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Friday, August 1, 2014

सोनिया, त्याग की प्रतिमूर्ति या बात कुछ और थी

श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा है कि अब मैं किताब लिखकर स्थिति साफ करूँगी। 18 मई 2004 की रात में देर तक चले नाटकीय घटनाक्रम के बाद 19 मई की सुबह के अखबारों ने श्रीमती गांधी को त्याग की प्रतिमूर्ति करार दिया। 18 मई को संसद भवन के केंद्रीय हॉल में उन्होंने कांग्रेस संसदीय दल के सामने कहा, "Today my inner voice is telling me that I should politely refuse to accept the post of Prime Minister.” भारतीय समाज त्याग का सम्मान करता है। सत्ता के परित्याग से बड़ी बात क्या हो सकती है? पर अब सोनिया जी के कभी करीबी रहे नटवर सिंह ने इस त्याग की मूल अवधारणा पर सवालिया निशान लगाया है। सोनिया जी नटवर सिंह की बात को किस तरह गलत साबित करेंगी? या नटवर सिंह अपनी बात को कैसे साबित करेंगे? 

इस एक घटना के कारण कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक इतिहास में सोनिया गांधी की तुलना महात्मा गांधी से की गई है। इस इतिहास से जुड़ी एक रपट के अंश इस प्रकार हैं

कांग्रेस ने अपने 125 वर्षों का इतिहास लिखते हुए वर्तमान अध्यक्ष सोनिया गांधी की तुलना महात्मा गांधी से की है.  हाल ही में कांग्रेस से सवा सौ साल पूरे होने पर जारी किताब 'कांग्रेस एंड द मेकिंग ऑफ़ द इंडियन नेशन' में कहा गया है कि प्रधानमंत्री का पद स्वीकार न करने का त्याग महात्मा गांधी के त्याग की तरह से याद किया जाता है. इस किताब में कांग्रेस में इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या को महात्मा गांधी की तरह ही देश के लिए बलिदान बताया गया है. कांग्रेस का कहना है कि इस किताब को कई इतिहासकारों ने मिलकर तैयार किया है और इसे पार्टी की सहमति से प्रकाशित किया गया है. इसके मुख्य संपादक प्रणब मुखर्जी हैं और संयोजक आनंद शर्मा हैं.
 त्याग की तुलनादो खंडों में प्रकाशित इस किताब के पहले खंड के पृष्ठ 156 पर 'सोनिया गांधी का यादगार त्याग' शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित सामग्री में प्रधानमंत्री पद स्वीकार न करने के सोनिया गांधी के फ़ैसले का ज़िक्र किया गया है. इसमें 18 मई, 2004 को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में सोनिया गांधी के संबोधन का ज़िक्र किया गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री बनना कभी उनका लक्ष्य नहीं रहा, उन्हें सत्ता ने कभी आकर्षित नहीं किया और कोई पद पाना कभी उनका लक्ष्य नहीं रहा. उल्लेखनीय है कि 15 मई को सोनिया गांधी को कांग्रेस संसदीय दल का नेता चुना गया था और अगले दिन यानी 16 मई को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए ने भी उन्हें नेता चुना और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी. बीबीसी हिंदी में पूरी रपट पढ़ें

इस साल 3 जनवरी को मनमोहन सिंह ने अपने आखिरी संवादाता सम्मेलन में कहा था, मेरे कार्यकाल के बारे में इतिहासकार फ़ैसला करेंगे। उन्होंने कहा मीडिया या संसद में विपक्ष की अपेक्षा इतिहास मेरे प्रति ज्यादा उदार रहेगा। ...राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए मैने सर्वश्रेष्ठ किया है। मैं नहीं मानता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं ….इतिहास मेरे प्रति उदार रहेगा …. राजनीतिक बाध्यताओं को देखते हुए मैंने बेहतरीन किया है जो मैं कर सकता था।…मैंने किया है और साथ ही साथ परिस्थितियों के अनुसार मैं जो कर सकता था …यह इतिहास तय करेगा कि मैंने क्या किया और मैंने क्या नहीं किया। 
इसके कुछ महीने बाद संजय बारू की किताब में मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री साबित करने वाले कुछ हालात का विवरण दिया गया। और अब सोनिया जी के करीबी राजनेता ने जो जानकारी दी है, वह इतिहास में दर्ज हो गई है। सवाल है कि क्या यह राजनीतिक प्रतिशोध है या एक सहज सूचना। क्या सोनिया गांधी इससे बेहतर कोई जानकारी देने की स्थिति में हैं? 

राजनेताओं के संस्मरण देश के हालात और राजनीतिक व्यवस्था को समझने में मददगार होते हैं। मनमोहन सिंह ने जिसे इतिहास कहा, वह भी इसी प्रकार लिखा जाएगा। बेहतर हो कि इसपर जल्द से जल्द रोशनी डाली जाए। बहरहाल 19 मई की सुबह भारतीय अखबारों की कवरेज का जो विवरण बीबीसी ने दिया था, उसे पढ़ना भी रोचक होगा। नीचे पढें उस रपट के अंशः-
Newspapers across India have lauded Congress party leader Sonia Gandhi's decision not to accept the position of the prime minister.The general view is that the move is in the Indian tradition of renunciation and that she has emerged with more stature.

Newspapers also attack the campaign of the defeated Hindu nationalist Bharatiya Janata Party (BJP) against Mrs Gandhi's foreign origins, one of the reasons thought to be behind her decision to opt out.

Most of the newspapers gave the thumbs up to Mrs Gandhi for deciding not to accept the position of the prime minister.

Amazing Grace was the headline verdict of the Hindustan Times.
The Asian Age chimed in with Sonia Switch Turns Off Power, Turns on Hearts.
Renouncing power, going for glory, was the opinion voiced in a front-page story in the Times of India.

'Standing tall'Most newspapers said Mrs Gandhi's decision was in the "true Indian tradition" of renunciation.
Read full BBC report here  







Monday, July 21, 2014

किस तरह एक भ्रष्ट जज अपने पद पर बना रहा!

सीएनएन-आईबीएन में जस्टिस काटजू
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब 'एक्‍सीडेंटल पीएम' के कुछ अंशों की वजह से हंगामा शुरू हो गया था। संजय बारू ने लिखा कि मनमोहन सिंह अपनी मर्जी से फैसले नहीं कर पाते थे। यह हंगामा शांत होने के पहले ही पूर्व कोयला सचिव पीसी पारख की किताब 'क्रूजेडर आर कांस्पिरेटर: कोलगेट एंड अदर ट्रूथ' ने दूसरा हंगामा खड़ा किया। इस किताब में पारख ने बताने की कोशिश की है कि कैसे कोयला मंत्रालय के कामकाज को प्रधानमंत्री असहाय प्रधानमंत्री की तरह देखते थे। वह कड़े फैसले लेने में कमजोर थे और साथ ही कोयला मंत्रालय में जारी ब्‍लैकमेलिंग का जिक्र भी पारख ने अपनी किताब में किया। पारख ने अपनी इस किताब में दावा किया है कि अक्‍सर नेता कई बड़े फैसलों को बदलने और उन्‍हें प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। और अब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने मद्रास हाइकोर्ट के एक जज के बारे में लिखा है कि गठबंधन राजनीति के कारण उस जज को लगातार संरक्षण मिलता रहा, बावजूद इसके कि उसपर भ्रष्टाचार के आरोप थे। आज सुबह टाइम्स ऑफ इंडिया ने जस्टिस काटजू के आलेख को अपनी लीड बनाया है। उन्होंने अपने आलेख में लिखा है कि मेरा उद्देश्य यह बताना है कि सिस्टम किस तरह काम करता है, I have related all this to show how the system actually works, whatever it is in theory. In fact, in view of the adverse IB report the judge should not even have been allowed to continue as additional judge. न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है। जस्टिस काटजू अपने ब्लॉग में इन दिनों मद्रास हाइकोर्ट के अनुभवों को लिख रहे हैं। उनके इस आलेख ने भारतीय राजनीति के भीतर के एक गहरे अंतर्विरोध को उभारा है। हमारे यहाँ न्यायाधीशों ने अपने इस किस्म के संस्मरण नहीं लिखे हैं। यह आलेख मौके पर सामने आया है। जस्टिस काटजू ने अपने लेख की शुरूआत इस तरह की हैः-

There was an additional judge of the Madras high court against whom there were several allegations of corruption. He had been directly appointed as a district judge in Tamil Nadu, and during his career as district judge there were as many as eight adverse entries against him recorded by various portfolio judges of the Madras high court. But one acting chief justice of Madras high court by a single stroke of his pen deleted all those adverse entries, and consequently he became an additional judge of the high court, and he was in that post when I came as chief justice of Madras high court in November 2004.
That judge had the solid support of a very important political leader of Tamil Nadu. I was told that this was because while a district judge he had granted bail to that political leader.
Since I was getting many reports about his corruption, I requested the Chief Justice of India, Justice RC Lahoti, to get a secret IB inquiry made about him. A few weeks thereafter, while I was in Chennai, I received a call from the secretary of the CJI saying that Justice Lahoti wanted to talk to me. The CJI then came on the line and said that what I had complained about had been found true. Evidently the IB had found enough material about the judge's corruption.

टाइम्स ऑफ इंडिया में पढ़ें पूरा आलेख 

जस्टिस काटजू के ब्लॉग को पढ़ें

Monday, July 7, 2014

क्या देश का रूपांतरण कर पाएगी मोदी सरकार?

इस बारे में कभी दो राय नहीं थी कि देश के भीतर काले धन की जबर्दस्त समांतर व्यवस्था काम करती है और लगभग 70 फीसदी कारोबार हिसाब-किताब के बाहर होता है। आज अमर उजाला ने एक सरकारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए एमके वेणु की खबर छापी है। पिछले कुछ वर्षों में विदेशी बैंकों में जमा काले धन को लेकर जो चर्चा शुरू हुई है उसके राजनीतिक निहितार्थ हैं। चूंकि काले धन का रिश्ता अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद से रहा है इसलिए दुनिया का ध्यान इस ओर गया है। इस चक्कर में भारतीय काले धन का जिक्र भी हुआ है। सच यह है कि भारतीय राज-व्यवस्था बेहद कमजोर है। देश के भीतर के सारे कारोबार को राज-व्यवस्था की निगहबानी में लाया जा सके तो राजकोषीय समस्याओं के समाधान संभव हैं। ध्यान दें कि हमारी राजनीति सामंती ढाँचे में रची-बसी है। वह बड़े स्तर के कर सुधार और व्यवस्थागत बदलाव होने से रोकेगी। इस प्रकार वह अपने न्यस्त स्वार्थों की रक्षा करने में सफल है। आज के अखबारों में बजट सत्र को लेकर खबरें हैं। इस सत्र में स्पष्ट होगा कि मोदी सरकार किस हद तक देश के रूपांतरण में बड़ी भूमिका निभाने वाली है। आज की कुछ खास कतरनों पर नजर डालें

विदेश से ज्यादा देश में कालाधन
एमके वेणु
सोमवार, 7 जुलाई 2014
आम चुनाव के दौरान भले ही विदेश में कालाधन का मुद्दा गरमाया हो मगर देश में मौजूद कालेधन की हकीकत मोदी सरकार को अंदरखाने हिलाने के लिए काफी है।

कालेधन पर सरकार की 1000 पेज की सनसनीखेज रिपोर्ट के मुताबिक, देश की कुल अर्थव्यवस्था (जीडीपी) का करीब 71 फीसदी तक कालाधन है। इसके हिसाब से करीब 2000 अरब डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था के समानांतर 1400 अरब डॉलर का कालेधन का कारोबार है।

इन आंकड़ों को अगर रुपये में देखें तो 120 लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था के समानांतर 83 लाख करोड़ रुपये का कालेधन का कारोबार है। पूरी खबर पढ़ें यहाँ


Sunday, July 6, 2014

नरेंद्र मोदी के बारे में गिरीश कर्नाड की ताज़ा राय

गिरीश कर्नाड ने कहा है कि नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं, और इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिए। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुई हिंसा के बारे में मैं अपनी राय व्यक्त कर चुका हूँ। पर उसके बाद से वहाँ ऐसी कोई घटना नहीं हुई जो उन्हें बदनाम करे। ...आलोचना के बावजूद देश ने मोदी को जिताया। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है। जनता की कांग्रेस के शासन को लेकर नाराजगी थी और मोदी की जीत के पीछे यह सबसे बड़ा कारण है। कर्नाटक के धारवाड़ में हुए एक समारोह के दौरान उन्होंने बातचीत में उन्होंने आशा व्यक्त की कि मोदी जनता की उम्मीदों को पूरा करेंगे। कर्नाड की इस बात का मतलब जो भी हो, कन्नड़ लेखक यूआर अनंतमूर्ति ने कहा कि मैं कर्नाड की राय से सहमत नहीं। यह खबर आज के टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदू में छपी है। दोनों में खबर लिखने का ढंग कुछ फर्क है। मोटी बात है कि कर्नाड ने मोदी की उस कड़वे ढंग से आलोचना नहीं की है, जिसकी कुछ लोग उनसे उम्मीद करते हैं। दूसरे उन्होंने लोकतांत्रिक मर्यादाओं का सम्मान करने की सलाह दी है। मेरे विचार से यह संतुलित दृष्टिकोण है, पर जो लोग 'धारदार' नज़रिया रखते हैं या जिनकी पक्षधरता सीधे-सीधे राजनीतिक विचारधारा से जुड़ी है, उन्हें इस वक्तव्य के बारे में राय बनाने में असमंजस होगा। मुझे कर्नाड न तो मतलब परस्त लगते हैं और न भ्रमित। नीचे दोनों खबरें दी हैं। आप अपने निष्कर्ष निकालें
टाइम्स ऑफ इंडिया

One-time detractor Girish Karnad now hails PM Modi’s ‘good work’

One-time detractor Girish Karnad now hails PM Modi’s ‘good work’Karnad attributed Modi’s success to the people’s desire for change.
DHARWAD/BANGALORE: Playwright and director GirishKarnad on Saturday said Prime Minister NarendraModi is doing a good job and hoped he would fulfil the people's aspirations.
Speaking on the sidelines of a function here, the Jnanpith awardee said: "Narendra Modi is our Prime Minister, and we should accept it. I had expressed reservations about the post-Godhra carnage in Gujarat when Modi was chief minister. But after that, there have been no incidents to bring him a bad name. He has provided good governance."
Karnad attributed Modi's success to the people's desire for change. "The people's disappointment over the performance of the Congress government at the Centre contributed greatly to Modi's success," he noted.
The country gave Modi a mandate, criticism against him notwithstanding. "People's thinking across the nation was alike. That's the beauty of democracy."
On the performance of the Congress government in Karnataka, he said the people had elected the party to power and he respects their verdict. He refused to comment on the Siddaramaiah ministry's performance.
Karnad's remarks are a far cry from his stance in the run-up to the Lok Sabha elections this year when he, along with writer UR Ananthamurthy, spoke out strongly against Modi.

हिंदू

Not correct to oppose Modi now: Karnad

DHARWAD, July 6, 2014
Jnanpith Award winner Girish Karnad said here on Saturday that it was not correct to oppose Prime Minister Narendra Modi as he had been democratically elected by the people of the country.
Replying to questions from presspersons about his stand on Mr. Modi whom he had opposed during the elections, Mr. Karnad said he had opposed Mr. Modi, who was the Bharatiya Janata Party’s prime ministerial candidate, and also campaigned for the Congress candidate from the Bangalore South Parliamentary constituency, Nandan Nilekani, during the elections. But now, Mr. Modi was the head of the government.
People’s verdict
“As citizens we have to respect the people’s verdict and give due respect to our elected Prime Minister. We are living in a democratic system, and I cannot say I will not accept him as Prime Minister,” Mr. Karnad said.
He added that it would be too early to say anything about the style of functioning of the Modi government. “Let us give him time,” he said.

यह खबर मुझे कन्नड़ प्रभा अखबार में नहीं दिखाई दी। विजय कर्नाटक में मिली, जो ईपेपर में थी। उसे मैं पढ़ नहीं पाता हूँ। वैबसाइट पर नहीं मिली जहाँ मैं उसका ऑटो अंग्रेजी अनुवाद पढ़ सकता है। चूंकि यह टाइम्स समूह का अखबार है इसलिए संभव है यह खबर भी टाइम्स ऑफ इंडिया जैसी हो।


Sunday, June 8, 2014

कैसे थामेगी महंगाई के तूफान को सरकार?

संसद के चालू सत्र में सरकार के सामने मुश्किलें नहीं है, पर कुछ समय बाद ही उसके सामने महंगाई को नाथने की जिम्मेदारी आएगी। इस साल मॉनसून देर से आया है और उसके कमज़ोर होने का खतरा भी है। सरकार किस तरह महंगाई का सामना करेगी? आज के अखबारों में कैबिनेट सचिव की बैठकों का जिक्र है। दूसरी ओर आम आदमी पार्टी लोकतांत्रिक झंझावात से गुजर रही है। उसके भीतर संकटं का सामना करने की कितनी सामर्थ्य है यह भी दिखाई पड़ रहा है। पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन का विवकण भी आज की सुर्खियों में है। आज के भास्कर ने विवेकानंद फाउंडेशन पर अच्छी रिपोर्ट दी है। वहीं टेलीग्राफ ने भारत-चीन रिश्तों में तिब्बत की प्रवासी सरकार की कसक पर अच्छी रपट दी है। हिंदू की वैबसाइट पर चंद्रबाबू नायडू का इंटरव्यू पढ़ने को मिला, जिसमें उन्होंने कहा है कि आंध्र की राजधानी विजयवाड़ा-गुंटूर के बीच कहीं बनेगी। यह दुनिया का सबसे अच्छा नियोजित नगर होगा और यह चेन्नई और हैदराबाद के साथ बुलेट ट्रेन से जुड़ेगा। दिल्ली में मोदी सरकार भी बुलेट ट्रेन को आने वाले समय का प्रतीक बनाकर चल रही है। 








We have to build from scrtach : Naidu


I have to fight for funds for Capital, special status’
“We will have our capital on the Vijayawada-Guntur stretch that will be the world’s best planned city, fully loaded with ultra modern facilities. I have even plans for introducing a bullet train to Chennai and Hyderabad.”
That is “hi-tech” N. Chandrababu Naidu, sharing his vision for the new capital of Andhra Pradesh, exclusively with The Hindu on the eve of his swearing-in as the first Chief Minister of a State which he insists “has to start from scratch.”
“Nothing is impossible if you have a clear vision of how you want your city to be. I have done it in Hyderabad and I will do it here. It will be much more than Singapore. It will be a hub of economic activities and a most favoured destination for investments, having the best connectivity. There will be no dearth of avenues for entertainment and social life,” he said.
Brimming with confidence, Mr. Naidu was unstoppable during a chat with this correspondent in his bullet- proof SUV as he travelled from Raj Bhavan to his home on Friday. “Having gained experience from the Hyderabad example, we will opt for dispersed development, transforming the upcoming capital region, Visakhapatnam and Tirupati into three mega cities and turn major corporations into hubs of investments giving a choice to investors. That is why I have invited top industrialists across the country for my swearing-in.”
पूरी खबर पढ़ें यहाँ

Saturday, June 7, 2014

आप का पत्र संग्राम

नरेंद्र मोदी की अपने सांसदों को सलाह, मोदी की विदेश यात्राओं का कार्यक्रम, शशि थरूर के मोदी को लेकर बयान पर कांग्रेस के भीतर की चर्चा के साथ-साथ आज के अखबारों में अरविंद केजरीवाल और नितिन गडकरी के केस की कवरेज भी है। इधर बंगाल में सीपीएम की कलह भी सामने आ रही है। आम आदमी पार्टी नकारात्मक या सकारात्मक दोनों कारणों से मीडिया में रहती है। इधर मनीष सिसोदिया की योगेंद्र यादव के नाम चिट्ठी सुर्खियों में है। इन चिट्ठियों को पढ़ने से इस बात का पता लगता है कि इस संगठन के भीतर लोकतंत्र की दशा क्या है और इसके फैसले किस तरह हुए होंगे। नीचे आप उस चिट्ठी का पूरा पाठ और योगेंद्र यादव की चिट्ठी को पढ़ें ताकि सनद रहेः-







योगेंद्र यादव के नाम मनीष सिसोदिया की चिट्ठी

Respected Yogendra Bhai!

Over the last 15 days, an ugly spat has developed between you and Naveen Jai Hind. The unfortunate part is that the two of you have been fighting your personal battles in public and through media forums. This is continuously damaging the party. What is even more unfortunate and sad is that you wanted disciplinary action taken against Naveen Jai Hind, and when you could not have your way, you dragged Arvind (Kejriwal) into the fight.

You have alleged that Arvind does not listen to the advice of the PAC. It is surprising to read this allegation in your email because Arvind has always supported you. Indeed, so long he was listening to you, you were full of praise for him. For example, your decision to contest from Gurgaon was opposed by many members of PAC. But Arvind not only supported you, he got everybody on board on your candidature. Arvind was democratic then. Even before that, when you wanted to be in-charge of Haryana and the party's chief ministerial candidate, several PAC members opposed it. Even then, Arvind had supported you, and in your eyes Arvind was democratic.

Thursday, June 5, 2014

राहुल बाबा चाहते क्या हैं?

हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून
इतनी लल्लो-चप्पो शायद ही किसी नेता की की गई होगी। राजनीति में हार-जीत लगी रहती है, पर मौके पर सही फैसला करने वाले ही सफल होते हैं। राहुल गांधी को नेतृत्व करना है, तो पूरी तरह करना चाहिए। नहीं करना है तो शांति से अलग हो जाना चाहिए। लोकसभा में पार्टी का नेतृत्व किए बगैर वे किस तरीके की राजनीति करेंगे? सोलहवीं लोकसभा के पहले सत्र में वे कांग्रेस की सबसे पिछलीं बेंच में बैठे।

 कांग्रेस के भीतर असंतोष है, यह बात उजागर होने लगी है। दिल्ली में टूट-फूट का अंदेशा है। पार्टी की केरल शाखा केंद्रीय नेतृत्व के खिलाफ प्रस्ताव पास करने जा रही थी। आज के जागरण में छपी खबर से ऐसा लगता है कि दिल्ली में बची-खुची कसर पूरी होने वाली है। आज की कतरनों पर एक नजर

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Tuesday, June 3, 2014

रक्षा में विदेशी निवेश के अलावा विकल्प ही नहीं है

इस हफ्ते 4 जून से शुरू हो रहे संसद के पहले सत्र में नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों पर रोशनी पड़ेगी. संसद के संयुक्त अधिवेशन में राष्ट्रपति का अभिभाषण इस सरकार का पहला नीतिपत्र होगा. सरकार के सामने फिलहाल तीन बड़ी चुनौतियाँ हैं. महंगाई, आर्थिक विकास दर बढ़ाने और प्रशासनिक मशीनरी को चुस्त करने की. मंहगाई को रोकने और विकास की दर बढ़ाने के लिए सरकार के पास खाद्य सामग्री की सप्लाई और विदेशी निवेश बढ़ाने का रास्ता है. सरकार एफसीआई के पास पड़े अन्न भंडार को निकालने की योजना बना रही है. इस साल मॉनसून खराब होने का अंदेशा है, इसलिए यह कदम जरूरी है.

तेलंगाना में झगड़े अभी और भी हैं

छोटे राज्य बनने से विकास का रास्ता खुलेगा या नहीं यह बाद में देखा जाएगा अभी आंध्र के विभाजन की पेचीदगियाँ सिर दर्द पैदा करेंगी। तेलंगाना का जन्म अटपटे तरीके से हुआ है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का जन्म जितनी शांति से हुआ वैसा यहाँ नहीं है। कांग्रेस ने तेलंगाना बनाने का आश्वासन देकर 2004 का चुनाव तो जीत लिया, पर अपने लिए गले की हड्डी मोल ले ली, जिसने उसकी जान ले ली। एक माने में यह देश की सबसे पुरानी माँग है। अलग राज्य तेलंगाना बनाने की माँग देश के पुनर्गठन का सबसे महत्वपूर्ण कारक बनी थी। 1953 में पोट्टी श्रीरामुलु की आमरण अनशन से मौत के बाद तेलुगुभाषी आंध्र का रास्ता तो साफ हो गया था, पर तेलंगाना इस वृहत् आंध्र योजना में जबरन फिट किया गया। भाषा के आधार पर देश का पहला राज्य आंध्र ही बना था, पर उस राज्य को एक बनाए रखने में भाषा मददगार साबित नहीं हुई। राज्य पुनर्गठन आयोग की सलाह थी कि हैदराबाद को विशेष दर्जा देकर तेलंगाना को अलग राज्य बना दिया जाए और शेष क्षेत्र अलग आंध्र बने। नेहरू जी भी आंध्र और तेलंगाना के विलय को लेकर शंकित थे। उन्होंने शुरू से ही कहा था कि इस शादी में तलाक की संभावनाएं बनी रहने दी जाएं। और अंततः तलाक हुआ।

हड़बड़ी में बना राज्य
पन्द्रहवीं लोकसभा के आखिरी सत्र के आखिरी दिन तक इसकी जद्दो-जेहद चली। शोर-गुल, धक्का-मुक्की मामूली बात थी। सदन में पैपर-स्प्रे फैला, किसी ने चाकू भी निकाला। टीवी ब्लैक आउट किया गया। और अभी तय नहीं है कि शेष बचे राज्य का नाम सीमांध्र होगा या कुछ और। उसके मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू 8 जून को कहाँ शपथ लेंगे, विजयवाडा में या गुंटूर में। कर्मचारियों के बँटवारे का फॉर्मूला इस रविवार को ही बन पाया है। दोनों राज्यों की सम्पत्ति, जल तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों का बँटवारा समस्याएं पैदा करेगा।
हैदराबाद शहर दोनों राज्यों की राजधानी का काम करेगा, पर इससे तमाम समस्याएं खड़ी होंगी। नई राजधानी बनाने के लिए दस साल का समय है, पर उसके पहले भौगोलिक समस्याएं हैं। व्यावहारिक रूप से हैदराबाद तेलंगाना में है। तेलंगाना के समर्थक हैदराबाद को अपनी स्वाभाविक राजधानी मानते हैं, क्योंकि भौगोलिक और ऐतिहासिक रूप से यह शहर तेलंगाना की राजधानी रहा है। शेष आंध्र या सीमांध्र किसी भी जगह पर हैदराबाद से जुड़ा नहीं है। उसकी सीमा हैदराबाद से कम से कम 200 किलोमीटर दूर होगी। हैदराबाद राज्य का सबसे विकसित कारोबारी केन्द्र है। अब किसी नए शहर का विकास करने की कोशिश होगी तो उसमें काफी समय लगेगा। अविभाजित आंध्र प्रदेश का तकरीबन आधा राजस्व इसी शहर से आता है। सीमांध्र के पास इस किस्म का औद्योगिक आधार बनाने का समस्या है। यहाँ के कारोबारियों में ज्यादातर लोग गैर-तेलंगाना हैं।

प्राकृतिक साधनों का झगड़ा
केवल हैदराबाद की बात नहीं है, छोटे-छोटे गाँवों और कस्बों के लेकर भी विवाद हैं। तेलंगाना के शहरों में रहने वाली बड़ी आबादी की भावनाएं सीमांध्र से जुड़ी हैं। भविष्य की राजनीति में यह तत्व महत्वपूर्ण साबित होगा। चंद्रबाबू नायडू के तेलगुदेशम का प्रभाव तेलंगाना में भी है। पानी के ज्यादातर स्रोत तेलंगाना से होकर गुजरते हैं। कृष्णा और गोदावरी दोनों नदियां तेलंगाना से आती हैं, जबकि ज्यादातर खेती सीमांध्र में है। तेलंगाना के गठन के समय सीमांध्र को विशेष पैकेज देने की बात कही गई थी। यह पैकेज कैसा होगा, इसे लेकर विवाद खड़ा होगा। इधर पोलावरम बाँध को लेकर विवाद शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इस परियोजना के लिए खम्मम जिले के कुछ गांव सीमांध्र को देने का विरोध किया है, जबकि सरकार ने इन गांवों को लेकर अध्यादेश जारी किया है।
राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

Sunday, June 1, 2014

पीएमओ का सक्रिय होना

सरकार क्या करेगी और कितनी सफल होगी, कहना मुश्किल है, पर पीेमओ अब सक्रिय हुआ है और सरकार को दिशा दे रहा है, इसमें दो राय नहीं। ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स के रास्ते को त्याग कर सरकार ने अपने काम को पुरानी परम्परा से जोड़ा है। ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की व्यवस्था भी हमें ब्रिटिश संसदीय व्यवस्था से मिली है, पर उस व्यवस्था में ऐसे ग्रुप की ज़रूरत कभी-कभार पड़ती है।यूपीए सरकार ने अपनी छवि सुधारने और प्रेस को ब्रीफ करने जैसे काम के लिए जीओएम बना दिए थे और बाकी काम राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) को दे दिए। इससे सरकार निकम्मी हो गई। इस तरह के ग्रुपों की शुरूआत 1989 में केन्द्र में बहुदलीय सरकार बनने के बाद शुरू ही थी। एनडीए के कार्यकाल में 32 जीओएम बनाए गए और यूपीए-1 के कार्यकाल में 40। यूपीए-2 में बने समूहों की संख्या 200 तक बताते है। तमाम मसलों पर अलग-अलग राय होने के कारण आम सहमति बनाने के लिए मंत्रियों के छोटे ग्रुपों की ज़रूरत महसूस हुई। लगभग इसी वजह से संसदीय व्यवस्था में कैबिनेट की जरूरत पैदा हुई थी। जब तक ताकतवर प्रधानमंत्री होते थे तब तक कैबिनेट प्रधानमंत्री के करीबी लोगों की जमात होती थी। इससे व्यक्ति का रुतबा और रसूख जाहिर होता था। पर यूपीए के कार्यकाल में ये ग्रुप गठबंधन धर्म की मजबूरी और फैसले करने से घबराते नेतृत्व की ओर इशारा करने लगे। फिलहाल वर्तमान सरकार की गति तेज है। पर अभी तक यह कार्यक्रम तय करने के दौर में है। कार्यक्रम बनाना मुश्किल काम नहीं है। उनपर अमल करना दिक्कततलब होता है। कुछ समय बाद इस सरकार के कौशल का पता भी लग जाएगा।

नई सरकार कैसी होगी, यह बात एक हफ्ते के कामकाज को देखकर नहीं बताई जा सकती, पर उसकी गति तेज होगी और वह बड़े फैसले करेगी यह नज़र आने लगा है। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के पहले ही उसकी धमक दिल्ली की गलियों में सुनाई पड़ने लगी थी। सोमवार को शपथ ग्रहण समारोह हुआ। मंगलवार को नवाज शरीफ से बातचीत। बुधवार को अध्यादेश की मदद से भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण(ट्राई) के पूर्व अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र को प्रधान सचिव नियुक्त किया। नई सरकार का यह पहला अध्यादेश था। उसे लेकर राजनीतिक क्षेत्रों में विरोध व्यक्त किया गया है, पर मोदी सरकार ने इतना स्पष्ट किया कि फैसला किया है तो फिर संशय कैसा। ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद कई अन्य अफसर पीएमओ में आएंगे। स्वाभाविक है कि भरोसे के अफसर होने भी चाहिए। अलबत्ता यह याद दिलाया जा सकता है कि मनमोहन सिंह के पीएमओ के अफसरों की नियुक्ति में भी फैसले उनके नहीं थे। ऐसा नहीं लगता कि देश की नीतियों मे कोई बुनियादी बदलाव आने वाला है, पर इतना जरूर लगता है कि काम के तरीके में बुनियादी बदलाव आ चुका है।

Wednesday, May 28, 2014

और अब चुनौतियाँ

बादल छँटने के बाद अर्थव्यवस्था की वास्तविकता से सामना हिंदू में केशव का कार्टून

सरकार अब काम-काज के मोड में आ रही है। शपथ-ग्रहण समारोह के बाद दक्षेस के सात देशों और मॉरिशस के प्रतिनिधियों के आगमन ने माहौल को सरगर्म बना दिया। खासतौर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की यात्रा से विमर्श का स्तर अच्छा हो गया। भारतीय मीडिया में पाकिस्तानी विशेषज्ञों ने आकर इस बातचीत को सार्थक बनाया। लगता है भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की सरकारें मीडिया की बातों को घुमाने की प्रवृत्ति से घबराती हैं। कल विदेश सचिव सुजाता सिंह जिस तरह शब्दों को चुन-चुनकर बोल रहीं थीं, उससे लगता था कि उन्हें इस बात की घबराहट थी कि कहीं कुछ गलत मुँह से न निकल जाए। नवाज शरीफ ने अपना बयान पढ़कर सुनाया। उनकी ब्रीफिंग में सवाल-जवाब नहीं हुए। पर इतना तय है कि कुछ होता हुआ लग रहा है। क्या यह सरकार काम करेगी? इस बात के जवाब के लिए कुछ समय इंतज़ार करें, पर स्मृति ईरानी की पढ़ाई और जितेन्द्र सिंह के अनुच्छेद 370 वाले बयान ने विवादों की शुरूआत कर दी है। मीडिया से अपेक्षा थी कि वह वह कुछ महत्वपूर्ण नेताओं की शिक्षा के बारे में बताता मसलन के कामराज, जयललिता, राबड़ी देवी या सोनिया गांधी की शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में बताया जाता। उपरोक्त नेताओं ने समय आने पर अपनी योग्यता को साबित किया। इस सरकार से काले धन को लेकर अपेक्षाएं हैं और कैबिनेट ने एक विशेष जाँच दल बनाने का फैसला किया है। रोचक बात है कि पिछली यूपीए सरकार ने सत्ता में आखिरी दिन तक इस जाँच दल को बनाने का विरोध किया था। सरकार ने पहला कदम उठाया है इसकी तार्किक परिणति सामने आने में समय लगेगा। देखना है कि स्विस सरकार के साथ सूचनाएं देने वाले समझौते की स्थिति क्या है। आज के टेलीग्राफ में राधिका रमाशेसन की खबर अच्छी है कि स्मृति, अरुण और निर्मला के नामों की चर्चा क्यों हो रही है।






Tuesday, May 27, 2014

मोदी के शपथ ग्रहण की भड़कीली कवरेज

नरेंद्र मोदी का शपथ ग्रहण समारोह जबर्दस्त मीडिया ईवेंट साबित होना ही था। पर पत्रकारों की समझदारी इस बात में थी कि वे अंतर्विरोधों को कितनी बारीकी से पकड़ते हैं। हिंदी के ज्यादातर अखबारों ने भक्तिभाव से कवरेज की और ज्यादा प्रभाव डिजाइन से डालने की कोशिश की। मास्टहैड की तस्वीर को लेकर कोई रचनात्मक योजना दिखाई नहीं पड़ी। ज्यादातर मुहावरे राजतिलक, राज्याभिषेक तक सीमित हैं। इनसे तो एक्सप्रेस का He Signs in बेहतर है। अंतर्कथाएं भी नहीं हैं। खबरों में भी दिल्ली के एक्सप्रेस और कोलकाता के टेलीग्राफ में नयापन था। खासतोर से टेलीग्राफ में शंकर्षण ठाकुर की रपट। अलबत्ता पाकिस्तान के अखबारों ने आज इस खबर को जैसा महत्व दिया है, वह ध्यान खींचता है। आज की कुछ कतरनें





The Telegraph



Indian Express

Pakistan