मई के पहले-दूसरे सप्ताह तक जो लड़ाई निर्णायक रूप से
जीती हुई लगती थी, उसे लेकर पिछले दस दिनों से अचानक चिंताजनक खबरें आ रही हैं। गत
1 मई को महाराष्ट्र में संक्रमण के 11 हजार से कुछ ऊपर मामले थे, जो 22 मई को 44
हजार से ऊपर हो गए। दिल्ली में साढ़े तीन हजार मामले करीब साढ़े 12 हजार हो गए,
तमिलनाडु में ढाई हजार मामले पन्द्रह हजार को छूने लगे, मध्य प्रदेश में 2715 से
बढ़कर 6170 और पश्चिम बंगाल में 795 से बढ़कर 3332 हो गए। एक मई को 24 घंटे में
पूरे देश में 2396 नए केस दर्ज हुए थे, जबकि 22 मई को 24 घंटे के भीतर 6,088 नए
मामले आए।
इस कहानी का यह एक पहलू है। इसका दूसरा पक्ष भी है। सरकार
का कहना है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण कम से कम 14-29 लाख नए केस,
37,000-71,000 मौतें बचा ली गईं। यह संख्या विभिन्न स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा
तैयार किए गए गणितीय मॉडल पर आधारित हैं। नीति आयोग में स्वास्थ्य मामलों के सदस्य
डॉ वीके पॉल का कहना है कि भारत ने जो रणनीति अपनाई है, वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
एक मॉडल के रूप में काम कर रही है। सच यह भी है कि कुल संक्रमितों की संख्या के
लगभग आधे का ही इलाज चल रहा है। आधे से कुछ कम ठीक भी हुए हैं।