Tuesday, February 6, 2024

आत्मावलोकन भी जरूरी है


भारत और ‘भारतीय राष्ट्रवाद’ इन दिनों बहस का विषय है। उसकी पृष्ठभूमि को समझने के लिए ऐतिहासिक परिस्थितियों को समझने की जरूरत  भी होगी। भारतेंदु का नवंबर 1884 में बलिया के ददरी मेले में आर्य देशोपकारिणी सभा में दिया गया  एक भाषण है, जिसे पढ़ना चाहिए। बाद में यह नवोदिता हरिश्चंद्र चंद्रिका जि. 11 नं. 3,3 दिसम्बर 1884 में प्रकाशित भी हुआ। पढ़ने के साथ उस संदर्भ पर भी नजर डालें, जिसके कारण मैं इसे पढ़ने का सुझाव दे रहा हूँ। 

प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने सोमवार को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का जवाब देते हुए कहा कि नेहरू जी और इंदिरा गांधी का भारत के लोगों के लिए नज़रिया अच्छा नहीं था।  1959 में जवाहरलाल नेहरू के स्वतंत्रता दिवस भाषण को याद करते हुए उन्होंने कहा. 'नेहरू ने लालकिले से कहा था कि भारतीयों को कड़ी मेहनत करने की आदत नहीं है। इंदिरा गांधी के एक उद्धरण को पढ़ते हुए उन्होंने कहा, 'दुर्भाग्य से, हमारी आदत है कि जब कोई शुभ काम पूरा होने वाला होता है तह हम लापरवाह हो जाते हैं, जब कोई कठिनाई आती है, तो हम लापरवाह हो जाते हैं. कभी-कभी ऐसा लगता है कि पूरा देश विफल हो गया है। ऐसा लगता है जैसे हमने पराजय की भावना को अपना लिया है।' 

नरेंद्र मोदी ने जिन दोनों वक्तव्यों का उल्लेख किया है, उन्हें गौर से पढ़ें, तो आप पाएंगे कि उनके पीछे आत्मावलोकन की मनोकामना है, अपमानित करने की इच्छा नहीं है। लोगों को प्रेरित करने के लिए आत्ममंथन की जरूरत भी होती है। नरेंद्र मोदी का यह बयान राजनीतिक है और इसके पीछे उद्देश्य कांग्रेस की आलोचना  करना है। उसकी राजनीति को छोड़ दें, और यह देखें कि हमारे नेताओं ने देश के लोगों को अपने कार्य-व्यवहार पर ध्यान देने की सलाह कब-कब दी है। बहरहाल मुझे भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक भाषण याद आता है, जो 1884 में बलिया के ददरी मेले में उन्होंने दिया था। इस भाषण में उन्होंने अपने देशवासियों की कुछ खामियों की ओर इशारा किया है। उनका उद्देश्य देशवासियों को लताड़ना नहीं था, बल्कि यह बताने का था कि देश की उन्नति के लिए उन्हें क्या करने की जरूरत है। उस भाषण को पढ़ें : 

भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?

आज बड़े ही आनंद का दिन है कि इस छोटे से नगर बलिया में हम इतने मनुष्यों को बड़े उत्साह से एक स्थान पर देखते हैं। इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाय वही बहुत कुछ है। बनारस ऐसे-ऐसे बड़े नगरों में जब कुछ नहीं होता तो यह हम क्यों न कहैंगे कि बलिया में जो कुछ हमने देखा वह बहुत ही प्रशंसा के योग्य है। इस उत्साह का मूल कारण जो हमने खोजा तो प्रगट हो गया कि इस देश के भाग्य से आजकल यहाँ सारा समाज ही ऐसा एकत्र है। जहाँ राबर्ट्स साहब बहादुर ऐसे कलेक्टर हों वहाँ क्यों न ऐसा समाज हो। जिस देश और काल में ईश्वर ने अकबर को उत्पन्न किया था उसी में अबुल्‌फजल, बीरबल, टोडरमल को भी उत्पन्न किया। यहाँ राबर्ट्स साहब अकबर हैं तो मुंशी चतुर्भुज सहाय, मुंशी बिहारीलाल साहब आदि अबुल्‌फजल और टोडरमल हैं। हमारे हिंदुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं। यद्यपि फर्स्ट क्लास, सेकेंड क्लास आदि गाड़ी बहुत अच्छी-अच्छी और बड़े-बड़े महसूल की इस ट्रेन में लगी हैं पर बिना इंजिन ये सब नहीं चल सकतीं, वैसे ही हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलानेवाला हो तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए "का चुप साधि रहा बलवाना", फिर देखिए हनुमानजी को अपना बल कैसा याद आ जाता है। सो बल कौन दिलावै। या हिंदुस्तानी राजे महाराजे नवाब रईस या हाकिम। राजे-महाराजों को अपनी पूजा भोजन झूठी गप से छुट्टी नहीं। हाकिमों को कुछ तो सर्कारी काम घेरे रहता है, कुछ बॉल, घुड़दौड़, थिएटर, अखबार में समय गया। कुछ बचा भी तो उनको क्या गरज है कि हम गरीब गंदे काले आदमियों से मिलकर अपना अनमोल समय खोवैं। बस वही मसल हुई––'तुमें गैरों से कब फुरसत हम अपने गम से कब खाली। चलो बस हो चुका मिलना न हम खाली न तुम खाली।' तीन मेंढक एक के ऊपर एक बैठे थे। ऊपरवाले ने कहा 'जौक शौक', बीचवाला बोला 'गुम सुम', सब के नीचे वाला पुकारा 'गए हम'। सो हिन्दुस्तान की साधारण प्रजा की दशा यही है, गए हम।

Saturday, February 3, 2024

बजट में आर्थिक और राजनीतिक आत्मविश्वास की झलक


वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने जो अंतरिम बजट पेश किया है, उसमें बड़ी रूपांतरकारी और लोकलुभावन घोषणाएं भले ही नहीं है, पर भविष्य की आर्थिक दिशा और सरकार के राजनीतिक आत्मविश्वास का संकेत जरूर मिलता है.

बजट में नए कार्यक्रमों की घोषणाओं के मुकाबले इस बात को रेखांकित करने पर ज्यादा जोर दिया गया है कि पिछले दस वर्ष में अर्थव्यवस्था की दशा किस तरह से बदली है. देश में एफडीआई प्रवाह वर्ष 2014-2023 के दौरान 596 अरब अमेरिकी डॉलर का हुआ जो 2005-2014 के दौरान हुए एफडीआई प्रवाह का दोगुना है.

उन्होंने घोषणा की कि सरकार सदन के पटल पर अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में श्वेत पत्र पेश करेगी, ताकि यह पता चले कि वर्ष 2014 तक हम कहां थे और अब कहां हैं. श्वेत पत्र का मकसद उन वर्षों के कुप्रबंधन से सबक सीखना है.

Thursday, February 1, 2024

गज़ा में लड़ाई भले न रुके, पर इसराइल पर दबाव बढ़ेगा


गज़ा में हमास के खिलाफ चल रही इसराइली सैनिक कार्रवाई को लेकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) का पहला आदेश पहली नज़र में खासा सनसनीख़ेज़ लगता है, पर उसे ध्यान से पढ़ें, तो लगता नहीं कि लड़ाई रोकने में उससे मदद मिलेगी.

बहुत से पर्यवेक्षकों को इस आदेश का मतलब एक राजनीतिक वक्तव्य से ज्यादा नहीं लगता. वस्तुतः अदालत ने इसराइल से लड़ाई रोकने को कहा भी नहीं है, पर जो भी कहा है, उसपर अमल करने के लिए इसराइल के फौजी अभियान की प्रकृति में बदलाव करने होंगे. यकीनन अब इसराइल पर लड़ाई में एहतियात बरतने का दबाव बढ़ेगा.  

अदालत ने कहा है कि दक्षिण अफ्रीका ने इसराइल पर जिन कार्यों को करने और जिनकी अनदेखी करने के आरोप लगाया है, उनमें से कुछ बातें  नरसंहार के दायरे में रखी जा सकती हैं. इसराइल का दावा है कि वह आत्मरक्षा में लड़ रहा है और युद्ध के सभी नियमों का पालन कर रहा है.

यह भी सच है कि आईसीजे के सामने युद्ध-अपराध का मुकदमा नहीं है. उसका रास्ता अलग है, पर इस अदालत ने इसराइल को सैनिक कार्रवाई में सावधानी बरतने के साथ एक महीने के भीतर अपने कदमों की जानकारी देने को भी कहा है.

Wednesday, January 31, 2024

यह 'ब्रेन चिप' क्या आपके विचार भी छीनेगा?


अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क ने घोषणा की है कि उनके स्टार्टअप न्यूरालिंक ने पहली बार एक इंसान के दिमाग में वायरलेस चिप को इम्प्लांट किया है। इस चिप की मदद से वह व्यक्ति केवल मन में सोचकर ही किसी मोबाइल फोन, लैपटॉप या किसी अन्य उपकरण को संचालित कर सकेगा।

एलन मस्क ने इस क्षमता को टेलीपैथी नाम दिया है। यह उपकरण पहली नज़र में जितना क्रांतिकारी लग रहा है, उतना ही इसका खतरनाक रूप भी संभव है। एक खतरा मेंटल प्राइवेसी के छिन जाने का भी है।

इस खबर के पहले पिछले साल मई में अमेरिका की सर्वोच्च चिकित्सा संस्था फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने न्यूरालिंक को मानवीय अध्ययन की और उसके चार महीने बाद इस चिप के परीक्षण की अनुमति दी। उसके पहले रायटर्स ने यह खबर भी दी थी कि इस कंपनी की इससे पहले की एप्लीकेशंस को अनुमति नहीं मिल रही है। अनुमति न मिलने के पीछे सुरक्षा जैसे अनेक कारण थे।

Monday, January 29, 2024

गणतांत्रिक-व्यवस्था और ‘लोकतंत्र की जननी’ भारत

साँची के स्तूप में अंकित मल्ल महाजनपद की राजधानी कुशीनगर। इतिहासकार मानते हैं कि गौतम बुद्ध के समय में मल्ल क्षेत्र में दुनिया की पहली गणतांत्रिक व्यवस्था थी

इस साल गणतंत्र दिवस परेड में देश की सांस्कृतिक विरासत और विविधता को एक नए रूप में पेश किया गया. परेड की मुख्य थीम थी, विकसित भारतऔर भारत-लोकतंत्र की मातृका. यह परेड महिला केंद्रित भी थी. 

पहली बार इस परेड के आगे सैनिक बैंड के बजाय 100 महिला कलाकार भारतीय वाद्ययंत्रों के संगीत की खुशबू बिखेरती हुई चल रही थीं और शेष परेड उनके पीछे थी. 

इसके पहले सैनिक टुकड़ियों का नेतृत्व करती महिला अधिकारी आपने देखी हैं, पर इसबार तीनों सेनाओं की 144 महिला कर्मियों की मिली जुली टुकड़ी भी इस परेड में थी.

लोकतंत्र की जननी

यह परेड भारत को 'लोकतंत्र की जननी' के रूप में प्रदर्शित करने का प्रतीक बनेगी. लोकतंत्र अपेक्षाकृत आधुनिक विचार है, और उसका काफी श्रेय पश्चिमी समाज के दिया जाता है. हालांकि उसके विकास में उन समाजों की भी भूमिका है, जो अतीत में उन मूल्यों से जुड़े थे, जो आज लोकतंत्र की बुनियाद हैं.

हम गर्व से कहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में है. हर पाँच साल में होने वाला आम चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक गतिविधि है. चुनावों की निरंतरता और सत्ता के निर्बाध-हस्तांतरण ने हमारी सफलता की कहानी भी लिखी है.