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Sunday, August 11, 2013

क्या मोदी की मंच कला राहुल से बेहतर है?

 सोमवार, 8 अप्रैल, 2013 को 16:04 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
फिक्की के मंच से मोदी ने स्त्री सशक्तिकरण के मुद्दे पर भाषण दिया. (फाइल फोटो)
कई बार लगता है कि मोदी ज़मीन से आते हैं और राहुल पाठ्य पुस्तकों के सहारे बोलते हैं. राहुल कवि हैं तो मोदी मंच के कवि.
वे मंच का लाभ उठाना जानते हैं. फिक्की की महिला शाखा की सभा का पूरा फायदा मोदी ने उठाया, बल्कि पूरी बहस को स्त्रियों के सशक्तिकरण से जोड़कर वे एक कदम आगे चले गए हैं.
पिछले चुनाव के दौरान गुजरात से आने वाले बताते थे कि मोदी स्त्रियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. सोमवार की सभा में यह बात समझ में आई कि वे क्यों लोकप्रिय हैं.
चार दिन पहले राहुल गांधी का भाषण विचारों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण था. लेकिन राहुल इस सवाल को छोड़ गए कि यह सब हासिल कैसे होगा.
मोदी के भाषण में वे बातें थीं, जो हो चुकी हैं. जो किया है उसके सहारे यह बताना आसान होता है कि क्या सम्भव है.
नरेन्द्र मोदी के सोमवार के भाषण में राजनीतिक संदर्भ केवल दो जगह आए और उन्होंने संकेत में बात कह कर इसका फायदा उठाया.
एक जगह उन्होंने राज्यपाल के दफ्तर में अटके स्त्रियों को आरक्षण देने वाले विधेयक का जिक्र किया और दूसरी जगह दूसरों के खोदे गड्ढों को भरने की बात कही.
"अभिनय में राहुल गांधी नरेन्द्र मोदी के मुकाबले हल्के बैठते हैं. नरेन्द्र मोदी के भाषण में नाटकीयता होती है. फिक्की की महिला शाखा के समारोह में नरेन्द्र मोदी ने मातृशक्ति के साथ अपनी बात को जिस तरह जोड़ा वह राहुल गांधी के भाषणों में नहीं मिलता. "
प्रमोद जोशी
इसके अलावा जस्सू बेन के पीज्जा का जिक्र करते हुए उन्होंने कलावती का नाम लेकर राहुल पर चुटकी ली. बेशक गुजरात में मानव विकास को लेकर तमाम सवाल है, पर वे इस सभा में उठाए नहीं जा सकते थे.
मोदी को इस मंच पर घेरना सम्भव ही नहीं था. इस सभा में उपस्थित लोग उद्यमिता और कारोबार की भाषा समझते हैं. और गुजरात की ताकत उद्यमिता और कारोबार हैं.
यह लेख अप्रेल 2013 का है. सिर्फ रिकॉर्ड के लिए यहाँ लगाया है.

Friday, August 9, 2013

बहुत कठिन है डगर यूपीए की

 शुक्रवार, 9 अगस्त, 2013 को 07:41 IST तक के समाचार
भारतीय संसद
हालिया घटनाक्रम ने संसद सत्र के दौरान सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं
चार दिन की गहमा-गहमी के बाद संसद सोमवार तक के लिए स्थगित हो गई. पिछले सोमवार को आशा थी कि इस मॉनसून सत्र में कुछ कुछ संजीदा काम संभव होगा. पर चार दिन में सरकार केवल खाद्य सुरक्षा विधेयक पेश कर पाई.
दूसरी ओर राज्यसभा ने कंपनी कानून पास कर दिया. लोकसभा उसे पहले ही पास कर चुकी है.
कॉरपोरेट गवर्नेंस को बेहतर और पारदर्शी बनाने के लिए इस विधेयक का पास होना शुभ समाचार है. लगभग 57 साल पुराने इस कानून में बदलाव की जरूरत लम्बे अर्से से महसूस की जा रही थी.
राष्ट्रीय विकास, आर्थिक प्रगति और प्रशासनिक सुधार के लिए संसद के सामने पड़े दूसरे विधेयकों का निस्तारण भी इतना ही जरूरी है.
इस काम के लिए यूपीए को राजनीतिक समझदारी का परिचय देना होगा. और इतनी ही समझदारी पाकिस्तान के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने में दिखानी होगी. यह बेहद संवेदनशील मसला है. और इसमें जोखिम उठाने होंगे.
चार दिन की राजनीतिक गतिविधियाँ इस बात का संकेत दे रही हैं कि आर्थिक उदारीकरण की गाड़ी को गति देना और पाकिस्तान के साथ रिश्तों को बेहतर बनाना तलवार की धार पर चलने के समान है.
दोनों में भारी राजनीतिक जोखिम हैं और दोनों का दक्षिण एशिया के आर्थिक-सामाजिक विकास के साथ गहरा रिश्ता है.
हिन्दू में सुरेन्द्र का कार्टून

सतीश आचार्य का कार्टून

Thursday, August 8, 2013

कैसा 'माकूल जवाब' दे सकती है सरकार?

 गुरुवार, 8 अगस्त, 2013 को 07:09 IST तक के समाचार
जम्मू-कश्मीर में पाँच भारतीय सैनिकों की हत्या के मामले में रक्षामंत्री एके एंटनी का मंगलवार को राज्यसभा में दिया गया वक्तव्य विवाद का विषय बना, तो इसमें विस्मय की बात नहीं है.
सीमा पर घट रही घटनाओं पर भाजपा का रोष या उत्तेजना एक सहज प्रतिक्रिया है. वह इसका भरपूर राजनीतिक लाभ भी लेना चाहेगी.
पर क्या क्लिक करेंएंटनी के पास कोई ऐसी जानकारी है, जिसे उन्होंने बताया नहीं या बताना नहीं चाहते? हमलावरों को पाकिस्तानी फ़ौजी मानने में उन्हें किस बात का संशय है? क्या उन्हें पाकिस्तान सरकार के इस बयान पर पक्का भरोसा है कि यह हमला उसकी सेना ने नहीं किया?
इस विश्वास की भी कोई वजह होगी. पर यह मान लेने पर कि हमला आतंकवादियों ने किया है, हमें उसके तार्किक निहितार्थ समझने होंगे. इसका मतलब क्या है?
यानी आतंकवादी गिरोह पहले से ज्यादा ताकतवर और गोलबंद हैं और वे हमारी सेना पर आसानी से हमला बोल सकते हैं.
साथ ही पाकिस्तानी सेना या तो उन्हें रोक नहीं सकती या उसकी इनके साथ मिलीभगत है. या यहक्लिक करेंसीमा पर पिछले कुछ समय से चल रही छिटपुट वारदात की परिणति है, जिन पर हमने ध्यान नहीं दिया

Wednesday, August 7, 2013

संसद का बदलता परिदृश्य

 बुधवार, 7 अगस्त, 2013 को 13:35 IST तक के समाचार
भारतीय संसद
मॉनसून सत्र के दूसरे दिन भी विपक्ष के सरकार पर हमले जारी हैं
संसद के मॉनसून सत्र में तेलंगाना राज्य के गठन, उत्तराखंड की आपदा, रिटेल में विदेशी पूंजी निवेश, दुर्गाशक्ति नागपाल या महंगाई के सवाल पर हंगामा होता, उसके पहले ही जम्मू-कश्मीर सीमा पर पाँच भारतीय सैनिकों की हत्या ने सनसनी फैला दी है.
आज सम्भव है प्रधानमंत्री को इस मसले पर संसद में सफाई पेश करनी पड़े. सरकार पर ‘माकूल जवाब’ देने का दबाव है. पर माकूल जवाब के माने क्या हैं?
अगले कुछ दिन संसद के भीतर और बाहर यह मसला हावी रहे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल

राष्ट्रीय सुरक्षा भारत में एक बड़ा राजनीतिक मसला है. आज सरकार को विपक्ष के वार झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए.
रक्षा मंत्री एके एंटनी का वक्तव्य सरकार के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है, क्योंकि उन्होंने सैनिकों की हत्या के लिए पाकिस्तानी सेना को सीधे दोषी नहीं ठहराया.
भाजपा कार्यकर्ताओं ने मंगलवार की शाम से ही एंटनी के घर के बाहर प्रदर्शन शुरू कर दिए.
मंगलवार की सुबह लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने पर अध्यक्ष मीरा कुमार ने जैसे ही प्रश्नकाल शुरू करने की घोषणा की, भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के सदस्यों ने नियंत्रण रेखा पर भारतीय सैनिकों की हत्या का मामला उठाया.
दोनों सदनों में दिनभर यह मसला किसी न किसी रूप में छाया रहा.
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम पर पूरा लेख पढ़ें

Tuesday, July 30, 2013

तेलंगाना में कांग्रेस का गणित

 मंगलवार, 30 जुलाई, 2013 को 07:52 IST तक के समाचार
सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी
हालांकि कांग्रेस पार्टी बड़ी सावधानी से आंध्र प्रदेश में अपनी रणनीति तैयार कर रही है पर ऐसा लगता है कि तेलंगाना मामले में उसने अपने ही ख़िलाफ़ गोल कर लिया है. फ़िलहाल उसके सामने चुनौती है कि तेलंगाना बने और इसका नुकसान कम से कम हो.
दो बातों ने कांग्रेस के लिए हालात बिगाड़े हैं. एक तो इस फैसले को लगातार टालने की कोशिश. चुनाव जब सिर पर आ गए हैं तब पार्टी फैसला कर रही है. दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री वाइ एस आर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी के साथ पार्टी ने रिश्ते बुरी तरह खराब कर लिए हैं. यह बात तटीय आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र में कांग्रेस के ख़िलाफ़ जाएगी.
सन 2004 के चुनाव में एनडीए की पराजय के दो बड़े केन्द्र थे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश. इस बार भाजपा कांग्रेस के इस महत्वपूर्ण गढ़ को भेदना चाहती है. भाजपा की कोशिश है कि तेलुगुदेसम या टीडीपी और टीआरएस के साथ मिलकर कांग्रेस को हराया जाए. वह ख़ामोशी के साथ कांग्रेस को इस दलदल में फँसते हुए देख रही है. उसने तेलंगाना का समर्थन किया है और टीडीपी भी इसके साथ नज़र आती है.
तेलंगाना के कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अब पार्टी जो कुछ भी हासिल कर सकती है तेलंगाना में ही संभव है. तटीय आंध्र प्रदेश और रायलसीमा में जगनमोहन रेड्डी ने अपने पैर काफी मजबूत कर लिए हैं. वहाँ कुछ मिलना नहीं है. तेलंगाना क्षेत्र में विधानसभा की 294 में से 119 और लोकसभा की कुल 42 में से 17 सीटें हैं. इतना साफ़ लगता है कि नया राज्य बनेगा तो टीआरएस को फायदा होगा. और नहीं भी बना तो उसे लड़ाई जारी रखने का लाभ मिलेगा.

Saturday, July 13, 2013

नरेन्द्र मोदी की बात पर हंगामा है क्यों...

 शनिवार, 13 जुलाई, 2013 को 13:55 IST तक के समाचार
नरेंद्र मोदी
मोदी के "कुत्ते के पिल्ले के मरने पर भी दुख होता है" बयान के बाद हंगामा मच गया है
नरेन्द्र मोदी भारत के ध्रुवीकारी नेताओं में सबसे आगे हैं, इसे मान लिया जाना चाहिए. उनका समर्थन और विरोध लगभग समान आक्रामक अंदाज़ में होता है. इस वजह से उन्हें ख़बरों में बने रहने के लिए अब कुछ नहीं करना पड़ता.
ख़बरों को उनकी तलाश रहती है. इसमें आक्रामक समर्थकों से ज़्यादा उनके आक्रामक विरोधियों की भूमिका होती है.
दूसरी बात यह कि उनसे जुड़ी हर बात घूम फिर कर सन 2002 पर जाती है. रॉयटर्स के रॉस कॉल्विन और श्रुति गोत्तीपति का पहला सवाल इसी से जुड़ा था. वे जानना चाहते थे कि नरेन्द्र मोदी को क्या घटनाक्रम पर कोई पछतावा है.

पिल्ले का रूपक

मोदी का वही जवाब था जो अब तक देते रहे हैं. उनका कहना था, "फ्रस्टेशन तब आएगा जब मैने कोई ग़लती की होगी. मैंने कुछ ग़लत किया ही नहीं."

Friday, July 5, 2013

क्या भाजपा चेहरा बदल रही है?

 शुक्रवार, 5 जुलाई, 2013 को 06:49 IST तक के समाचार
भाजपा की अंदरूनी राजनीति
मीडिया रिपोर्टों पर भरोसा करें तो इशरत जहाँ मामले में क्लिक करेंचार्जशीटदाखिल होने के बाद सीबीआई और आईबी के भीतर व्यक्तिगत स्तर पर गंभीर चर्चा है.
ये न्याय की लड़ाई है या राजनीतिक रस्साकसी, जिसमें दोनों संगठनों का क्लिक करेंइस्तेमाल हो रहा है?
जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लै के वकील मुकुल सिन्हा हैरान हैं कि आईबी के स्पेशल डायरेक्टर राजेन्द्र कुमार का नाम सीबीआई की पहली चार्जशीट में क्यों नहीं है.
उन्हें लगता है कि राजेन्द्र कुमार का नाम न आने के पीछे क्लिक करेंराजनीतिक दबाव है.
इसका मतलब है कि जिस रोज सरकार सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई को आजाद पंछी बनाने का हलफनामा दे रही थी उसी रोज सीबीआई ऐसा आरोप-पत्र पेश कर रही थी, जिसके कारण उसपर सरकारी दबाव में काम करने का आरोप लगता है.
राजेन्द्र कुमार का नाम होता तो भाजपा को आश्चर्य होता. नहीं है तो मुकुल सिन्हा को आश्चर्य है.
अभी क्लिक करेंतफ्तीश ख़त्म नहीं हुई है. सीबीआई सप्लीमेंट्री यानि पूरक चार्जशीट भी दाखिल करेगी लेकिन इस मामले में अभी कई विस्मय बाकी हैं.

Friday, June 14, 2013

'जिन्हें इमरजेंसी याद है वे वीसी शुक्ल को नहीं भूल सकते'

'जिन्हें इमरजेंसी याद है वे वीसी शुक्ल को नहीं भूल सकते'

 गुरुवार, 13 जून, 2013 को 18:58 IST तक के समाचार
विद्या चरण शुक्ल
छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले में शुक्ल की मौत हो गई थी
जिस रोज़ माओवादी हमले में विद्या चरण शुक्ल के क्लिक करेंघायल होने की ख़बर मिली, काफी लोगों की पहली प्रतिक्रिया थी, कौन से वीसी शुक्ल इमरजेंसी वाले. वीसी शुक्ल पर इमरजेंसी का जो दाग लगा वह कभी मिट नहीं सका.
विद्याचरण शुक्ल मध्यप्रदेश के ताकतवर राजनेताओं में गिने जाते थे. उनके परिवार की ताकत और सम्मान का लाभ उन्हें मिला, पर उन्हें जिस बात के लिए याद रखा जाएगा वो ये कि वो ज्यादातर सत्ता के साथ रहे. ख़ासतौर से जीतने वाले के साथ.
इमरजेंसी के बाद शाह आयोग की सुनवाई के दौरान चार नाम सबसे ज्यादा ख़बरों में थे. इंदिरा गांधी, संजय गांधी, वीसी शुक्ल और बंसी लाल. इमरजेंसी के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा और सज़ा भी मिली, पर इमरजेंसी ने ही उन्हें बड़े कद का राजनेता बनाया.
क्लिक करेंवीसी शुक्ल का राजनीतिक जीवन शानदार रहा. उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि शानदार थी. वे देश के सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक थे. 28 साल की उम्र में वे लोकसभा के सदस्य बने, राजसी ठाठ से जुड़े 'विलासों' के प्रेमी.