अंततः पूर्वी यूक्रेन में रूस ने सैनिक कार्रवाई शुरू कर दी है, जिसका पहले से अंदेशा था। गुरुवार 24 फरवरी की सुबह टीवी पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने टीवी पर कहा कि यूक्रेन पर क़ब्ज़ा करने की हमारी योजना नहीं थी, पर अब किसी ने रोकने की कोशिश की तो हम फौरन जवाब देंगे। फिलहाल रूस और नेटो के टकराव की सम्भावना नहीं है, क्योंकि अमेरिका और यूरोप के ने सीधे युद्ध में शामिल होने से परहेज किया है।
यूक्रेन पर रूसी धावा अब उतनी महत्वपूर्ण बात
नहीं है, बल्कि उसके बाद उभरे सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अब क्या होगा? राजनीतिक फैसले क्या अब ताकत के जोर पर होंगे? कहाँ है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद? पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को पिटने क्यों दिया? पिछले अगस्त में अफगानिस्तान
में तालिबानी विजय के बाद अमेरिकी शान पर यह दूसरा हमला है। शुक्रवार 25 फरवरी को हमले
की निंदा करने की सुरक्षा परिषद की कोशिश को रूस ने वीटो कर दिया। क्या यह क्षण अमेरिका
के क्षय और रूस के पुनरोदय का संकेत दे रहा है? क्या
वह चीन के साथ मिलकर अमेरिका की हैसियत को कमतर कर देगा? भारत
ने न केवल हमले की साफ तौर पर निंदा करने से इनकार कर दिया है, बल्कि सुरक्षा
परिषद के प्रस्ताव पर वोट देने के बजाय अनुपस्थित रहना पसंद किया है। अमेरिका से
बढ़ती दोस्ती के दौर में यह बात कुछ लोगों को हैरत में डालती है, पर लगता है कि
भारत ने राष्ट्रीय हित को महत्व दिया है। संभव है कि हमें अब अमेरिका के आक्रामक
रुख का सामना करना पड़े। ऐसा होगा या नहीं, इसका हमें इंतजार करना होगा। हमने हमले
का विरोध भले ही नहीं किया है, पर शांति स्थापित करने और रूसी सेनाओं की वापसी के
लिए हमें प्रयास करने होंगे। सैनिक-शक्ति से किसी राजनीतिक-समस्या का समाधान नहीं
किया जा सकता है।
अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि रूस के सैनिक अभियान का
लक्ष्य क्या है। इस हफ्ते जब रूस ने पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों के नियंत्रण
वाले लुहांस्क और दोनेत्स्क को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता दी थी और फिर
अपनी सेना भेजी, तभी समझ में आ गया था कि वह सैनिक कार्रवाई करेगा। इस इलाके को डोनबास
कहा जाता है। यूक्रेन इस क्षेत्र को टूटने से बचाने की कोशिश करेगा और रूसी सेना
सीधे हस्तक्षेप करेगी।
टकराव कैसे रुकेगा?
रूस ने हमला तो बोल दिया है, पर क्या इसके दूरगामी दुष्परिणामों का हिसाब उसने लगाया है? क्या वह उन्हें वह झेल पाएगा? लड़ाई भले ही यूरोप में हुई है, पर उसके असर से हम भी नहीं बचेंगे। पहला सवाल है कि वैश्विक-राजनय इस टकराव को क्या आगे बढ़ने से रोक पाएगा? सुरक्षा परिषद में चीन ने कहा कि सभी पक्षों को संयम बरतते हुए आगे का सोचना चाहिए और ऐसी किसी भी कार्रवाई से परहेज़ करना चाहिए जिससे संकट और उग्र हो।