Wednesday, May 14, 2014

चुनाव परिणामों को लेकर संघ और कांग्रेस के आंतरिक सर्वे

लोकसभा चुनाव परिणामों को लेकर राष्ट्रीय संवयं सेवक संघ ने अपने स्वयंसेवकों के मार्फत जो सर्वेक्षण कराया है, वह इस प्रकार है। इसमें केसरिया रंग के कॉलम में प्राप्त सीटों का अनुमान है और हरे रंग के कॉलम में अंदेशा है कि खराब से खराब स्थिति में कितनी सीटें मिलेंगी।



अमर उजाला ने कांग्रेस पार्टी के सर्वेक्षण का हवाला देकर बताया है कि पार्टी को 166 सीटें मिलने की आशा है। अखबार का कहना है किः-

हाल में कुल छह एग्जिट पोल किए गए, जिनमें से ज्यादातर में दावा किया गया कि कांग्रेस इस बार सौ सीटों तक नहीं पहुंच रही है। पर कांग्रेस का सर्वे इन सभी से अलग है।

राहुल गांधी की अगुवाई में चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस के इस पोल में दावा किया गया है कि उसे कुल 543 सीटों मेंसे 166 सीटें मिल सकती हैं। हालांकि, यह सर्वे अंतिम चरण की सीटों पर मतदान से पहले किया गया था।

इसमें कहा गया था कि अंतिम चरण में 39 सीटों पर वोटिंग होनी बाकी है, ऐसे में नरेंद्र मोदी को कुछ फायदा जरूर हो सकता है, क्योंकि उससे ठीक पहले चुनाव चिन्ह दिखाने को लेकर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।

इस आंतरिक सर्वे में यह भी कहा गया कि नरेंद्र मोदी ने आचार संहिता का जो उल्लंघन किया और चुनाव आयोग पर बोला गया सीधा हमला यह संकेत है कि भाजपा जानती है कि वो लड़ाई हारने की वजह से घबराहट महसूस कर रही है।

इस सर्वे में कहा गया है कि दलितों ने मुस्लिमों के साथ 67 सीटों पर मोदी के खिलाफ वोटिंग की है, जिसके कारण यूपीए 166 सीटों तक पहुंच सकती है। आकलन में यह भी कहा गया है कि मोदी का पीएम पद तक पहुंचना मुश्किल है, क्योंकि वो अति आत्मविश्वासी हैं।

इसमें कहा गया है कि अगर भाजपा मोदी के बजाय क‌िसी और को पीएम के तौर पेश करने पर तैयार हो जाती है, तो इसके बावजूद एनडीए सरकार बना सकता है। वरना वो विपक्ष में बैठेगा और यूपीए 3 तीसरे मोर्चे के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब रहेगा।

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कुछ महत्वपूर्ण राज्यों के एक्जिट पोल अनुमान























13 मई 2004 से 13 मई 2014...

हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून

एक्ज़िट पोल के परिणामों पर कांग्रेस को औपचारिक रूप से भरोसा हो या न हो, पर व्यावहारिक रूप से दिल्ली के गलियारों में सत्ता परिवर्तन की हवाएं चलने लगी हैं। कल 13 मई को श्रीमती सोनिया गांधी 10 जनपथ के पिछले दरवाजे से निकलकर राष्ट्रपति भवन गईं। यह एक औपचारिक मुलाकात थी। आज मनमोहन सिंह का विदाई भोज है। उधर भाजपा के खेमे में भी सरगर्मी है। दिल्ली में सरकार की शक्ल क्या होगी?  पर इससे ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी वगैरह का क्या होगा? खबर थी कि आडवाणी जी एनडीए संसदीय दल के अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं। पर आज के टेलीग्राफ में राधिका रमाशेषन की खबर है कि मोदी ने साफ कर दिया है कि यदि मैं प्रधानमंत्री बना तो सत्ता के दो केंद्र नहीं होंगे। सही बात है। यह चुनाव नरेंद्र मोदी जीतकर आ रहे हैं। कहना मुश्किल है कि आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा की स्थिति क्या होती, पर आज यह विचार का विषय ही नहीं है। 

भारत के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर तरस आता है। नीचे से ऊपर तक सबका दिमाग शून्य है। दिल्ली में चल रही गतिविधियों पर उनकी नज़र ही नहीं है। सुबह से शाम तक एक्ज़िट पोल का तसकिरा लेकर बैठे हैं।  सारी खबरें अखबारों से मिल रहीं हैं। इन संकीर्तनोंं के विशेषज्ञों की समझ पर हँसी आती है। विनोद मेहता, अजय बोस, दिलीप पडगाँवकर, आरती जैरथ, सबा नकवी, सुनील अलग और पवन वर्मा वगैरह-वगैरह किन बातों पर बहस कर रहे हैं? 

दिल्ली के कुछ अखबारों ने मनीष तिवारी के हवाले से खबर दी है कि सूचना मंत्रालय की ज़रूरत ही नहीं है। आज क हिंदू में खबर है कि एनडीए सरकार मंत्रालयों में भारी फेर-बदल करेगी। आज के अमर उजाला के अनुसार नौकरशाही के महत्वपूर्ण पदों के लिए खींचतान शूरू हो गई है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पोलों के पोल के पीछे पड़ा है। 

टेलीग्राफ की ध्यान देने वाली दो खबरें


हिंदू का ग्रैफिक

अमर उजाला


Tuesday, May 13, 2014

भाजपा या कांग्रेस के खोल से बाहर आइए


हिंदू में कशव का कार्टून
मंजुल का कार्टून
एक्जिट पोल अंतिम सत्य नहीं है। यों भी भारत में एक्ज़िट पोलों की विश्वसनीयता संदिग्ध है। पर क्या हमें कांग्रेस की हार नज़र नहीं आती? बेहतर है चार रोज़ और इंतज़ार करें। परिणाम जो भी हों उनसे सहमति और असहमति की गुंजाइश हमेशा रहेगी। पर एक सामान्य नागरिक को कांग्रेसी या भाजपाई खोल में रहने के बजाय नागरिक के रूप में खुद को देखना चाहिए और राज-व्यवस्था के संचालन में भागीदार बनना चाहए।सामान्य वोटर का फर्ज है वोट देना। अब जो भी सरकार बनेगी वह पूरे देश की और आपकी होगी, भले ही आपने उसके खिलाफ वोट दिया हो।

Monday, May 12, 2014

मनमोहन सिंह यानी दुविधा के दस साल

यूपीए-2 सरकार का यह आखिरी हफ्ता है. भविष्य का पता नहीं, पर इतना तय है कि मनमोहन सिंह अब प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे. पिछले हफ्ते सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की आखिरी बैठक हुई तो मीडिया के लिए बड़ी खबर नहीं थी. दिल्ली में यूपीए की सरकार बनेगी या नहीं कहना मुश्किल है, पर फिलहाल राष्ट्रीय सलाहकार परिषद भी नहीं होगी. होगी तो शायद किसी नए नाम और किसी नए एजेंडा के साथ होगी. प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह और उनके समानांतर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का होना कांग्रेसी दुविधा को रेखांकित करता है. बेशक मनमोहन  सिंह को एक भले, शिष्ट, सौम्य और ईमानदार व्यक्ति के रूप में याद रखा जाएगा. वे ऐसे हैं. पर सच यह है कि यूपीए सरकार के सारे अलोकप्रिय कार्यों का ठीकरा उनके सिर फूटा है. श्रेय लायक कोई काम हुआ भी तो उसके लिए वे याद नहीं किए जाएंगे.

Sunday, May 11, 2014

इस हार के बाद कांग्रेस का क्या होगा?

कांग्रेस का चुनाव प्रचार इस बार इस बात पर केंद्रित था कि हमें जिताओ, वर्ना मोदी आ रहा है। पिछले 12 साल में कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी को 'भेड़िया आया' के अंदाज़ में खड़ा किया है। कांग्रेस ने अपनी सकारात्मक राजनीति को सामने लाने के बजाय इस राजनीति का सहारा लिया। जहाँ उसे जाति का लाभ मिला वहाँ जाति और जहाँ धर्म का लाभ मिला वहाँ धर्म का सहारा भी लिया। पश्चिमी देशों के मीडिया में कांग्रेस की इस अवधारणा को महत्व मिला। बावजूद इन बातों के क्या कांग्रेस चुनाव में हार रही है? इस बात को अभी कहना उचित नहीं होगा। सम्भव है भारतीय मीडिया के सारे कयास और अनुमान गलत साबित हों। अलबत्ता यह लेख इस बात को मानकर लिखा गया है कि कांग्रेस अपने अस्तित्व की सबसे बड़ी पराजय से रूबरू होने जा रही है। ऐसा होता है तब कांग्रेस क्या करेगी? बेशक ऐसा नहीं हुआ और कांग्रेस विजयी होकर उभरी तो हमें अपनी समझ का पुनर्परीक्षण करना होगा। पर यदि वह हारी तो उन बातों पर विचार करना होगा जो कांग्रेस के पराभव का कारण बनीं और यह भी कि अब कांग्रेस क्या करेगी। 

पिछले साल जून में भाजपा के चुनाव अभियान का जिम्मा सँभालने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से 'कांग्रेस मुक्त भारत निर्माण' के लिए जुट जाने का आह्वान किया था। उस समय तक वे अपनी पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नहीं बने थे। नरेन्द्र मोदी की बातों में आवेश होता है। उनकी सारी बातों की गहराई पर जाने की ज़रूरत नहीं होती, पर उन्होंने इस बात को कई बार कहा, इसलिए यह समझने की ज़रूरत है कि वे कहना क्या चाहते थे। यह भी कि इस बार के चुनाव परिणाम क्या कहने वाले है।

चुनाव का आखिरी दौर कल पूरा हो जाएगा और कल शाम ही प्रसारित होने वाले एक्ज़िट पोलों से परिणामों की झलक मिलेगी। फिर भी परिणामों के लिए हमें 16 मई का इंतज़ार करना होगा। अभी तक के जो आसार हैं और मीडिया की विश्वसनीय, अविश्वसनीय जैसी भी रिपोर्टें हैं उनसे अनुमान है कि कांग्रेस हार रही है। हार भी मामूली नहीं होगी। तीसरे मोर्चे वगैरह की अटकलें हैं। इसीलिए इस चुनाव के बाद कांग्रेस का क्या होने वाला है, इस पर नज़र डालने की ज़रूरत है। संकट केवल लोकसभा का नहीं है। सीमांध्र और तेलंगाना विधानसभाओं के चुनाव-परिणाम भी 16 मई को आएंगे। इस साल महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव भी होंगे। यानी कांग्रेस के हाथ से प्रादेशिक सत्ता भी निकलने वाली है।