Sunday, January 22, 2017

असमंजस में कांग्रेस

जिस तरह पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए मध्यावधि जनादेश का काम करेंगे उसी तरह वे कांग्रेस को भी अपनी ताकत को तोलने का मौका देंगे। सन 2014 के बाद से उसकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट आई है। यह पहला मौका है जब पार्टी को सकारात्मकता दिखाई पड़ती है। उसे पंजाब में अपनी वापसी, उत्तराखंड में फिर से अपनी सरकार और उत्तर प्रदेश में सुधार की संभावना नजर आ रही है। गोवा में भी उसे अपनी स्थिति को सुधारने का मौका नजर आता है। पर उसके चारों सपने टूट भी सकते हैं। जिसका मतलब होगा कि 2019 के सपनों की छुट्टी। रसातल में जाना सुनिश्चित।

Saturday, January 21, 2017

अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहेगा संघ

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने आरक्षण के बारे में जो कहा है, वह संघ के परंपरागत विचार के विपरीत नहीं है. संघ लंबे अरसे से कहता रहा है कि आरक्षण अनंतकाल तक नहीं चलेगा. संविधान-निर्माताओं की जो मंशा थी हम उसे ही दोहरा रहे हैं.
इस वक्त सवाल केवल यह है कि मनमोहन वैद्य ने इन बातों को कहने के पहले उत्तर प्रदेश के चुनावों के बारे में सोचा था या नहीं. अमूमन संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी बगैर सोचे-समझे बातें नहीं करते और जो बात कहते हैं वह नपे-तुले शब्दों में होती है. ऐसे बयान देकर वे अपनी उपस्थिति को रेखांकित करने का मौका खोते नहीं हैं.

Sunday, January 15, 2017

चुनावी पारदर्शिता के सवाल

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव राजनीतिक दलों के लिए सत्ता की लड़ाई है।  वोटर के लिए उसका मतलब क्या है? चुनाव-प्रक्रिया में सुधार जीवन में बदलाव लाने का महत्वपूर्ण रास्ता है। बावजूद इसके चुनाव सुधारों का मसला चुनावों का विषय नहीं बनता। तमाम नकारात्मक बातों के बीच यह सच है कि पिछले दो दशक में हमारी चुनाव-प्रणाली में काफी सुधार हुए हैं। एक जमाने में बूथ कैप्चरिंग और रिगिंग का बोलबाला था। अब प्रत्याशियों की जवाबदेही बढ़ी है। क्यों न इन चुनावों में हम पारदर्शिता के सवाल उठाएं

Saturday, January 14, 2017

‘गरीब-मुखी’ राजनीति: मोदी कथा का दूसरा अध्याय

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव एक तरह से मध्यावधि  जनादेश का काम करेंगे। सरकार के लिए ही नहीं विपक्ष के लिए भी। चूंकि सोशल मीडिया की भूमिका बढ़ती जा रही है, इसलिए इन चुनावों में आभासी माहौल की भूमिका कहीं ज्यादा होगी। कहना मुश्किल है कि छोटी से छोटी घटना का किस वक्त क्या असर हो जाए। दूसरे राजनीति उत्तर प्रदेश की हो या मणिपुर की सोशल मीडिया पर वह वैश्विक राजनीति जैसी महत्वपूर्ण बनकर उभरेगी। इसलिए छोटी सी भी जीत या हार भारी-भरकम नजर आने लगेगी।
बहरहाल इस बार स्थानीय सवालों पर राष्ट्रीय प्रश्न हावी हैं। ये राष्ट्रीय सवाल दो तरह के हैं। एक, राजनीतिक गठबंधन के स्तर पर और दूसरा मुद्दों को लेकर। सबसे बड़ा सवाल है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ क्या कहता है? लोकप्रियता बढ़ी है या घटी? दूसरा सवाल है कि कांग्रेस का क्या होने वाला है? उसकी गिरावट रुकेगी या बढ़ेगी? नई ताकत के रूप में आम आदमी पार्टी की भी परीक्षा है। क्या वह गोवा और पंजाब में नई ताकत बनकर उभरेगी? और जनता परिवार का संगीत मद्धम रहेगा या तीव्र?

Monday, January 9, 2017

साइंस की उपेक्षा मत कीजिए

पिछले हफ्ते तिरुपति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 104वीं भारतीय साइंस कांग्रेस का उद्घाटन करते हुए कहा कि भारत 2030 तकनीकी विकास के मामले में दुनिया के टॉप तीन देशों में शामिल होगा. मन के बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है, पर व्यावहारिक नजरिए से आज हमें एशिया के टॉप तीन देशों में भी शामिल होने का हक नहीं है. एशिया में जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान, इसरायल और सिंगापुर के विज्ञान का स्तर हमसे बेहतर नहीं तो, कमतर भी नहीं है.