Showing posts with label मीडिया. Show all posts
Showing posts with label मीडिया. Show all posts

Friday, April 8, 2011

विदेशी मीडिया में अन्ना हजारे

अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने अन्ना हजारे पर कुछ सामग्री छापी है। एपी की रपट में लिखा हैः- Public anger with corruption has been growing in the wake of recent scandals, including an investigation into the sale of cell phone spectrum in 2008 that reportedly cost the country tens of billions of dollars in lost revenue. The telecoms minister had to resign and is currently in jail pending a probe into the losses.


वॉशिंगटन पोस्ट में एलिजाबेथ फ्लॉक के ब्लॉग पोस्ट में लिखा गया है -
Corruption has long been a serious problem within the Indian government. In 2008, The Washington Post reported that nearly a fourth of the 540 Indian Parliament members faced criminal charges, “including human trafficking immigration rackets, embezzlement, rape, and even murder.” In 2010, Transparency International found India to be the ninth-most corrupt country in the world, with 54 percent of Indians having paid a bribe in the past year.

But Hazare’s protest is particularly timely in a year in which three major corruption scandals rocked the Indian government, the scandals prompting even the stoic Supreme Court to ask: “What the hell is going on in this country?”



वॉशिंगटन पोस्ट में रपट

Thursday, April 7, 2011

जंतर-मंतर पर पीपली लाइव

मीडिया ब्लॉल सैंस सैरिफ के अनुसार दिल्ली के जंतर मंतर पर पीपली लाइव शो चल रहा है। मौके पर 42 ओबी वैन तैनात हैं। इंडिया टुडे से जुड़े अंग्रेजी चैनल ने वहाँ वॉक इन स्टूडियो बना दिया है। वजह सब जानते हैं कि वहाँ अन्ना हजारे का अनशन चल रहा है।

अन्ना हजारे के अनशन पर आज इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक है Cracks appear in Anna's team, Govt plans to reach out. इस खबर से लगता है जैसे अन्ना की कोई मंडली आपसी विवाद में उलझ गई है। लीड का शीर्षक थोड़ा सनसनीखेज है, जबकि खबर के अनुसार कर्नाटक के लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगडे अपने ही प्रस्तावित बिल के प्रारूप से सहमत नहीं हैं। एक्सप्रेस ने सम्पादकीय लिखा है दे, पीपुल

Wednesday, March 9, 2011

बदली स्ट्रैपलाइन

टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के अखबार ईटी ने पत्रकारीय मर्यादा तय की है साथ ही टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने डेल्ही टाइम्स, बॉम्बे टाइम्स और बेंग्लोर टाइम्स के मास्टहैड के नीचे की लाइन बदल दी है। नई लाइन है  Advertorial, Entertainment Promotional Feature. इसके पहले यह लाइन थी Entertainment & Advertising Feature.





Tuesday, March 1, 2011

बजट के अखबार

बज़ट का दिन मीडिया को खेलने का मौका देता है और अपनी समझदारी साबित करने का अवसर भी। आज के   अखबारों को देखें तो दोनों प्रवृत्तियाँ देखने को मिलेंगी। बेहतर संचार के लिए ज़रूरी है कि जटिल बातों को समझाने के लिए आसान रूपकों और रूपांकन की मदद ली जाए। कुछ साल पहले इकोनॉमिक टाइम्स ने डिजाइन और रूपकों का सहारा लेना शुरू किया था. उनकी देखा-देखी तमाम अखबार इस दौड़ में कूद पड़े। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पास तमाम साधन हैं, पर वहाँ भी खेल पर जोर ज्यादा है बात को समझाने पर कम। अंग्रेजी के चैनल सेलेब्रिटी टाइप के लोगों और राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों को मंच देते हुए ज्यादा नज़र आते हैं, दर्शक  को यह कम बताते हैं कि बजट का मतलब क्या है। टाइम्स ऑफ इंडिया की परम्परा बजट को बेहतर ढंग से कवर करने की है। 


एक ज़माने में हिन्दी अखबार का लोकप्रिय शीर्षक होता था 'अमीरों को पालकी, गरीबों को झुनझुना'। सामान्य व्यक्ति यही सुनना चाहता है। अंग्रेजी अखबार पढ़ने वालों की समझदारी का स्तर बेहतर है। साथ ही वे व्यवस्था से ज्यादा जुड़े हैं। उनके लिए लिखने वाले बेहतर होम वर्क के साथ काम करते हैं। दोनों मीडिया में विसंगतियाँ हैं। 

Thursday, February 24, 2011

भारत के टाइम्स की खबर छापी मर्डोक के संडे टाइम्स ने

भारत की पेड न्यूज़ धोखाधड़ी (India's dodgy 'paid news' phenomenon) शीर्षक से लंदन के प्रतिष्ठित अखबार गार्डियन के लेखक रॉय ग्रीनस्लेड ने अपने व्लॉग में टाइम्स ऑफ इंडिया के पेड न्यूज़ प्रकरण को उठाया है। उन्होंने संडे टाइम्स में प्रकाशित एक रपट के आधार पर यह लिखा है, यह याद दिलाते हुए कि भारत सरकार ने पेड न्यूज़ की भर्त्सना की है। पिछले साल प्रेस काउंसिल ने इस मामले की जाँच भी की थी, जिसकी रपट काफी काट-छाँट कर जारी की गई थी। 


बावजूद इसके टाइम्स ऑफ इंडिया में रकम लेकर मन पसंद सम्पादकीय सामग्री का प्रकाशन सम्भव है। पेड न्यूज़ की परिभाषा बड़ी व्यापक है। इसमें गिफ्ट लेने से लेकर मीडिया हाउस और कम्पनियों के बीच प्रचार समझौते भी शामिल हैं। यह समझौते शेयर ट्रांसफर के रूप में होते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की मन पसंद पब्लिसिटी के बदले अखबारों ने पैसा लिया, ऐसी शिकायतें थीं।

Wednesday, February 23, 2011

बीबीसी हिन्दी रेडियो को बचाने की अपील


बीबीसी की हिन्दी सेवा को बचाने के प्रयास कई तरफ से हो रहे हैं। एक ताज़ा प्रयास है लंदन के अखबार गार्डियन में छपा पत्र जिसपर भारत के कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों के हस्ताक्षर हैं। बीबीसी की हिन्दी सेवा को देश के गाँवों तक में सुना जाता है। तमाम महत्वपूर्ण अवसरों पर यह सेवा हमारी जनता की खबरों का स्रोत बनी। इसकी हमें हमेशा ज़रूरत रहेगी।

Wednesday, February 16, 2011

प्रधानमंत्री की प्रभावहीन टीवी कांफ्रेंस


 इसे सम्पादक सम्मेलन कहने को जी नहीं करता। सबसे पहले हिन्दी चैनल आज तक के सम्पादक के नाम पर आए उसके मालिक अरुण पुरी ने अंग्रेजी में सवाल किया। आज सुबह के टेलीग्राफ में राधिका रमाशेसन की खबर थी कि दो चैनलों के मालिकों को खासतौर पर आने को कहा गया है। दूसरे सम्पादक से उनका आशय बेशक प्रणय रॉय होंगे। प्रणय़ रॉय को हम मालिक कम सम्पादक ज्यादा मानते हैं। आज के सम्मेलन में उन्होंने ही सबसे सार्थक सवाल पूछे। अर्णब गोस्वामी के तेवरों पर ध्यान न दें तो वाजिब सवाल उनके भी थे।

Tuesday, February 8, 2011

एओएल ने खरीदा हफिंगटन पोस्ट


खबर है कि अमेरिकन ऑनलाइन कम्पनी ने, जो अब एओएल के नाम से जानी जाती है, इंटरनेट के सबसे प्रभावशाली अखबार हफिंगटन पोस्ट को 31.5 करोड़ डॉलर में खरीदने का फैसला किया है। इस खबर के दो अर्थ हैं। एक तो यह कि हफिंगटन पोस्ट की ताकत को कुछ देर से ही सही पहचाना गया है और इंटरनेट के अखबारों की ताकत अब धीरे-धीरे बढ़ेगी। इस खबर के साथ यह खबर भी है कि हफिंगटन पोस्ट की मालकिन एरियाना हफिंगटन इस अखबार की प्रेसीडेंट होंगी, साथ ही वे एओएल की सम्पादकीय प्रमुख भी होंगी। यह खबर एओएल के भविष्य का संकेत भी है। एक साल पहले टाइम वार्नर के साथ आठ साल पुराना रिश्ता टूटने के बाद से एओएल का भविष्य भी डाँवाडोल है। 

Tuesday, February 1, 2011

सम्पादकीय पेज विहीन डीएनए


डीएनए ने हिम्मत दिखाई और घोषणा करके एडिट पेज बन्द कर दिया। साथ में यह कहा कि इसे बहुत कम लोग पढ़ते हैं, बोरिंग होता है, अपनी ज़रूरत खो चुका है, सिर्फ जगह भरने का काम हो रहा था।

Sunday, January 30, 2011

पत्रकारिता के पावरफुल


100'11


इंडियन एक्सप्रेस ने पिछले कुछ वर्षों से देश के सबसे पावरफुल 100 लोगों की सूची छापनी शुरू की है। इस सूची को पढना रोचक है। देश के उच्च मध्यवर्ग के नज़रिए से बनी इस सूची के अनुसार सत्ता के गलियारों और बिजनेस हाउसों से जुड़े लोग देश के सबसे ताकतवर लोग होते हैं। सूची में पहला नाम सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसएच कपाडिया का है। उसके बाद सोनिया गांधी और फिर मनमोहन सिंह का नाम है। एक माने में यह सुप्रीम कोर्ट की ताकत है। पर पूरी सूची सूची में संसद की ताकत का प्रतिनिधि कोई नहीं है। 

Thursday, January 27, 2011

वीर सांघवी और बरखा दत्त


लाइफ स्टाइल पत्रिका सोसायटी के जनवरी अंक में वीर सांघवी और बरखा दत्त के इंटरव्यू छपे हैं। इनमें दोनों पत्रकारों ने अपन पक्ष को रखा है। दोनों अपने पक्ष को अपने कॉलमों, वैबसाइट और चैनल पर पहले भी रख चुके हैं। यह पहला मौका है जब दोनों ने एक साथ एक जगह अपनी बात रखी। इसमें ज़ोर इस बात पर है कि राडिया टेप का विवरण छापने के लिए जिन लोगों ने दिया उन्होंने हम दोनों से जुड़े विवरण को साफ-साफ अलग से अंकित किया था। यह लीक हम दोनों को टार्गेट करने के वास्ते थी।

Wednesday, January 26, 2011

पद्म पुरस्कार और पत्रकार

टीजेएस जॉर्ज
इस साल के पद्म पुरस्कारों की सूची में सिर्फ दो पत्रकारों के नाम हैं। कॉलम्निस्ट टीजेएस जॉर्ज और देश की पहली महिला न्यूज़ फोटोग्राफर होमाई वयारवाला(Homai Vyarawala)। पुरस्कारों की सूची में राजनेता भी एक ही हैं। सूची में कलाकार, संगीतकार, अभिनेता वगैरह हैं, पर स्टार पत्रकार नहीं हैं। शायद इसकी एक वजह यह है कि राडिया टेप सूची में करीब आधा दर्जन पूर्व पद्म-अलंकृतों के नाम हैं। राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए यह गौरव की बात नहीं। 25 जनवरी को इन पुरस्कारों की घोषणा होने के पहले हवा में अनेक नाम तैर रहे थे। वह सब हवा में ही रह गया। 

भारतीय गणतंत्र का मीडिया



हमारा मीडिया क्या पूरी तरह स्वतंत्र है? 
सन 1757 में जब प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना को ईस्ट इंडिया कम्पनी की मामूली सी फौज ने हराया था, तब इस देश में अखबार या खबरों को जनता तक पहुँचाने वाला मीडिया नहीं था। आधुनिक भारत के लिए वह खबर युगांतरकारी थी। सम्पूर्ण इतिहास में ऐसी ब्रेकिंग न्यूज़ उंगलियों पर गिनाई जा सकतीं हैं। पर उन खबरों पर सम्पादकीय नहीं लिखे गए। किसी टीवी शो में बातचीत नहीं हुई। पर 1857 की क्रांति होते-होते अखबार छपने लगे थे। ईस्ट इंडिया कम्पनी का मुख्यालय कोलकाता में था और वहीं से शुरूआती अखबार निकले। विलियम डैलरिम्पल ने अपनी पुस्तक द लास्ट मुगल में लिखा है कि पूरी बगावत के दौरान दिल्ली उर्दू अखबार और सिराज-उल-अखबार का प्रकाशन एक दिन के लिए भी नहीं रुका। आज इन अखबारों की कतरनें हमें इतिहास लिखने की सामग्री देतीं हैं। 

Tuesday, January 25, 2011

गलती जो हो गई


ग्राहम स्टेंस की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर कुछ लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी आपत्ति दर्ज कराते हुए एक प्रेस नोट ज़ारी किया। इसपर आधारित खबर हिन्दू में भी छपी। इसका रोचक पक्ष यह था कि खबर में कहा गया कि देश के प्रमुख सम्पादकों ने यह बयान जारी किया है। हैरत की बात थी कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का विरोध करने वाले सम्पादकों में एन राम और चन्दन मित्रा के नाम एक साथ थे। 

Sunday, January 23, 2011

हमारे मीडिया का प्रभाव


1983 में राजेन्द्र माथुर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में हिन्दी के दैनिक अखबारों की पत्रकारिता पर तीन लेखों की सीरीज़ में इस बात पर ज़ोर दिया था कि हिन्दी के पत्रकार को हिन्दी के शिखर राजनेता की संगत उस तरह नहीं मिली थी जिस तरह की वैचारिक संगत बंगाल के या दूसरी अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों- पत्रकारों को मिली थी। आज़ादी से पहले या उसके बाद प्रेमचंद, गणेश शंकर विद्यार्थी या राहुल बारपुते को नेहरू जी की संगत नहीं मिली।

Saturday, January 15, 2011

एक साथ दो चैनलों में लाइव मणिशंकर

यह पोस्ट मैने मीडिया से जुड़े रोचक ब्लाग चुरुमुरी  से सीधे ली है। यह ब्लाग कर्नाटक के पत्रकारों से जुड़ा लगता है। अक्सर इसमें बड़ी रोचक बातें पढ़ने को मिलतीं हैं। इसमें एक दर्शक ने दो चैनलों में एक ही वक्त पर लाइव कार्यक्रमों में मणिशंकर अय्यर की उपस्थिति पर आश्चर्य व्यक्त किया गया है। टीवी चैनलों के लिए यह बात आश्चर्य का विषय नहीं है। वे लाइव कार्यक्रम के बीच जब रिकार्डेड सामग्री दिखाते हैं तो उसे भी लाइव दिखाते हैं। वस्तुतः टीवी मनोरंजन का मीडिया है इसमें कृत्रिम तरीके से किसी बात को पेश करना अटपटा नहीं माना जाता। कभी-कभार फाइल क्लिपिंग लगाते हैं तो ऊपर फाइल लिख देते हैं। हमेशा ऐसा होता भी नहीं। ब्रेकिंग न्यूज़ का भारतीय चैनलों ने जो अर्थ लगाया है वह यह है कि गुज़रे कल की खबर को भी ब्रेकिंग न्यूज़ मानो। 

NDTV, CNN-IBN and Mani Shankar Aiyar “Live”

14 January 2011
 
Reader Kollery S. Dharan forwards two screengrabs, shot with his mobile phone, of the 10 pm shows of NDTV 24×7 and CNN-IBN on Thursday, 13 January 2011.
Both channels carry the “live” logo on the top right-hand corner. And “live” on both channels at the same time on the same day is the diplomat-turned-politician Mani Shankar Aiyar.
For Barkha Dutt‘s show The Buck Stops Here (left), Aiyar, in a grey coat, offers his wisdom on the dynastic democracy thatPatrick French says India has become.
For Sagarika Ghose‘s show Face the Nation (right), Aiyar, now in a beige/ light brown coat, holds forth on Pakistan’s identity crisis. The two pictures were captured at 10.22 pm and 10.23 pm.
So, which channel had Mani Shankar Aiyar “live” last night? Or has Aiyar broken the time-space continuum?

Friday, December 17, 2010

राजदीप सरदेसाई भाग-1




राजदीप इसे मिस-कंडक्ट नहीं मिस-जजमेंट मानते हैं। इसे मानने में दिक्कत नहीं है, पर इसे मानने का मतलब है कि हम इस किस्म की पत्रकारिता से जुड़े आचरण को उचित मानते हैं। इन टेपों को सुनें तो आप समझ जाएंगे कि इन पत्रकारों ने नीरा राडिया से सवाल नहीं किए हैं, बल्कि उनके साथ एक ही नाव की सवारी की है। ये पत्रकार नीरा राडिया से कहीं असहमत नहीं लगते। व्यवस्था की खामियों को वे देख ही नहीं पा रहे हैं। दरअसल पत्रकारिता की परम्परागत समझ उन्हें है ही नहीं और वे अपने सेलेब्रिटी होने के नशे में हैं।

Sunday, December 5, 2010

मशहूर होने की पत्रकारिता


बरखा दत्त की पत्रकारिता शैली और साहस की तारीफ होती है। वे करगिल तक गईं और धमाकों के बीच रिपोर्टिंग की। न्यूयार्क टाइम्स ने इस मामले पर एक रपट प्रकाशित की है जिसमें बरखा दत्त के बारे में जानकारी देते वक्त उस उत्साह का विवरण दिया है जो उन्हें विरासत में मिला है। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार-


Ms. Dutt has followed in the footsteps of her mother, Prabha Dutt, who was a trailblazing female newspaper reporter, barging her way onto the front lines of the battles with Pakistan in 1965 despite her editors’ reluctance to dispatch a woman to cover a war.

Saturday, December 4, 2010

राडिया प्रकरण पर विनोद मेहता



मीडियाकर्मी अपनी परम्परागत भूमिका को निभाते रहें तो किसी नए ज्ञान की ज़रूरत नहीं है। आज के विवाद इसलिए उठे हैं क्योंकि पत्रकार अपनी भूमिका को भूल गए हैं। वे या तो नींद में हैं या नशे में।