019

ममता के पराभव का दौर


अंततः कोलकाता के पुलिस-कमिश्नर राजीव कुमार को सीबीआई के सामने पेश होना पड़ा। इसके पहले इस परिघटना ने जो राजनीतिक शक्ल ली, वह परेशान करने वाली है। अभी तक हम सीबीआई के राजनीतिक इस्तेमाल की बातें करते रहे हैं, पर इस मामले में राज्य पुलिस के राजनीतिक इस्तेमाल का उदाहरण भी है। गत 3 फरवरी को सीबीआई ने राजीव कुमार के घर जाने का फैसला अचानक नहीं किया। उन्हें पिछले डेढ़ साल में चार समन भेजे गए थे। चौथा समन दिसम्बर 2018 में गया था। राज्य पुलिस और सीबीआई के बीच पत्राचार हुआ था।

सीबीआई के फैसले पर भी सवाल हैं। जब सीबीआई के नए डायरेक्टर आने वाले थे, तब अंतरिम डायरेक्टर के अधीन इतना बड़ा फैसला क्यों हुआ? पर सीबीआई पूछताछ करने गई थी, गिरफ्तार करने नहीं। तब मीडिया में ऐसी खबरें किसने फैलाईं कि उन्हें गिरफ्तार किया जाने वाला है? फिर राज्य पुलिस के कुछ अफसरों का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ धरने पर बैठने को क्या कहेंगे? यह बात अपने आप में आश्चर्यजनक है कि किसी पुलिस-प्रमुख से पूछताछ के लिए सीबीआई के सामने समन जारी करने की नौबत आ जाए।

विस्मय है कि आर्थिक अपराध को विरोधी दल राजनीतिक चश्मे से देख रहे हैं। इस बात से आँखें मूँद रहे हैं कि पुलिस को राज्य सरकार के एजेंट के रूप में तब्दील कर दिया गया है। यह सिर्फ बंगाल में नहीं हुआ है, हर राज्य में ऐसा है। सुप्रीम कोर्ट ने सन 2006 में पुलिस सुधार के निर्देश जारी किए थे, उनपर आजतक अमल नहीं हुआ है। सन 2013 में इशरत जहाँ के मामले में सीबीआई और आईबी के बीच जबर्दस्त मतभेद पैदा हो गया था। केन्द्र की यूपीए सरकार ने गुजरात के बीजेपी-नेताओं को घेरने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल किया।  आज हमें उसका दूसरा रूप देखने को मिल रहा है।

Thursday, February 7, 2019

दिल्ली में आप-कांग्रेस और भाजपा

दिल्ली में पिछले कुछ महीनों से आम आदमी पार्टी कांग्रेस पर दबाव बना रही है कि बीजेपी को हराना है, जो हमारे साथ गठबंधन करना होगा। हाल में हरियाणा के जींद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी रणदीप सिंह सुरजेवाला के तीसरे स्थान पर रहने के बाद अरविंद केजरीवाल ने इस बात को फिर दोहराया। उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस अगर दिल्ली की सातों सीटें जीतने की गारंटी दे, तो हम सभी सीटें छोड़ने को तैयार हैं। सवाल है कि ऐसी गारंटी कौन दे सकता है? हो सकता है कि आम आदमी पार्टी ऐसी गारंटी देने की स्थिति में हो, पर कांग्रेस के सामने केवल बीजेपी को हराने का मसला ही नहीं है। 

कांग्रेस को उत्तर भारत में अपनी स्थिति को बेहतर बनाना है, तो उसे अपनी स्वतंत्र राजनीति को भी मजबूत करना होगा। उत्तर प्रदेश में नब्बे के दशक में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के सामने हथियार डाल दिए थे और मान लिया था कि बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में एकमात्र सहारा सपा ही है। उस रणनीति के कारण यूपी में वह अपनी जमीन पूरी तरह खो चुकी है। दिल्ली में अभी उसकी स्थिति इतनी खराब नहीं है। दूसरे उसे भविष्य में खड़े रहना है, तो सबसे पहले आम आदमी पार्टी को किनारे करना होगा। क्योंकि बीजेपी के खिलाफ दो मोर्चे बनाने पर हर हाल में फायदा बीजेपी को होगा। भले ही आज फायदा न मिले, पर दीर्घकालीन लाभ अकेले खड़े रहने में ही है। 

Wednesday, February 6, 2019

सीबीआई और पुलिस का राजनीतिकरण

http://inextepaper.jagran.com/2013528/Agra-Hindi-ePaper,-Agra-Hindi-Newspaper-–-InextLive/06-02-19#page/8/1
सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पुलिस-कमिश्नर राजीव कुमार की गिरफ्तारी रोकने के बावजूद सीबीआई की पूछताछ से उन्हें बरी नहीं किया है. यह पूछताछ होगी. इस मामले में किसी की जीत या हार नहीं हुई है. टकराव फौरी तौर पर टल गया है, पर उसके बुनियादी कारण अपनी जगह कायम हैं. राजनीतिक मसलों में सीबीआई के इस्तेमाल का आरोप देश में पहली बार नहीं लगा है, और लगता नहीं कि केन्द्र की कोई भी सरकार इसे बंधन-मुक्त करेगी. उधर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद राज्य सरकारें पुलिस-सुधार को तैयार नहीं हैं. वे पुलिस का इस्तेमाल अपने तरीके से करना चाहती हैं. राजनीतिकरण इधर भी है और उधर भी.
राजीव कुमार के घर पर छापामारी के समय और तौर-तरीके के कारण विवाद खड़ा हुआ है. सीबीआई जानना चाहती है कि विशेष जाँच दल के प्रमुख के रूप में उन्होंने सारदा घोटाले की क्या जाँच की और उनके पास कौन से दस्तावेज हैं. इस जानकारी को हासिल करने कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए और उसमें अड़ंगे लगाना गलत है, पर देखना होगा कि सीबीआई का तरीका क्या न्याय संगत था? क्या उसने वे सारी प्रक्रियाएं पूरी कर ली थीं, जो इस स्तर के अफसर से पूछताछ के लिए होनी चाहिए? इन बातों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी सुनवाई के बाद ही आएगा.
केन्द्र और ममता बनर्जी दोनों इस मामले का राजनीतिक इस्तेमाल कर रहे हैं. बीजेपी बंगाल में प्रवेश करके ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें हासिल करने की कोशिश में है, वहीं ममता बनर्जी खुद को बीजेपी-विरोधी मुहिम की नेता के रूप में स्थापित कर रहीं हैं. हाल में उनकी सरकार ने बीजेपी को बंगाल में रथ-यात्राएं निकालने से रोका है. बीजेपी बंगाल के ग्रामीण इलाकों में प्रवेश कर रही है. तृणमूल-विरोधी सीपीएम के कार्यकर्ता बीजेपी में शामिल होते जा रहे हैं.
संघीय-व्यवस्था में केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच इस प्रकार का विवाद अशोभनीय है. देश की जिन कुछ महत्वपूर्ण संस्थाओं को जनता की जानकारी के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है, उनमें सीबीआई भी है. इसके पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा और मामलों की संवेदनशीलता को मुख्य कारण बताया जाता है, पर जैसे ही इस संस्था को स्वायत्त बनाने और सरकारी नियंत्रण से बाहर रखने की बात होती है, सभी सरकारें हाथ खींच लेती हैं.

Sunday, February 3, 2019

सीमांत किसान और मध्यवर्ग का बजट

http://epaper.haribhoomi.com/?mod=1&pgnum=1&edcode=75&pagedate=2019-02-03
इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार का चुनावी साल का बजट लोक-लुभावन बातों से भरपूर है, पर इसके पीछे सामाजिक-दृष्टि भी है। इस बजट से तीन तबके सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। एक सीमांत किसान, दूसरे असंगठित क्षेत्र के श्रमिक और तीसरे वेतन भोगी वर्ग। छोटे किसानों और मध्यवर्ग के लिए की गई घोषणाओं पर करीब एक लाख करोड़ रुपये (जीडीपी करीब 0.5 फीसदी) के खर्च की घोषणा सरकार ने की है, पर राजकोषीय अनुशासन बिगड़ा नहीं है। इस सरकार की उपलब्धि है, टैक्स-जीडीपी अनुपात को 2013-14 के 10.1 फीसदी से बढ़ाकर 11.9 फीसदी तक पहुंचाना। यानी कि कर-अनुपालन में प्रगति हुई है। आयकर चुकता करने वालों की तादाद से और जीएसटी में क्रमशः होती जा रही बढ़ोत्तरी से यह बात साबित हो रही है।

सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों को आय समर्थन के लिए करीब 75,000 करोड़ रुपये की योजना की घोषणा की है। यह धनराशि कृषि उपज के मूल्य में कमी की भरपाई करेगी। सरकार का यह कदम कल्याणकारी राज्य की स्थापना की दिशा में एक कदम है। तेलंगाना में यह कार्यक्रम पहले से चल रहा है। केन्द्र सरकार इसका श्रेय चाहती है, तो इसमें गलत क्या है? दूसरी कल्याण योजना है असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए पेंशन। कल्याण योजनाओं के लिए संसाधन मौजूदा कार्यक्रमों में कमी करके उपलब्ध कराए गए हैं। यह भी सच है कि आयकर-दाताओं के सबसे निचले स्लैब को राहत देने से राजनीतिक लाभ मिलेगा। इस लिहाज से यह बजट विरोधी-दलों को खटक रहा है। अंतरिम बजट में बड़े नीतिगत फैसले को लेकर उनकी आपत्ति है, पर पहली बार अंतरिम बजट में बड़ी घोषणाएं नहीं हुईं हैं।