देश-परदेस
पाकिस्तान
के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि इमरान खान ने
अपने ऊपर हुए हमले के बाबत जो आरोप लगाए हैं, उनकी जाँच के लिए आयोग बनाया जाए.
इमरान खान ने उनके इस आग्रह का समर्थन किया है. पाकिस्तानी सत्ता के अंतर्विरोध
खुलकर सामने आ रहे हैं. पर बड़ा सवाल सेना की भूमिका को लेकर है. उसकी जाँच कैसे
होगी? एक और सवाल नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति से जुड़ा है. यह नियुक्ति इसी महीने होनी
है.
पाकिस्तानी सेना, समाज और राजनीति के तमाम जटिल प्रश्नों के जवाब क्या कभी
मिलेंगे? इमरान खान के पीछे कौन
सी ताकत? जनता या सेना का ही
एक तबका? सेना ने ही इमरान को
खड़ा किया, तो फिर वह उनके खिलाफ क्यों हो गई? व्यवस्था की पर्याय बन चुकी सेना अब राजनीति से खुद को अलग
क्यों करना चाहती है?
पाकिस्तान
में शासन के तीन अंगों के अलावा दो और महत्वपूर्ण अंग हैं- सेना और अमेरिका. सेना माने एस्टेब्लिशमेंट. क्या इस बात की जाँच संभव है कि इमरान सत्ता में
कैसे आए? पिछले 75 साल में सेना
बार-बार सत्ता पर कब्जा करती रही और सुप्रीम कोर्ट ने कभी इस काम को गैर-कानूनी
नहीं ठहराया. क्या गारंटी कि वहाँ सेना का शासन फिर कभी नहीं होगा?
अमेरिका
वाले पहलू पर भी ज्यादा रोशनी पड़ी नहीं है. इमरान इन दोनों रहस्यों को खोलने पर
जोर दे रहे हैं. क्या उनके पास कोई ऐसी जानकारी है, जिससे वे बाजी पलट देंगे? पर इतना साफ है कि वे बड़ा जोखिम मोल ले रहे हैं और उन्हें जनता
का समर्थन मिल रहा है.
लांग मार्च फिर शुरू होगा
हमले के बाद
वज़ीराबाद में रुक गया लांग मार्च अगले एक-दो रोज में उसी जगह से फिर रवाना होगा, जहाँ
गोली चली थी. इमरान को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है, पर वे मार्च में शामिल नहीं
होगे, बल्कि अपने जख्मों का इलाज लाहौर में कराएंगे. इस दौरान वे वीडियो कांफ्रेंस
के जरिए मार्च में शामिल लोगों को संबोधित करते रहेंगे. उम्मीद है कि मार्च अगले 10
से 14 दिन में रावलपिंडी पहुँचेगा.
पाकिस्तानी शासन का सबसे ताकतवर इदारा है वहाँ
की सेना. देश में तीन बार सत्ता सेना के हाथों में गई है. पिछले 75 में से 33 साल
सेना के शासन के अधीन रहे, अलावा शेष वर्षों में भी पाकिस्तानी व्यवस्था के संचालन
में किसी न किसी रूप में सेना की भूमिका रही.
लोकतांत्रिक असमंजस
भारत की तरह पाकिस्तान
में भी संविधान सभा बनी थी,
जिसने 12 मार्च 1949
को संविधान के उद्देश्यों और लक्ष्यों का प्रस्ताव तो पास किया, पर संविधान नहीं बन पाया. नौ साल की कवायद के बाद 1956
में पाकिस्तान अपना संविधान बनाने में कामयाब हो पाया.
23 मार्च 1956 को इस्कंदर मिर्ज़ा राष्ट्रपति बनाए गए. उन्हें लोकतांत्रिक तरीके से चुना गया था, पर 7 अक्तूबर 1958 को उन्होंने अपनी लोकतांत्रिक सरकार ही बर्खास्त कर दी और मार्शल लॉ लागू कर दिया. उनकी राय में पाकिस्तान के लिए लोकतंत्र मुफीद नहीं.