सुप्रीम कोर्ट के बहुमत निर्णय के बाद सरकार को
एक प्रकार का वैधानिक रक्षा-कवच मिल गया है। कानून बनाने की प्रक्रिया पर अब
राजनीति होने का अंदेशा कम है। फिर भी इस फैसले के दो पहलू और हैं, जिनपर विचार
करने की जरूरत है। अदालत ने तीन बार तलाक कहकर तलाक देने की व्यवस्था को रोका है, तलाक
को नहीं। यानी मुस्लिम विवाह-विच्छेद को अब नए सिरे से परिभाषित करना होगा और संसद
को व्यापक कानून बनाना होगा। यों सरकार की तरफ से कहा गया है कि कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं, त्वरित तीन तलाक तो गैर-कानूनी घोषित हो ही गया।
देखना यह भी होगा कि मुस्लिम समुदाय के भीतर इसकी प्रतिक्रिया कैसी है। अंततः यह मुसलमानों के बीच की बात है। वे इसे किस रूप में लेते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये बातें सामुदायिक सहयोग से ही लागू होती हैं। सन 1985 के शाहबानो फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय के प्रगतिशील तबके को दबना पड़ा था।
देखना यह भी होगा कि मुस्लिम समुदाय के भीतर इसकी प्रतिक्रिया कैसी है। अंततः यह मुसलमानों के बीच की बात है। वे इसे किस रूप में लेते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये बातें सामुदायिक सहयोग से ही लागू होती हैं। सन 1985 के शाहबानो फैसले के बाद मुस्लिम समुदाय के प्रगतिशील तबके को दबना पड़ा था।