Sunday, September 2, 2012

रोचक राजनीति बैठी है इस काजल-द्वार के पार

कोल ब्लॉक्स के आबंटन पर सीएजी की रपट आने के बाद देश की राजनीति में जो लहरें आ रहीं हैं वे रोचक होने के साथ कुछ गम्भीर सवाल खड़े करती हैं। ये सवाल हमारी राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था तथा मीडिया से ताल्लुक रखते हैं। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि बीजेपी इस सवाल पर संसद में बहस होने नहीं दे रही है, जो अलोकतांत्रिक है। और बीजेपी कहती है कि संसद में दो-एक दिन की बहस के बाद मामला शांत हो जाता है। ऐसी बहस के क्या फायदा? कुछ तूफानी होना चाहिए।

भारतीय जनता पार्टी की यह बात अन्ना-मंडली एक अरसे से कहती रही है। तब क्या मान लिया जाए कि संसद की उपयोगिता खत्म हो चुकी है? जो कुछ होना है वह सड़कों पर होगा और बहस चैनलों पर होगी। कांग्रेस और बीजेपी दोनों पक्षों के लोग खुद और अपने समर्थक विशेषज्ञों के मार्फत बहस चलाना चाहते हैं। यह बहस भी अधूरी, अधकचरी और अक्सर तथ्यहीन होती है। हाल के वर्षों में संसदीय लोकतंत्र की बुनियाद को अनेक तरीकों से ठेस लगी है। हंगामे और शोरगुल के कारण अनेक बिलों पर बहस ही नहीं हो पाती है। संसद का यह सत्र अब लगता है बगैर किसी बड़े काम के खत्म हो जाएगा। ह्विसिल ब्लोवर कानून, गैर-कानूनी गतिविधियाँ निवारण कानून, मनी लाउंडरिंग कानून, कम्पनी कानून, बैंकिंग कानून, पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटों के आरक्षण का कानून जैसे तमाम कानून ठंडे बस्ते में रहेंगे। यह सूची काफी लम्बी है। क्या बीजेपी को संसदीय कर्म की चिंता नहीं है? और क्या कांग्रेस ईमानदारी के साथ संसद को चलाना चाहती है?

Friday, August 31, 2012

कसाब की फाँसी से हमारे मन शांत नहीं होंगे

जिन दिनों अजमल कसाब के खिलाफ मुकदमा शुरू ही हुआ था तब राम जेठमलानी ने पुणे की एक गोष्ठी में कहा कि इस लगभग विक्षिप्त व्यक्ति को मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए। उनका आशय यह भी था कि किसी व्यक्ति को जीवित रखना ज्यादा बड़ी सजा है। मौत की सजा दूसरों को ऐसे अपराध से विचलित करने के लिए भी दी जाती है। पर जिस तरीके से कसाब और उनके साथियों ने हमला किया था उसके लिए आवेशों और भावनाओं का सहारा लेकर लोगों को पागलपन की हद तक आत्मघात के लिए तैयार कर लिया जाता है। आज पाकिस्तान में ऐसे तमाम आत्मघाती पागल अपने देश के लोगों की जान ले रहे हैं। हाल में कामरा के वायुसेना केन्द्र पर ऐसा ही एक आत्मघाती हमला किया गया। ऐसे पगलाए लोगों को समय सजा देता है। बहरहाल कसाब की फाँसी में अब ज्यादा समय नहीं है। पर फाँसी से जुड़े कई सवाल हैं।

Thursday, August 30, 2012

आर्मस्ट्रांगः ब्लैकहोल या ध्रुवतारा?

यूनानी मिथकों का मृत्युंजय पक्षी फीनिक्स अपनी राख में से बार-बार जीवित होकर नए जोश के साथ उड़ान भरता है। अमेरिकी साइकिलिस्ट लैंस आर्मस्ट्रांग का जीवन फीनिक्स सरीखा है, कुछ विडंबनाओं के साथ। वैश्विक मीडिया इन दिनों अर्मस्ट्रांग के प्रति हमदर्दी से पटा पड़ा है। पर ऐसा कहने वाले भी हैं कि उन्होंने जिस तरीके से व्यवस्था से हार मानी वह ठीक नहीं। आर्मस्ट्रांग कहते हैं, “बहुत हुआ मैं कब तक जवाब देता रहूँगा? अब कोई जवाब नहीं, जिसको जो करना है करे।” अमेरिका की एंटी डोपिंग एजेंसी यूएसएडीए ने उन्हें न सिर्फ जीवन भर के लिए बैन कर दिया है, बल्कि ‘टुअर डी फ्रांस’ के सातों ताज़ और इनसे जुड़े सारे इनाम-इकराम वापस लेने की घोषणा की है। आर्मस्ट्रांग की उम्मीद तब खत्म हो गई, जब ऑस्टिन की एक अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। हालांकि अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट जज सैम स्पार्क्स ने यह भी लिखा कि यूएसएडीए का बर्ताव कुछ गम्भीर सवाल खड़े करता है कि उसका इरादा डोपिंग से लड़ना है या कुछ और। बहरहाल मामला जनता की अदालत में है। क्या एक कृतघ्न समाज अपने नायक के साथ दुर्व्यवहार कर रहा है जैसा सॉक्रेटीस के साथ हुआ? या आर्मस्ट्रांग ने खुद को दोषी स्वीकार कर लिया है? यह हार है या रार?

Tuesday, August 28, 2012

देश चाहता है हर कालिख पर खुली बहस हो


लोकतंत्र के माने अराजकता, असमंजस, अनिश्चय और अस्थिरता है तो वह हमारे यहाँ सफल है। संसद के मौजूदा सत्र में प्रस्तावित 20 बैठकों में से आधी के आसपास गुज़र चुकीं हैं और काम-काज के नाम अ आ इ ई भी नहीं है। पहले असम और म्यामार से जुड़ी अफवाहों का बाज़ार गर्म था, फिर दक्षिण भारत के शहरों से भगदड़ की खबरें आईं। अब कोयले के काले धंधे की वजह से संसद ठप है। पिछले दो साल में तीसरी या चौथी बार संसद इस तरीके से ठप हुई है। सम्भव है आज की सर्वदलीय बैठक में कोई रास्ता निकल आए, पर हालात अच्छे नहीं हैं। देश पर सूखे की मार है। विकास-दर लगातार नीचे जा रही है। ऐसा चलता रहा तो रोजगार की स्थितियाँ बिगड़ जाएंगी। मुफलिसो-मज़लूम के सामने खड़ी मुश्किलों के पहाड़ बढ़ते ही जाएंगे।

Monday, August 20, 2012

विकीलीक्स की साख पर राजनीति का साया

विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज को जानने वालों की संख्या हमारे देश में ज्यादा नहीं है, पर जो जानते हैं वे उनके साहस की तारीफ करते हैं। विकीलीक्स धीरे-धीरे एक वैश्विक शक्ति बनता जा रहा है। यह पत्रकारिता वह मिशनरी पत्रकारिता है, जो इस कर्म का मर्म है। जिस तरह से विकीपीडिया ने ज्ञान की राह खोली है उसी तरह विकीलीक्स ने इस ज़माने की पत्रकारिता का रास्ता खोला है। पर यह रास्ता बेहद खतरनाक है। इसमें मुकाबला दुनिया की ताकतवर सरकारों से है। पर उसे यह भी साबित करना होगा कि यह न तो कोई खुफिया संस्था है और न अमेरिका-विरोधी। यह सिर्फ अनाचार और स्वयंभू सरकारों के विरुद्ध है। इसने अमेरिका, चीन, सोमालिया, केन्या और आइसलैंड तक हर जगह असर डाला है। कुछ समय पहले तक कोई नहीं जानता था कि इसके पीछे कौन है। बाद में ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार जूलियन असांज सामने आए। दुनिया की सबसे ताकतवर सरकारों के बारे मे निगेटिव सामग्री का प्रकाशन बेहद खतरनाक है। विकीलीक्स के पास न तो इतना पैसा है और न ताकत। अदालतें उसके खिलाफ कार्रवाई करतीं है। पर धीरे-धीरे इसे दुनिया के सबसे अच्छे वकीलों की सेवाएं मुफ्त मिलने लगीं हैं। जनता के दबाव के आगे संसदें झुकने लगीं हैं।