नरेंद्र मोदी सामान्य तरीके से सत्ता हासिल करके नहीं आए हैं। उन्होंने दिल्ली में प्रधानमंत्री बनने के पहले अपनी पार्टी के भीतर एक प्रकार की लड़ाई लड़ी थी। उनकी तुलना उस योद्धा से की जा सकती है जिसका अस्तित्व लगातार लड़ते रहने पर आश्रित हो। इस हफ्ते जब 26 मई को उनकी सरकार के छह महीने पूरे हुए तो उसके तीन दिन पहले राहुल गांधी ने झारखंड उपचुनावों में प्रचार के दौरान मोदी पर हमला बोलते हुए पूछा, क्या आपके अच्छे दिन आ गए? कहां है अच्छे दिन? छह महीने नहीं सौ दिन नहीं 26 मई को ही लोग पूछ रहे थे कि क्या आ गए अच्छे दिन? मोदी ने उम्मीदें जगाईं, अपेक्षाएं तैयार कीं और जीत हासिल करने के लिए अपने विरोधियों पर करारे वार किए, इसलिए उनपर वार होना अस्वाभाविक नहीं। नई सरकार की उपलब्धियों पर पाँच साल बाद ही बात होनी चाहिए, पर कम से कम समय की बात करें तो अगले बजट को एक आधार रेखा माना जाना चाहिए। वह भी पर्याप्त इसलिए नहीं है, क्योंकि सरकार के पूरे एक वित्तीय वर्ष का लेखा-जोखा तबतक भी तैयार नहीं हो पाएगा। फिर भी मोटे तौर पर मोदी के छह महीनों की पड़ताल की जाए तो कुछ बातें सामने आती हैं वे इस प्रकार हैः-
काम करने की संस्कृति
नेताओं और मंत्रियों के वक्तव्यों पर रोक
कुछ बड़े फैसले
वैश्विक मंच पर ऊर्जावान भारत का उदय