अमेरिका ने आधिकारिक रूप से नवाज़ शरीफ की इस सलाह को खारिज
कर दिया कि कश्मीर-मामले में उसे मध्यस्थता करनी चाहिए। अमेरिका का कहना है कि
दोनों देशों को आपसी संवाद से इस मसले को सुलझाना चाहिए। अमेरिकी विदेश विभाग की
प्रवक्ता जेन पसाकी ने ट्विटर पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि हमारे
दृष्टिकोण में बदलाव नहीं हुआ है। अमेरिका दोनों देशों के बीच संवाद को बढ़ावा
देता रहेगा। उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सीमा पर लगातार गोलीबारी को लेकर नवाज़
शरीफ के प्रति अपनी निराशा को व्यक्त किया है। नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने
के लिए दोनों देशों के बीच सन 2003 में जो समझौता हुआ था, वह पिछले दस साल से अमल
में आ रहा था। अब ऐसी क्या बात हुई कि पिछले 10 महीनों से लगातार कुछ न कुछ हो रहा
है।
Sunday, October 27, 2013
Saturday, October 26, 2013
भावनाओं के भँवर में गोते लगाते राहुल
लगता है कि राहुल गांधी के भाषणों को लिखने वाले या उनके इनपुट्स तय करने वाले तीन-चार दशक पुरानी परम्परा के हिसाब से चल रहे हैं। उन्हें लगता है कि नेता जो बोल देगा उसका तीर सीधे निशाने पर जाकर लगेगा। उसके बाद अहो-अहो कहने वाली मंडली उस बात को आसमान पर पहुँचा देगी। मुज़फ्फरनगर के युवाओं के पाकिस्तानी खुफिया एजेंटों के सम्पर्क में आने वाली बात कह कर राहुल ने नासमझी का परिचय दिया है। नरेन्द्र मोदी के हाथों उनकी फज़ीहत हुई सो अलग किसी दूसरे समझदार व्यक्ति को भी यह बात समझ में नहीं आएगी। उन्हें अपने भाषणों में सावधानी बरतनी होगी।
राहुल गांधी अपने राजनीतिक जीवन के बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। निर्णायक रूप से उनके सफल या विफल होने में अभी कुछ महीने बाकी हैं, पर अंतर्विरोध उजागर होने लगे हैं। उनकी विश्व-दृष्टि और राजनीतिक मिशन को लेकर सवाल उठे हैं। अपनी पार्टी का भविष्य वे किस रूप में देख रहे हैं और इसमें व्यक्तिगत रूप से वे क्या भूमिका निभाना चाहते हैं? ऐसे समय में जब उन्हें दृढ़-निश्चयी, सुविचारित और सुलझे राजनेता के रूप में सामने आना चाहिए, वे संशयी और उलझे व्यक्ति के रूप में नज़र आ रहे हैं। पहले अपनी माँ, फिर पिता, फिर दादी का ज़िक्र करते वक्त बेशक वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं और इसका उन्हें अधिकार है। पर इससे विसंगति पैदा होती है। उनके परिवार की त्रासदी पर पूरे देश की हमदर्दी है। वे कहते हैं कि उन्होंने मेरे पिता को मारा, मेरी दादी की हत्या की और शायद एक दिन मेरी भी हत्या हो सकती है। ऐसा कहते ही वे अपने पारिवारिक अंतर्विरोधों का पिटारा खोल रहे हैं।
राहुल गांधी अपने राजनीतिक जीवन के बेहद महत्वपूर्ण मोड़ पर हैं। निर्णायक रूप से उनके सफल या विफल होने में अभी कुछ महीने बाकी हैं, पर अंतर्विरोध उजागर होने लगे हैं। उनकी विश्व-दृष्टि और राजनीतिक मिशन को लेकर सवाल उठे हैं। अपनी पार्टी का भविष्य वे किस रूप में देख रहे हैं और इसमें व्यक्तिगत रूप से वे क्या भूमिका निभाना चाहते हैं? ऐसे समय में जब उन्हें दृढ़-निश्चयी, सुविचारित और सुलझे राजनेता के रूप में सामने आना चाहिए, वे संशयी और उलझे व्यक्ति के रूप में नज़र आ रहे हैं। पहले अपनी माँ, फिर पिता, फिर दादी का ज़िक्र करते वक्त बेशक वे अपनी भावनाओं को व्यक्त कर रहे हैं और इसका उन्हें अधिकार है। पर इससे विसंगति पैदा होती है। उनके परिवार की त्रासदी पर पूरे देश की हमदर्दी है। वे कहते हैं कि उन्होंने मेरे पिता को मारा, मेरी दादी की हत्या की और शायद एक दिन मेरी भी हत्या हो सकती है। ऐसा कहते ही वे अपने पारिवारिक अंतर्विरोधों का पिटारा खोल रहे हैं।
Thursday, October 24, 2013
पाकिस्तान से निपटने का विकल्प क्या है?
जम्मू-कश्मीर में गोलाबारी अब चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई
है. मंगलवार को पाकिस्तानी सेना ने लाउडस्पीकर पर घोषणा करके केरन सेक्टर के एक
आदर्श गाँव में कम्युनिटी हॉल का निर्माण रुकवा दिया. सन 2003 में दोनों देशों ने
नियंत्रण रेखा के आसपास के गाँवों में जीने का माहौल बनाने का समझौता किया था.
लगता है वह खत्म हो रहा है. पिछले दस महीनों से कड़वाहट बढ़ती जा रही है. जम्मू-कश्मीर
के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई चाहते हैं.
उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान लाइन ऑफ कंट्रोल पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करना
जारी रखता है तो केंद्र सरकार को अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए. विकल्प क्या
है? उधर नवाज शरीफ ने अमेरिका से हस्तक्षेप की
माँग करके घाव फिर से हरे कर दिए हैं. नवाज शरीफ रिश्तों को बेहतर बनाने की बात
करते हैं वहीं भारत को ‘सबसे तरज़ीही मुल्क’ का दर्ज़ा देने भर को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि इस मामले पर भारत
के चुनाव के बाद बात होगी. क्या मौज़ूदा तनाव का रिश्ता लोकसभा चुनाव से भी जुड़ा
है? क्या पाकिस्तान को लगता है कि भारत में सत्ता-परिवर्तन
होने वाला है? सत्ता-परिवर्तन हो भी गया तो क्या भारतीय
विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव आ जाएगा?
Wednesday, October 23, 2013
शटडाउन अंकल सैम
प्रसिद्ध पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’
ने लिखा है, आप कल्पना करें कि किसी टैक्सी में बैठे हैं और ड्राइवर
तेजी से चलाते हुए एक दीवार की और ले जाए और उससे कुछ इंच पहले रोककर कहे कि तीन
महीने बाद भी ऐसा ही करूँगा। अमेरिकी संसद द्वारा अंतिम क्षण में डैट सीलिंग पर
समझौता करके फिलहाल सरकार को डिफॉल्ट से बचाए जाने पर टिप्पणी करते हुए पत्रिका ने
लिखा है कि इस लड़ाई में सबसे बड़ी हार रिपब्लिकनों की हुई है। डैमोक्रैटिक पार्टी
को समझ में आता था कि अंततः इस संकट की जिम्मेदारी रिपब्लिकनों पर जाएगी। उन्होंने
हासिल सिर्फ इतना किया कि लाभ पाने वालों की आय की पुष्टि की जाएगी। पर क्या डैमोक्रेटों
की जीत इतने भर से है कि बंद सरकार खुल गई और डिफॉल्ट का मौका नहीं आया? वे हासिल सिर्फ इतना कर पाए कि डैट सीलिंग तीन महीने के लिए बढ़ा दी गई।
अब तमाशा नए साल पर होगा। यह संकट यों तो अमेरिका का अपना संकट लगता है, पर इसमें
भविष्य की कुछ संभावनाएं भी छिपीं हैं। अमेरिकी जीवन की महंगाई हमारे जैसे देशों
के लिए अच्छा संदेश लेकर भी आई है। कम से कम स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में हम न
केवल विश्व स्तरीय है, बल्कि खासे किफायती भी हैं। इसके पहले अमेरिका में आर्थिक
प्रश्नों पर मतभेद सरकार के आकार, उसके ख़र्चों और अमीरों पर टैक्स लगाने को लेकर
होते थे, पर इस बार ओबामाकेयर का मसला था।
Tuesday, October 22, 2013
सोशल मीडिया का हस्तक्षेप यानी, ठहरो कि जनता आती है
ग्वालियर में राहुल गांधी की रैली खत्म ही हुई थी कि
मीनाक्षी लेखी का ट्वीट आ गया ‘माँ की बीमारी का नाम लेने पर तीन कांग्रेसी सस्पेंड
कर दिए गए, अब राहुल गांधी वही कर रहे हैं।’ उधर दिग्विजय
सिंह ने ट्विटर पर नरेन्द्र मोदी को चुनौती दी, मुझसे बहस करो। रंग-बिरंगे ट्वीटों
की भरमार है। माना जा रहा है कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार सोशल मीडिया
का असर देखने को मिलेगा। इस साल अप्रेल में 'आयरिस नॉलेज फाउंडेशन और 'इंटरनेट एंड मोबाइल
एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया'
ने 'सोशल मीडिया एंड लोकसभा इलेक्शन्स' शीर्षक से एक
अध्ययन प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि भारत की 543 में से 160 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिनके नतीजों पर सोशल मीडिया का प्रभाव पड़ेगा। सोशल
मीडिया का महत्व इसलिए भी है कि चुनाव से 48 घंटे पहले चुनाव
प्रचार पर रोक लगने के बाद भी फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग सक्रिय
रहेंगे। उनपर रोक की कानूनी व्यवस्था अभी तक नहीं है। दिल्ली में ‘आप’ के पीछे सोशल मीडिया की ताकत भी है।
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