पश्चिम बंगाल में आठवें चरण का मतदान पूरा हो जाने के बाद देर रात तक चैनलों पर एग्जिट पोल का ‘अटकल-बाजार’ लगा रहा, जिसमें चार राज्यों को लेकर करीब-करीब एक जैसी राय थी, पर बंगाल को लेकर दो विपरीत राय थीं। शेष चार राज्यों को लेकर आमतौर पर सहमति है, केवल सीटों की संख्या को लेकर अलग-अलग राय हैं।
वस्तुतः इन पाँच
राज्यों में से बंगाल के परिणाम देश की राजनीति को सबसे ज्यादा प्रभावित करेंगे। यहाँ
का बदलाव देश की राजनीति में कुछ दूसरे बड़े बदलावों का रास्ता खोलेगा। कांग्रेस
के भीतर नेतृत्व को लेकर चल रही बहस और तीखी होगी। साथ ही यूपीए की संरचना में भी
बड़े बदलाव हो सकते हैं।
बंगाल में पिछले छह
दशकों से अराजक राजनीति ने गहराई तक जड़ें जमा ली हैं। आर्थिक गतिविधियाँ नहीं
होने के कारण राजनीति ही व्यवसाय बन गई है। सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ता ही
सरकारी धन के इस्तेमाल का माध्यम बनते हैं। इसकी परम्परा सीपीएम के शासन से पड़ी
है। कोई भी काम कराने में स्थानीय राजनीतिक कार्यकर्ताओं की भूमिका होती है।
गाँवों में इतनी हिंसा के पीछे भी यही राजनीति है। राजनीति ने यहाँ के औद्योगीकरण
में भी अड़ंगे लगाए। इस संस्कृति को बदलने की जरूरत है।
बंगाल का नारा है ‘पोरिबोर्तोन।’ सन 2011 में ममता बनर्जी इसी नारे को लगाते हुए सत्ता में आईं थीं और अब यही नारा उनकी कहानी का उपसंहार लिखने की तैयारी कर रहा है। बंगाल के एग्जिट पोल पर नजर डालें, तो इस बात को सभी ने माना है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस का पराभव हो रहा है और भारतीय जनता पार्टी का उभार। यानी कांग्रेस-वाममोर्चा गठबंधन के धूल-धूसरित होने में किसी को संदेह नहीं है।