Friday, September 13, 2019

अस्पताल, बैंक और शहर सब हमलावरों के निशाने पर


सायबर खतरे-2
सायबर हमले को डिनायल ऑफ सर्विस अटैक (डॉस अटैक) कहा जाता है। इसमें हमलावर उपभोक्ता की मशीन या उसके नेटवर्क को अस्थायी या स्थायी रूप से निष्क्रिय कर देता है। इतना ही नहीं उस मशीन या सर्वर पर तमाम निरर्थक चीजें भर दी जाती हैं, ताकि सिस्टम ओवरलोड हो जाए। इनपर नजर रखने वाले डिजिटल अटैक मैप के अनुसार ऐसे ज्यादातर हमले वित्तीय केंद्रों या संस्थाओं पर होते हैं।
दुनिया में काफी संस्थागत सायबर हमले चीन से हो रहे हैं। हांगकांग में चल रहे आंदोलन को भी चीनी हैकरों ने निशाना बनाया। अमेरिका और चीन के बीच कारोबारी संग्राम चल रहा है, जिसके केंद्र में चीन की टेलीकम्युनिकेशंस कंपनी ह्वावे का नाम भी है। उधर अमेरिका की कंपनियों पर एक के बाद एक सायबर हमले हो रहे हैं। मई के महीने में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सायबर हमलों को देखते हुए देश में सायबर आपातकाल की घोषणा भी कर दी है।
हांगकांग के आंदोलनकारी एलआईएचकेजी नामक जिस इंटरनेट प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं उसे पिछले हफ्ते हैक कर लिया गया। एलआईएचकेजी की कई सेवाएं ठप हो गईं। इसे फिर से सक्रिय करने में कई घंटे लगे। हाल में यह दूसरा मौका था, जब हांगकांग के प्रदर्शनकारियों से जुड़े नेट प्लेटफॉर्मों पर हमला किया गया। जून में मैसेजिंग सेवा टेलीग्राम ने कहा था कि चीन से जन्मे शक्तिशाली आक्रमण के कारण उसकी सेवाएं प्रभावित हुई थीं। हांगकांग की मुख्य कार्याधिकारी कैरी लाम ने हाल में कहा था, आंदोलन को हतोत्साहित करने के लिए हम नेट सेवाओं और चुनींदा एप्स को ठप कर सकते हैं। 
अखबार भी निशाने पर
दिसंबर 2018 में अमेरिका में कई अख़बारों के दफ़्तरों पर सायबर हमलों की खबरें आईं थीं। ट्रिब्यून पब्लिशिंग ग्रुप के कई प्रकाशनों पर सायबर हमले हुए जिससे द लॉस एंजेलस टाइम्स, शिकागो ट्रिब्यून, बाल्टीमोर सन और कुछ अन्य प्रकाशनों का वितरण प्रभावित हुआ। लॉस एंजेलस टाइम्स का कहना था, लग रहा है कि ये हमले अमेरिका से बाहर किसी दूसरे देश से किए गए। वॉल स्ट्रीट जरनल और न्यूयॉर्क टाइम्स के वेस्ट कोस्ट संस्करणों पर भी असर पड़ा जो लॉस एंजेलस में इस प्रिंटिंग प्रेस से छपते हैं। हमले के एक जानकार ने लॉस एंजेलस टाइम्स को बताया, हमें लगता है कि हमले का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे, ख़ासतौर से सर्वर्स को निष्क्रिय करना था, ना कि सूचनाओं की चोरी करना।

Thursday, September 12, 2019

कितने तमाचे खाएगा पाकिस्तान?


संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के बयान से पाकिस्तान के मुँह पर जोर का तमाचा लहा है। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के बाद से भारतीय राजनय की दिलचस्पी इस मामले पर ठंडा पानी डालने और जम्मू कश्मीर में हालात सामान्य बनाने में है, वहीं पाकिस्तान की कोशिश है कि इसपर वितंडा खड़ा किया जाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे उठाया जाए। उसका प्रयास है कि कश्मीर की घाटी में हालात सामान्य न होने पाएं। इसी कोशिश में उसने एक तरफ अपने जेहादी संगठनों को उकसाया है, वहीं अपने राजनयिकों को दुनिया की राजधानियों में भेजा है।
पाकिस्तान ने जिनीवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में इस मामले को उठाकर जो कोशिश की थी वह बेकार साबित हुई है। एक दिन बाद ही संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के बयान से पाकिस्तान को निराश होना पड़ा है। गुटेरेश का कहना है कि जम्मू-कश्मीर का मसला भारत-पाकिस्तान आपस में बातचीत कर सुलझाएं। उन्होंने इस मसले पर मध्यस्थता करने से इनकार कर दिया है। अब इस महीने की 27 तारीख को संयुक्त राष्ट्र महासभा में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के भाषण होंगे। उसके बाद पाकिस्तान को हंगामा खड़ा करने का कोई बड़ा मौका नहीं मिलेगा। वह इसके बाद क्या करेगा?

Tuesday, September 10, 2019

आम आदमी पार्टी की बढ़ती मुश्किलें

लोकप्रिय चेहरों के बिना केजरीवाल कितना कमाल कर पाएंगे?: नज़रिया
अलका लांबाप्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए
7 सितंबर 2019
दिल्ली के चांदनी चौक से विधायक अलका लांबा ने आम आदमी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफ़ा दिया और कांग्रेस में शामिल हो गई हैं.

उन्होंने एक ट्वीट में अपने इस इस्तीफ़े की घोषणा की.

उनके इस्तीफ़े के कारण स्पष्ट हैं कि पिछले कई महीने से वो लगातार पार्टी से दूर हैं. उन्होंने राजीव गांधी के एक मसले पर भी अपनी असहमति दर्ज की थी.

उनकी बातों से यह भी समझ आता था कि वो कम से कम आम आदमी पार्टी से जुड़ी नहीं रह पाएंगी, फिर सवाल उठता है कि वो कहां जातीं, तो कांग्रेस पार्टी एक बेहतर विकल्प था, क्योंकि वो वहां से ही आई थीं.

Monday, September 9, 2019

शिक्षा और साक्षरता उपयोगी भी तो बने


आज हम विश्व साक्षरता दिवस मना रहे हैं. दुनियाभर में 52वां साक्षरता दिवस मनाया जा रहा है. हर साल इस दिन की एक थीम होती है. इस साल स्थानीय भाषाओं के संरक्षण के लिए थीम है साक्षरता और बहुभाषावाद. दिव्यांग बच्चों की स्पेशल एजुकेशन से जुड़े युनेस्को के सलमांका वक्तव्य के 25 वर्ष भी इस साल हो रहे हैं. यानी समावेशी शिक्षा, जिसमें समाज के सभी वर्गों को शामिल किया जा सके. शिक्षा, जो उम्मीदें जगाए है और एक नई दुनिया बनाने का रास्ता दिखाए. क्या हमारी शिक्षा यह काम कर रही है?  
भारत में साक्षरता के आंकड़े परेशान करने वाले हैं. सन 2011 की जनगणना के अनुसार सात या उससे ज्यादा वर्ष के व्यक्ति जो लिख और पढ़ सकते हैं, साक्षर माने जाते हैं. जो व्यक्ति केवल पढ़ सकता है, पर लिख नहीं सकता, वह भी साक्षर नहीं है. इस परिभाषा के अनुसार 2011 में देश की साक्षरता का प्रतिशत 74.04 था. इसमें भी साक्षर पुरुषों का औसत 82.14 और स्त्रियों का औसत 65.46 था.

Sunday, September 8, 2019

चंद्रयान ने हमारा हौसला बढ़ाया


चंद्रयान-2 का लैंडर विक्रम सफल और सुरक्षित तरीके से चंद्रमा पर उतर जाता तो शायद इस आलेख की शुरूआत दूसरे तरीके से होती, पर क्या इसका विषय बदलता? नहीं बदलता। यह अभियान विफल नहीं हुआ है। इसका एक हिस्सा गंतव्य तक नहीं पहुँचा, पर यह इस यात्रा का छोटा सा अंश था। मुख्य चंद्रयान तो चंद्रमा की परिक्रमा कर ही रहा है। वैज्ञानिक प्रवृत्ति जिज्ञासु होती है। अब हमें समझना होगा कि लैंडर क्यों नहीं उतरा। यह भी एक चुनौती है, पर अभियान की सबसे बड़ी सफलता है समूचे देश की भागीदारी।
पूरे देश ने रात भर जागकर जिस तरह से अपने अंतरिक्ष यान की प्रगति को देखा, वह है सफलता। इस अभियान ने पूरे देश को जगा दिया है। सफल तो हमें होना ही है। चंद्रमा की सतह को लेकर बहुत सी जानकारियां हमारे पास हैं। जिस हिस्से में लैंडर विक्रम पहुंचा, वहां पहले कोई नहीं गया। उसने अपनी अधूरी रह गई यात्रा में भी कुछ न कुछ जानकारियाँ भेजी हैं। ये जानकारियाँ आगे काम आएंगी। मिशन का सिर्फ पांच प्रतिशत-लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर-का नुकसान हुआ है। बाकी 95 प्रतिशत-चंद्रयान-2 ऑर्बिटर-अभी एक साल चंद्रमा की तस्वीरें भेजेगा।
कल्पना करें कि विक्रम लैंडर सही तरीके से उतर जाता, तो वह सफलता कितनी बड़ी होती। पहली बार में एक बेहद जटिल तकनीक के शत-प्रतिशत सफल होने की वह महत्वपूर्ण कहानी होती। इसरो अध्यक्ष के सिवन ने पहले ही कहा था कि इस अभियान के अंतिम 15 मिनट बहुत कठिन होंगे। प्रस्तावित 'सॉफ्ट लैंडिंग' दिलों की धड़कन थाम देने वाली होगी, क्योंकि इसरो ने ऐसा पहले कभी नहीं किया है। चंद्रयान-2 की मूल योजना में लैंडर और रोवर रूस से बनकर आने वाले थे, पर रूस का चीन के सहयोग से मंगल मिशन फोबोस ग्रंट विफल हो गया। रूस ने चंद्रयान-2 से हाथ खींच लिया, क्योंकि इसी तकनीक पर वह चंद्रयान के लैंडर का विकास कर रहा था। वह इसकी विफलता का अध्ययन करना चाहता था। इस वजह से इसरो पर लैंडर को विकसित करने की जिम्मेदारी भी आ गई। यह असाधारण काम था, जिसे इसरो ने तकरीबन पूरी तरह से सफल करके दिखाया।