आजादी के सपने-05
साबित होगी भारतीय लोकतंत्र और उससे जुड़ी
संस्थाओं और जनमत की ताकत. हमारे लोकतंत्र के सामने नागरिकों के हितों के अलावा
न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना, बहुजातीय-बहुधर्मी-बहुभाषी व्यवस्था को संरक्षण
देने के साथ राष्ट्रीय-एकता और अखंडता की रक्षा करने की चुनौती भी है. इस चुनौती
को पूरा करने के लिए संविधान हमारा मार्गदर्शक है.
भारतीय संविधान
हमारे पास दुनिया का सबसे विषद संविधान है.
दुनिया में सांविधानिक परम्पराएं तकरीबन साढ़े तीन सौ साल पुरानी हैं. लिखित
संविधान तो और भी बाद के हैं. 1787 में अमेरिकी संविधान से इसकी शुरूआत हुई.
ऑस्ट्रियो हंगेरियन संघ ने 1867 में ऑस्ट्रिया में संविधान लागू किया. ब्रिटिश
संविधान तो लिखा ही नहीं गया, परंपराओं से बनता चला गया.
लोकतंत्र का दबाव था कि उन्नीसवीं सदी में अनेक
सम्राटों एवं राजाओं ने अपने देशों में संविधान रचना की. भारतीय संविधान की रचना
के समय उसके निर्माताओं के सामने नागरिकों के बुनियादी अधिकारों की रक्षा, लोकतंत्र, संघीय और राज्यों के कार्यक्षेत्र की
स्पष्ट व्याख्या, सामाजिक न्याय और इस देश की बहुल
संस्कृति की रक्षा जैसे सवाल थे.
लोकतांत्रिक-समाज
पिछले 76 साल के सांविधानिक अनुभव को देखें तो
सफलता और विफलता के अनेक मंजर देखने को मिलेंगे. कभी लगता है हम लोकतंत्र से भाग
रहे हैं. या फिर हम अभी लोकतंत्र के लायक नहीं हैं. या लोकतंत्र हमारे लायक नहीं
है. या लोकतंत्र को हम जितना पाक-साफ समझते हैं, वह
उतना नहीं हो सकता. उसकी व्यावहारिक दिक्कतें हैं. वह जिस समाज में है, वह खुद पाक-साफ नहीं है.
वस्तुतः समाज ही अपने लोकतंत्र को बढ़ावा देता है और लोकतंत्र से समाज का विकास होता है. संविधान का मतलब है कानून का शासन. पिछले 76 वर्षों में इन दोनों बातों की परीक्षा हुई है. हम गर्व से कहते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत में है. हर पाँच साल में होने वाला आम चुनाव दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक गतिविधि है. चुनावों की निरंतरता और सत्ता के निर्बाध-हस्तांतरण ने हमारी सफलता की कहानी भी लिखी है.