Sunday, October 25, 2020

कश्मीर में विरोधी दलों का मोर्चा


कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि जबतक अनुच्छेद 370 की वापसी नहीं होगी, तबतक मैं तिरंगा झंडा नहीं फहराऊँगी। उनका कहना है कि जब हमारे झंडे की वापसी होगी, तभी मैं तिरंगा हाथ में लूँगी। उनके इस बयान की आलोचना केवल भारतीय जनता पार्टी ने नहीं की है। साथ में कांग्रेस ने भी की है।

करीब 14 महीने की कैद के बाद हाल में रिहा हुई महबूबा ने शुक्रवार 23 अक्तूबर को कहा कि जबतक गत वर्ष 5 अगस्त को हुए सांविधानिक परिवर्तन वापस नहीं लिए जाएंगे, मैं चुनाव भी नहीं लड़ूँगी। महबूबा की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य का झंडा भी मेज पर रखा था। पिछले साल महबूबा ने कहा था कि यदि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो कोई भी तिरंगा उठाने वाला नहीं रहेगा। अब उन्होंने कहा है कि हमारा उस झंडे से रिश्ता इस झंडे ने बनाया है। वह इस झंडे से अलग नहीं है।

महबूबा मुफ्ती का आशय कश्मीर की स्वायत्तता से है। भारतीय संघ में अलग-अलग इलाकों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक विशेषता को बनाए रखने की व्यवस्थाएं हैं। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता का सवाल काफी हद तक राजनीतिक है और उसका सीधा रिश्ता देश के विभाजन से है। यह सच है कि विभाजन के समय कश्मीर भौगोलिक रूप से पाकिस्तान से बेहतर तरीके से जुड़ा था। गुरदासपुर और फिरोजपुर भारत को न मिले होते तो कश्मीर से संपर्क भी कठिन था। पाकिस्तान का कहना है कि कश्मीर चूंकि मुस्लिम बहुल इलाका है, इसलिए उसे पाकिस्तान में होना चाहिए। इसका क्या मतलब निकाला जाए?

चुनावी ज़ुनून में कोरोना की अनदेखी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के साथ बिहार विधानसभा चुनाव के पहले दौर का प्रचार चरम पर पहुँच रहा है। देश की निगाहें इस वक्त दो-तीन कारणों से बिहार पर हैं। महामारी के दौर में हो रहा यह पहला चुनाव है। चुनाव प्रचार और मतदान की व्यवस्थाओं का कोरोना संक्रमण पर असर होगा। राजनीतिक दल प्रचार के जुनून में अपनी जिम्मेदारियों की अनदेखी कर रहे हैं। चुनाव आयोग असहाय है।

पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद सात विधानसभाओं के चुनाव भी हुए थे। और इस साल के शुरू में दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए। इन चुनावों का निष्कर्ष है कि फिलहाल वोटर के मापदंड लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए अलग-अलग हैं। उत्तर भारत की सोशल इंजीनियरी के लिहाज से बिहार के चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। सन 2015 के चुनाव में बिहार ने ही महागठबंधन की अवधारणा दी थी। प्रकारांतर से भारतीय जनता पार्टी ने विरोधी दलों की उस रणनीति का जवाब खोज लिया और उत्तर प्रदेश में वह प्रयोग सफल नहीं हुआ। बिहार में भी अंततः महागठबंधन टूटा।

Saturday, October 24, 2020

इस कीड़े को कार से भी कुचलना नामुमकिन


अमेरिका के दक्षिणी कैलिफोर्निया के जंगलों में एक ऐसा कीड़ा पाया जाता है, जो अपने वजन का 39,000 गुना ज्यादा वजन झेल सकता है। यानी कि आप यदि उसके ऊपर से कार चला दें, तब भी वह सुरक्षित रहेगा। पश्चिमी अमेरिका के इलाकों में मिलने वाला यह ब्लैक बीटल या फ्लोड्स डायबोलिकस बलूत (ओक) के पेड़ों के नीचे रहता है। पेड़ के तने की छाल में बनी खाली जगह में रहता है और आसपास उगने वाले कवक (फंजाई) का भोजन करता है। जब इसपर संकट आता है तो ऐसे शांत पड़ जाता है जैसे मर गया हो। मजबूत से मजबूत शिकारी पक्षी की चोंच के हमलों को यह सहन कर सकता है। इसके ऊपर कार चलाकर देखी गई और उसके नीचे से यह जिन्दा बच निकला।

फिलहाल ‘ग्रे लिस्ट’ में ही रहेगा पाकिस्तान

पाकिस्तानी अखबार फ्राइडे टाइम्स से साभार

पाकिस्तान फिलहाल फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की
ग्रे लिस्ट से बाहर नहीं निकलेगा। उसे जो काम दिए गए थे, उन्हें पूरा करने का समय भी निकल चुका है। अब उसके पास फरवरी 2021 तक का समय है, जब उसे मानकों पर खरा उतरने का एक मौका और दिया जाएगा। गत 21 से 23 अक्तूबर तक हुई वर्च्युअल बैठक के बाद शुक्रवार शाम को एफएटीएफ ने बयान जारी किया कि पाकिस्तान सरकार आतंकवाद के खिलाफ 27 सूत्रीय एजेंडे को पूरा करने में विफल रही है। उसने संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधित आतंकवादियों के खिलाफ भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।

सूत्रों के मुताबिक एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान के बचाव के लिए तुर्की ने पुरजोर पैरवी की। उसने सदस्य देशों से कहा कि पाकिस्तान के अच्छे काम पर विचार करना चाहिए और 27 में छह मानदंडों को पूरा करने के लिए थोड़ा और इंतजार करना चाहिए। पर बाकी देशों ने तुर्की के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी सहित कई देश पाकिस्तान की  आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं।

अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी

ग्रे लिस्ट में बने रहने से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ), विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद मिलना मुश्किल हो जाएगा। विदेशी पूँजी निवेश में भी दिक्कतें पैदा होंगी, क्योंकि कोई भी देश आर्थिक रूप से अस्थिर देश में निवेश करना नहीं चाहता है। इसबार की बैठक में पाकिस्तान की फज़ीहत का आलम यह था कि 39 सदस्य देशों में से केवल तुर्की ने उसे ग्रे लिस्ट से बाहर निकाले जाने की वकालत की।

Friday, October 23, 2020

भारत में 4500 साल पहले भी बनता था पनीर

 


विज्ञान की प्रसिद्ध पत्रिका नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भारत में 4500 साल पहले लोग दूध से चीज़ (पनीर) बना रहे थे। युनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो मिसिसैगुआ के शोधकर्ता कल्याण शेखर चक्रवर्ती के अनुसार आधुनिक गुजरात के कच्छ जिले में कोटड़ा भाडली इलाके के निवासी करीब साढ़े चार हजार साल पहले चीज़ बना रहे थे। सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ी उस बस्ती में ईसा से पूर्व की तीसरी सहस्राब्दी के मध्य में रहने वाले लोग खेती और पशुपालन का काम करते थे।

इस अध्ययन के लिए पकी मिट्टी के बर्तनों में फैटी एसिड के जो जैविक अवशेष मिले हैं, उनके अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है। उस दौर के बर्तनों में प्राप्त अवशिष्ट पदार्थों से अनुमान लगाया जाता है कि उस इलाके के निवासी आसवन तथा अन्य पद्धतियों से दुग्ध प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) का काम करते थे। चीज का यह प्राचीनतम प्रमाण है। इसके पहले केटी आचार्य ने अपनी पुस्तक इंडियन फूड: ए हिस्टॉरिकल कम्पेनियन (1984) में लिखा था कि वैदिक युग में दो प्रकार के दधान्वत का विवरण मिलता है। दोनों संभवतः पनीर और चीज़ रहे होंगे।

भारत-अमेरिका रिश्तों का एक और कदम

 विदेशी मामलों को लेकर भारत में जब बात होती है, तो ज्यादातर पाँच देशों के इर्द-गिर्द बातें होती हैं। एक, पाकिस्तान, दूसरा चीन। फिर अमेरिका, रूस और ब्रिटेन। इन देशों के आपसी रिश्ते हमें प्रभावित करते हैं। देश की आंतरिक राजनीति भी इन रिश्तों के करीब घूमने लगती है। आर्थिक मसलों को लेकर अमेरिका और चीन के रिश्ते बिगड़ते जा रहे हैं। भारत और अमेरिका के सामरिक रिश्ते एक नई शक्ल ले रहे हैं। हाल में जापान में हुई विदेशमंत्रियों की बैठक में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चतुष्कोणीय सुरक्षा यानी क्वाड को लेकर भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सहमति बनी हैं। इसके साथ ही मालाबार युद्धाभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के और शामिल हो जाने के बाद यह सहयोग पूरा हो गया है। वस्तुतः यह अमेरिकी पहल है और भारत के बगैर यह पूरी नहीं हो सकती थी। दोनों देशों के बीच लगातार टल रही टू प्लस टू वार्ता अंततः सितंबर 2018 में शुरू हो गई, जिसमें कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा) समझौता हुआ। और अब 27 अक्तूबर को होने वाली टू प्लस टू वार्ता में एक और महत्वपूर्ण समझौता होने वाला है, जिसका नाम है 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फॉर जियो-स्पेशियल कोऑपरेशन(बेका)। टू प्लस टू वार्तामें दोनों देशों के विदेशमंत्री और रक्षामंत्री शामिल होते हैं। ऐसी ही वार्ता भारत और जापान के बीच भी होती है।

भारत और अमेरिका के बीच कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा) होने से लगता है कि दोनों देश आगे बढ़े हैं। इसे दोनों देशों के रिश्तों में मील का पत्थर बताया गया है। कोमकासा उन चार समझौतों में से एक है जिसे अमेरिका फौजी रिश्तों के लिहाज से बुनियादी मानता है। इसके पहले दोनों देशों के बीच जीएसओएमआईए और लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ़ एग्रीमेंट (लेमोआ) पर दस्तखत हो चुके हैं। इन तीन समझौतों के बाद अब 'बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट फ़ॉर जियो-स्पेशियल कोऑपरेशन (बेका) की दिशा में दोनों देश बढ़ेंगे। दोनों देशों ने अपने रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन स्थापित करने का फैसला भी किया है। सितंबर 2018 में अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोम्पिओ ने संयुक्त ब्रीफिंग में कहा था कि हम वैश्विक शक्ति के रूप में भारत के उभरने का पूरी तरह से समर्थन करते हैं तथा हम अपनी साझेदारी के लिए भारत की समान प्रतिबद्धता का स्वागत करते हैं। कोमकासा के तहत भारत को अमेरिका से महत्वपूर्ण रक्षा संचार उपकरण हासिल करने का रास्ता साफ हो गया और अमेरिका तथा भारतीय सशस्त्र बलों के बीच अंतर-सक्रियता के लिए महत्वपूर्ण संचार नेटवर्क तक उसकी पहुंच होगी।

रॉ चीफ की काठमांडू यात्रा को लेकर नेपाल में चिमगोइयाँ

भारत के थल सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे की अगले महीने होने वाली नेपाल यात्रा के पहले रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के प्रमुख सामंत गोयल की काठमांडू यात्रा को लेकर नेपाली मीडिया में कई तरह की चर्चाएं हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से भी मुलाकात की है, जिसे लेकर तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनकी अपनी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने आलोचना की है। आलोचना इस बात को लेकर नहीं है कि उन्होंने रॉ चीफ से मुलाकात की, बल्कि इसलिए है कि इस मुलाकात की जानकारी उन्हें नहीं दी गई।

रॉ चीफ की इस यात्रा के बारे में न तो नेपाल सरकार ने कोई विवरण दिया है और न भारत सरकार ने। पिछले दिनों जब खबर आई थी कि भारत के सेनाध्यक्ष नेपाल जाएंगे, तब ऐसा लगा था कि दोनों देशों के रिश्तों में जो ठहराव आ गया है, उसे दूर करने के प्रयास हो रहे हैं। रॉ के चीफ की यात्रा उसकी तैयारी के सिलसिले में ही है। पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री ओली ने अपनी कैबिनेट में जब एक छोटा सा बदलाव किया, तब इस बात का संकेत मिला था कि भारत के साथ रिश्तों में भी बदलाव आ रहा है। देश के रक्षामंत्री ईश्वर पोखरेल को उनके पद से हटाकर नेपाल ने रिश्तों की कड़वाहट को दूर करने का इशारा किया था। पिछले कुछ महीनों में भारत को लेकर पोखरेल ने बहुत कड़वी बातें कही थीं।

Thursday, October 22, 2020

अब भारत में भी होगी हींग की खेती

सीएसआईआर के इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स (IHBT), पालमपुर के वैज्ञानिक हिमालय क्षेत्र में हींग यानी ऐसाफेटिडा (Asafoetida) की खेती के मिशन पर काम कर रहे हैं। पिछले हफ्ते लाहौल घाटी के क्वारिंग गाँव में इसका पहला पौधा रोपा गया है। भारत के रसोईघरों में हींग एक जरूरी चीज है। हर साल हम करीब 600 करोड़ रुपये की हींग का आयात करते हैं। सरकारी डेटा के अनुसार ईरान, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से करीब 1200 टन हींग का आयात भारत में होता है।  

किसने और क्यों खींचीं नाज़्का रेखाएं?

पेरू के एक पहाड़ पर दो हजार साल पहले उकेरी गई बिल्ली की एक तस्वीर सामने आने के साथ ही नाज़्का लाइंस का जिक्र एकबार फिर से शुरू हुआ है। नाज़्का लाइंस दक्षिणी पेरू के नाज़्का रेगिस्तान में खिंची ऐसी लकीरें हैं, जिनसे कई तरह के रूपाकार बने हैं। ये सभी आकृतियाँ 500 वर्ष ईसवी पूर्व से लेकर सन 500 के बीच बने हैं। इन विशाल आकार के भू-चित्रों को किसने बनाया, क्यों बनाया और कैसे बनाया, इस बात को लेकर कई तरह की अटकलें हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि ये नाज़्का संस्कृति की पहचान हैं। रेगिस्तानी मैदान में गहरे गड्ढे खोदकर उनमें स्थित पत्थरों को हटाया गया होगा ताकि अलग-अलग रंग की मिट्टी आसमान से नजर आए और उससे कोई रूपाकार बने। ये चित्र 500 मीटर से लेकर डेढ़ किलोमीटर की ऊँचाई से सबसे अच्छे नजर आते हैं।

कश्मीर का ‘काला दिन’

भारत सरकार ने इस साल से 22 अक्तूबर को कश्मीर का काला दिनमनाने की घोषणा की है। 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला बोला था। पाकिस्तानी लुटेरों ने कश्मीर में भारी लूटमार मचाई थी, जिसमें हजारों लोग मारे गए थे। बारामूला के समृद्ध शहर को कबायलियों, रज़ाकारों ने कई दिन तक घेरकर रखा था। इस हमले से घबराकर कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे, जिसके बाद भारत ने अपने सेना कश्मीर भेजी थी। इस बात के प्रमाण हैं कि स्वतंत्रता के फौरन बाद पाकिस्तान ने कश्मीर और बलोचिस्तान पर फौजी कार्रवाई करके उनपर कब्जे की योजना बनाई थी।

Wednesday, October 21, 2020

पेरू के पहाड़ पर किसने उकेरी इतनी बड़ी बिल्ली की तस्वीर ?

 


दक्षिण अमेरिका के देश पेरू में पुरातत्व विज्ञानियों ने एक ऐसे पहाड़ की खोज की है, जिसपर एक विशाल बिल्ली की आकृति उकेरी गई है। 120 फुट लम्बी यह आकृति बिल्ली की है, इसे आप तभी पहचान सकते हैं, जब उसे आसमान से देखें। अनुमान है कि इस बिल्ली को पत्थरों पर करीब दो हजार साल पहले उकेरा गया होगा। इस आकृति को उकेरने का उद्देश्य क्या रहा होगा और किसने यह काम किया होगा, यह अभी रहस्य है।

पेरू के पहाड़ अपनी नाज़्का लाइंस के कारण पहले से ही प्रसिद्ध हैं। नाज़्का लाइंस पेरू के रेगिस्तान में पत्थरों और मिट्टी को हटाकर जमीन पर खींची गई रेखाएं हैं, जिनसे कुछ विचित्र सी आकृतियाँ बनती हैं। इन आकृतियों को भी आकाश से ही देखा जा सकता है। बिल्ली की जो आकृति खोजी गई है, वह नाज़्का लाइंस से भी पहले बनाई गई लगती है। यह बिल्ली पहाड़ के ढलान पर बनी है और करीब दो हजार साल से मौसम की मार के कारण इसका काफी क्षरण हो चुका है।

कुछ समय पहले तक यह बिल्ली नजर नहीं आती थी, पर जब पहाड़ की सफाई की गई तो वह उभर कर आई है। उसके पहले खोज करने वालों को इस पहाड़ पर कुछ विचित्र सी चीजें नजर आई थीं। जब सफाई की गई, तो यह बिल्ली उभर कर आई। बहरहाल यह शोध का विषय है कि पहाड़ की चट्टानों पर इस बिल्ली के आकार को किस तरह उकेरा गया होगा। इतनी बड़ी आकृति की परिकल्पना किसने की होगी और आसमान पर उड़ने की व्यवस्था तब थी नहीं, तब किसे लगा होगा कि तस्वीर पूरी बन गई है। वस्तुतः नाज़्का लाइंस से जुड़ी परिकल्पनाओं में एक यह भी है कि इन आकृतियों का रिश्ता अंतरिक्ष के निवासियों से है, जो धरती पर आते थे। नाज़्का लाइंस पर कुछ बातें पढ़ें कल।

 

कराची की सब्ज़ी मंडी में हरी मिर्च और शिमला मिर्च की क़ीमतें आसमान छूने लगीं


 पाकिस्तान के उर्दू डॉन अख़बार से देवनागरी में उर्दू का आनंद लें

20 अक्तूबर 2020। कराची में हरी मिर्च और शिमला मिर्च की क़ीमतें बुलंदी पर पहुँच गई हैं और ये 320 रुपये और 480 रुपये फ़ी किलो तक फ़रोख़्त हो रही हैं। डॉन अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़ मार्केट ज़राए का कहना था कि हरी मिर्च और शिमला मिर्च की क़ीमतें रवां माह दबाव का शिकार रही, इस से क़बल शिमला मिर्च 180 से 200 रुपये फ़ी किलो जबकि हरी मिर्च 200 से240 रुपये फ़ी किलो में दस्तयाब थी। ताहम अब क़ीमतों में इज़ाफे़ के बाद मुख़्तलिफ़ सारिफ़ीन के लिए देसी खानों में इस्तेमाल होने वाली हरी मिर्च ख़रीदना मुश्किल हो गया है।

मार्केट में250 ग्राम यानी एक पाओ हरी मिर्च80 रुपये में दस्तयाब है जबकि बड़ी शिमला मिर्च40 से50 रुपये में फ़रोख़्त हो रही है। उधर कमिश्नर कराची की प्राइस लिस्ट के मुताबिक़ पीर को शिमला मिर्च के होलसेल और रिटेल रेट यक्म अक्तूबर के 130 और133 रुपये फ़ी किलो से बढ़कर 400 और 403 रुपये किलो तक पहुंच गए। इस से क़बल इतवार को शिमला मिर्च के होलसेल और रिटेल क़ीमतें330 और333 रुपये फ़ी किलो थीं। इसी तरह हर मिर्च की होलसेल और रिटेल क़ीमतों में भी इज़ाफ़ा हुआ और ये 110 और 113 रुपये फ़ी किलो से बढ़कर 240 और 243 रुपये फ़ी किलो तक पहुंच गईं।

वाज़ेह रहे कि मुल्क में चाइनीज़ और पैन एशियन रेस्टोरेंट्स की तादाद में इज़ाफे़ के बाइस गुज़श्ता कुछ बरसों में शिमला मिर्च की तलब में इज़ाफ़ा हुआ है। इस हवाले से डॉन से बात करते हुए एक रिटेलर का कहना था कि बैगन और लौकी मार्कीट में60 से70 रुपये किलो में दस्तयाब थी जबकि ईरान और अफ़्ग़ानिस्तान से सब्ज़ी के आने के बावजूद प्याज़ की क़ीमत 80 रुपये किलो से नीचे नहीं आ रही। उन्होंने कहा कि ज़्यादा-तर अश्या (चीजें) 100 रुपये फ़ी किलो से ऊपर फ़रोख़्त हो रही हैं जबकि दरआमदात (सप्लाई) के बावजूद टमाटर अब भी 160 रुपये किलो हैं।

कराची और इस्लामाबाद की शबर है कि दरआमदशुदा सब्ज़ियों की आमद से अवाम को कोई रिलीफ़ नहीं मिल सका क्योंकि टमाटर और प्याज़ की क़ीमतें 150-160 रुपये फ़ी किलो और 50-60 रुपये फ़ी किलो से बिलतर्तीब 200 रुपये फ़ी किलो और 80 रुपये फ़ी किलो की बुलंद तरीन सतह पर पहुंच गई हैं। डॉन अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक़ सारिफ़ीन पहले से ही दरआमदी अदरक के लिए 600 रुपये फ़ी किलो अदा कर रहे हैं, जबकि कुछ लालची ख़ुदरा फ़रोश उसको बेहतरीन मयार का क़रार देते हुए 700 रुपये फ़ी किलो का मुतालिबा कर रहे हैं। ख़ुदरा फ़रोशों का कहना है कि गुज़श्ता एक हफ़्ते के दौरान ईरानी टमाटर और प्याज़, जबकि अफ़ग़ान प्याज़ की आमद मोख़र होने की वजह से क़ीमतों में मज़ीद इज़ाफ़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि प्याज़ और टमाटर दोनों की बलोचिस्तान की फ़सलें अब तक नाकाफ़ी साबित हो चुकी हैं जिससे ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से उन अश्या की दरआमद की राह हमवार होगी।

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पाँच वजहें जो डोनाल्ड ट्रंप को फिर बना सकती हैं राष्ट्रपति

राष्ट्रपति चुनाव में मतदाता कौन होंगे, इसका अनुमान लगाना एक चुनौती होता है. पिछली बार कुछ चुनावी सर्वे यही अनुमान लगाने में असफल साबित हुए.

डोनाल्ड ट्रंप को बिना कॉलेज डिग्री वाले गोरे अमरीकियों ने बढ़-चढ़कर वोट किया था, जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया गया था.

हालाँकि, इस बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अनुमान लगाया है कि बाइडन का मौजूदा मार्जिन उन्हें 2016 जैसी स्थिति से बचाएगा. लेकिन, 2020 में सर्वे करने वालों के सामने कुछ नई बाधाएँ हैं.

बीबीसी हिंदी पर पढ़ें पांच वजहें जो डोनाल्ड ट्रंप को फिर बना सकती हैं राष्ट्रपति

Tuesday, October 20, 2020

क्या पूरा होगा इलेक्ट्रॉनिक्स में सफलता का भारतीय सपना?

भारत में कई समाचार प्रतिष्ठानों ने रॉयटर्स का हवाला देते हुए ऐसे शीर्षक वाली खबरें जोर-शोर से चलाईं कि ऐपल अपने आईफोन विनिर्माण को चीन से हटाकर भारत ले जाने की योजना बना रही है। ऐपल की विनिर्माण साझेदार ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन के एक अरब डॉलर की लागत से चेन्नई के पास श्रीपेरुम्बदूर में लगाए जाने वाले संयंत्र में करीब 6,000 लोगों को रोजगार मिलने की बात भी कही गई।

हाल ही में आई एक और खबर में बताया गया कि भारत सरकार ने 10 मोबाइल फोन विनिर्माताओं समेत 16 इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों की प्रोत्साहन योजना के तहत की गई इनाम की अर्जी को मंजूर कर लिया है। इस योजना के तहत इन कंपनियों को 40,000 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन दिया जाना है। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में भले ही वैश्विक प्रभुत्व के लिए नहीं, कम-से-कम आत्म-निर्भरता के लिए ऐसे सपने देखना असल में भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। आजादी के कुछ साल बाद ही 1950 के दशक में मध्य में बेंगलूर में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज उपक्रमों की स्थापना की गई थी। 1980 के दशक के मध्य में सैम पित्रोदा आए और ग्रामीण टेलीफोन एक्सचेंजों के माध्यम से समूचे देश को जोड़ने के लिए सरकार ने सी-डॉट का गठन किया।

किसी टेलीविजन सीरियल की तरह सपनों एवं आकांक्षाओं के इस अनवरत दोहराव, सुर्खियां बनने वाली घोषणाओं, फंड के व्यापक प्रवाह और घरेलू विनिर्माण प्रयासों से केवल यही नजर आता है कि ये सपने दूर छिटक जाते हैं जबकि उद्योग बाएं या दाएं मुड़कर किसी अन्य दिशा में जाने लगता है। यह प्रयासों में शिद्दत की कमी नहीं है और न ही लगन की कमी या नेतृत्व प्रतिभा की कमी ही है। फिर किस वजह से ऐसा होता है?

बिजनेस स्टैंडर्ड में विस्तार से पढ़ें अजित बालकृष्ण का यह आलेख

 

एफएटीएफ की 'ग्रे लिस्ट’ से पाकिस्तान का फिलहाल निकल पाना मुश्किल

 

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की 21 से 23 अक्तूबर को होने वाली सालाना आम बैठक के ठीक पहले लगता है कि पाकिस्तान इसबार भी न तो ग्रे लिस्ट से बाहर आएगा और न ब्लैक लिस्ट में डाला जाएगा। भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जिन 27 कार्य-योजनाओं की जिम्मेदारी दी थी, उनमें से केवल 21 पर ही काम हुआ है। शेष छह पर नहीं हुआ।

इसके पहले एफएटीएफ के एशिया प्रशांत ग्रुप की रिपोर्ट गत 30 सितंबर को जारी हुई थी, जिसमें पाकिस्तान को दिए गए कार्य और उस पर अमल करने के उपायों की समीक्षा की गई। इसका सारांश है कि पाकिस्तान फिलहाल प्रतिबंधित होने वाली सूची से तो बच सकता है, लेकिन उसे अभी निगरानी सूची में ही रहना होगा। एफएटीएफ ने पाकिस्तान को गैरकानूनी वित्तीय लेन-देन, बाहर से आने वाली फंडिंग को रोकने, एनजीओ के नाम पर काम करने वाली एजेंसियों की गतिविधियों पर लगाम लगाने व पारदर्शिता लाने के लिए कार्यों की सूची सौंपी है।

पेरिस में क्या होगा?

पेरिस स्थित मुख्यालय में एफएटीएफ की 21-23 अक्टूबर को वर्च्युअल बैठक होगी। एफएटीएफ ने हाल के महीनों में पाकिस्तान सरकार की तरफ से उठाए गए कुछ कदमों की तारीफ भी की है। खासतौर पर जिस तरह से गैरसरकारी संगठनों की गतिविधियों को पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाए गए हैं, उनकी तारीफ की गई है। पाकिस्तान में नई व्यवस्था लागू की गई है, जिससे हजारों एनजीओ की फंडिंग की निगरानी संभव हो सकेगी।

Monday, October 19, 2020

इस महामारी ने हमें कुछ दिया भी है

कोई आपसे पूछे कि इस महामारी ने आपसे क्या छीना, तो आपके पास बताने को काफी कुछ है। अनेक प्रियजन-परिजन इस बीमारी ने छीने, आपके स्वतंत्र विचरण पर पाबंदियाँ लगाईं, तमाम लोगों के रोजी-रोजगार छीने, सामाजिक-सांस्कृतिक समारोहों पर रोक लगाई, खेल के मैदान सूने हो गए, सिनेमाघरों में सन्नाटा है, रंगमंच खामोश है। शायद आने वाली दीवाली वैसी नहीं होगी, जैसी होती थी। तमाम लोग अपने-अपने घरों में अकेले बैठे हैं। अवसाद और मनोरोगों का एक नया सिलसिला शुरू हुआ है, जिसका दुष्प्रभाव इस बीमारी के खत्म हो जाने के बाद भी बना रहेगा। जो लोग इस बीमारी से बाहर निकल आए हैं, उनके शरीर भी अब कुछ नए रोगों के घर बन चुके हैं।

यह सूची काफी लम्बी हो जाएगी। इस बात पर वर्षों तक शोध होता रहेगा कि इक्कीसवीं सदी की पहली वैश्विक महामारी का मानवजाति पर क्या प्रभाव पड़ा। सवाल यह है कि क्या इसका दुष्प्रभाव ही महत्वपूर्ण है? क्या इस बीमारी ने हमें प्रत्यक्ष या परोक्ष कुछ भी नहीं दिया? बरसों से दुनिया मौसम परिवर्तन की बातें कर रही है। प्राकृतिक दुर्घटनाओं की बातें हो रही हैं, पर ऐसी कोई दुर्घटना हो नहीं रही थी, जिसे दुनिया इतनी गहराई से महसूस करे, जिस शिद्दत से कोरोना ने महसूस कराया है। विश्व-समुदाय की भावना को अब हम कुछ बेहतर तरीके से समझ पा रहे हैं, भले ही उसे लागू करने के व्यावहारिक उपकरण हमारे पास नहीं हैं।

कराची में पाकिस्तानी विपक्ष का भारी जलसा

 पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के खिलाफ खड़ा हुआ आंदोलन ज़ोर पकड़ता जा रहा है। भारतीय मीडिया इस आंदोलन की खास कवरेज नहीं कर रहा है, क्योंकि उसकी दिलचस्पी स्थानीय मसलों में ज्यादा है। इस वक्त पाकिस्तान पर नजर रखने की जरूरत इसलिए है, क्योंकि अभी जो कुछ हो रहा है उसका असर भविष्य में भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर पड़ेगा। पाकिस्तान की कवरेज के लिए मैं बीबीसी का सहारा लेता हूँ या फिर डॉन और एक्सप्रेस ट्रिब्यून का। नीचे मैंने पहले बीबीसी की हिंदी वैबसाइट से छोटा सा अंश लिया है। आप विस्तार से पढ़ना चाहें, तो वैबसाइट पर जाएं, जिसका लिंक साथ में है। मेरी दिलचस्पी उस शब्दावली में है, जो पाकिस्तान में इस्तेमाल हो रही है। वह बीबीसी की उर्दू सेवा में सुनने को मिलती है। मैंने बीबीसी उर्दू की रिपोर्ट का देवनागरी में लिप्यंतरण करके अपेक्षाकृत विस्तार से लगाया है। लिप्यंतरण करते समय मैंने सब कुछ वैसे ही रहने दिया है, जैसी ध्वनि मूल आलेख से आ रही है। मसलन मरियम नवाज शरीफ को मर्यम लिखा गया है, तो मैंने वैसा ही रहने दिया है। पहले पढ़ें बीबीसी हिंदी की खबर का अंश:

इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ कराची में विपक्ष का जलसा, कुछ बदलेगा?

पाकिस्तान में इमरान ख़ान की सरकार के ख़िलाफ़ 11 पार्टियाँ संयुक्त मोर्चे पीडीएम (ऑल पार्टीज़ डेमोक्रेटिक मूवमेंट) के तहत गुजरांवाला में हुए पहले बड़े प्रदर्शन के बाद रविवार को कराची के जिन्ना-बाग़ में जलसा कर रही हैं. इस रैली में शामिल होने मरियम नवाज़, बिलावल भुट्टो समेत अन्य कई नेता पहुंचे हैं. मरियम नवाज़ पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की बेटी हैं और बिलावल भुट्टो पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो के बेटे हैं. मरियम नवाज़ हवाई मार्ग से कराची पहुँचीं और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की मज़ार पर भी गईं.

विस्तार से पढ़ना चाहें, तो बीबीसी हिंदी की वैबसाइट पर जाएं

 अब पढ़ें बीबीसी उर्दू की खबर के लिप्यंतरण का संपादित अंश

 जो अवाम के वोटों को बूटों के नीचे रौंदता है हम उसे सलाम नहीं करते- मर्यम नवाज़

ग्यारह जमाती हुकूमत मुख़ालिफ़ इत्तिहाद, पीडीएम का जलसा कराची के जिनाह बाग़ में मुनाक़िद हुआ और इस मौके़ पर मर्यम नवाज़ ने कहा कि हम हलफ़ की पासदारी करने वाले फ़ौजीयों को सलाम करते हैं लेकिन जो अवाम के वोटों को बूटों के नीचे रौंदता है उसे सलाम नहीं करते।

इस जलसे से पीटीएम के मुहसिन दावड़, डाक्टर अबदुलमालिक बलोच, महमूद ख़ान अचकज़ई और अख़तर मीनगल समेत दीगर सयासी रहनुमाओं ने भी ख़िताब किया।

Sunday, October 18, 2020

नवाज शरीफ का फौज पर हल्ला बोल

पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार के खिलाफ लगी आग धीरे-धीरे तेजी पकड़ रही है। शुक्रवार 16 अक्तूबर को पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) का जबर्दस्त जलसा पंजाब के गुजराँवाला में हुआ। इस रैली के साथ यह आंदोलन अब देश के दूसरे इलाकों में फैलेगा। गुजराँवाला की रैली में जहाँ विरोधी नेताओं के हमलों का निशाना इमरान खान और उनकी सरकार थी, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लंदन जारी लाइव वीडियो भाषण में देश की सेना पर निशाना लगाया गया। इस रैली में नवाज शरीफ के अलावा, बिलावल भुट्टो, मौलाना फजलुर्रहमान और मरियम नवाज शरीफ के भाषण और हुए। उन भाषणों का महत्व अपनी जगह है, पर नवाज शरीफ ने जो बातें कही हैं, वे पाकिस्तान के इतिहास में अपनी खास जगह बनाएंगी।

पाकिस्तान के इतिहास में सम्भवतः सैनिक शासकों पर आजतक का यह सबसे भीषण हमला है। नवाज शरीफ लम्बे अर्से से खामोश थे। पर अब वे बगावत की मुद्रा में हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने यह तीसरा भाषण दिया है। उनका हमला इमरान खान पर उतना नहीं था, जितना सेना पर था। उन्होंने सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा और आईएसआई के डीजी ले.जन. फैज़ हमीद का नाम लेकर कहा कि आपने मेरी सरकार गिराई और मेरे खिलाफ साजिश की। उन्होंने अदालत पर भी हमला बोला। उनका कहना है कि मैं अब वीडियो भी दिखाऊँगा। शरीफ ने क्या कहा इसे समझने के लिए बीबीसी उर्दू की रिपोर्ट के इस अंश को उसी भाषा में पढ़ें:

ख़िताब में नवाज़ शरीफ़ का कहना था कि 'कुछ लोगों की ख़ाहिश है कि मेरी आवाज़ अवाम तक ना पहुंचे और उनकी आवाज़ मुझ तक ना पहुंचे, लेकिन वो अपने मज़मूम मक़ासिद में कामयाब नहीं होंगे।

नवाज़ शरीफ़ ने अपनी तक़रीर में कहा कि तमाम सियासतदानों को 'ग़द्दार कहलाया जाता है और शुरू से फ़ौजी आमिर सियासतदान जैसे फ़ातिमा जिनाह, बाचा ख़ान, शेख़ मुजीब अलरहमान और दीगर रहनुमाओं को ग़द्दार क़रार देते रहे हैं।

नवाज़ शरीफ़ ने सियासतदानों पर ग़द्दारी के इल्ज़ामात लगाए जाने पर कहा कि 'पाकिस्तान में मुहिब-ए-वतन कहिलाय जानेवाले वो हैं जिन्होंने आईन की ख़िलाफ़वरज़ी की और मुल्क तोड़ा।

देश के भविष्य से जुड़ी खाद्य सुरक्षा

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की 75वीं वर्षगांठ और ‘विश्व खाद्य दिवस’ के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, आंगनबाड़ी-आशा कार्यकर्ताओं वगैरह को बधाई दी। महामारी के इस दौर में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि है हमारा अन्न भंडार। दूसरी उपलब्धि है देश का खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम, जो हर नागरिक को वहनीय मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता के अन्न की पर्याप्त मात्रा पाने का अधिकार देता है।

पहली नजर में ‘विश्व खाद्य दिवस’ एक औपचारिक कार्यक्रम है। गहराई से देखें, तो यह हमारी बुनियादी समस्या से जुड़ा है। चाहे व्यापक वैश्विक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें या निजी जीवन में। संयोग से कोरोना-काल में हमने मजबूरन अपने आहार-व्यवहार पर ध्यान दिया है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि जब विश्व कोविड महामारी से जूझ रहा था तो सरकार ने 80 करोड से अधिक लोगों के लिए पौष्टिक आहार उपलब्‍ध कराया। प्रधानमंत्री ने नवंबर तक देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने की घोषणा की थी। यह कार्यक्रम अभी जारी है। इसे आगे बढ़ाने पर भी विचार किया जाना चाहिए।

Saturday, October 17, 2020

विवाद का विषय क्यों बनीं रुक्मिणी कैलीमाची की 'कैलीफैट' रिपोर्ट

न्यूयॉर्क टाइम्स की प्रसिद्ध रिपोर्टर रुक्मिणी कैलीमाची को अलकायदा और इस्लामिक स्टेट की जबर्दस्त रिपोर्टिंग के कारण ख्याति मिली है। ये रिपोर्ट पॉडकास्टिंग पत्रकारिता के मील का पत्थर साबित हुई हैं। अब कनाडा में इन जानकारियों के एक सूत्रधार की गिरफ्तारी के बाद रुक्मिणी विवाद के घेरे में आ गई हैं। विवाद उनकी रिपोर्टिंग या जानबूझकर की गई किसी गलती के कारण नहीं है, बल्कि उस व्यक्ति की धोखाधड़ी से जुड़ा है, जिसकी बातों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई थीं। इन जानकारियों के आधार पर रुक्मिणी की इन रिपोर्टों को पिछले एक दशक के सबसे उल्लेखनीय पत्रकारीय कर्म में शामिल किया गया है। साथ ही रुक्मिणी की साख बेहद विश्वसनीय रिपोर्टर के रूप में स्थापित हो गई थी। फिलहाल दोनों पर सवालिया निशान हैं और अब इस बात की पड़ताल हो रही है कि ऐसा हो कैसे गया। 

Friday, October 16, 2020

क्या हम बांग्लादेश से भी गरीब हो गए हैं?

सोशल मीडिया को पढ़ें, तो कुछ लोगों का ऐसा ही निष्कर्ष है। यह निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के नवीनतम वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक से निकाला गया है। जीडीपी से जुड़े आँकड़ों के प्रति व्यक्ति औसत के आधार पर ऐसा निष्कर्ष निकाला जरूर जा सकता है, पर उसके साथ कुछ बातों को समझने की जरूरत भी है। 

एक तो यह कि जीडीपी की गणना नॉमिनल और पर्चेजिंग पावर पैरिटी (पीपीपी) दो तरह से की जाती है। दोनों लिहाज से भारत की अर्थव्यवस्था बांग्लादेश के मुकाबले कई गुना बड़ी है। जो आँकड़े हम देख रहे हैं, वे नॉमिनल आधार पर प्रति व्यक्ति औसत पर आधारित हैं। पीपीपी के आधार पर वह भी नहीं है। दूसरे ऐसा अनुमान है। अभी इस साल के करीब साढ़े पाँच महीने बाकी हैं। उनमें क्या होगा, कहना मुश्किल है। आईएमएफ के दूरगामी परिणामों पर नजर डालें, तो भारत और बांग्लादेश दोनों का भविष्य अच्छा है। बेशक हम गरीब हैं और ऊपर उठने का प्रयास कर रहे हैं।

Thursday, October 15, 2020

क्या हम पाकिस्तानी हरकतों को भूल जाएं?

 

फ्राइडे टाइम्स से साभार

इमरान खान के सुरक्षा सलाहकार मोईद युसुफ के भारतीय पत्रकार करन थापर से साक्षात्कार को न तो भारतीय मीडिया ने महत्व दिया और न भारत सरकार ने। इस खबर को सबसे ज्यादा महत्व पाकिस्तानी मीडिया में मिला। इसके अलावा भारत के कश्मीरी अखबारों में इस इंटरव्यू का उल्लेख हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अल जजीरा के अलावा किसी उल्लेखनीय प्लेटफॉर्म पर यह खबर देखने को नहीं मिली।

सोशल मीडिया पर जरूर इसका उल्लेख हुआ है, पर ज्यादातर पाकिस्तानी हैंडलों के मार्फत। रेडिट पाकिस्तान में मोईद युसुफ की तारीफ से जुड़ी कुछ टिप्पणियाँ देखने को मिली हैं। पाकिस्तानी अखबारों में सम्पादकीय टिप्पणियाँ भी जरूर होंगी। मैंने डॉन की टिप्पणी को देखा है, जिसमें वही घिसी-पिटी बातें हैं, जो अक्सर पाकिस्तान से सुनाई पड़ती हैं। इनमें सबसे ज्यादा महत्व इस बात को दिया गया है कि भारत ने पाकिस्तान से बातचीत की पेशकश की है। गुरुवार को भारतीय विदेश विभाग के प्रवक्ता ने इस बात को स्पष्ट कर दिया कि भारत की ओर से ऐसा कोई संदेश नहीं भेजा गया है। 

मान लिया कि ऐसी कोई पेशकश है भी तो यह कम से कम औपचारिक रूप से नहीं है। यदि यह बैकरूम गतिविधि है, तो मोईद साहब ने इसकी खबर देने की जरूरत क्यों समझी? यह किसी संभावना को खत्म करने की कोशिश तो नहीं है? इस बात को कैसे भुलाया जा सकता है कि नवाज शरीफ ने बातचीत के पेशकश की थी, जिसमें पाकिस्तानी सेना ने न केवल अड़ंगा लगाया, बल्कि नवाज शरीफ के खिलाफ इमरान खान को खड़ा किया। इस वक्त उनका कठपुतली नरेश राजनीतिक संकट में है और लगता यही है कि इस खबर के बहाने पाकिस्तानी जनता का ध्यान कहीं और ले जाने की कोशिश है। फिर भी मोईद साहब की बातों पर गौर करने की जरूरत भी है।

अबतक क्या हुआ?

द वायर ने इस इंटरव्यू का वीडियो जारी करने के पहले करन थापर का लिखा एक कर्टेन रेज़र जारी किया था, जिसमें पहला वाक्य था कि पाकिस्तानी एनएसए ने यह रहस्योद्घाटन किया है कि भारत ने पाकिस्तान से बातचीत की पेशकश की है। साथ ही यह भी कहा कि हम तो बात तभी करेंगे, जब कश्मीरियों को तीसरे पक्ष के रूप में शामिल किया जाएगा। यहाँ यह याद दिलाना बेहतर होगा कि 2014 में जब नवाज शरीफ नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आए थे, तब उन्होंने कश्मीरी प्रतिनिधियों से बात नहीं की थी। उसके बाद सुषमा स्वराज और सरताज अजीज की प्रस्तावित बात इसीलिए नहीं हो पाई थी, क्योंकि सरताज अजीज कश्मीरियों से बात करने के बाद ही उस वार्ता में शामिल होना चाहते थे।