अयोध्या मसले पर अचानक
चर्चा शुरू होने के पीछे कारण क्या है? पिछले कुछ साल से यह
मसला काफी पीछे चला गया था। इस पर बातें केवल औपचारिकता के नाते ही की जाती थीं।
सन 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद से न्याय व्यवस्था ने भी इस दिशा
में सक्रियता कम कर दी थी। तब यह अचानक सामने क्यों आया?
अयोध्या पर चर्चा की
टाइमिंग इसलिए महत्वपूर्ण है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव
सामने हैं। गुजरात में कांग्रेस पार्टी ने दलितों, ओबीसी और पाटीदारों यानी हिन्दू
जातियों के अंतर्विरोध को हथियार बनाया है, जिसका सहज जवाब है ‘हिन्दू
अस्मिता’ को जगाना। गुजरात में बीजेपी दबाव में आएगी तो वह
ध्रुवीकरण के हथियार को जरूर चलाएगी। पर अयोध्या की गतिविधियाँ केवल चुनावी पहल
नहीं लगती।
भाजपा का ब्रह्मास्त्र
सन 2018 में कर्नाटक,
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव भी होंगे। कर्नाटक में कांग्रेस ने
कन्नड़ अस्मिता और लिंगायतों का सहारा लेना शुरू कर दिया है। इसलिए लगता है कि
बीजेपी अपने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल करने जा रही है। यह बात आंशिक रूप से सच हो
सकती है। शायद चुनाव में भाजपा को मंदिर की जरूरत पड़ेगी, पर यह केवल वहीं तक
सीमित नहीं लगता। हाँ इतना लगता है कि इस अभियान के पीछे भाजपा का हाथ भी है, भले
ही वह इससे इनकार करे।