पाकिस्तान में नई गठबंधन सरकार बन गई है, जिसके प्रधानमंत्री पद पर पीएमएल (नून) के शहबाज़ शरीफ चुन लिए गए हैं और पूरी संभावना है कि 9 मार्च को होने वाले राष्ट्रपति पद के चुनाव में पीपीपी के आसिफ अली ज़रदारी चुन लिए जाएंगे. क्या इस बदलाव से भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में भी बदलाव आएगा?
बाहरी सतह पर ऐसा कुछ
नहीं हुआ है, जिससे कहा जा सके कि अब भारत-पाकिस्तान रिश्ते सुधरेंगे. दूसरी बार
प्रधानमंत्री बनने के बाद शहबाज़ शरीफ ने जो पहला बयान दिया है, उसमें भी ऐसी कोई
बात नहीं कही है. अलबत्ता पाकिस्तान की ओर से चीजों को सामान्य बनाने के कुछ संकेत
मिले हैं.
इस सरकार को सेना का
समर्थन भी हासिल है, इसलिए माना जा रहा है कि भारत के साथ रिश्तों में सरकारी विसंगतियाँ कम होंगी. फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिए कि दोनों देशों
के रिश्ते इसलिए सुधर जाएंगे, क्योंकि वहाँ नवाज़ शरीफ फिर से ताकतवर हो गए हैं. रिश्ते
तभी सुधरेंगे, जब शांति-स्थापना की समझदारी पक्के तौर पर जन्म ले लेगी. या फिर
मजबूरियाँ ऐसे मोड़ पर आ जाएंगी, जहाँ से निकलने का रास्ता ही नहीं बचेगा.
संबंध-सुधार
की धीमी गति
पाकिस्तान में भारत से दोस्ती की बात करना राजनीतिक-दृष्टि से आत्मघाती माना जाता है. नवाज़ शरीफ एकबार इसके शिकार हो चुके हैं, इसलिए ज्यादा से ज्यादा उम्मीद यही की जा सकती है कि नई सरकार इस मामले में बड़े जोखिम उठाने के बजाय धीरे-धीरे रिश्ते बेहतर बनाने का प्रयास करेगी. बहुत कुछ दोनों देशों के मीडिया-कवरेज पर भी निर्भर करेगा.