बिहार चुनाव में उतरे दोनों मुख्य गठबंधनों ने
सीटों के आपसी बँटवारे का फैसला करने के बाद कदम आगे बढ़ा दिए हैं। नरेंद्र मोदी,
नीतीश कुमार और सोनिया गांधी के लिए ये चुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई साबित होने वाले
हैं। भाजपा विरोधी महागठबंधन की योजना लोकसभा के 2014 के चुनाव से पहले नीतीश
कुमार की पहल पर शुरू हुई थी। इसके लिए वे दिल्ली में तिहाड़ जेल में हरियाणा के
पूर्व मुख्यमंत्री और इनेलो के नेता ओम प्रकाश चौटाला से भी मिले थे।
भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन के सहारे बनी आम आदमी पार्टी अपने गठन के समय से ही अंतर्विरोधों की शिकार है. वह सत्ता और आंदोलन की राजनीति में अंतर नहीं कर पा रही है.
पार्टी 'एक नेता' और 'आंतरिक लोकतंत्र के अंतर्विरोध' को सुलझा नहीं पा रही है. इसके कारण वह देश के दूसरे इलाक़ों में प्रवेश की रणनीति बना नहीं पा रही है.
पार्टी की पंजाब शाखा इसी उलझन में है, जहाँ हाल में उसके केंद्रीय नेतृत्व ने (दूसरे शब्दों में अरविंद केजरीवाल) दो सांसदों को निलंबित करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है.
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दिल्ली के बाद पंजाब में पार्टी का अच्छा प्रभाव है. संसद में उसकी उपस्थिति पंजाब के कारण ही है, जहाँ से लोक सभा में चार सदस्य हैं.
पंजाब में कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के नेता मानते हैं कि उन्हें सबसे बड़ा ख़तरा 'आप' से है.
'आप' का सेल्फ गोल
पंजाब की जनता को भी 'आप' में विकल्प नज़र आता है.
उम्मीद थी कि अकाली सरकार के ख़िलाफ़ 'एंटी इनकम्बैंसी' को देखते हुए वहाँ कांग्रेस पार्टी अपने प्रभाव का विस्तार करेगी, पर वह भी धड़ेबाज़ी की शिकार है.
ऐसे में 'आप' की संभावनाएं बेहतर हैं, पर लगता है कि यह पार्टी भी सेल्फ़ गोल में यक़ीन करती है.
पार्टी ने हाल में पटियाला के सासंद धर्मवीर गांधी और फ़तेहगढ़ साहिब से जीतकर आए हरिंदर सिंह ख़ालसा को अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित किया है. दोनों का मज़बूत जनाधार है.
मनमुटाव की शुरुआत
केजरीवाल और प्रशांत भूषण के टकराव के दौरान इस मनमुटाव की शुरुआत हुई थी. तब से धर्मवीर गांधी योगेंद्र यादव के साथ हैं. शुरू में हरिंदर सिंह खालसा का रुख़ साफ़ नहीं था, पर अंततः वे भी केंद्रीय नेतृत्व के ख़िलाफ़ हो गए.
इन दोनों नेताओं को समझ में आता है कि प्रदेश में लहर उनके पक्ष में है. दूसरी ओर पार्टी नेतृत्व को लगता है कि पार्टी से अलग होने के बाद किसी नेता की पहचान क़ायम नहीं रहती.
शीना
बोरा हत्याकांड को आप कई तरीकों से देख सकते हैं। इंद्राणी मुखर्जी के व्यक्तिगत
रिश्तों से जुड़ी बातें लोगों का ध्यान सबसे ज्यादा खींच रही हैं। जबकि सबसे कम
ध्यान उनपर जाना चाहिए। यह उनका व्यक्तिगत मामला है और इसे उछालने का हमें अधिकार
नहीं है। यह केस एक सम्भावित हत्या तक केंद्रित हो तो इसका उस स्तर का महत्व है भी
नहीं जितना दिखाया जा रहा है। पर इस सिलसिले में दो और बातें महत्वपूर्ण हैं। एक
इस मामले की मीडिया कवरेज। दूसरे इस प्रकरण से जुड़े कारोबारी प्रसंग। इन दोनों को
जोड़कर देखा जाए तो यह कहानी हमारी नई संस्कृति की पोल खोलती है।
समाजवादी पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनाव अकेले
लड़ने की घोषणा करने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी मोर्चा बनने की
सम्भावनाओं को गहरा धक्का लगा है। बावजूद इसके नीतीश और लालू की एकता और सोनिया
गांधी के समर्थन के कारण महागठबंधन कायम रहेगा। पर बीजेपी की कोशिश इसकी जड़ों को
काटने की होगी। यह बात पिछले हफ्ते की गतिविधियों से साफ है। पिछली 27 अगस्त को
मुलायम सिंह यादव और रामगोपाल यादव की नरेंद्र मोदी से मुलाकात हुई थी। उसके फौरन
बाद मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि मैं महागठबंधन की 30 अगस्त को होने वाली
स्वाभिमान रैली में शामिल नहीं हो पाऊँगा। इस पर लालू यादव ने कहा था कि इसमें
परेशानी की कोई बात नहीं है। उन्होंने अगली रात बिहार में सपा के बिहार इंचार्ज
किरण्मय नंदा से मुलाकात भी की। साथ ही सपा को पाँच सीटें देने की घोषणा भी की। इन
पाँच में अपने कोटे की 100 में से दो और एनसीपी को आबंटित तीन सीटें देने की घोषणा
29 अगस्त को की।
अकल्पनीय
मानवीय रिश्तों की कहानियाँ गढ़ना फिल्म निर्माता महेश भट्ट का शौक है. उनमें
कल्पनाशीलता का पुट होता है, यानी जो नहीं है फिर भी रोचक है. पर हाल में शीना
हत्याकांड की खबर सुनने के बाद वे भी विस्मय में पड़ गए. उनका कहना है, मैं तकरीबन
इसी प्लॉट पर कहानी तैयार कर रहा था. उसका शीर्षक है ‘अब रात गुजरने वाली है.’ अक्सर फिल्मी कहानियां जिंदगी के पीछे
चलती हैं, परंतु
इस मामले में घटनाक्रम कहानी से आगे चल रहा है.