नरेंद्र मोदी के विरोधी
भी मानते हैं कि वे संवाद-शिल्प के धनी हैं और अपने श्रोताओं को बाँधने में कामयाब
है। सन 2014 में जब उन्होंने लालकिले से प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपना
पहला भाषण दिया था, तब पिटे-पिटाए भाषणों की परम्परा तोड़ कर जनता सीधा संवाद किया
था। उसका केंद्रीय संदेश था कि राष्ट्रीय चरित्र बनाए बगैर देश नहीं बनता। स्वतंत्रता
के 68 साल में वह पहला स्वतंत्रता दिवस संदेश था, जो उसे संबोधित था जो देश का
निर्माता है। देश बनाना है तो जनता बनाए और दुनिया से कहे कि भारत ही नहीं हम
दुनिया का निर्माण करेंगे। राष्ट्र-निर्माण की वह यात्रा जारी है, जो उनके इस साल
के भाषण में खासतौर से नजर आती है। इसमें तमाम ऐसी बातें हैं, जो छोटी लग सकती
हैं, पर राष्ट्र-निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
सबसे बड़ी बात है कि यह
भाषण देशप्रेम और राष्ट्रभक्ति की परम्परागत शब्दावली से मुक्त है। एक तरफ आप अपने
पड़ोसी देश पाकिस्तान के राष्ट्र नेताओं के भाषण सुनें, तो उन्मादी बातों से भरे
पड़े हैं, वहीं इस भाषण में ज्यादातर बातें रचनात्मक हैं। कांग्रेसी नेता पी
चिदंबरम, मोदी के मुखर आलोचकों में से एक हैं। उन्होंने भी इस भाषण की तारीफ की है।
उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, प्रधानमंत्री की तीन घोषणाओं का सभी को स्वागत करना
चाहिए। ये तीन बातें हैं छोटा परिवार देशभक्ति का दायित्व है, वैल्थ क्रिएटर्स का
सम्मान और प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक।