Tuesday, November 20, 2012

सोशल मीडिया और शाहीन की गिरफ्तारी



जस्टिस मार्कंडेय काटजू के फेसबुक वॉल से
Letter to Maharashtra CM on arrest of the young girl for her facebook status.

To,
The Chief Minister
Maharashtra
Dear Chief Minister,
I am forwarding an email I have received stating that a woman in Maharashtra has been arrested for protesting on Facebook against the shut down in Mumbai on the occasion of the death of Mr. Bal Thackeray. It is alleged that she has been arrested for
allegedly hurting religious sentiments.

To my mind it is absurd to say that protesting against a bandh hurts religious sentiments. Under Article 19(1)(a) of our Constitution freedom of speech is a guaranteed fundamental right . We are living in a democracy, not a fascist dictatorship. In fact this arrest itself appears to be a criminal act since under sections 341 and 342 it is a crime to wrongfully arrest or wrongfully confine someone who has committed no crime.

Hence if the facts reported are correct, I request you to immediately order the suspension, arrest, chargesheeting and criminal prosecution of the police personnel (however high they may be) who ordered as well as implemented the arrest of that woman, failing which I will deem it that you as Chief Minister are unable to run the state in a democratic manner as envisaged by the Constitution to which you have taken oath, and then the legal consequences will follow

Regards
Justice Katju
(Chairman, Press Council of India, and former Judge, Supreme Court of India)


Second Letter to Maharashtra CM

Dear Chief Minister,

You have not replied to my email but only forwarded it to someone called Amitabh Rajan, whom I do not know, and who has not had the courtesy to respond to me. Please realize that the matter is much too serious to be taken in this cavalier manner, because the principle of liberty is at stake.The entire nation wants to know what action you ha
ve taken. I would therefore request you to immediately let me know what you are doing in this matter.

Are we living in a democracy or not ? How can a person be arrested for objecting to the shutdown in Mumbai on Thackeray's death ? Article 21 of the Constitution, to uphold which you have taken an oath, states that no one can be deprived of his life or liberty except in accordance with law. Does Article 21 not exist in Maharashtra ? Does freedom of speech guaranteed by Article 19(1)(a) also not exist in your state ?

Please realize that silence is not an option for you in the matter. The entire nation is furious at this apparently illegal arrest. Therefore I once again request you to tell me, and through me the entire nation, why this arrest of a woman was made in Mumbai just for putting up an apparently innocuous material on the Facebook, and what action you have taken against the delinquent policemen and others involved in this high handedness and blatant misuse of state machinery
Regards
Justice Katju


फेसबुक में आलोक दीक्षित की वॉल से 
भारत में अभिव्यक्ति की आजादी कितनी सुरक्षित है इसका एक नमूना देखिये. बाला साहब ठाकरे के निधन पर एक फेसबुक यूजर Shaheen Dhada ने फेसबुक स्टेटस लिखा और उसकी दोस्त Renu Srinivasan ने उसे शेयर कर दिया. शिवसैनिक भड़क उठे और लड़की को जबरन पुलिस स्टेशन ले आए. साथ ही शाहीन के चाचा के अस्पताल पर धावा बोल दिया और हास्पिटल को बुरी तरह से बर्बाद कर दिया. शाहीन और रेनू को सारी रात पुलिस स्टेशन में बैठना पड़ा. 
सुबह कोर्ट में पेशी हुई और दोनो को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. बाद में दबाव पड़ने पर 15,000 रूपये की जमानत पर दोनों को छो़ड़ दिया गया.

लड़की और उनके घर वाले बुरी तरह से घबराए हुए हैं. शाहीन तो इस कदर डरी हुई है कि उसने कभी किसी सोशल नेटवर्किग प्लेटफार्म पर नहीं जाने की कसम खा ली है. शाहीन के अंकल के हास्पिटल को 10 लाख से भी ज्यादा का नुकसान हुआ है.

अब आप नीचे शाहीन के लिखे स्टेटस को पढ़िये और बताइये कि उसकी गलती क्या है. आखिर हमारी फ्रीडम आफ स्पीच आज कितनी सुरक्षित है?

"With all respect, every day, thousands of people die, but still the world moves on. Just due to one politician died a natural death, everyone just goes bonkers. They should know, we are resilient by force, not by choice. When was the last time, did anyone showed some respect or even a two-minute silence for Shaheed Bhagat Singh, Azad, Sukhdev or any of the people because of whom we are free-living Indians? Respect is earned, given, and definitely not forced. Today, Mumbai shuts down due to fear, not due to respect."


फर्स्ट पोस्ट में रपट का अंश

The most bizarre thing about the arrest of Shaheen Dhada and Renu Srinivasan on Monday over  a Facebook post that questioned the wisdom of a bandh to mark Shiv Sena leader Bal Thackeray‘s death is that no laws were actually violated by the post. In tone and in content, the post is remarkably restrained, particularly when compared to the rather more incendiary messages that  are commonplace on social media platforms. Nor was it even halfways defamatory in the way that many rants on Twitter and Facebook have unfortunately come to be.
पूरी रपट यहाँ

Tweets

Tiny Klout Flag63Malini Parthasarathy ‏@MaliniP
I'm heartened by civil society's vigorous defence of freedom of speech, be it cartoonist Trivedi or girls posting on FB. Way to go, India!


Tiny Klout Flag82barkha dutt ‏@BDUTT
Two young girls in Mumbai arrested for online posts against Thakeray. Will the social media champions of free speech speak up for them?


Tiny Klout Flag73Kiran Bedi ‏@thekiranbedi
How many police old/new personnel being made aware of IT Act+power/variety of social media? Is police in step? Worth a sample check!

Monday, November 19, 2012

दिल्ली धमाका! तैयारी विंटर सेल की!


यह हफ्ता काफी नाज़ुक साबित होने वाला है। कांग्रेस पार्टी ने देर से, लेकिन अपेक्षाकृत व्यवस्थित तरीके से महीने की शुरूआत की है, पर 22 तारीख से शुरू हो रहे संसद के सत्र में साफ हो जाएगा कि अगले लोकसभा चुनाव 2014 में होंगे या 2013 में। मनमोहन सिंह ने डिनर पर मुलायम सिंह से और लंच पर मायावती से मुलाकात कर ली है। किसी को भी समझ में आता है कि बात लोकसभा के फ्लोर मैनेजमेंट को लेकर हुई होगी। मतदान की नौबत आई तो क्या करेंगे? संगठन के स्तर पर भी बात हुई होगी। पर प्रधानमंत्री की मुलाकात का मतलब समझ में आता है। उन्होंने सरकारी नीतियों को स्पष्ट किया होगा या गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश की होगी। सपा और बसपा पर दारोमदार है। सहयोगी दलों के अलावा बीजेपी के साथ भी कांग्रेस का बैकरूम संवाद चल रहा है। आर्थिक उदारीकरण के सवाल पर दोनों पार्टियों में वैचारिक सहमति है।

Sunday, November 18, 2012

बाल ठाकरे के बारे में कुछ बातें


नीचे कुछ पैराग्राफ अभय कुमार दुबे की किताब बाल ठाकरे से लिए हैं। यह किताब 1999 में प्रकाशित हुई थी। सात किताबों की सीरीज़ का यह हिस्सा थी। सीरीज़ का नाम था आज के नेता/आलोचनात्मक अध्ययनमाला। यह वह दौर था, जब भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय नेताओं का उठान शुरू हुआ था। इसकी प्रस्तावना में कहा गया था, 'ये लोग आज के नेता तो हां लेकिन आज़ादी के आंदोलन से निकले नेताओं की तरह सभी भारतीयों के नेता नहीं हैं। वे कुछ तबकों, जाति समूहों या किसी एक प्रवृत्ति के प्रतिनिधि नज़र आते हैं।...इनमें से अधिकांश नेताओं का आगमन साठ के दशक के आसपास हुआ था और इसी किस्म के जो नेता सत्तर और अस्सी के दशक में उभरे उनके लिए अनुकूल इतिहास बनाने की शुरूआत भी साठ के ज़माने ने ही कर दी थी।...निश्चय ही ये नेता ज़मीन के जिस टुकड़े से जुड़े हुए हैं उसमें उनकी जड़ें बहुत गहरी हैं।...इनका सौन्दर्यबोध, राजनीति से इतर विषयों की जानकारी और दिलचस्पी नेहरू युग के नेताओं के मुकाबले हीन प्रतीत होती है।...यही नेता हमारी राजनीति के वर्तमान हैं और ये भविष्य का ठीक-ठीक प्रतिनिधित्व नहीं करते, तो भी भविष्य इन्हीं के बीच से निकलने वाला है।' इस सीरीज़ में जिन नेताओं को कवर किया गया था वे थे मुलायम सिंह, ज्योति बसु, लालू यादव,  कांसीराम, कल्याण सिंह, बाल ठाकरे और मेधा पाटकर। यह सीरीज़ आगे बढ़ी या नहीं, मेरे लिए कहना मुश्किल है। बहरहाल बाल ठाकरे का संदर्भ शुरू हुआ है, तो उनसे जुड़ी किताब के कुछ अंश पढ़ें--

Saturday, November 17, 2012

मुलायम क्या जल्दी चुनाव चाहते हैं?

उत्तर प्रदेश की 80 में से 55 लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशी घोषित करके क्या मुलायम सिंह ने चुनाव का बिगुल बजा दिया है? हालांकि यह बात उनकी राजनीति से असंगत नहीं है और इस साल विधानसभा चुनाव में विजय पाने के बाद उन्होंने कहा था कि जल्द ही लोकसभा चुनाव के लिए तैयार रहें। ऐसा माना जाता है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, अन्ना द्रमुक, अकाली दल जैसे क्षेत्रीय दलों को फायदा मिलेगा। पर जल्द चुनाव के  माने क्या हैं? क्या लोकसभा के इसी सत्र में यह फैसला होगा? या सरकार बजट पेश करने के बाद चुनाव की घोषणा करेगी? करेगी भी तो क्यों करेगी? क्या जल्दी चुनाव कराने से कांग्रेस का कुछ भला होने वाला है?

Friday, November 16, 2012

चीन एक वैकल्पिक मॉडल भी है

चीनी व्यवस्था को लेकर हम कितनी भी आलोचना करें, दो बातों की अनदेखी नहीं कर सकते। एक 1949 से, जब से नव-चीन का उदय हुआ है, उसकी नीतियों में निरंतरता है। यह भी सही है कि लम्बी छलांग और सांस्कृतिक क्रांति के कारण साठ के दशक में चीन ने भयानक संकटों का सामना किया। इस दौरान देश ने कुछ जबर्दस्त दुर्भिक्षों का सामना भी किया। सत्तर के दशक में पार्टी के भीतर वैचारिक मतभेद भी उभरे। देश के वैचारिक दृष्टिकोण में बुनियादी बदलाव आया। माओ के समवर्ती नेताओं में चाऊ एन लाई अपेक्षाकृत व्यावहारिक थे, पर माओ के साथ उनका स्वास्थ्य भी खराब होता गया। माओ के निधन के कुछ महीने पहले उनका निधन भी हो गया। उनके पहले ल्यू शाओ ची ने पार्टी की सैद्धांतिक दिशा में बदलाव का प्रयास किया, पर उन्हें कैपिटलिस्ट रोडर कह कर अलग-थलग कर दिया गया और अंततः उनकी 1969 में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उसके बाद 1971 में लिन बियाओ माओ के खिलाफ बगावत की कोशिश में मारे गए। 1976 में माओ जेदुंग के निधन के बाद आए हुआ ग्वो फंग और देंग श्याओ फंग पर ल्यू शाओ ची की छाप थी। कम से कम देंग देश को उसी रास्ते पर ले गए, जिस पर ल्यू शाओ ची जाना चाहते थे। चीन का यह रास्ता है आधुनिकीकरण और समृद्धि का रास्ता। कुछ लोग मानते हैं कि चीन पूँजीवादी देश हो गया है।  वे पूँजीवाद का मतलब निजी पूँजी, निजी कारखाने और बाजार व्यवस्था को ही मानते हैं। पूँजी सरकारी हो या निजी इससे क्या फर्क पड़ता है? यह बात सोवियत संघ में दिखाई पड़ी जहाँ व्यवस्था का ढक्कन खुलते ही अनेक पूँजीपति घराने सामने आ गए। इनमें से ज्यादातर या तो पुरानी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं या कम्युनिस्ट शासन से अनुग्रहीत लोग। चीनी निरंतरता का दूसरा पहलू यह है कि 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बावजूद चीन की शासन-व्यवस्था ने खुद को कम्युनिस्ट कहना बंद नहीं किया। वहाँ का नेतृत्व लगातार शांतिपूर्ण तरीके से बदलता जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि वहाँ पार्टी का बड़ा तबका प्रभावशाली है, केवल कुछ व्यक्तियों की व्यवस्था नहीं है।