आसार इस बात के हैं कि गत 7 अक्तूबर से गज़ा पट्टी में शुरू हुई लड़ाई का दूसरा मोर्चा लेबनॉन में भी खुल सकता है. इसराइली सेना और हिज़्बुल्ला के बीच झड़पें चल भी रही हैं. लड़ाई थम भी जाए, पर समस्या बनी रहेगी. पिछली एक सदी या उससे कुछ ज्यादा समय से फ़लस्तीन की समस्या इतिहास की सबसे जटिल समस्याओं में से एक के रूप में उभर कर आई है.
ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया इसके स्थायी
समाधान के बारे में विचार करे. पहले राष्ट्र संघ,
फिर संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय
संस्थाओं के हस्तक्षेपों के बावजूद समस्या सुलझी नहीं है. जब भी समाधान का रास्ता
दिखाई पड़ता है, कहीं न कहीं से व्यवधान पैदा हो जाता है.
समाधान क्या है?
अमेरिकी-पहल पर अरब देशों और इसराइल के बीच जिस
समझौते की बातें इन दिनों हो रही हैं, क्या उसमें फलस्तीन के समाधान की भी कोई
व्यवस्था है? ऐसा संभव नहीं है कि फलस्तीन की अनदेखी करके
ऐसा कोई समझौता हो जाए. फिलहाल समझौते की कोशिश को धक्का लगा है, फिर भी सवाल है
कि फलस्तीन की समस्या का समाधान क्या संभव है? संभव
है, तो उस समाधान की दिशा क्या होगी?
दो तरह के समाधान संभव हैं. एक, गज़ा, इसराइल और पश्चिमी किनारे को मिलाकर एक ऐसा देश (वन स्टेट सॉल्यूशन) बने जिसमें फलस्तीनी और यहूदी दोनों मिलकर रहें और दोनों की मिली-जुली सरकार हो. सिद्धांततः यह आदर्श स्थिति है, पर इस समाधान के साथ दर्जनों किंतु-परंतु हैं. किसका शासन होगा, क्या अलग-अलग स्वायत्त इलाके होंगे, यरुसलम का क्या होगा वगैरह.