भारत और पाकिस्तान को आसमान से देखें तो ऊँचे पहाड़, गहरी वादियाँ, समतल मैदान और गरजती नदियाँ दिखाई देंगी। दोनों के रिश्ते भी ऐसे ही हैं। उठते-गिरते और बनते-बिगड़ते। सन 1988 में दोनों देशों ने एक-दूसरे पर हमले न करने का समझौता किया और 1989 में कश्मीर में पाकिस्तान-परस्त आतंकवादी हिंसा शुरू हो गई। 1998 में दोनों देशों ने एटमी धमाके किए और उस साल के अंत में वाजपेयी जी और नवाज शरीफ का संवाद शुरू हो गया, जिसकी परिणति फरवरी 1999 की लाहौर बस यात्रा के रूप में हुई। लाहौर के नागरिकों से अटल जी ने अपने टीवी संबोधन में कहा था, ‘यह बस लोहे और इस्पात की नहीं है, जज्बात की है। बहुत हो गया, अब हमें खून बहाना बंद करना चाहिए।‘ भारत और पाकिस्तान के बीच जज्बात और खून का रिश्ता है। कभी बहता है तो कभी गले से लिपट जाता है।
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Tuesday, March 29, 2011
Tuesday, March 8, 2011
पाकिस्तानी अखबारों में समझौता विस्फोट का विज्ञापन
पाकिस्तान के साथ भविष्य में जो बातचीत होगी उसमें अब शायद समझौता एक्सप्रेस के विस्फोट का मामला भी शामिल हो जाएगा। 7 मार्च को पाकिस्तानी अखबारों में चौथाई पेज का विज्ञापन छपा है जिसमें समझौता एक्सप्रेस के मामले को खूब रंग लगाकर छापा गया है। इसमें माँग की गई है कि भारत की सेक्युलर व्यवस्था की जिम्मेदारी है कि वह जवाब दे। लगता है कि इसका इसका उद्देश्य अपने ऊपर लगे कलंकों की ओर से दुनिया का ध्यान हटाना है। इस विज्ञापन को किसने जारी किया, कहाँ से पैसा आया कुछ पता नहीं.
Sunday, December 19, 2010
भारत-चीन और पाकिस्तान
आज के इंडियन एक्सप्रेस में सी राजमोहन की खबर टाप बाक्स के रूप में छपी है। इसमें बताया गया है कि चीन अब भारत-चीन सीमा की लम्बाई 3500 किमी के बजाय 2000 किमी मानने लगा है। यानी उसने जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह पाकिस्तान का हिस्सा मान लिया है। चीनी नीतियाँ जल्दबाज़ी में नहीं बनतीं और न उनकी बात में इतनी बड़ी गलती हो सकती है। स्टैपल्ड वीजा जारी करने क पहले उन्होंने कोई न कोई विचार किया ही होगा। इधर आप ध्यान दें कि पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी हर तीन या चार महीने में चीन जा रहे हैं। फौज के अध्यक्ष जनरल कियानी भी चीन का दौरा कर आए हैं। स्टैपल्ड वीजा का मामला उतना सरल नहीं है जितना सामने से नज़र आता है।
Sunday, October 17, 2010
पाकिस्तान में क्या हो रहा है?
पाकिस्तान के राष्ट्रपति भवन में बैठक |
चीफ जस्टिस की टिप्पणियाँ अखबारों में छपने के बाद सूचना मंत्री क़मर ज़मां कैड़ा और कानून मंत्री बाबर आवान ने अगले रोज़ स्पष्ट किया कि सरकार की ऐसी मंशा नहीं है। कानून मंत्री ने थोड़ा कड़ाई से कहा कि सरकार को गिराने की कोशिशें की जा रहीं हैं। सामने से सीधी-सादी नज़र आ रहीं चीज़ों के पीछे कुछ गहरी बातें दिखाई पड़ रही हैं। राष्ट्रपति ज़रदारी को हटाने की मुहिम चलरही है। इसमें अदालत भी सक्रिय है।
चीफ जस्टिस इफ्तिकार चौधरी इन दिनों जनता के छोटे-छोटे मामलों पर सुनवाई करके कभी किसी पुलिस अफसर की तो कभी किसी मंत्री की घिसाई कर रहे हैं। इससे वे लोकप्रिय भी हुए हैं। यह भी सच है कि उनकी बहाली मुस्लिम लीग(नवाज़) की अगुवाई में चले आंदोलन के बाद हुई थी।
पाकिस्तान को लोकतंत्र वैसा ही नहीं है जैसा भारत में है। वहाँ अभी राजनैतिक और संवैधानिक संस्थाएं जन्म ले रहीं हैं। राजनीति वहाँ बदनाम शब्द है, भारत की तरह। सेना की वहाँ राजनैतिक भूमिका है। चीफ जस्टिस की टिप्पणी के बाद राष्ट्रपति भवन में जो बैठक हुई उसमें सेनाध्यक्ष अशफाक परवेज़ कियानी भी शामिल थे। सेना की इस भूमिका पर हमें आश्चर्य हो सकता है, पर पाकिस्तान पहला देश नहीं है, जहाँ राजनीति में सेना की भूमिका है। इंडोनेशिया और बर्मा हमारे पड़ोसी हैं। वहाँ भी सेना की भूमिका है।
आसिफ अली ज़रदारी पर भ्रष्टाचार के अनेक मामले थे। परवेज़ मुशर्रफ ने उन मामलों को एक आदेश जारी कर खत्म कर दिया। इधर सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को खत्म कर दिया। अब ज़रदारी की गर्दन नापने की कोशिश हो रही है। राष्ट्रपति होने के नाते अभी यह सम्भव नहीं है। किसी न किसी वजह से ऐसा माना जा रहा है कि इफ्तिखार चौधरी न्यायिक सक्रियता को या तो सीमा से ज्यादा खींच रहे हैं या राजनीति में शामिल हो रहे हैं।
आज यानी रविवार को प्रधानमंत्री सैयद युसुफ रज़ा गिलानी देश को संबोधित करने जा रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में कई बातें हुईं हैं। एक अंदेशा है कि सेना कहीं सत्ता न संभाल ले। उधर परवेज़ मुशर्रफ ने राजनीति में आने की घोषणा कर दी है। वे अभी विदेश में हैं। इफ्तिखार चौधरी उन्हें अपना दुश्मन मानते हैं। वहाँ की अदालतों में भी भ्रष्टाचार है। कट्टरपंथी लोग लोकप्रिय हैं। जिन्हें हम आतंकवादी कहते हैं, पाकिस्तान में वे सम्मानित राष्ट्रवादी हैं। उन्हें अदालतों से भी मदद मिलती है। हफीज़ सईद के मामले में आप देख चुके हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय प्रसारण के बाद मामला सुलट जाएगा, पर हालात को देते हुए लगता है कि कोई नया मसला उभरेगा। ज़रूरत इस बात की है कि यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा करे और उसके बाद चुनाव हों और नई सरकार बने। लोकतंत्र की सारी प्रक्रियाएं कई बार सम्पन्न होती हैं तभी वह शक्ल लेता है। बहरहाल ताज़ा मामले पर डॉन का आज का सम्पादकीय पढ़ेः-
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Thursday, September 23, 2010
कश्मीर पर नई पहल
संसदीय टीम कश्मीर से वापस आ गई है। भाजपा और दूसरी पार्टियों के बीच अलगाववादियों से मुलाकात को लेकर असहमति के स्वर सुनाई पड़े हैं। मोटे तौर पर इस टीम ने अपने दोनों काम बखूबी किए हैं। कश्मीरियों से संवाद और उनके विचार को दर्ज करने का काम ही यह टीम कर सकती थी।
इंडियन एक्सप्रेस ने एक नई जानकारी दी है कि समाजवादी पार्टी के मोहन सिंह ने सबसे पहले अलगाववादियों से मुलाकात का विरोध किया था. मोहन सिंह का कहना था कि हम राष्ट्र समर्थक तत्वों का मनोबल बढ़ाने आए हैं। हमारे इस काम से अलगाववादियों का मनोबल बढ़ता है।
एक रोचक जानकारी यह है कि संसदीय टीम की मुलाकात हाशिम कुरैशी से भी हुई। हाशिम कुरैशी 30 जनवरी 1971 को इंडियन एयरलाइंस के प्लेन को हाईजैक करके लाहौर ले गया था। वहाँ उसे 14 साल की कैद हुई। सन 2000 में वह कश्मीर वापस आ गया। आज उसके विचार चौंकाने वाले हैं। हालांकि वह कश्मीर में भारतीय हस्तक्षेप के खिलाफ है, पर उसकी राय में भारत और पाकिस्तान में से किसी को चुनना होगा तो मैं भारत के साथ जाऊँगा। उसका कहना है मैने पाक-गिरफ्त वाले कश्मीर में लोगों की बदहाली देख ली है।
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इंडियन एक्सप्रेस ने एक नई जानकारी दी है कि समाजवादी पार्टी के मोहन सिंह ने सबसे पहले अलगाववादियों से मुलाकात का विरोध किया था. मोहन सिंह का कहना था कि हम राष्ट्र समर्थक तत्वों का मनोबल बढ़ाने आए हैं। हमारे इस काम से अलगाववादियों का मनोबल बढ़ता है।
एक रोचक जानकारी यह है कि संसदीय टीम की मुलाकात हाशिम कुरैशी से भी हुई। हाशिम कुरैशी 30 जनवरी 1971 को इंडियन एयरलाइंस के प्लेन को हाईजैक करके लाहौर ले गया था। वहाँ उसे 14 साल की कैद हुई। सन 2000 में वह कश्मीर वापस आ गया। आज उसके विचार चौंकाने वाले हैं। हालांकि वह कश्मीर में भारतीय हस्तक्षेप के खिलाफ है, पर उसकी राय में भारत और पाकिस्तान में से किसी को चुनना होगा तो मैं भारत के साथ जाऊँगा। उसका कहना है मैने पाक-गिरफ्त वाले कश्मीर में लोगों की बदहाली देख ली है।
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Thursday, September 9, 2010
चीन से दोस्ती
भारत और चीन के रिश्ते हजारों साल पुराने हैं, पर उतने अच्छे नहीं हैं, जितने हो सकते थे। आजादी के बाद भारत का लोकतांत्रिक अनुभव अच्छा नहीं रहा। व्यवस्था पर स्वार्थी लोग हावी हो गए। इससे पूरे सिस्टम की कमज़ोर छवि बनी। पर यह होना ही था। जब तक हमारे सारे अंतर्विरोध सामने नहीं आएंगे तब तक उनका उपचार कैसे होगा।
चीन के बरक्स तिब्बत के मसले पर हमने शुरू से गलत नीति अपनाई। तिब्बत किसी लिहाज से चीन देश नहीं है। चीन आज कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है, क्योंकि पाकिस्तानी तर्क उसे विवादित मानता है। पर तिब्बत के मामले में सिर्फ तकनीकी आधार पर उसने कब्जा कर लिया और सारी दुनिया देखती रह गई। तिब्बत के पास अपनी सेना होती तो क्या वह आज चीन के अधीन होता। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ज्यादा से ज्यादा उसे विवादित क्षेत्र मानता जैसा पाकिस्तानी हमलावरों के कारण कश्मीर बना दिया गया है।
भारत को चीन से दोस्ती रखनी चाहिए। यह हमारे और चीन दोनों के हित में है, पर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सामरिक कारणों से हमारा प्रतिस्पर्धी है। वह पाकिस्तान का सबसे अच्छा दोस्त है। और हमेशा रहेगा। तमाम देश खुफिया काम करते हैं। चीन के सारे काम खुफिया होते हैं। उसने और उत्तरी कोरिया ने पाकिस्तान के एटमी और मिसाइल प्रोग्राम में मदद की है। यह भारत-विरोधी काम है। भारत जैसे विशाल देश के समाज में अंतर्विरोध भी चीनी विशेषज्ञों ने खोज लिए हैं। यह भी पाकिस्तानी समझ है। चीन की भारत-नीति में पाकिस्तानी तत्व हमेशा मिलेगा।
हिन्दुस्तान में प्रकाशित मेरा लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें
चीन के बरक्स तिब्बत के मसले पर हमने शुरू से गलत नीति अपनाई। तिब्बत किसी लिहाज से चीन देश नहीं है। चीन आज कश्मीर को विवादित क्षेत्र मानता है, क्योंकि पाकिस्तानी तर्क उसे विवादित मानता है। पर तिब्बत के मामले में सिर्फ तकनीकी आधार पर उसने कब्जा कर लिया और सारी दुनिया देखती रह गई। तिब्बत के पास अपनी सेना होती तो क्या वह आज चीन के अधीन होता। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ज्यादा से ज्यादा उसे विवादित क्षेत्र मानता जैसा पाकिस्तानी हमलावरों के कारण कश्मीर बना दिया गया है।
भारत को चीन से दोस्ती रखनी चाहिए। यह हमारे और चीन दोनों के हित में है, पर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सामरिक कारणों से हमारा प्रतिस्पर्धी है। वह पाकिस्तान का सबसे अच्छा दोस्त है। और हमेशा रहेगा। तमाम देश खुफिया काम करते हैं। चीन के सारे काम खुफिया होते हैं। उसने और उत्तरी कोरिया ने पाकिस्तान के एटमी और मिसाइल प्रोग्राम में मदद की है। यह भारत-विरोधी काम है। भारत जैसे विशाल देश के समाज में अंतर्विरोध भी चीनी विशेषज्ञों ने खोज लिए हैं। यह भी पाकिस्तानी समझ है। चीन की भारत-नीति में पाकिस्तानी तत्व हमेशा मिलेगा।
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Wednesday, July 21, 2010
अफगानिस्तान में विश्व समुदाय
राष्ट्रपति हामिद करज़ाई को विश्वास है कि सन 2014 तक अफगानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था इतनी दुरुस्त हो जाएगी कि वह पूरे देश का जिम्मा ले सके। आज अमेरिका और नाटो देशों की फौजें यह काम कर रहीं हैं। बावजूद इसके आए दिन विस्फोट हो रहे हैं। मंगलवार को काबुल सम्मेलन के दिन भी हुए। जबकि उस रोज सेना ने समूचे देश को तकरीबन बंद कर दिया था। काबुल सम्मेलन ने करज़ाई को मज़बूती देने का समर्थन किया है जो स्वाभाविक है।
करज़ाई यह भी चाहते हैं कि देश के विकास के लिए जो रकम आ रही है उसका ज्यादा से ज्यादा हिस्सा उनके मार्फत खर्च हो। अभी तकरीबन 20 फीसद उन्हें मिलता है बाकी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के मार्फत खर्च होता है। करजाई सरकार को सबसे पहले भ्रष्टाचार कम करना चाहिए। सरकारी मशीनरी के भ्रष्ट होने के कारण जनता का उस पर विश्वास नहीं है।
यह ज़रूरी है कि अफगानिस्तान की सरकार न सिर्फ सुरक्षा बल्कि पूरे देश के विकास की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले। अफगानिस्तान को लम्बे अर्से तक अंतरराष्ट्रीय निगरानी में नहीं रखा जा सकता। पर पूरा देश जिस तरह की अराजकता का शिकार है उसे बड़ी से बड़ी विदेशी सेना भी नहीं सम्हाल सकती। यहाँ तालिबान को पाकिस्तानी सेना लाई थी। अल-कायदा को भी वही लाई। पूरे समाज को मध्य युगीन माहौल में पटक दिया गया है। यहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और कुशल नागरिक प्रशासन की ज़रूरत है। उसके लिए एक ओर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था चाहिए और दूसरी ओर आधुनिक सामाजिक-विमर्श की ज़रूरत है।
हिलेरी क्लिंटन को आज भी लगता है कि बिन लादेन पाकिस्तान में है और इस बात की जानकारी पाकिस्तानी सरकार में किसी न किसी को है। इतना साफ है कि पाकिस्तानी व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता। सिर्फ पाकिस्तान के कारण दक्षिण एशिया में माहौल बिगड़ा हुआ है। पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना और सिविल सोसायटी के मजबूत होने पर ही बेहतर परिणाम आ सकेंगे। ऐसा होने के बजाय प्रतिगामी ताकतें बीच-बीच में सिर उठा रहीं हैं।
अफगानिस्तान में बेहतर परिणाम के लिए भारत को भी शामिल किया जाना चाहिए, पर पाकिस्तान बजाय भारत के चीन को यहाँ लाना चाहता है। यह नज़रिया हालात को बेहतर करने के बज़ाय बिगाड़ेगा।
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करज़ाई यह भी चाहते हैं कि देश के विकास के लिए जो रकम आ रही है उसका ज्यादा से ज्यादा हिस्सा उनके मार्फत खर्च हो। अभी तकरीबन 20 फीसद उन्हें मिलता है बाकी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के मार्फत खर्च होता है। करजाई सरकार को सबसे पहले भ्रष्टाचार कम करना चाहिए। सरकारी मशीनरी के भ्रष्ट होने के कारण जनता का उस पर विश्वास नहीं है।
यह ज़रूरी है कि अफगानिस्तान की सरकार न सिर्फ सुरक्षा बल्कि पूरे देश के विकास की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले। अफगानिस्तान को लम्बे अर्से तक अंतरराष्ट्रीय निगरानी में नहीं रखा जा सकता। पर पूरा देश जिस तरह की अराजकता का शिकार है उसे बड़ी से बड़ी विदेशी सेना भी नहीं सम्हाल सकती। यहाँ तालिबान को पाकिस्तानी सेना लाई थी। अल-कायदा को भी वही लाई। पूरे समाज को मध्य युगीन माहौल में पटक दिया गया है। यहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और कुशल नागरिक प्रशासन की ज़रूरत है। उसके लिए एक ओर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था चाहिए और दूसरी ओर आधुनिक सामाजिक-विमर्श की ज़रूरत है।
हिलेरी क्लिंटन को आज भी लगता है कि बिन लादेन पाकिस्तान में है और इस बात की जानकारी पाकिस्तानी सरकार में किसी न किसी को है। इतना साफ है कि पाकिस्तानी व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता। सिर्फ पाकिस्तान के कारण दक्षिण एशिया में माहौल बिगड़ा हुआ है। पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना और सिविल सोसायटी के मजबूत होने पर ही बेहतर परिणाम आ सकेंगे। ऐसा होने के बजाय प्रतिगामी ताकतें बीच-बीच में सिर उठा रहीं हैं।
अफगानिस्तान में बेहतर परिणाम के लिए भारत को भी शामिल किया जाना चाहिए, पर पाकिस्तान बजाय भारत के चीन को यहाँ लाना चाहता है। यह नज़रिया हालात को बेहतर करने के बज़ाय बिगाड़ेगा।
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Tuesday, July 20, 2010
पाक सुप्रीमकोर्ट में संविधान उछाला
पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में 17 सदस्यों के बेंच के सामने याचिका दायर करने वाले व्यक्ति ने कहा, मैं चाहता हूँ कि देश के संविधान के ऊपर कुरान शरीफ हो। ऐसा कहने के बाद उस व्यक्ति ने संविधान की प्रति अदालत में उछाल दी जो फर्श पर जाकर गिरी।
ऐसा करते हुए बेशक उस व्यक्ति ने अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त किया जो कहीं से अनुचित नहीं था। पाकिस्तान में धार्मिक नियमों को पूरी तरह लागू करने की माँग लम्बे अरसे से चली आ रही है। पर सिविल कानून के प्रति ऐसी उपेक्षा का भाव सदमा पहुँचाता है। हालांकि उस व्यक्ति ने बाद में माफी माँग ली, पर क्या इतना काफी है?
इस्लाम के पास एक पूर्ण राजनैतिक और न्यायिक व्यवस्था है, फिर भी अनेक मुस्लिम देशों ने संविधान बनाए हैं। राज-व्यवस्था समय के साथ बदलाव भी माँगती है। देखते हैं कि इस घटना पर पाकिस्तान में क्या प्रतिक्रिया होती है।
ऐसा करते हुए बेशक उस व्यक्ति ने अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त किया जो कहीं से अनुचित नहीं था। पाकिस्तान में धार्मिक नियमों को पूरी तरह लागू करने की माँग लम्बे अरसे से चली आ रही है। पर सिविल कानून के प्रति ऐसी उपेक्षा का भाव सदमा पहुँचाता है। हालांकि उस व्यक्ति ने बाद में माफी माँग ली, पर क्या इतना काफी है?
इस्लाम के पास एक पूर्ण राजनैतिक और न्यायिक व्यवस्था है, फिर भी अनेक मुस्लिम देशों ने संविधान बनाए हैं। राज-व्यवस्था समय के साथ बदलाव भी माँगती है। देखते हैं कि इस घटना पर पाकिस्तान में क्या प्रतिक्रिया होती है।
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