इस
हफ्ते संसद में और संसद के बाहर राहुल गांधी के तीखे तेवरों को देखने से लगता है
कि कांग्रेस पार्टी का आत्मविश्वास लौट रहा है। उसके समर्थकों और कार्यकर्ताओं के
भीतर आशा का संचार हुआ है। इसे आत्मविश्वास कह सकते हैं या आत्मविश्वास प्रकट करने
की रणनीति भी कह सकते हैं, क्योंकि पार्टी को वोटर के समर्थन के पहले
पार्टी-कार्यकर्ता के विश्वास की जरूरत भी है। छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश
में सत्ता पर वापसी ने न केवल आत्मविश्वास बढ़ाया है, बल्कि संसाधनों का रास्ता भी
खोला है। पर लोकसभा-चुनाव केवल सत्ता में वापसी के लिहाज से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय
राजनीति को परिभाषित करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। सवाल है कि कांग्रेस के पास दीर्घकालीन राजनीति की कोई समझ है या
केवल राजकुमार को सिंहासन पर बैठाने की मनोकामना लेकर वह आगे बढ़ रही है?
इस
साल लोकसभा के अलावा आठ विधानसभाओं के चुनाव भी होने वाले हैं। इनमें आंध्र,
जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में खासतौर से कांग्रेस की दिलचस्पी
है। पार्टी चाहती है कि सन 2019 का वर्ष उसकी राजनीति को निर्णायक मोड़ दे। यह
असम्भव भी नहीं है, तमाम किन्तु-परन्तुओं के बावजूद।