Thursday, June 1, 2023

अमेरिकी ऋण-सीमा बढ़ेगी


अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव ने सरकार की ऋण-सीमा बढ़ाने वाले विधेयक को स्पष्ट बहुमत से पारित कर दिया है. विधेयक के समर्थन में 314 और विरोध में 117 मत पड़े. दोनों ही पक्षों की तरफ़ से विरोध में मतदान हुआ है.

विधेयक के समर्थन में 165 डेमोक्रेट (राष्ट्रपति जो बाइडेन की पार्टी) और 149 रिपब्लिकन सदस्यों ने मतदान किया है. इससे अमेरिकी सरकार के क़र्ज़ संकट का समाधान हो सकता है और सरकार के डिफॉल्टर होने का ख़तरा टल सकता है. सरकार को डिफॉल्ट होने से बचाने के लिए अब सोमवार से पहले इस विधेयक को सीनेट में पारित कराना अनिवार्य होगा.

रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों के बीच इस समझौते के कारण व्यवस्था के बिखर जाने का खतरा टल जरूर गया है, पर देश का आर्थिक संकट बरकरार है. उधर रिपब्लिकन पार्टी को इस बात का संतोष है कि राष्ट्रपति जो बाइडन से उसने कुछ सरकारी खर्च कम करवा लिए हैं. अनुमान है कि अगले एक दशक में सरकारी खर्चों में 1.3 ट्रिलियन डॉलर की कटौती होगी. ये कटौतियाँ 2024 और 2025 से लागू होंगी.   

संसद की प्रतिनिधि सभा में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत है. जबकि, सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत है. ऐसे में इस बिल का प्रतिनिधि सभा में पास होना महत्वपूर्ण है. इस बिल को पारित कराने में दोनों पार्टियों के बीच समझौता कराने में अहम भूमिका निभाने वाले रिपब्लिकन पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता केविन मैकार्थी ने इसे ऐतिहासिक कहा है.

वर्चुअली होगा एससीओ शिखर सम्मेलन

दूसरी बड़ी अंतरराष्ट्रीय खबर यह है कि जुलाई के महीने में भारत में होने वाला शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन अब वर्चुअल होगा. केंद्र सरकार ने मंगलवार को एलान किया कि 4 जुलाई को दिल्ली में प्रस्तावित एससीओ की बैठक अब वर्चुअली आयोजित होगी. इस साल एससीओ की अध्यक्षता भारत के पास है, जिसकी वजह से ये बैठक दिल्ली में आयोजित होनी थी.

 

इस बैठक में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों को हिस्सा लेना था. इनमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, पाकिस्तानी पीएम शाहबाज़ शरीफ़ और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जैसे नेता शामिल होते.

केंद्र सरकार इस बैठक को आयोजित करने के लिए पिछले कई महीनों से तैयारी भी कर रही थी. इन नेताओं को भारत आने का न्यौता भी भेजा गया था. मंगलवार को सरकार ने एकाएक अपना फ़ैसला बदल दिया. दो-तीन बातें हवा में हैं. एक, दिल्ली में सम्मेलन की तैयारी पूरी नहीं है. दूसरे चीन, पाकिस्तान और रूस के राष्ट्राध्यक्षों ने अभी तक सम्मेलन में आने की पुष्टि नहीं की है. संभवतः रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन-युद्ध के कारण आने की स्थिति में नहीं हैं.

 

उम्मीद से बेहतर जीडीपी संवृद्धि


देश की ​आर्थिक-वृद्धि दर विश्लेषकों के अनुमान को पीछे छोड़ते हुए वित्त वर्ष 2023 की चौथी तिमाही में 6.1 फीसदी रही। मैन्युफैक्चरिंग और निर्माण गतिविधियों में तेजी से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि ने चकित किया है। साथ ही यह कमजोर वै​श्विक परिदृश्य के बीच मजबूत घरेलू मांग को दर्शाता है। पिछले हफ्ते रॉयटर्स द्वारा 56 अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण में वित्त वर्ष 2023 की चौथी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था।

चौथी तिमाही में उम्मीद से ज्यादा वृद्धि से पूरे वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी वृद्धि दर पहले के 7 फीसदी के अनुमान को पार कर 7.2 फीसदी पहुंच गई। राष्ट्रीय सां​ख्यिकी कार्यालय ने पहले अंतरिम अनुमान में जीडीपी वृद्धि दर 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था। बुनियादी मूल्य पर सकल मूल्य वर्धन (GVA) वित्त वर्ष 2023 की मार्च तिमाही में 6.5 फीसदी और पूरे वित्त वर्ष में 7 फीसदी बढ़ा है। हालांकि देश की अर्थव्यवस्था का आकार वित्त वर्ष 2023 में 272.4 लाख करोड़ रुपये रहा जो वित्त वर्ष 2024 के बजट से पूर्व जारी किए गए पहले अग्रिम अनुमान से 67,039 करोड़ रुपये कम है।

लगातार दो तिमाही में गिरावट झेलने के बाद जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र ने अच्छी वापसी की और कच्चे माल की लागत कम होने तथा मार्जिन में सुधार के साथ इस क्षेत्र के उत्पादन में 4.5 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई। ब्याज दरों में बढ़ोतरी और ऊंची खुदरा मुद्रास्फीति के बावजूद श्रम प्रधान निर्माण क्षेत्र में भी मार्च तिमाही के दौरान 10.4 फीसदी की तेजी देखी गई।

बेमौसम बारिश के बावजूद जनवरी-मार्च 2023 तिमाही में कृषि क्षेत्र का उत्पादन 5.5 फीसदी बढ़ा है जबकि व्यापार, होटल और परिवहन के बेहतर प्रदर्शन के दम पर सेवा क्षेत्र में 6.9 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। यहाँ पढ़ें बिजनेस स्टैंडर्ड में असित रंजन मिश्र का विश्लेषण और अखबार का संपादकीय

 आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस से मानव सभ्यता के अंत का ख़तरा

'आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस से इंसानी वजूद को ख़तरा हो सकता है.कई विशेषज्ञों ने इसे लेकर आगाह किया है. ऐसी चेतावनी देने वालों में ओपनएआई और गूगल डीपमाइंड के प्रमुख शामिल हैं.इसे लेकर जारी बयान 'सेंटर फ़ॉर एआई सेफ़्टी' के वेबपेज़ पर छपा है. कई विशेषज्ञों ने इस बयान के साथ अपनी सहमति जाहिर की है. विशेषज्ञों ने चेतावनी देते हुए कहा है, "समाज को प्रभावित कर सकने वाले दूसरे ख़तरों, मसलन महामारी और परमाणु युद्ध के साथ-साथ एआई (आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस) की वजह से वजूद पर मौजूद ख़तरे को कम करना वैश्विक प्राथमिकता होनी चाहिए." बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

 राहुल गांधी ने मोदी पर साधा निशाना, खालिस्तानियों को भी जवाब

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस को निशाना बनाया है. अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में लोगों को एक ग्रुप ऐसा है, जिसे लगता है कि वे हर चीज़ जानते हैं. राहुल गांधी 10 दिनों की अमेरिका यात्रा पर हैं. सैन फ्रांसिस्को के बाद वे वॉशिंगटन डीसी और फिर न्यूयॉर्क जाएँगे. संबोधन के दौरान सिख्स फ़ॉर जस्टिस (एसजेएफ़) से जुड़े कुछ लोगों ने खालिस्तान के समर्थन में नारेबाज़ी की और खालिस्तान का झंडा भी दिखाया. इंदिरा गांधी को लेकर भी नारेबाज़ी की गई. एसजेएफ़ का कहना है कि वे राहुल गांधी की हर सभा में जाएँगे और जब पीएम मोदी अमेरिका आएँगे, तब भी ऐसा ही करेंगे. बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट पढ़ें यहाँ

 

Wednesday, May 31, 2023

‘राष्ट्रीय-अस्मिता’ ने एर्दोगान को फिर से राष्ट्रपति बनाया

तुर्की की सुप्रीम इलेक्शन कौंसिल ने इस बात की पुष्टि की है कि रजब तैयब एर्दोगान ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में कामयाबी हासिल कर ली है. वे एकबार फिर से तुर्की के सदर मुंतख़ब हो गए हैं. इस साल तुर्की अपने लोकतांत्रिक इतिहास की 100वीं वर्षगाँठ मना रहा है. इनमें एर्दोगान के नेतृत्व के 21 साल शामिल हैं.

हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक परिणाम पूरी तरह आए नहीं हैं, पर उन्हें 52 फीसदी से ज्यादा वोट मिल चुके हैं और उनके प्रतिस्पर्धी कमाल किलिचदारोलू को 47 फ़ीसदी से कुछ ज्यादा वोट मिले हैं.

करीब-करीब सभी बैलट बॉक्स खुल चुके हैं और अब परिणाम में बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं बची है. बाकी सभी वोट भी यदि किलिचदारोलू के खाते में चले जाएं, तब भी परिणाम पर फर्क नहीं पड़ेगा.

चुनाव-परिणाम आने के बाद एर्दोगान ने कहा कि यह तुर्की की जीत है. वे अभी चुनाव की मुद्रा में ही हैं, क्योंकि अब वे आगामी मार्च में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी में जुट जाएंगे.

विरोधी परास्त

एर्दोगान की विजय के साथ पश्चिमी देशों में लगाई जा रही अटकलें ध्वस्त हो गई हैं कि तुर्की की व्यवस्था में बदलाव होगा, बल्कि एर्दोगान अब ज्यादा ताकत के साथ अगले पाँच या उससे भी ज्यादा वर्षों तक अपने एजेंडा को पूरा करने की स्थिति में होंगे.

एर्दोगान की पार्टी का नाम एकेपी (जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी) है. उनके मुकाबले छह विरोधी दलों ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया था और पीपुल्स रिपब्लिकन पार्टी (सीएचपी) के कमाल किलिचदारोलू को अपना प्रत्याशी बनाया था, जिन्हें कुर्द-पार्टी एचडीपी का भी समर्थन हासिल था.

Sunday, May 28, 2023

संसद माने क्या, लोकतंत्र का मंदिर या राजनीति का अखाड़ा?


भविष्य के इतिहासकार इस बात का विश्लेषण करते रहेंगे कि संसद-भवन का उद्घाटन राजनीति का शिकार क्यों हुआ। शायद राजनीति में अब आमराय का समय नहीं रहा। पर संसद केवल राजनीति नहीं है। यह देश का सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अभिलेखागार है। यह विवाद ही दुर्भाग्यपूर्ण है। बहरहाल आज नए संसद भवन का उद्घाटन हो रहा है। कांग्रेस समेत 20 विरोधी दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है। उनका कहना है कि इसका उद्घाटन पीएम मोदी के बजाय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों होना चाहिए। 

पूरा विपक्ष भी एकमत नहीं है। 20 दल बहिष्कार कर रहे हैं, तो 25 बहिष्कार के साथ नहीं हैं। सबके राजनीतिक गणित हैं, कोई विचार या सिद्धांत नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया जिसमें माँग की गई थी कि उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों होना चाहिए। लगता है कि कुछ दल अपनी राजनीतिक उपस्थिति को दर्ज कराने के लिए इस बहिष्कार का सहारा ले रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव की गोलबंदी का पूर्वाभ्यास। उनकी राजनीति अपनी जगह है, पर इस संस्था की गरिमा को बनाए रखने की जरूरत है। संसदीय मर्यादा और लोकतांत्रिक परंपराओं से जुड़े सवालों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। बेशक ताली एक हाथ से नहीं बजती। सरकार की भी जिम्मेदारी थी कि वह विरोधी दलों को समझाती। पर सत्तारूढ़ दल का भी राजनीतिक गणित है। उसे भी इस बहिष्कार में कुछ संभावनाएं दिखाई पड़ रही हैं।  

विवाद क्यों?

यह भी सच है कि संसद ही राजनीति का सर्वोच्च अखाड़ा होती है। कमोबेश दुनियाभर की संसदों में यही स्थिति है। बेशक संसदीय बहसें ही राजनीति है, पर संस्था के रूप में संसद सभी पक्षों का मंच है। बहिष्कार करने वाली पार्टियाँ क्या भविष्य में इस भवन में बैठकर संसदीय-कर्म में शामिल नहीं होंगी? बहिष्कार करने वाली पार्टियों को यह भी समझना चाहिए कि जनता उनके काम को किस तरीके से देख रही है।संसद में अच्छे भाषणों को जनता पसंद करती है। दुर्भाग्य से राजनीतिक नेताओं ने इस कला पर मश्क करना कम कर दिया है। संसदीय-बहसों का स्तर लगातार गिर रहा है और सड़क की राजनीति सिर उठा रही है। आप सोचें कि बरसों बाद लोग इस परिघटना को किस रूप में याद करेंगे? इस समारोह को क्या मिल-जुलकर नहीं मनाया जा सकता था? 

शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे मामले सुनवाई के लिहाज से तर्कसंगत और न्यायोचित नहीं हैं। याचिका दायर करने वाले से कहना चाहिए कि वे सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेने के बाद किसी हाईकोर्ट में भी न जाएं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। संयोग से नए संसद-भवन को लेकर अदालत के दरवाजे पर पहली बार दस्तक नहीं दी गई थी। पिछले ढाई साल में कई बार अदालत का दरवाजा खटखटाया गया है। यह सवाल भी वाजिब है कि उद्घाटन बजाय राष्ट्रपति के हाथों होता, तो बेहतर होता या नहीं। जवाबी सवाल है कि प्रधानमंत्री के उद्घाटन करने पर आपत्ति क्यों? वस्तुतः बीजेपी को अपनी सफलता के सूत्र मोदी में दिखाई पड़ते हैं। और कांग्रेस की नज़र में मोदी ही सबसे बड़ा अड़ंगा है।

Friday, May 26, 2023

अमेरिका का राजकोषीय संकट

 

बाल्टीमोर सन में कार्टून

अमेरिका का अभूतपूर्व वित्तीय-संकट से सामना है। देश की संसद समय से ऋण-सीमा को बढ़ाने में विफल हो रही है और कर्जों को चुकाने में डिफॉल्ट का खतरा पैदा हो गया है। इसका परिणाम होगा शेयर बाजार में हड़कंप, बेरोजगारी में वृद्धि और दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं में अफरा-तफरी। अमेरिका को यह सीमा आगामी 1 जून के पहले 31.4 ट्रिलियन डॉलर से ऊपर कर लेनी चाहिए। डेट सीलिंग वह अधिकतम रक़म है, जिसे अमेरिकी सरकार अपने ख़र्चे पूरे करने के लिए उधार ले सकती है। संविधान के अनुसार ऐसा करने का अधिकार अमेरिकी कांग्रेस यानी संसद को है, पर राजनीतिक कारणों से ऐसा हो नहीं पा रहा है।

ऐसे हालात पहले भी पैदा हुए हैं, पर तब राजनीतिक नेताओं की सहमति से सीमा बढ़ गई, पर इसबार अभी ऐसा नहीं हो पाया है। रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि खर्च घटाकर 2022 के स्तर पर ले आओ, तब हम आपके प्रस्ताव का समर्थन करेंगे। ऐसा करने पर सरकारी खर्च में करीब 25 प्रतिशत की कटौती करनी होगी, जो जीडीपी की करीब पाँच फीसदी होगी। इससे राष्ट्रपति बाइडन की ग्रीन-इनर्जी योजनाएं ठप हो जाएंगी और देश मंदी की चपेट में आ जाएगा। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट पार्टियों के बीच बातचीत के कई दौर विफल हो चुके हैं। यदि सरकार के पास धनराशि नहीं बचेगी, तो वह बॉण्ड धारकों या जिनसे कर्ज लिए गए हैं, उन्हें भुगतान नहीं कर पाएगी। इससे वैश्विक आर्थिक-संकट पैदा हो जाएगा।

बजट घाटा

2022 के वर्ष में संघ सरकार की प्राप्तियाँ 4.90 ट्रिलियन डॉलर की थीं और व्यय 6.27 ट्रिलियन डॉलर का था। इस प्रकार घाटा 1.38 ट्रिलियन डॉलर का था। सन 2001 के बाद से अमेरिकी की संघ सरकार लगातार घाटे में है। इस घाटे को पूरा करने के लिए ऋण लेने की जरूरत होती है। अमेरिकी संविधान के अनुसार अमेरिका के नाम पर ऋण लेने का अधिकार केवल देश की संसद को है। देश की ऋण-सीमा कानूनी-व्यवस्था है, जो 1917 में तय की गई थी।

उस समय संसद ने सरकार को युद्ध के खर्चों को पूरा करने के लिए बॉण्ड जारी करने का अधिकार दिया था। 1939 में संसद ने सरकार को ऋणपत्र (डेट) जारी करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार दे दिया, पर उसकी सीमा तय कर दी कि कितना ऋण लिया जा सकता है। 1939 से 2018 तक इस सीमा को 98 बार बढ़ाया गया और पाँच बार कम भी किया गया। सिद्धांततः सरकार अपने खर्चे पूरे करने के लिए कर्ज ले सकती है, पर उसकी सीमा क्या होगी, यह संसद तय करती है।