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Thursday, July 13, 2023

चंद्रयान-3 से जुड़ी है भारत की राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा


इस हफ्ते 14 जुलाई को भारत के चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण प्रस्तावित है. यह देश का तीसरा चंद्रयान मिशन है, जिसके साथ बहुत सी बातें जुड़ी हुई हैं. सबसे बड़ी बात राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा की है. अंतरिक्ष-विज्ञान में सफलता को तकनीकी श्रेष्ठता का मापदंड माना जाता है. एक ज़माने में रूस और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष में प्रतियोगिता थी. वैसा ही कुछ अब अमेरिका और चीन के बीच देखने को मिल रहा है. अब भारत भी इस प्रतियोगिता में शामिल हो गया है.  

प्रतिष्ठा की मनोकामना, प्रतियोगिता को बढ़ाती है. लंबे समय तक भारत की छवि पोंगापंथी, गरीब, पिछड़े और अराजक देश के रूप में रही या बनाई गई, पर अब उसमें तेजी से बदलाव आ रहा है. बेशक हम गरीब हैं, पर हमारे लोगों ने तकनीकी कौशल का प्रदर्शन किया है. भारतीय इंजीनियरों, डॉक्टरों और अंतरिक्ष-विज्ञानियों से लेकर अर्थशास्त्रियों तक ने दुनिया में अपनी श्रेष्ठता साबित की है. 

उपहास और तारीफ़

2014 में भारत के मिशन मंगलयान की सफलता पर अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्समें एक कार्टून छपा, जिसमें भारतीय कार्यक्रम का मज़ाक बनाया गया था. कार्टून में दिखाया गया था कि एक किसान, बैल को लेकर मंगल ग्रह पर पहुंचकर दरवाज़ा खटखटा रहा है और अंदर तीन-चार विकसित, पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक बैठे हुए हैं और लिखा हुआ है एलीट स्पेस क्लब.

इस कार्टून को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स को काफ़ी आलोचना झेलनी पड़ी और कई पाठकों ने इसे भारत जैसे विकासशील देशों के प्रति पूर्वग्रह से ग्रस्त बताया. पाठकों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अखबार ने माफ़ी माँग ली.  

उसी न्यूयॉर्क टाइम्स ने पिछले हफ्ते 6 जुलाई को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की तारीफ की है. ‘विश्व के अंतरिक्ष व्यवसाय में आश्चर्यजनक प्रयास’ शीर्षक आलेख में अखबार ने लिखा है कि जिस तरह से भारत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में छलांग लगा रहा है, उससे लगता है कि वह चीन को टक्कर देने की स्थिति में आ गया है.

चीन को टक्कर

अखबार ने लिखा, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से स्टार्ट-अप विकसित हो रहे हैं और संकेत दे रहे हैं कि वह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है तथा चीन को भी ‘बराबर की टक्कर’ देने वाली ताकत के रूप में उभर सकता है.

भारत में कम से कम 140 पंजीकृत अंतरिक्ष-प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप हैं, जिनमें एक स्थानीय अनुसंधान क्षेत्र भी शामिल है. यह इस क्षेत्र में व्यापक बदलाव ला सकता है. अमेरिका ने भारत को ‘नवोन्मेष का एक संपन्न केंद्र’ और ‘दुनिया में सबसे प्रतिस्पर्धी प्रक्षेपण स्थलों में से एक’ माना है.

Wednesday, July 12, 2023

डॉ अल ईसा लाए हैं शांति और इंसान-परस्ती का संदेश


भारतीय संस्कृति, सभ्यता और विरासत की तारीफ करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मंगलवार 11 जुलाई को दिल्ली में कहा कि भारत एक समावेशी लोकतंत्र है और सभी नागरिकों को जगह देता है. यहाँ उन संस्कृतियों और धर्मों का मिश्रण रहा है, जो सदियों से सद्भाव से रह रही हैं. उन्होंने यह भी  कहा कि भारत में कोई भी धर्म संकट में नहीं है.

डोभाल ने कहा कि देश में धार्मिक समूहों के बीच इस्लाम एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण गौरव का स्थान रखता है. उन्होंने यह टिप्पणी इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में हुए एक कार्यक्रम के दौरान की, जिसे मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव शेख डॉ. मोहम्मद बिन अब्दुलकरीम अल-ईसा ने भी संबोधित किया.

शेख डॉ. अल-इसा पूर्व में सउदी अरब के न्याय मंत्री रहे हैं और उनकी गिनती प्रगतिशील इस्लामिक विद्वानों में होती है. मंगलवार को उन्होंने पीएम नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात की. हाल में उदारवादी विचारधारा के कई इस्लामिक विद्वानों ने भारत की यात्रा की है. मई, 2023 में मिस्र की सबसे बड़ी मस्जिद के मुफ्ती इब्राहिम अब्दल करीम आलम भारत आए थे।

वैश्विक-इस्लाम की मानवीय और उदारवादी छवि बनाने की दिशा में काम कर रही मुस्लिम वर्ल्ड लीग के महासचिव डॉ मुहम्मद बिन अब्दुल करीम अल ईसा का भारत दौरा बहुत महत्वपूर्ण समय पर हो रहा है. दुनिया में मुसलमानों की दूसरी या तीसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में निवास करती है, उसके लिए और साथ ही दूसरे धर्मावलंबियों के लिए वे महत्वपूर्ण संदेश लेकर भारत आए हैं.

इस्लाम को लेकर दुनिया में बहुत सी भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करना भी मुस्लिम वर्ल्ड लीग और डॉ ईसा का एक उद्देश्य है. इस संस्था के महासचिव बनने के पहले डॉ ईसा सउदी अरब के न्याय मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं. उन्होंने कई प्रकार के सुधार-कार्यों को पूरा किया है. इनमें न्यायिक-सुधार, पारिवारिक मामले, युवा और स्त्रियों तथा मानवाधिकार से जुड़े मसले शामिल हैं.

Wednesday, July 5, 2023

रूस-चीन प्रवर्त्तित नई ‘विश्व-व्यवस्था’ के संकेत


भारत की अध्यक्षता में मंगलवार 3 जुलाई को हुआ शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ)  का वर्चुअल शिखर सम्मेलन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की उपस्थिति के कारण सफल रहा. इस सम्मेलन के दौरान रूस और चीन की नई विश्व-व्यवस्था की अवधारणा के संकेत भी मिले, जिसके समांतर भारत भी अपनी विश्व-व्यवस्था की परिकल्पना कर रहा है. इस सम्मेलन के दौरान भारत ने चीन के 'बेल्ट एंड रोड' कार्यक्रम को स्वीकार करने से इंकार भी किया है.  

इस सम्मेलन में इन तीनों ने हर प्रकार के आतंकवाद की निंदा की. भारत के पीएम मोदी ने भी इन नेताओं की मौजूदगी में चरमपंथी गतिविधियों को लेकर चिंता जताई. इस सम्मेलन में ईरान ने नए सदस्य के रूप में इस संगठन में प्रवेश किया.

दिल्ली घोषणा

बैठक के बाद नई दिल्ली घोषणा को स्वीकार किया गया. इसके अनुसार सदस्य देश आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एकीकृत सूची बनाने के लिए सामान्य सिद्धांत और दृष्टिकोण विकसित करने का प्रयास करेंगे. इन चरमपंथी संगठनों की गतिविधियां शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों में प्रतिबंधित हैं. सदस्‍य देशों ने सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के सैन्यीकरण का विरोध किया. इसके अलावा मादक पदार्थों के बढ़ते उत्पादन, तस्करी और दुरुपयोग तथा मादक पदार्थों की तस्करी से प्राप्त धन का आतंकवाद के वित्तपोषण के रूप में इस्‍तेमाल करने के खतरों के बारे में चिंता व्यक्त की गई.

इस बैठक के दौरान पीएम मोदी ने मूल रूप से चरमपंथ, खाद्य संकट और ईंधन संकट पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, आतंकवाद क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति के लिए प्रमुख ख़तरा बना हुआ है. इस चुनौती से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है. कुछ देश, क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म को अपनी नीतियों के अंग के रूप में इस्तेमाल करते हैं. वे आतंकवादियों को पनाह देते हैं. एससीओ को ऐसे देशों की निंदा करने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए. ऐसे गंभीर विषय पर दोहरे मापदंड के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए.

प्रधानमंत्री ने एससीओ की भाषा सम्बन्धी बाधाओं को हटाने के लिए भारत के एआई आधारित लैंग्वेज प्लेटफॉर्म 'भाषिणी' को सभी के साथ साझा करने की पेशकश भी की. समावेशी प्रगति के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का यह एक उदाहरण बन सकता है. किसी भी क्षेत्र की प्रगति के लिए मज़बूत कनेक्टिविटी का होना बहुत ही आवश्यक है. बेहतर कनेक्टिविटी आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाती है. ईरान की एससीओ सदस्यता के बाद हम चाबहार पोर्ट के बेहतर उपयोग के लिए काम कर सकते हैं. मध्य एशिया के चारों ओर से भूमि से घिरे देशों के लिए इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर इंडियन ओशन तक पहुँचने का, एक सुरक्षित और सुगम रास्ता बन सकता है. हमें इनकी पूरी संभावनाएं को फायदा उठाना चाहिए.

Monday, June 26, 2023

पीएम मोदी की अमेरिका-यात्रा से भारत की हाईटेक-क्रांति का रास्ता खुला


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा को कम से कम तीन सतह पर देखने समझने की जरूरत है. एक सामरिक-तकनीक सहयोग. दूसरे उन नाज़ुक राजनीतिक-नैतिक सवालों के लिहाज से, जो भारत में मोदी-सरकार के आने के बाद से पूछे जा रहे हैं. तीसरे वैश्विक-मंच पर भारत की भूमिका से जुड़े हैं. इसमें दो राय नहीं कि भारतीय शासनाध्यक्षों के अमेरिका-दौरों में इसे सफलतम मान सकते हैं.  

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद के संयुक्त अधिवेशन में कहा, भारत-अमेरिका सहयोग का यह नया सूर्योदय है, भारत बढ़ेगा, तो दुनिया बढ़ेगी. यह एक नज़रिया है, जिसके अनेक अर्थ हैं. भारत में आया बदलाव तमाम विकासशील देशों में बदलाव का वाहक भी बनेगा.

राजनीति में आमराय

अमेरिकी राजनीति में भी भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने के पक्ष में काफी हद तक आमराय देखने को मिली है. वहाँ की राजनीति में भारत और खासतौर से नरेंद्र मोदी के विरोधियों की संख्या काफी बड़ी है. उनके कटु आलोचक भी इसबार अपेक्षाकृत खामोश थे. कुछ सांसदों ने उनके भाषण का बहिष्कार किया और एक पत्र भी जारी किया, पर उसकी भाषा काफी संयमित थी.

'द वाशिंगटन पोस्ट' ने लिखा, अमेरिकी सांसदों ने सदन में पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और खड़े होकर उनका जोरदार अभिवादन किया. जब वे तो दीर्घा में कुछ लोग मोदी-मोदी के नारे लगाए.  कई सांसद उनसे हाथ मिलाने के लिए कतार में खड़े थे.

अखबार ने यह भी लिखा कि मोदी की इस चमकदार-यात्रा का शुक्रवार को इस धारणा के साथ समापन हुआ कि जब अमेरिका के सामरिक-हितों की बात होती है, तो वे मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों पर मतभेदों को न्यूनतम स्तर तक लाने के तरीके खोज लेते हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट मोदी सरकार के सबसे कटु आलोचकों में शामिल हैं, पर इस यात्रा के महत्व को उसने भी स्वीकार किया है. मोदी के दूसरे कटु आलोचक 'द न्यूयॉर्क टाइम्स' ने अपने पहले पेज पर अमेरिकी कांग्रेस में 'नमस्ते' का अभिवादन करते हुए नरेंद्र मोदी फोटो  छापी है. ऑनलाइन अखबार हफपोस्ट ने लिखा कि नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा की आलोचना करने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

Wednesday, June 21, 2023

भारत-अमेरिका सहयोग की लंबी छलाँग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 से 25 जून तक अमेरिका और मिस्र की यात्रा पर जा रहे हैं. यह यात्रा अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है, और उसके व्यापक राजनयिक निहितार्थ हैं. यह तीसरा मौका है, जब भारत के किसी नेता को अमेरिका की आधिकारिक-यात्रा यानी स्टेट-विज़िटपर बुलाया गया है.

इस यात्रा को अलग-अलग नज़रियों से देखा जा रहा है. सबसे ज्यादा विवेचन सामरिक-संबंधों को लेकर किया जा रहा है. अमेरिका कुछ ऐसी सैन्य-तकनीकें भारत को देने पर सहमत हुआ है, जो वह किसी को देता नहीं है. कोई देश अपनी उच्चस्तरीय रक्षा तकनीक किसी को देता नहीं है. अमेरिका ने भी ऐसी तकनीक किसी को दी नहीं है, पर बात केवल इतनी नहीं है. यात्रा के दौरान कारोबारी रिश्तों से जुड़ी घोषणाएं भी हो सकती हैं.

सहयोग की नई ऊँचाई

इक्कीसवीं सदी के पिछले 23 वर्षों में भारत-अमेरिका रिश्तों में क्रमबद्धता है. उसी श्रृंखला में यह यात्रा रिश्तों को एक नई ऊँचाई पर ले जाएगी. आमतौर पर माना जा रहा है कि अमेरिका को चीन के बरक्स संतुलन बनाने के लिए भारत की जरूरत है. दूसरी तरफ भारत को भी बदलती वैश्विक-परिस्थितियों में अमेरिकी तकनीक, पूँजी और राजनयिक-समर्थन की जरूरत है.

प्रधानमंत्री की यात्रा के कुछ दिन पहले अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत आए थे. अनुमान है कि उनके साथ बातचीत के बाद काफी सौदों की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है. इसी साल जनवरी में भारत के रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और अमेरिकी रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने इनीशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसेट) को लॉन्च किया था. तकनीकी सहयोग के लिहाज से यह बेहद महत्वपूर्ण पहल है.

भारत की रक्षा खरीद परिषद ने गत 15 जून को जनरल एटॉमिक्स से 30 प्रिडेटर ड्रोन खरीद के सौदे को स्वीकृति दे दी. इन 30 में से 14 नौसेना को मिलेंगे. हिंद महासागर में भारत की बढ़ती भूमिका के मद्देनज़र यह खरीद काफी महत्वपूर्ण है. नौसेना ने 2020 में दो एमक्यू-9ए ड्रोन पट्टे पर लिए थे, जिन्होंने पिछले साल तक 10 हजार घंटों की उड़ानें भर ली थीं.

मोदी की यात्रा के दौरान संभावित सामरिक-सौदों के अनुमान भारत की रक्षा-खरीद परिषद के फैसलों से लगाए जा सकते हैं. कुछ सौदों का अनुमान लगाया नहीं जा सकता, क्योंकि उनके साथ गोपनीयता की शर्तें होती हैं. अलबत्ता लड़ाकू जेट विमानों के लिए जनरल इलेक्ट्रिक इंजनों के भारत में निर्माण का समझौता उल्लेखनीय होगा.

भारत को विमानवाहक पोतों पर तैनात करने के लिए लड़ाकू विमानों की जरूरत है, जो रूसी मिग-29के की जगह लेंगे. इसके लिए फ्रांसीसी राफेल और अमेरिका के एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट के परीक्षण हो चुके हैं. देखना होगा कि दोनों में से कौन से विमान का चयन होता है.

भारत के लड़ाकू विमान कार्यक्रम में एक बाधा स्वदेशी हाई थ्रस्ट जेट इंजन कावेरी के विकास में आए अवरोधों ने पैदा की है. जीई के इंजन को तेजस मार्क-2 में लगाया जाएगा और दो इंजन वाले पाँचवीं पीढ़ी के विमान एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एम्का) में भी जीई के इंजनों का इस्तेमाल होगा.

सबसे बड़ी जरूरत रक्षा उद्योग में आत्मनिर्भरता से जुड़ी है. इस दौरान भारत अपने कावेरी इंजन का उत्तरोत्तर विकास करेगा. इसके साथ ही फ्रांस के सैफ्रान और ब्रिटेन के रॉल्स रॉयस के साथ भी जेट इंजन विकास की बातें चल रही हैं.

पश्चिमी देश अब इस बात को महसूस कर रहे हैं कि भारत की रूस पर निर्भरता इसलिए भी बढ़ी, क्योंकि हमने उसकी उपेक्षा की. ताजा खबर है कि भारत और जर्मनी के बीच छह पनडुब्बियों के निर्माण का समझौता होने जा रहा है. हाल में भारत के दौरे पर आए जर्मन रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने  डॉयचे वेले (जर्मन रेडियो) को दिए इंटरव्यू में कहा कि भारत का रूसी हथियारों पर निर्भर रहना जर्मनी के हित में नहीं है.

Wednesday, June 14, 2023

राष्ट्रीय-प्रतिष्ठा से जुड़ी है ‘कोहिनूर’ और पुरावस्तुओं की वापसी


हाल में भारतीय संसद की एक स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘कोहिनूर’ हीरे को वापस लाने की भारत की माँग जायज़ है. हालांकि हाल के वर्षों में संस्कृति मंत्रालय और विदेश मंत्रालय की कोशिशों से भारत की पुरानी कलाकृतियाँ और पुरातात्विक वस्तुएं देश में आई हैं, फिर भी ‘कोहिनूर’ हीरे को देश में वापस लाना आसान नहीं है.

‘कोहिनूर’ को लौटाने की माँग सिर्फ भारत ही नहीं करता, बल्कि पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान की भी इसपर दावेदारी है. भारत ने पहली बार ब्रिटेन से 1947 में आजादी मिलने के बाद ही इसे सौंपने की मांग की थी. दूसरी बार 1953 में मांग की गई.

2000 में भारत की तरफ से फिर माँग की गई. कुछ सांसदों ने ब्रिटिश सरकार को चिट्ठी लिखी. ब्रिटिश सरकार ने तब कहा कि ‘कोहिनूर’ के कई दावेदार हैं. 2016 में भारत के संस्कृति मंत्रालय ने कहा कि वह ‘कोहिनूर’ को भारत लाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा.

जुलाई 2010 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन भारत दौरे पर आए तो ‘कोहिनूर’ लौटाने की बात उनके सामने भी उठी. कैमरन ने तब कहा कि ऐसी मांगों पर हाँ कर दें, तो ब्रिटिश म्यूजियम खाली हो जाएंगे. फरवरी 2013 में भारत दौरे पर कैमरन ने फिर कहा कि ब्रिटेन ‘कोहिनूर’ नहीं लौटा सकता.

क्वीन कैमिला ने नहीं पहना

पिछले साल ब्रिटेन की महारानी एलिज़ाबेथ द्वितीय के निधन के बाद और हाल में उनके पुत्र किंग चार्ल्स तृतीय के राज्याभिषेक के दौरान कई बार ‘कोहिनूर’  का जिक्र हुआ. यह चर्चा इसलिए भी हुई, क्योंकि ‘कोहिनूर’ हीरा महारानी एलिज़ाबेथ के मुकुट में था, पर रानी कैमिला के मुकुट में नहीं है. उसकी जगह महारानी मैरी के मुकुट को सजा-सँवार उन्हें पहनाया गया.

अब राजपरिवार को लगता है कि ‘कोहिनूर’ पहनने से भारत के साथ राजनयिक संबंधों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार राजपरिवार अब यह मानने लगा है कि ‘कोहिनूर’ हीरा जबरन हासिल किया गया था.

Friday, June 9, 2023

संस्कृति और अपनी ज़मीन से जुड़े भारतीय मुसलमान

कुछ प्रसिद्ध मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी

नवंबर 2003 की बात है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश जूनियर ने लोकतंत्र से जुड़े एक कार्यक्रम में कहा कि भारत ने लोकतंत्र और बहुधर्मी-समाज के निर्माण की दिशा में अद्भुत काम किया है. उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमानों ने साबित किया है कि इस्लाम का लोकतंत्र के साथ समन्वय संभव है.

जॉर्ज बुश ने एक जगह इस बात का जिक्र भी किया है कि अल-कायदा के नेटवर्क में भारतीय मुसलमान नहीं हैं. हालांकि बाबरी मस्जिद और गुजरात के प्रकरण के बाद भारतीय मुसलमानों को भड़काने के प्रयास किए गए, पर उन्हें सफलता नहीं मिली.

उसके भी पहले अस्सी के दशक में अफगानिस्तान में सोवियत सेना के खिलाफ लड़ने वाले 'मुजाहिदीन' के बीच भारत के मुसलमान या तो थे ही नहीं और थे भी, तो बहुत कम संख्या में थे. आज तो स्थिति और भी बदली हुई है. भारतीय-संस्कृति और लोकतंत्र में मुसलमानों की भूमिका अपने आप में विषद विषय है.  इस छोटे से संदर्भ में भी उनकी भूमिका पर नज़र डालें, तो रोचक बातें सामने आती हैं.  

वैश्विक लड़ाई से दूर

भारत में मुसलमानों की आबादी इंडोनेशिया और पाकिस्तान की आबादियों के करीब-करीब बराबर है. पश्चिम एशिया के देशों के नागरिक जितनी बड़ी संख्या में विदेशी-युद्धों में लड़ते दिखाई पड़ते हैं, उनकी तुलना में भारतीयों की संख्या नगण्य है. उन छोटे देशों की कुल आबादी की तुलना में उनके लड़ाकों का प्रतिशत देखा जाए तो वह बहुत ज्यादा होगा.

भारतीय मुसलमान ने वैश्विक-आतंकवाद को नकारा है. इसकी वजह भारतीय समाज और संस्कृति में खोजी जा सकते हैं. हमें इस बात को हमेशा ध्यान में रखना होगा कि जिस भारत का विभाजन इस्लाम के आधार पर हुआ, उसमें आज भी तकरीबन उतने ही मुसलमान नागरिक हैं, जितने पाकिस्तान में हैं. उन्होंने भारत में ही रहना चाहा, तो उसका कोई कारण जरूर था.

उनकी देशभक्ति को लेकर किसी प्रमाण की जरूरत ही नहीं है. काउंटर-टेरर रणनीति बनाने वालों को इस फैक्टर पर गहराई से विचार करना चाहिए कि कौन से सांस्कृतिक-भावनात्मक और मानसिक कारण भारतीय मुसलमानों को अपनी ज़मीन से जोड़कर रखते हैं.

अतिवादी तत्व

यह भी नहीं कह सकते कि उनके बीच चरमपंथी नहीं हैं. उनके बीच अतिवादी तत्व भी हैं, पर सीमित संख्या में हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि जब वैश्विक-स्तर पर काफी बड़ी आबादी टकराव के रास्ते पर है, भारतीय मुसलमान उससे अपेक्षाकृत दूर हैं. हमारे जीवन में दोनों तरफ से जहरीली बातें भी हैं. उनकी प्रतिक्रिया भी होती है, पर देश की न्यायपालिका और जिम्मेदार नागरिक इस बदमज़गी को बढ़ने से रोकते हैं.  

Friday, May 19, 2023

एससीओ में उभरेगी भारतीय विदेश-नीति की दिशा


एससीओ विदेशमंत्रियों के सम्मेलन के हाशिए पर भारत-पाकिस्तान मसलों के उछलने की वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं. रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है. जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. खासतौर से इसलिए कि इसमें भारत की भी भूमिका है.

इस साल भारत में हो रहे जी-20 और एससीओ के कार्यक्रमों में वैश्विक-राजनीति के अंतर्विरोध उभर रहे हैं और उभरेंगे. ज़ाहिर है कि भारत दो ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है. एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व है. यहाँ तक कि संगठन का सारा कामकाज रूसी और चीनी भाषा में होता है. जी-20 संगठन नहीं एक ग्रुप है, पर उसकी भूमिका बहुत ज्यादा है.

रूस और चीन मिलकर नई विश्व-व्यवस्था बनाना चाहते हैं. यूक्रेन-युद्ध के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है. इसमें एससीओ और ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एससीओ के अलावा भारत, रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ब्राजील हालांकि बीआरआई में शामिल नहीं है, पर वहाँ हाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उसका झुकाव चीन की ओर बढ़ा है.

भारत की दिलचस्पी

रूस और चीन के बीच भी प्रतिस्पर्धा है. रूस के आग्रह पर ही भारत इसका सदस्य बना है. चीन के साथ भारत दूरगामी संतुलन बैठाता है. सवाल है कि भारत इस संगठन में अलग-थलग तो नहीं पड़ेगा? हमारी दिलचस्पी रूस से लगे मध्य एशिया के देशों के साथ कारोबारी और सांस्कृतिक संपर्क बनाने में है.

भारत क्वाड का सदस्य भी है, जो रूस और चीन दोनों को नापसंद है. अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इन बातों में टकराव है, जिससे भारत बचता है. फिलहाल संधिकाल है और आर्थिक-शक्ति हमारे महत्व को स्थापित करेगी.

Wednesday, May 17, 2023

केवल इमरान की देन नहीं है पाकिस्तानी कलह, पूरी व्यवस्था का हाथ है


इमरान खान की गिरफ्तारी, उसके बाद हुई हिंसा, अफरा-तफरी और फिर सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इमरान खान की रिहाई होने के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हुई है, बल्कि कलह और ज्यादा खुलकर सामने आ गई है. देश की सेना, राजनीति और न्यायपालिका तीनों आरोपों के घेरे में हैं. सोमवार को सत्तारूढ़ पीडीएम के कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट बाहर धरना दिया और संसद ने अदालत की भूमिका की जाँच के लिए एक कमेटी बनाने का प्रस्ताव पास किया है.

पाकिस्तान को इस वात्याचक्र से बाहर निकालने के लिए नए सिरे से अपनी शुरुआत करनी होगी. यह शुरुआत कैसे होगी और इसकी पहल कौन करेगा, कहना मुश्किल है. पिछले 76 साल में वहाँ जो कुछ हुआ है, वह इसके लिए जिम्मेदार है. स्वतंत्रता के बाद से वहाँ जो व्यवस्था कायम की गई है, वह सेना, सुरक्षा और युद्ध पर केंद्रित है. अब पहिया उल्टा घुमाना भी आसान नहीं है.

इरादा क्या है?

यह स्थिति न तो एक दिन में बनी है और न कोई एक व्यक्ति इसके लिए जिम्मेदार है. वहाँ के अवाम और राजनीति को विचार करना चाहिए कि पाकिस्तान की विचारधारा क्या है? वे चाहते क्या हैं?

इमरान खान लोकतंत्र और भ्रष्टाचार की बातें कर ज़रूर रहे हैं, पर उनके पास भी इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं है. वे धार्मिक नारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इनके सहारे वे एकबार को सत्ता में वापस आ भी जाएंगे, तो देश को संकट से बार किस तरह निकालेंगे, यह स्पष्ट नहीं है.

इमरान खान ने राजनीति में अपने विरोधियों को चोर-डाकू बताकर प्रवेश किया था. उन्होंने 2016 में पनामा पेपर्स ने देश के राजनेताओं की कारगुजारियों का पर्दाफाश किया. इसके सहारे इमरान ने सेना की मदद से नवाज़ शरीफ को जेल का रास्ता दिखाने में कामयाबी हासिल की, पर आज वे वैसे ही आरोपों के कठघरे में हैं. उन्हें लेकर दस्तावेजी सबूत भी हैं. सिर्फ आंदोलन और हंगामे की मदद से वे कैसे बचेंगे?

Wednesday, April 19, 2023

विश्वमंच पर ‘शोकेस’ होगा कश्मीर

 


देस-परदेश

श्रीनगर और लेह में जी-20 कार्यक्रमों के आयोजन पर पाकिस्तान की आपत्ति को खारिज करते हुए भारत ने कहा है कि इन दोनों जगह जी-20 कार्यक्रमों का आयोजन स्वाभाविक है, क्योंकि ये भारत के अभिन्न अंग हैं. दूसरी तरफ पाकिस्तान और चीन इन आयोजनों का विरोध कर रहे हैं. कश्मीर को लेकर इन दोनों देशों की वैश्विक-डिप्लोमेसी की धार का पता भी इस दौरान लगेगा. जी-20 देश खामोश हैं और ओआईसी ने भी अभी तक कुछ कहा नहीं है.   

कश्मीर और लद्दाख की इन बैठकों के पहले एक बैठक अरुणाचल की राजधानी ईटानगर में 26 मार्च को हो चुकी है. अब श्रीनगर में 22 से 24 मई तक जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक होने वाली है. उसके पहले 26 से 28 अप्रेल तक लेह में यूथ इंगेजमेंट समूह की बैठक होगी. कुल मिलाकर देश के 55 केंद्रों में 215 कार्यक्रम होंगे, पर सारी निगाहें श्रीनगर और लेह पर लगी हैं.  

अटूट अंग

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने पिछले गुरुवार अपने मंत्रालय की ब्रीफिंग के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा, जी-20 कार्यक्रम पूरे देश में हो रहे हैं. हर क्षेत्र में इनका आयोजन किया जा रहा है. जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में इनका आयोजन बहुत स्वाभाविक है, क्योंकि वे भारत के अभिन्न अंग हैं. अरुणाचल की बैठक को लेकर चीन की आपत्ति पर उन्होंने कहा कि अरुणाचल भारत का अटूट अंग था, है और रहेगा.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार 11 अप्रेल को इन बैठकों के आयोजन पर तीव्र आक्रोश व्यक्त किया था. उन्होंने भारत के इस कदम को गैर-जिम्मेदार बताया और कहा था कि इस तरह से भारत, संरा प्रस्तावों की अनदेखी करते हुए जम्मू-कश्मीर पर अपने अवैध कब्जे को वैध बनाने का प्रयास कर रहा है.

चीन को जवाब

गृहमंत्री अमित शाह सोमवार 10 अप्रैल को दो दिन के दौरे पर अरुणाचल पहुंचे और वहाँ एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, भारत सुई की नोक पर भी अतिक्रमण स्वीकार नहीं करेगा. गृहमंत्री के दौरे को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताते हुए चीन ने धमकी दी थी कि यह दौरा शांति के लिए खतरा पैदा कर सकता है. बीजिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक मीडिया ब्रीफ में दावा किया कि अरुणाचल चीन का हिस्सा है, और वहां भारत के किसी अधिकारी और नेता का दौरा हमारी संप्रभुता का उल्लंघन है.

Wednesday, April 12, 2023

पाकिस्तानी सत्ता-प्रतिष्ठान में आपसी टकराव से बढ़ता असमंजस


देस-परदेश

पाकिस्तान में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सरकार के बीच तलवारें खिंच गई हैं. मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में तीन जजों की बेंच ने पंजाब में चुनाव कराने का आदेश दिया है, जिसे मानने से सरकार ने इनकार कर दिया है. चुनाव दो सूबों में होने हैं, पर सुप्रीम कोर्ट ने केवल पंजाब में 14 मई को चुनाव कराने का निर्देश दिया है. खैबर पख्तूनख्वा के बारे में कोई निर्देश नहीं दिया है.

देश में असमंजस का माहौल है. सोमवार को संसद के दोनों सदनों के विशेष सेशन में सरकार ने चुनाव खर्च से जुड़ा विधेयक पेश कर दिया है. अब संसद के फैसले पर काफी बातें निर्भर करेंगी. संभव है कि संसद पूरे देश में चुनाव एकसाथ कराने का फैसला करे. 

सोमवार को नेशनल असेंबली विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा कि पाकिस्तान के इतिहास में निडर जज भी हुए हैं. ऐसे भी जज थे जो ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को मौत की सजा देने के फैसले से असहमत थे. उसके विपरीत ऐसे न्यायाधीश भी, जो तब भी साजिश में शामिल थे और आज भी न्यायपालिका में मौजूद हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतिक्रिया में गुरुवार 6 अप्रेल को राष्ट्रीय असेंबली ने प्रस्ताव पास करके प्रधानमंत्री से कहा है कि इस फैसले को मानने की जरूरत नहीं है. उसके अगले ही दिन नेशनल सिक्योरिटी कमेटी (एनएससी) ने देश की पश्चिमी सीमा पर आतंकवाद के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करने का फैसला करके इस बात का संकेत दे दिया है कि चुनाव नहीं, अब लड़ाई पश्चिमी सरहद पर लड़ाई होगी. सरकार ने 10 अप्रेल को संविधान दिवस मनाया और अब से हर साल यह दिवस मनाने की घोषणा भी की है. 10 अप्रेल 1973 को देश का वर्तमान संविधान लागू हुआ था.   

अवमानना का खतरा

सवाल यह भी है कि हुकूमत यदि सुप्रीमकोर्ट के फ़ैसले को तस्लीम नहीं करेगी, तो क्या उसे तौहीन-ए-अदालत की बिना पर वैसे ही हटाया जा सकता है, जैसे यूसुफ़ रज़ा गिलानी को सादिक़ और अमीन ना होने की वजह से तौहीन-ए-अदालत पर जून 2012 में हटा दिया गया था? पर जजों के बीच आपसी मतभेद हैं. पूरी न्यायपालिका एकसाथ नहीं है.

उधर रविवार 9 अप्रेल को छुट्टी के दिन कैबिनेट की बैठक बुलाई गई, जिसमें वित्त मंत्रालय से कहा गया है कि चुनाव के खर्चों का ब्योरा तैयार करे, ताकि उसे संसद के सामने रखा जा सके. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि सरकार 10 अप्रेल तक 21 अरब रुपया चुनाव आयोग को दे, ताकि चुनाव कराए जा सकें. सरकार कानूनी स्थितियों का भी गंभीरता से अध्ययन कर रही है. संसद से धनराशि की स्वीकृति नहीं मिलने पर जो वैधानिक स्थिति बनेगी, वह हालात को और जटिल बनाएगी.

Wednesday, March 29, 2023

पश्चिम एशिया में ‘डी-अमेरिकनाइज़ेशन?’

KAL's Cartoon इकोनॉमिस्ट से साभार

देस-परदेश

बुधवार 22 मार्च को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस की अपनी यात्रा का समापन किया और अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का मुकाबला करने के लिए एक नई रणनीति की शुरुआत की. उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ ‘समान, खुली और समावेशी सुरक्षा-प्रणाली’ बनाने का संकल्प करते हुए अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ नए मोर्चे की शुरुआत की है.

गत 10 मार्च को सऊदी अरब और ईरान के बीच समझौता कराते हुए चीन ने दो संदेश दिए हैं. एक, चीन महत्वपूर्ण और जिम्मेदार शक्ति है और दूसरे यह कि वह अमेरिका के दबाव में आने वाला नहीं है. चीन ने पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप करके अपने आपको शांति-स्थापित करने वाले देश के रूप में स्थापित किया है. साथ ही अमेरिका की छवि झगड़े कराने वाले देश के रूप में बनी है. इसे पश्चिम एशिया में डी-अमेरिकनाइज़ेशनकी शुरुआत कहा जा रहा है.

15 अगस्त, 2021 को जब तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा किया था, तब भी ऐसा ही कहा गया था. जब तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पश्चिमी फ्री-मार्केट की अवधारणा से जुड़ी है और संरा और विश्व बैंक जैसी संस्थाएं कारगर हैं, तब तक यह मान लेना आसान नहीं है कि अमेरिका का वर्चस्व खत्म हो जाएगा. अलबत्ता पश्चिम एशिया के घटनाक्रम ने सोचने-विचारने के लिए कुछ नए तथ्य उपलब्ध कराए हैं.

ईरान का प्रतिरोध

अमेरिका के मुख्य प्रतिस्पर्धी के रूप में चीन का नाम लिया जा रहा है, पर हमें ईरान के प्रतिरोध पर भी ध्यान देना चाहिए. ईरान ने चार बातें साफ की हैं. एक, अरब देशों के साथ रिश्तों को सुधारने में उसे दिक्कत नहीं हैं. वह चीन पर भरोसा करता है. उसे अमेरिका पर भरोसा कत्तई नहीं है. चौथी, यूक्रेन युद्ध में वह रूस का समर्थक है. इसके प्रमाण हैं ईरान में बने सैकड़ों कामिकाज़े ड्रोन, जिनके अवशेष यूक्रेन के नागरिक इलाकों में मिले हैं.

इन सब बातों के अलावा वह अपने नाभिकीय कार्यक्रम को अमेरिका-समर्थित विश्व-व्यवस्था के हवाले करने को तैयार नहीं है. अब स्थिति यह है कि ईरान में हिजाब को लेकर चल रहे आंदोलन के खिलाफ सरकारी कार्रवाई छठे महीने में प्रवेश कर गई है. दूसरी तरफ मार्च के तीसरे हफ्ते में ईरान, चीन और रूस की नौसेनाओं ने ओमान की खाड़ी में संयुक्त युद्धाभ्यास किया है, जिससे आप अपने निष्कर्ष खुद निकाल सकते हैं.

Friday, March 24, 2023

पानी पर कब्जे की लड़ाई या सहयोग?


जनवरी के महीने में जब भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जलसंधि पर संशोधन का सुझाव देते हुए एक नोटिस दिया था, तभी स्पष्ट हो गया था कि यह एक नए राजनीतिक टकराव का प्रस्थान-बिंदु है. सिंधु जलसंधि दुनिया के सबसे उदार जल-समझौतों में से एक है. भारत ने सिंधु नदी से संबद्ध छह नदियों के पानी का पाकिस्तान को उदारता के साथ इस्तेमाल करने का मौका दिया है. अब जब भारत ने इस संधि के तहत अपने हिस्से के पानी के इस्तेमाल का फैसला किया, तो पाकिस्तान ने आपत्ति दर्ज करा दी.

माना जाता है कि कभी तीसरा विश्वयुद्ध हुआ, तो पानी को लेकर होगा. जीवन की उत्पत्ति जल में हुई है. पानी के बिना जीवन संभव नहीं, इसीलिए कहते हैं ‘जल ही जीवन है.’ जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है. इसके पहले 14 मार्च को दुनिया में एक्शन फॉर रिवर्स दिवस मनाया गया है. नदियाँ पेयजल उपलब्ध कराती हैं, खेती में सहायक हैं और ऊर्जा भी प्रदान करती हैं.

इन दिवसों का उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है. साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है. दुनिया यदि चाहती है कि 2030 तक हर किसी तक स्वच्छ पेयजल और साफ़-सफ़ाई की पहुँच सुनिश्चित हो, जिसके लिए एसडीजी-6 लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो हमें चार गुना तेज़ी से काम करना होगा.

चीन का नियंत्रण

हाल के वर्षों में चीन का एक बड़ी आर्थिक-सामरिक शक्ति के रूप में उदय हुआ है. जल संसाधनों की दृष्टि से भी वह महत्वपूर्ण शक्ति है. दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में बहने वाली सात महत्वपूर्ण नदियों पर चीन का प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण है. ये नदियाँ हैं सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सलवीन, यांगत्जी और मीकांग. ये नदियां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, लाओस और वियतनाम से होकर गुजरती हैं.

पिछले साल, पाकिस्तान और नाइजीरिया में आई बाढ़, या अमेजन और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से पता लगता है कि पानी का संकट हमारे जीवन को पूरी तरह उलट देगा. हमारे स्वास्थ्य, हमारी सुरक्षा, हमारे भोजन और हमारे पर्यावरण को ख़तरे में डाल देगा.

Thursday, March 16, 2023

सऊदी-ईरान समझौता और पश्चिम एशिया में चीन की बढ़ती भूमिका

 


देस-परदेश

इस्लामिक देशों में सऊदी अरब और ईरान के बीच पुरानी प्रतिद्वंदिता है. उसके पीछे ऐतिहासिक कारण भी हैं. पिछले कुछ वर्षों से यह इतनी कटु हो गई थी कि दोनों देशों ने आपसी राजनयिक-संबंध भी तोड़ लिए थे. अब ये रिश्ते चीन की मध्यस्थता में फिर से कायम होने जा रहे हैं. इस्लामिक देशों की एकता और सहयोग की दृष्टि से तथा आने वाले समय की वैश्विक-राजनीति की दृष्टि से यह समझौता महत्वपूर्ण साबित होने वाला है.

बेशक दोनों देशों के दूतावास अगले दो महीनों के भीतर काम करने लगेंगे, पर यह सब जितना आसान समझा जा रहा है, उतना आसान भी नहीं है. इसीलिए इसे लागू करने के लिए दो महीने का समय रखा गया है, ताकि सभी जटिलताओं को सुलझा लिया जाए.  

चीन की भूमिका

दोनों देशों के बीच चार दिन की बातचीत के बाद इस बात की घोषणा होने पर पर्यवेक्षकों को हैरत उतनी नहीं हुई, जितनी इसमें चीन की भूमिका को लेकर विस्मय पैदा हुआ है. क्या चीन अब वैश्विक-डिप्लोमेसी में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने जा रहा है? चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने इसे चीन के ग्लोबल सिक्योरिटी इनीशिएटिव (जीएसआई) की देन बताया है.

पिछले सात दशकों से पश्चिम एशिया में अमेरिका ही सबसे बड़ी भूमिका निभाता रहा है. यह पहला मौका है, जब इस भूमिका में चीन सामने आया है. ऐसी बैठक कराने में अमेरिका सबसे समर्थ है, पर ईरान के साथ उसके रिश्ते अच्छे नहीं हैं. फिर भी पश्चिमी पर्यवेक्षक मानते हैं कि संबंध-सुधार की इस प्रक्रिया के पीछे भी अमेरिकी सहमति है, क्योंकि वह पश्चिम एशिया में इसरायल-फलस्तीन झगड़े का निपटारा कराने के लिए ज़मीन तैयार कर रहा है.

 

अमेरिकी रज़ामंदी

अमेरिका ने समझौते का स्वागत किया है. ह्वाइट हाउस की प्रवक्ता केरिन जीन-पियरे ने कहा कि यमन में युद्ध रोकने की किसी भी कोशिश का अमेरिका समर्थन करता है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति बाइडन ने जुलाई में इस इलाक़े में तनाव कम करने की कोशिश और राजनयिक रिश्तों को मज़बूत करने के कदमों को अमेरिकी विदेश नीति की बुनियाद बताया था. खाड़ी क्षेत्र में तनाव कम करना अमेरिका की प्राथमिकता है हम इस समझौते का समर्थन करते हैं.

दूसरे नज़रिए से देखें, तो यह परिघटना अमेरिका को परेशान करने वाली होनी चाहिए, क्योंकि इससे ईरान को अलग-थलग करने की उसकी कोशिश को धक्का लगेगा. इसके पीछे कौन सी ताकत है और किसकी क्या भूमिका है, इसे स्पष्ट होने में भी कुछ समय लगेगा.

कड़वाहट की वज़ह

2016 में प्रतिष्ठित शिया धर्म गुरु निम्र अल-निम्र सहित 47 लोगों को आतंकवाद के आरोपों में सऊदी अरब में फाँसी दिए जाने के बाद ईरान और सऊदी रिश्ते खराब हो गए. इसके कारण जब भीड़ ने तेहरान स्थित सऊदी दूतावास पर हमला बोला, तो राजनयिक रिश्ते भी टूट गए. इसके बाद रिश्ते बिगड़ते ही गए और 2019 ईरान में बने ड्रोनों ने जब सऊदी तोल-शोधक कारखानों पर हमले किए तो और बिगड़ गए.

इन दोनों देशों की प्रतिद्वंदिता का असर लेबनान, सीरिया, इराक़ और यमन समेत पश्चिम एशिया के कई देशों और समाजों पर पड़ रहा है. इस इलाके में चल रहे सशस्त्र-आंदोलनों में इन देशों के समर्थन से सक्रिय गुटों की भूमिका है. अभी तक अमेरिका और इसरायल की इन रिश्तों को बनाने और बिगाड़ने में भूमिका थी, पर पिछले कुछ समय से चीन और रूस की गतिविधियाँ भी इस इलाके में बढ़ी हैं. इस लिहाज से ताज़ा घटनाक्रम महत्वपूर्ण है.

प्रयासों की पृष्ठभूमि

गत 10 मार्च को ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सेक्रेटरी अली शमखानी और सऊदी सुरक्षा सलाहकार मुसाद बिन मुहम्मद अल-ऐबान की बैठक अप्रत्याशित घटना नहीं थी, क्योंकि पिछले कुछ समय से ऐसी खबरें हवा में हैं कि दोनों के बीच अनौपचारिक स्तर पर बातचीत होने लगी है. हैरत इस बैठक के स्थान को लेकर है, जो पश्चिम एशिया के किसी देश में न होकर चीन में था, जिसकी अब तक पश्चिम की राजनीति में बड़ी भूमिका नहीं थी.

Saturday, March 11, 2023

चीन पर काबू पाने की कोशिशें

 देस-परदेश

अमेरिका-चीन और भारत-2, इस आलेख की पहली किस्त पढ़ें यहाँ


नब्बे के दशक के वैश्वीकरण का सबसे बड़ा फायदा चीन को मिला. पश्चिमी देशों के पूँजी निवेश के कारण उसकी अर्थव्यवस्था का तेज विस्तार हुआ. पश्चिम को शुरुआती वर्षों में चीन का उदय अपने पक्ष में जाता नज़र आता था, पर ऐसा हुआ नहीं. सामरिक और आर्थिक, दोनों मोर्चों पर चीन आज पश्चिम के सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी के रूप में उभर कर आया है. असली टकराव अब अमेरिका और चीन के बीच है.

हाल में जी-20 की बैठक में भाग लेने आए रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि हम भारत और चीन की दोस्ती चाहते हैं. रूस, भारत और चीन के विदेशमंत्री इस साल त्रिपक्षीय समूह की बैठक के लिए मिलेंगे, पर भारत सरकार के सूत्रों का कहना है कि जब तक उत्तरी सीमा की स्थिति में सुधार नहीं होगा, भारत ऐसी किसी बैठक में भाग नहीं लेगा. आरआईसी (रूस, भारत, चीन) के विदेशमंत्री पिछली बार नवंबर 2021 में वर्चुअल माध्यम से मिले थे. फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद से नहीं मिले हैं. लावरोव जो भी कहें भारत और चीन की प्रतिस्पर्धा आकाश में लिखी दिखाई पड़ती है. रूस और चीन के हित भी टकराते हैं, पर आज वे दिखाई पड़ नहीं रहे हैं.

अमेरिकी रुख

भारत और अमेरिका आज जितने करीबी नज़र आ रहे हैं, उतने अतीत में नहीं थे. 1971 में बांग्लादेश-युद्ध के दौरान अमेरिका की दिलचस्पी चीन से दोस्ती गाँठने की थी, ताकि वह रूस को संतुलित करने वाली ताकत बने. पर चीन अब भस्मासुर बन चुका है. बांग्लादेश की मुक्ति सामान्य लड़ाई नहीं थी. उस मौके पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के नाम जो खुला पत्र लिखा था, उसे फिर से पढ़ने की जरूरत है.

उस दौरान अमेरिकी पत्रकारों ने अपने नेतृत्व की इस बात के लिए आलोचना भी की थी कि भारत को रूस के साथ जाने को मजबूर होना पड़ा. विदेशमंत्री एस जयशंकर ने गत 10 अक्तूबर को ऑस्ट्रेलिया में एक प्रेस-वार्ता के दौरान कहा कि हमारे पास रूसी सैनिक साजो-सामान होने की वजह है, पश्चिमी देशों की नीति. पश्चिमी देशों ने हमें रूस की ओर धकेला.

1998 में भारत के एटमी परीक्षण के फौरन बाद पाकिस्तान ने भी एटमी परीक्षण किया. दुनिया जानती थी कि पाकिस्तानी एटम बम वस्तुतः चीनी मदद से तैयार हुआ है. उस दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को एक पत्र लिखा, ‘हमारी सीमा पर एटमी ताकत से लैस एक देश बैठा है, जो 1962 में हमला कर भी चुका है… इस देश ने हमारे एक और पड़ोसी को एटमी ताकत बनने में मदद की है.’ कहा जाता है कि अमेरिकी प्रशासन ने इस पत्र को सोच-समझकर लीक किया. यह अमेरिकी नीति में बदलाव का प्रस्थान-बिंदु था.

चीन पर नकेल

अमेरिका अब उस प्रक्रिया को उलटना चाहता है, जिसके कारण चीन का आर्थिक महाविस्तार हुआ है. सवाल है कि क्या उसे सफलता मिलेगी? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड एक कदम है. उधर अमेरिका के दबाव में दिसंबर 2020 में हुआ यूरोपियन यूनियन और चीन का कांप्रिहैंसिव एग्रीमेंट ऑन इनवेस्टमेंट (सीएआई) खटाई में पड़ गया. इस निवेश समझौते (सीएआई) पर सहमति सात साल तक चली बातचीत के बाद जाकर बनी थी. इसमें व्यवस्था थी कि ईयू और चीन की कंपनियां एक दूसरे के यहां आसानी से निवेश कर पाएंगी.

Thursday, March 9, 2023

चीन को काबू करने की कोशिशें और भारत

 देस-परदेश

अमेरिका-चीन और भारत-1

ताज़ा खबर है कि चीन ने इस साल 5 फीसदी संवृद्धि का लक्ष्य तय किया है, जो पिछले 35 वर्षों का सबसे नीचा स्तर है. चीनी संसद में प्रधानमंत्री ली ख छ्यांग ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन यह घोषणा की है. सन 1978 में जबसे चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला है उसकी संवृद्धि औसतन नौ फीसदी तक रही है, पर अब उसमें ठहराव आ रहा है.

इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है तीन साल तक चली कोविड-19 महामारी. उधर तरफ अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी खेमे की कोशिश है कि चीन के आर्थिक और सैनिक विस्तार पर किसी तरह से रोक लगाई जाए. जिस तरह पहले अमेरिका ने सोवियत संघ को काबू में करने की कोशिशें की थीं, अब उसी तर्ज पर वह चीन को काबू करने का प्रयास कर रहा है.

क्या अमेरिका अपने इस प्रयास में सफल होगा? बड़ी संख्या में पर्यवेक्षक मानते हैं कि इसमें देर हो चुकी है. चीन अब अमेरिका के दबाव में आने वाला नहीं है. अब शीतयुद्ध की तरह दुनिया की अर्थव्यवस्था दो भागों में विभाजित नहीं है. वह आपस में जुड़ी हुई है. वह एक-ध्रुवीय भी नहीं है, पर अब दो-ध्रुवीय भी नहीं रहेगी, जैसी कि चीनी मनोकामना है.

दुनिया अब बहुध्रुवीय होने जा रही है. इसमें एक बड़ी भूमिका भारत की होगी. यह भूमिका केवल दुनिया को बहुध्रुवीय बनाने वाली ही नहीं है, बल्कि विश्व-व्यवस्था में संतुलन स्थापित करने की है. पर उसके पहले हमें चीन की जवाबी ताकत बनना होगा.

जी-20 की बैठकें

पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी देशों की चीन-विरोधी रणनीति ने धीरे-धीरे अपनी जगह बनाई है. इसमें सबसे बड़ी भूमिका पिछले साल यूक्रेन पर हुए रूसी सैनिक हस्तक्षेप ने निभाई है. यूक्रेन में रूसी हठ के पीछे चीन का हाथ नज़र आने लगा है. पिछले हफ्ते भारत में हुई जी-20 की दो मंत्रिस्तरीय बैठकों में वैश्विक-राजनीति का यह टकराव खुलकर सामने आया. बेंगलुरु में वित्तमंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों तथा दिल्ली में विदेशमंत्रियों की बैठक, विश्व-व्यवस्था पर कोई आमराय बनाए बगैर ही संपन्न हो गईं.

हालांकि भारतीय-नजरिए में औपचारिक बदलाव नहीं है, पर इस घटनाक्रम का दूरगामी असर होगा, जिसके संकेत मिलने लगे हैं. नवंबर में जी-20 का शिखर सम्मेलन जब होगा, तब ज्यादा बड़ी चुनौतियाँ सामने आएंगी. जी-20 की बैठकों के फौरन बाद शुक्रवार को दिल्ली में हुई क्वॉड विदेशमंत्रियों की बैठक से इस मसले के अंतर्विरोध और ज्यादा खुलकर सामने आए हैं.