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Wednesday, November 2, 2016

पाकिस्तानी उच्चायोग में जासूसी

 1 नवम्बर के डॉन में खबर थी कि पाकिस्तान सरकार सम्भवतः अपने चार राजनयिकों को वापस बुलाएगी। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि जिस राजनयिक को भारत ने जासूसी के आरोप में वापस भेजा है उसने पुलिस से पूछताछ के दौरान कुछ नाम बताए हैं, जिन्हें वापस लेने पर भारत सरकार दबाव बना रही है। खबर यह भी है कि इन्हें वापस बुलाने के साथ-साथ पाकिस्तान भारत के कुछ और राजनयिकों को भारत वापस भेजेगी। इस प्रकार राजनयिकों का यह जवाबी संग्राम अब शुरू हुआ है। 3 नवम्बर के डॉन में भारतीय उच्चायोग के आठ सदस्यों को अंडरकवर जासूस बताया गया। उधर भारतीय मीडिया में खबरें थीं कि भारत ने पाकिस्तान के छह राजनयिकों को वापस उनके देश भेजा है। 

डॉन के अनुसार  
The government is considering pulling out from India four of its officers posted in Pakistan’s High Commission in New Delhi, days after Indian authorities declared one official persona non grata.

“This is under consideration. A final decision would be taken shortly,” a source at the Foreign Office said on Monday.

The names of the officers — commercial counsellor Syed Furrukh Habib and first secretaries Khadim Huss­ain, Mudassir Cheema and Shahid Iqbal — were made public after Indian officials released to media a recorded statement of a high commission staffer Mehm­ood Akhtar, who was expelled from India after being declared persona non grata.
डॉन में पढ़ें पूरी खबर

उधर आज भारत के अखबार डीएनए ने खबर दी है कि दूतावास में पाकिस्तान के कॉमर्शियल काउंसलर सैयद फर्रुख हबीब आईएसआई के एजेंट हैं। उनके अलावा भी दूतावास के कई कर्मचारी केवल जासूसी का काम कर रहे हैं।
डीएनए के अनुसार
The reverberations of the Pakistani spy ring saga continue to impact New Delhi and Islamabad. What has baffled intelligence agencies in India is that the person in-charge of India-Pakistan trade relations has turned out to be a top Inter-Services Intelligence (ISI) officer and chief of intelligence operations in India.

This came to light after the interrogation of Mehmood Akhtar last week. Akhtar, an ISI officer and Pakistani High Commission staffer, was part of the spy ring.
Intelligence officers said that the top ISI officer, Syed Furrukh Habib, was posted as Commercial Counsellor in the Pakistani High Commission. This is a big worry for India's intelligence officials as it shows that Pakistan has even made trade as a means to gather intelligence.
डीएनए में पढ़ें पूरी खबर

Thursday, January 7, 2016

मुम्बई से पठानकोट तक के सबक

पठानकोट पर हुए हमले के बाद भारत में लगभग वैसी ही नाराजगी है जैसी 26 नवम्बर 2008 के बाद पैदा हुई थी. बाद में खबरें मिलीं कि तब भारत सरकार ने लश्करे तैयबा के मुख्यालय मुरीद्के पर हमले की योजना बनाई थी. तब दोनों देशों के बीच किसी प्रकार सहमति बनी कि पाकिस्तान हमलावरों की खोज और उन्हें सज़ा देने के काम में सहयोग करेगा. इसमें अमेरिका की भूमिका भी थी. इस बार भी खबर है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने मंगलवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और एयरफोर्स बेस पर हुए हमले की जांच में हर संभव मदद का आश्वासन दिया. उसके पहले पाकिस्तान सरकार ने औपचारिक रूप से इस हमले की भर्त्सना भी की. बहरहाल टेलीफोन पर दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के बीच हुई बातचीत में नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि हमले के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जाए. इससे पहले पाकिस्तानी विदेश विभाग ने सोमवार की रात एक बयान में कहा था कि भारत द्वारा उपलब्ध कराए गए 'सुरागों' पर पाकिस्तान काम कर रहा है.

Monday, January 4, 2016

पठानकोट के बाद

पठानकोट पर हमले के बाद देश के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की प्रतिक्रिया बेहद आक्रामक रही है, वहीं अखबारों की प्रतिक्रिया संतुलित है। आज के इंडियन एक्सप्रेस का सम्पादकीय है कि बातचीत जारी रहनी चाहिए। बात करना समर्पण नहीं है। अलबत्ता अखबार की सलाह है कि हमें काउंटर टैररिज्म सामर्थ्य को सुधारना चाहिए। आज के हिन्दूटाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स ने  भी तकरीबन यही राय व्यक्त की है। पाकिस्तान के अखबार डॉन का भी यही कहना है। डॉन का यह भी कहना है कि सन 2008 के मुम्बई हमले को लेकर पाकिस्तान की ओर से जो कमी रह गई है उसका नुकसान उसे होगा। 

Indian Express

After Pathankot

Dialogue with Pakistan must go on. But India urgently needs counter-terrorism capacity-building.


Exactly a week after Prime Minister Narendra Modi landed in Lahore, hoping to “turn the course of history”, his ambitious project is being tested by fire. This weekend’s terrorist attack on Pathankot was no surprise; indeed, many in India’s intelligence community had predicted it. Each past effort at peace, after all, has provoked similar strikes. It is too easy, though, to attribute the strike to unnamed spoilers. The more complex truth is that while Pakistan’s all-powerful army seeks to avert a military crisis that would drain its energies at a time of grave internal turmoil, it does not seek normalisation. Pakistan’s army chief, General Raheel Sharif, has made it clear that he will not accept the status-quo on Kashmir. The strike on Pathankot, carried out by the Inter-Services Intelligence’s old client, the Jaish-e-Muhammad, serves a very specific purpose. It signals to Indian policymakers that the Pakistan army can inflict pain, but at a threshold below that which makes it worthwhile for New Delhi to retaliate. Barring reflexive hawks, after all, no one would argue that it makes sense for Delhi to risk even limited conflict after the strike on Pathankot. 

Wednesday, December 9, 2015

भारत-पाकिस्तान एक कदम आगे

भारत-पाकिस्तान रिश्तों में एक हफ्ते के भीतर भारी बदलाव आ गया है. यह बदलाव बैंकॉक में अजित डोभाल और नसीर खान जंजुआ की मुलाकात भर से नहीं आया है. यह इस बात का साफ इशारा है कि दोनों देशों ने बातचीत को आगे बढ़ाने का फैसला किया है. यह मामला बेहद संवेदनशील है. दोनों देशों की जनता इसे भावनाओं से जोड़कर देखती है. बैंकॉक-वार्ता के गुपचुप होने की सबसे बड़ी वजह शायद यही थी. और अब कड़ी प्रतिक्रियाएं आने लगी हैं. दूसरी ओर विदेशमंत्री सुषमा स्वराज पाकिस्तान के महत्वपूर्ण नेताओं से मुलाकात भी कर चुकी हैं. सब ठीक रहा तो अब तक क्रिकेट सीरीज खेले जाने का फैसला भी सामने आ चुका होगा. यह सब काफी तेजी से हुआ है.

Friday, June 26, 2015

बीबीसी की रपट पर भारतीय प्रतिक्रिया

बीबीसी की एमक्यूएम को भारतीय फंडिंग की 'धमाकेदार' रिपोर्ट पाकिस्तान के मुख्यधारा और सोशल मीडिया पर छाई हुई है. पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तानी सेना और सरकार ने भारत के खुफिया संगठन रॉ पर पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियाँ चलाने के आरोप लगाए हैं. वे आरोप पाकिस्तानी सरकार ने लगाए थे. बीबीसी की रिपोर्ट का नाम सुनने से लगता है कि यह बीबीसी की कोई स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट है, पर यह पाकिस्तानी सरकार के सूत्रों पर आधारित है. पाकिस्तान सरकार के आरोपों को बीबीसी की साख का सहारा जरूर मिला है. भारत सरकार ने इस ख़बर में किए गए दावों को 'पूरी तरह आधारहीन' करार दिया है. एमक्यूएम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बीबीसी की ख़बर को 'टेबल रिपोर्ट' क़रार दिया.

बीबीसी वेबसाइट पर इस ख़बर के जारी होते ही पाकिस्तान के मुख्यधारा के चैनलों ने इसे 'ब्रेकिंग न्यूज़' की तरह चलाना शुरू कर दिया और जल्दी ही विशेषज्ञों के साथ लाइव फ़ोन-इन लिए जाने लगे. एक रिपोर्ट में पत्रकारों और विश्लेषकों ने बीबीसी को एक 'विश्वसनीय' स्रोत करार देते हुए कहा कि अगर संस्था (बीबीसी) को लगता कि यह ख़बर ग़लत है तो वह इसे नहीं चलाते.

पाकिस्तान के विपरीत भारतीय मीडिया ने इस खबर को कोई तवज्जोह नहीं दी. आमतौर पर भारतीय प्रिंट मीडिया ऐसी खबरों पर ध्यान देता है. खासतौर से हमारे अंग्रेजी अखबारों के सम्पादकीय पेज ऐसे सवालों पर कोई न कोई राय देते हैं. पर आज के भारतीय अखबारों में यह खबर तो किसी न किसी रूप में छपी है, पर सम्पादकीय टिप्पणियाँ बहुत कम देखने को कम मिलीं. हिन्दी अखबार आमतौर पर ज्वलंत विषयों पर सम्पादकीय लिखना नहीं चाहते. आज तो ज्यादातर हिन्दी अखबारों में शहरी विकास पर टिप्पणियाँ हैं जो मोदी सरकार के स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर है. यह विषय प्रासंगिक है, पर इसमें राय देने वाली खास बात है नहीं. दूसरा विषय आज एनडीए सरकार के सामने खड़ी परेशानियों पर है. इस मामले में कुछ कड़ी बातें लिखीं जा सकती थीं, पर ऐसा है नहीं.

बहरहाल बीबीसी की रपट को लेकर आज केवल इंडियन एक्सप्रेस में ही सम्पादकीय देखने को मिला. इसमें दोनों देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे एक-दूसरे से संवाद बढ़ाएं. हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में इन दिनों भारत के खिलाफ काफी गर्म माहौल है. वहाँ की सरकार अब वहाँ होने वाली तमाम आतंकवादी गतिविधियों की जिम्मेदारी भारतीय खुफिया संगठन रॉ पर डाल रही है. इस माहौल में जिन अखबारों के सम्पादकीय अपेक्षाकृत संतुलित हैं, वे नीचे पेश हैं-

Saturday, October 18, 2014

संयुक्त राष्ट्र नहीं, महत्वपूर्ण है हमारी संसद का प्रस्ताव

जम्मू-कश्मीर के मामले में दो बातें समझ ली जानी चाहिए। पहली यह कि इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में भारत लेकर गया था न कि पाकिस्तान। 1 जनवरी 1948 को भारत ने यह मामला उठाया और इसमें साफ तौर पर पाकिस्तान की ओर से कबायलियों और पाकिस्तानी सेना के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश की शिकायत की गई थी। यह मसला अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी फोरम पर कभी नहीं उठा। भारत की सदाशयता के कारण पारित सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के एक अंश को पाकिस्तान आज तक रह-रहकर उठाता रहा है, पर पूरी स्थिति को कभी नहीं बताता। 13 अगस्त 1948 के प्रस्ताव को लागू कराने को लेकर पाकिस्तान संज़ीदा था तो उसी समय पाकिस्तानी सेना जम्मू-कश्मीर छोड़कर क्यों नहीं चली गई और उसने कश्मीर में घुस आए कबायलियों को वापस पाकिस्तान ले जाने की कोशिश क्यों नहीं कीप्रस्ताव के अनुसार पहला काम उसे यही करना था।

Sunday, October 27, 2013

पाक को भी चुकानी होगी इस तनाव की कीमत

अमेरिका ने आधिकारिक रूप से नवाज़ शरीफ की इस सलाह को खारिज कर दिया कि कश्मीर-मामले में उसे मध्यस्थता करनी चाहिए। अमेरिका का कहना है कि दोनों देशों को आपसी संवाद से इस मसले को सुलझाना चाहिए। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता जेन पसाकी ने ट्विटर पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि हमारे दृष्टिकोण में बदलाव नहीं हुआ है। अमेरिका दोनों देशों के बीच संवाद को बढ़ावा देता रहेगा। उधर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सीमा पर लगातार गोलीबारी को लेकर नवाज़ शरीफ के प्रति अपनी निराशा को व्यक्त किया है। नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच सन 2003 में जो समझौता हुआ था, वह पिछले दस साल से अमल में आ रहा था। अब ऐसी क्या बात हुई कि पिछले 10 महीनों से लगातार कुछ न कुछ हो रहा है।

Thursday, October 24, 2013

पाकिस्तान से निपटने का विकल्प क्या है?

जम्मू-कश्मीर में गोलाबारी अब चिंताजनक स्थिति में पहुँच गई है. मंगलवार को पाकिस्तानी सेना ने लाउडस्पीकर पर घोषणा करके केरन सेक्टर के एक आदर्श गाँव में कम्युनिटी हॉल का निर्माण रुकवा दिया. सन 2003 में दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा के आसपास के गाँवों में जीने का माहौल बनाने का समझौता किया था. लगता है वह खत्म हो रहा है. पिछले दस महीनों से कड़वाहट बढ़ती जा रही है. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई चाहते हैं. उन्होंने कहा कि यदि पाकिस्तान लाइन ऑफ कंट्रोल पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करना जारी रखता है तो केंद्र सरकार को अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए. विकल्प क्या है? उधर नवाज शरीफ ने अमेरिका से हस्तक्षेप की माँग करके घाव फिर से हरे कर दिए हैं. नवाज शरीफ रिश्तों को बेहतर बनाने की बात करते हैं वहीं भारत को सबसे तरज़ीही मुल्क का दर्ज़ा देने भर को तैयार नहीं हैं. उनका कहना है कि इस मामले पर भारत के चुनाव के बाद बात होगी. क्या मौज़ूदा तनाव का रिश्ता लोकसभा चुनाव से भी जुड़ा है? क्या पाकिस्तान को लगता है कि भारत में सत्ता-परिवर्तन होने वाला है? सत्ता-परिवर्तन हो भी गया तो क्या भारतीय विदेश नीति में कोई बड़ा बदलाव आ जाएगा?

Sunday, August 11, 2013

पाकिस्तान के बारे में राष्ट्रीय आमराय बने

भारत से रिश्तों को सुधारने के लिए नवाज शरीफ के विशेष दूत शहरयार खान ने एक दिन पहले कहा कि दाऊद इब्राहीम पाकिस्तान में था, पर उसे वहाँ से खदेड़कर बाहर कर दिया गया है। अगले रोज वे अपने बयान से मुकर गए। भारत-पाकिस्तान रिश्तों में ऐसे क्षण आते हैं जब लगता है कि हम काफी पारदर्शी हो चले हैं, पर तभी झटका लगता है। इसी तरह जनवरी 2009 में पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद दुर्रानी को इस बात के लिए फौरन बर्खास्त कर दिया गया जब उन्होंने कहा कि मुम्बई पर हमला करने वाला अजमल कसाब पाकिस्तानी है। दोनों देशों के बीच रिश्तों को बेहतर बनाना इस इलाके की बेहतरी में हैं, पर जल्दबाजी के तमाम खतरे हैं। 

इसी शुक्रवार को सेना, खुफिया एजेंसियों और नागरिक प्रशासन के 40 पूर्व प्रमुख अधिकारियों ने एक वक्तव्य जारी करके कहा है कि भारत को पाकिस्तान के साथ नरमी वाली नीति खत्म कर देनी चाहिए। अब हमें ऐसा इंतजाम करना चाहिए कि हरेक आतंकवादी गतिविधि की कीमत पाकिस्तान को चुकानी पड़े। भले ही भारत पाकिस्तान के अधिकारियों के साथ बातचीत जारी रखे, पर अब नए सिरे से सोचना शुरू करे। अब अति हो गई है। उनका आशय है कि हमें उसके साथ संवाद फिर से शुरू करने की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

पुंछ में पाँच भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद भारत-पाकिस्तान रिश्तों में फिर से तनाव है। दोनों के रिश्ते खुशनुमा तो कभी नहीं रहे। पर जैसा तनाव इस साल जनवरी में पैदा हुआ था और और अब फिर पैदा हो गया है, वह परेशान करता है। पाकिस्तान के भीतर कोई तत्व ऐसा है जो दक्षिण एशिया में शांति-स्थापना की किसी भी कोशिश को फेल करने पर उतारू है। पर वहाँ ऐसे लोग भी हैं जो रिश्तों को ठीक करना चाहते हैं। कम से कम सरकारी स्तर पर तल्खी घटी है। इसका कारण शायद यह भी है कि पाकिस्तान में पिछले पाँच साल से लोकतांत्रिक सरकार कायम है। यह पहला मौका है, जब वहाँ सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक तरीके से हुआ है। क्या यह सिर्फ संयोग है कि वहाँ नई सरकार के आते ही भारतीय सैनिकों पर हमला हुआ? सन 2008 में जब दोनों देश कश्मीर पर सार्थक समझौते की ओर बढ़ रहे थे मुम्बई कांड हो गया? क्या वजह है कि दाऊद इब्राहीम के पाकिस्तान में रहने का इंतजाम किया है और वहाँ की सरकार इस बात को मानती नहीं? इन सवालों का जवाब खोजने के पहले हमें पाकिस्तान के पिछले दो साल के घटनाचक्र पर नजर डालनी चाहिए।

Friday, August 9, 2013

बहुत कठिन है डगर यूपीए की

 शुक्रवार, 9 अगस्त, 2013 को 07:41 IST तक के समाचार
भारतीय संसद
हालिया घटनाक्रम ने संसद सत्र के दौरान सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं
चार दिन की गहमा-गहमी के बाद संसद सोमवार तक के लिए स्थगित हो गई. पिछले सोमवार को आशा थी कि इस मॉनसून सत्र में कुछ कुछ संजीदा काम संभव होगा. पर चार दिन में सरकार केवल खाद्य सुरक्षा विधेयक पेश कर पाई.
दूसरी ओर राज्यसभा ने कंपनी कानून पास कर दिया. लोकसभा उसे पहले ही पास कर चुकी है.
कॉरपोरेट गवर्नेंस को बेहतर और पारदर्शी बनाने के लिए इस विधेयक का पास होना शुभ समाचार है. लगभग 57 साल पुराने इस कानून में बदलाव की जरूरत लम्बे अर्से से महसूस की जा रही थी.
राष्ट्रीय विकास, आर्थिक प्रगति और प्रशासनिक सुधार के लिए संसद के सामने पड़े दूसरे विधेयकों का निस्तारण भी इतना ही जरूरी है.
इस काम के लिए यूपीए को राजनीतिक समझदारी का परिचय देना होगा. और इतनी ही समझदारी पाकिस्तान के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने में दिखानी होगी. यह बेहद संवेदनशील मसला है. और इसमें जोखिम उठाने होंगे.
चार दिन की राजनीतिक गतिविधियाँ इस बात का संकेत दे रही हैं कि आर्थिक उदारीकरण की गाड़ी को गति देना और पाकिस्तान के साथ रिश्तों को बेहतर बनाना तलवार की धार पर चलने के समान है.
दोनों में भारी राजनीतिक जोखिम हैं और दोनों का दक्षिण एशिया के आर्थिक-सामाजिक विकास के साथ गहरा रिश्ता है.
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

सतीश आचार्य का कार्टून

Thursday, August 8, 2013

कैसा 'माकूल जवाब' दे सकती है सरकार?

 गुरुवार, 8 अगस्त, 2013 को 07:09 IST तक के समाचार
जम्मू-कश्मीर में पाँच भारतीय सैनिकों की हत्या के मामले में रक्षामंत्री एके एंटनी का मंगलवार को राज्यसभा में दिया गया वक्तव्य विवाद का विषय बना, तो इसमें विस्मय की बात नहीं है.
सीमा पर घट रही घटनाओं पर भाजपा का रोष या उत्तेजना एक सहज प्रतिक्रिया है. वह इसका भरपूर राजनीतिक लाभ भी लेना चाहेगी.
पर क्या क्लिक करेंएंटनी के पास कोई ऐसी जानकारी है, जिसे उन्होंने बताया नहीं या बताना नहीं चाहते? हमलावरों को पाकिस्तानी फ़ौजी मानने में उन्हें किस बात का संशय है? क्या उन्हें पाकिस्तान सरकार के इस बयान पर पक्का भरोसा है कि यह हमला उसकी सेना ने नहीं किया?
इस विश्वास की भी कोई वजह होगी. पर यह मान लेने पर कि हमला आतंकवादियों ने किया है, हमें उसके तार्किक निहितार्थ समझने होंगे. इसका मतलब क्या है?
यानी आतंकवादी गिरोह पहले से ज्यादा ताकतवर और गोलबंद हैं और वे हमारी सेना पर आसानी से हमला बोल सकते हैं.
साथ ही पाकिस्तानी सेना या तो उन्हें रोक नहीं सकती या उसकी इनके साथ मिलीभगत है. या यहक्लिक करेंसीमा पर पिछले कुछ समय से चल रही छिटपुट वारदात की परिणति है, जिन पर हमने ध्यान नहीं दिया

Friday, March 15, 2013

कश्मीर के बारे में भारतीय संसद का 22 फरवरी 1994 का प्रस्ताव


पाकिस्तानी राजनेताओं को या तो सम्प्रभुता और संसदीय गरिमा की समझ नहीं है  या उन्होंने किसी दीर्घकालीन रणनीति के तहत संसद के माध्यम से प्रस्ताव पास किया है।  उन दिनों जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो बार-बार कह रहीं थीं कि कश्मीर का मसला विभाजन के बाद बचा अधूरा काम है। इस पर भारत के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने कहा कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की भारत में वापसी ही अधूरा रह गया काम  है। वह समय था जब कश्मीर में हिंसा चरमोत्कर्ष पर थी। बढ़ती हुई आतंकवादी हिंसा के मद्देनज़र भारतीय संसद के दोनों सदनों ने 22 फरवरी 1994 को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया और इस बात पर जोर दिया कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इसलिए पाकिस्तान को अपने कब्जे वाले राज्य के हिस्सों को खाली करना होगा । संकल्प का पाठ इस प्रकार है।



"यह सदन"
पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित शिविरों में आतंकवादियों को प्रशिक्षण प्रदान करने, साथ ही हथियार और धन देकर जम्मू और कश्मीर में विदेशी भाड़े के सैनिकों सहित प्रशिक्षित उग्रवादियों की घुसपैठ में सहायता से सामाजिक सद्भाव को नष्ट करने और तोड़फोड़ के घोषित उद्देश्य की आपूर्ति में पाकिस्तान की भूमिका को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करता है |

सदन ने दोहराया कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित उग्रवादी हत्या, लूट, लोगों को बंधक बनाने और आतंक का वातावरण निर्मित करने जैसे अन्य जघन्य अपराधों में लिप्त हैं;

भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर में विध्वंसक और आतंकवादी गतिविधियों के लिए पाकिस्तान द्वारा जारी समर्थन और प्रोत्साहन की सदन द्रढता से निंदा करता है |

पाकिस्तान अविलम्ब आतंकवादियों को सहयोग करना बंद करे, जोकि शिमला समझौते का उल्लंघन है तथा दोनों देशों के मध्य तनाव का मुख्य कारण तथा पारस्परिक संबंधों के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानदंडों के विरुद्ध है| साथ ही सदन ने भारतीय राजनीतिक और लोकतांत्रिक ढांचे और अपने सभी नागरिकों के संविधान प्रदत्त अधिकारों व मानवाधिकारों के संरक्षण करने का विश्वास दिलाया और अपने समर्थन को दोहराया |

पाकिस्तान के भारत-विरोधी अभियान को अस्वीकार कर उसे दुखद रूप में झूठ बताते हुए उसकी निंदा की |
वातावरण दूषित करने और जनमत उत्तेजित करने बाले पाकिस्तान के बेहद उत्तेजक बयानों को गंभीर चिंता विषय मानते हुए उनसे बचने का आग्रह पाकिस्तान से किया |

पाकिस्तान के अवैध कब्जे बाले क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों की दयनीय स्थिति तथा उनके लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित रहने पर चिंता व्यक्त की गई |
भारत के लोगों की ओर से,

मजबूती से कहते हैं कि-

(क) जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है, है और रहेगा तथा उसे देश के बाकी हिस्सों से अलग करने के किसी भी प्रयास का सभी आवश्यक साधन के द्वारा विरोध किया जाएगा;

(ख) भारत में अपनी एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के विरुद्ध होने वाले किसी भी आक्रमण का मजबूती से मुकाबला करने की इच्छाशक्ति व क्षमता है

और मांग है कि -

(सी) पाकिस्तान बल पूर्वक कब्जाए हुए भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों को खाली करे; और सदन पारित करता है कि -

(d) भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के सभी प्रयासों से सख्ती से निबटा जाए."

प्रस्ताव सर्वसम्मति से अपनाया गया ।
अध्यक्ष महोदय: प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया है।