Wednesday, July 31, 2013

राग तेलंगाना, ताल हैदराबादी

जोखिम भरी है तेलंगाना की राह
लोकसभा चुनाव समय पर हुए तब तक भी शायद तेलंगाना बन नहीं पाएगा. पहले हुए तो बात ही कुछ और है. इसलिए कांग्रेस ने इसका फैसला चुनाव के लिए किया है भी तो वह भावनात्मक है, व्यावहारिक नहीं. यानी जिन राजनीतिक शक्तियों को परास्त करने की मनोकामनाएं हैं, उनपर अभी सीधा असर नहीं होगा.
कांग्रेस कार्यसमिति का फैसला हो जाने भर से तेलंगाना नहीं बन जाएगा। कांग्रेस ने तो सन 2004 में ही सीधे-सीधे मान लिया था कि तेलंगाना बनेगा। उसके बाद पाँच साल तक नहीं बना और के चन्द्रशेखर राव ने आमरण अनशन शुरू किया तो पी चिदम्बरम ने उनके अनशन को खत्म कराने के लिए साफ-साफ कहा कि तेलंगाना बनेगा। अभी इस बाबत कैबिनेट को फैसला करना होगा, फिर यह प्रस्ताव आंध्र प्रदेश की विधानसभा के पास जाएगा। वहाँ से यह संसद में आएगा। दोनों जगह से इस प्रस्ताव को पास कराने के रास्ते में कई तरह की चुनौतियाँ हैं। चूंकि भाजपा ने तेलंगाना बनाने का समर्थन किया है इसलिए संसद से यह प्रस्ताव पास होने में अड़चन नहीं है, पर तेलंगाना के भौगोलिक स्वरूप को लेकर दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। 

Tuesday, July 30, 2013

तेलंगाना में कांग्रेस का गणित

 मंगलवार, 30 जुलाई, 2013 को 07:52 IST तक के समाचार
सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, प्रियंका गाँधी
हालांकि कांग्रेस पार्टी बड़ी सावधानी से आंध्र प्रदेश में अपनी रणनीति तैयार कर रही है पर ऐसा लगता है कि तेलंगाना मामले में उसने अपने ही ख़िलाफ़ गोल कर लिया है. फ़िलहाल उसके सामने चुनौती है कि तेलंगाना बने और इसका नुकसान कम से कम हो.
दो बातों ने कांग्रेस के लिए हालात बिगाड़े हैं. एक तो इस फैसले को लगातार टालने की कोशिश. चुनाव जब सिर पर आ गए हैं तब पार्टी फैसला कर रही है. दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री वाइ एस आर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी के साथ पार्टी ने रिश्ते बुरी तरह खराब कर लिए हैं. यह बात तटीय आंध्र और रायलसीमा क्षेत्र में कांग्रेस के ख़िलाफ़ जाएगी.
सन 2004 के चुनाव में एनडीए की पराजय के दो बड़े केन्द्र थे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश. इस बार भाजपा कांग्रेस के इस महत्वपूर्ण गढ़ को भेदना चाहती है. भाजपा की कोशिश है कि तेलुगुदेसम या टीडीपी और टीआरएस के साथ मिलकर कांग्रेस को हराया जाए. वह ख़ामोशी के साथ कांग्रेस को इस दलदल में फँसते हुए देख रही है. उसने तेलंगाना का समर्थन किया है और टीडीपी भी इसके साथ नज़र आती है.
तेलंगाना के कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अब पार्टी जो कुछ भी हासिल कर सकती है तेलंगाना में ही संभव है. तटीय आंध्र प्रदेश और रायलसीमा में जगनमोहन रेड्डी ने अपने पैर काफी मजबूत कर लिए हैं. वहाँ कुछ मिलना नहीं है. तेलंगाना क्षेत्र में विधानसभा की 294 में से 119 और लोकसभा की कुल 42 में से 17 सीटें हैं. इतना साफ़ लगता है कि नया राज्य बनेगा तो टीआरएस को फायदा होगा. और नहीं भी बना तो उसे लड़ाई जारी रखने का लाभ मिलेगा.

Sunday, July 21, 2013

हिन्दी के मीडिया महारथी


शनिवार की रात कनॉट प्लेस के होटल पार्क में समाचार फॉर मीडिया के मीडिया महारथी समारोह में जाने का मौका मिला। एक्सचेंज फॉर मीडिया मूलतः कारोबारी संस्था है और वह मीडिया के बिजनेस पक्ष से जुड़े मसलों पर सामग्री प्रकाशित करती है। हिन्दी के पत्रकारों के बारे में उन्हें सोचने की जरूरत इसलिए हुई होगी, क्योंकि हिन्दी अखबारों का अभी कारोबारी विस्तार हो रहा है। बात को रखने के लिए आदर्शों के रेशमी रूमाल की जरूरत भी होती है, इसलिए इस संस्था के प्रमुख ने वह सब कहा, जो ऐसे मौके पर कहा जाता है। हिन्दी पत्रकारिता को 'समृद्ध' करने में जिन समकालीन पत्रकारों की भूमिका है, इसे लेकर एक राय बनाना आसान नहीं है इसलिए उस पर चर्चा करना व्यर्थ है। पर भूमिका और समृद्ध करना जैसे शब्दों के माने क्या हैं, यही स्पष्ट करने में काफी समय लगेगा। अलबत्ता यह कार्यक्रम दो-तीन कारणों से मनोरंजक लगा। इसमें उस पाखंड का पूरा नजारा था, जिसने मीडिया जगत को लपेट रखा है।

जहर सिस्टम में है, सिर्फ मिड डे मील में नहीं

इस मसले को राजनीतिक दलों ने सबसे पहले अपना मसला बनाया। फिर मीडिया ने इसमें सनसनी का रस घोला। गरीब बच्चों की असहाय तस्वीरें देखने में आईं। फिर देखते ही देखते देशभर के मिड डे मील में साँप, छिपकली और चूहे निकलने लगे। ऐसा लगता है कि मिड डे मील में जहर घोलने की साजिश है। दो दिन की रस्म अदायगी के बाद गाड़ी अगले मामले की ओर बढ़ गई। असल सवाल जस का तस पड़ा है। सरकार गरीब बच्चों को मिड डे मील दे रही है। देश के लगभग 65 फीसदी लोगों को अब भोजन की गारंटी दे रही है। पर बुनियादी सवाल छूट गया है। आखिर बीमारी क्या है? और इलाज क्या है? बीमारी है गरीबी, अज्ञान और कुशासन।

Thursday, July 18, 2013

संज्ञा-शून्य समाज में बार गर्ल्स

पिछले कुछ साल से लोक सभा और विधान सभा चुनावों में एक नया चलन देखने को मिल रहा है. चुनाव सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए नेताओं के भाषण के पहले लड़कियों का नाच कराया जाता है. इन लड़कियों को अब बार गर्ल्स कहा जाने लगा है. पुराने नामों के मुकाबले हालांकि यह शालीन नाम है, पर यह नाच हमारी संस्कृति के पाखंड की परतों में छिपा है. कौन मजबूर करता है इन्हें नाचने के लिए? और फिर कौन उनपर फब्तियाँ कसता है? कौन उन्हें धिक्कारता है और कौन उनपर पाबंदियाँ लगाता है? किसने रोका है उन्हें सम्मानित नागरिक बनने से?