Thursday, January 27, 2022

श्रीलंका को आर्थिक-संकट से बचाने में भारत की भूमिका


हिंद महासागर के दो पड़ोसी देशों, श्रीलंका और मालदीव के घटनाक्रम में कुछ बातें भारत की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। अपने पड़ोसियों, खासतौर से हिंद महासागर के देशों की, अनदेखी भारी पड़ सकती है। यह बात श्रीलंका के ताजा आर्थिक-संकट और चीन के विदेशमंत्री वांग यी के इन दोनों देशों के दौरे से रेखांकित हुई। दोनों देशों में हाल के वर्षों तक चीन का काफी प्रभाव रहा है, जो अब कम हो गया है। मालदीव में 2018 के चुनाव के बाद चीन समर्थक-समर्थक सरकार चली जरूर गई है, पर कुछ समय से चल रहे भारत-विरोधी अभियान इंडिया-आउट पर ध्यान देने की जरूरत है।

श्रीलंका और मालदीव दोनों चीन के कर्जे में दबे हैं, पर इस समय श्रीलंका की दशा ज्यादा खराब है। वह विदेशी देनदारी में डिफॉल्ट की स्थिति में पहुँच गया है। विदेशी-मुद्रा कोष के क्षरण के कारण डिफॉल्ट की स्थिति पैदा हुई है। वहाँ जरूरी चीजों का संकट पैदा होने लगा है। इस संकट के पीछे उसका चीनी कर्ज में दबा होना भी एक बड़ा कारण है, फिर भी उसे चीन से मदद माँगने जाना पड़ा।  

चीन से मदद

चीन से मदद माँगे जाने में हैरत नहीं है। सत्तारूढ़ राजपक्ष परिवार चीनी प्रशासन के करीब रहा है, इसलिए वे चीन के पास गए। साथ ही लगता है कि भारत ने देरी की। पिछले साल उन्होंने भारत की तरफ भी हाथ बढ़ाया था, पर भारत ने अनदेखी की या उसकी गंभीरता को कुछ देर से समझा। बहरहाल शनिवार 15 जनवरी को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका के वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे के साथ बातचीत की, जिससे स्थिति बिगड़ने से बची है।

Sunday, January 23, 2022

विषमता के चक्रव्यूह की चुनौती


जनवरी के तीसरे हफ्ते में वैश्विक महत्व की दो महत्वपूर्ण आर्थिक घटनाएं हर साल होती हैं। पहले, ऑक्सफ़ैम की वैश्विक विषमता रिपोर्ट और उसके बाद स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक फोरम का सम्मेलन। दुनिया में नव-उदारवादी आर्थिक नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए विश्व आर्थिक फोरम की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। यह कारोबारी संस्था है, जो कॉरपोरेट दुनिया को साथ लेकर चलती है, पर नब्बे के दशक से शुरू हुए वैश्वीकरण अभियान के बाद से दुनिया की सरकारों की भागीदारी दावोस में बढ़ी है। असमानता के कई रूप हैं, उनमें आर्थिक असमानता सबसे प्रमुख है, जो दुनिया की सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है।  

ऑक्सफ़ैम क्या है?

ऑक्सफोर्ड कमेटी फॉर फ़ैमीन यानी ऑक्सफ़ैम, वैश्विक-गरीबी को दूर करने के इरादे से गठित ब्रिटिश संस्था 1942 से काम कर रही है। इसके साथ 21 संस्थाएं और जुड़ी हैं। यह संस्था दुनियाभर में मुफलिसों और ज़रूरतमंदों की सहायता करती है और भूकंप, बाढ़ या अकाल जैसी आपदाओं के मौके पर राहत पहुँचाती है। वैश्विक असमानता पर केवल ऑक्सफ़ैम की रिपोर्ट ही नहीं आती। पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब भी इस सिलसिले में शोध-कार्य करती है। इस लैब ने 7 दिसंबर 2021 को वर्ल्ड इनइक्वैलिटीरिपोर्ट-2022 जारी की थी। इसे तैयार करने में लुकाच चैंसेल, टॉमस पिकेटी, इमैनुएल सेज़ और गैब्रियल जुचमैन ने करीब चार साल तक मेहनत की थी।

जानलेवा विषमता

17 जनवरी को ऑक्सफ़ैम रिपोर्ट जारी हुई और 17-21 जनवरी तक दावोस सम्मेलन हुआ। ऑक्सफ़ैम-रिपोर्ट का शीर्षक है ‘इनइक्वैलिटीकिल्स यानी जानलेवा विषमता।’ हालांकि इसमें वैश्विक-संदर्भ हैं, पर हमारी दिलचस्पी भारत में ज्यादा है। इसमें कहा गया है कि 2021 में भारत के 84 फीसदी परिवारों की आय घटी है, पर इसी अवधि में अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई है। मार्च 2020 से 30 नवंबर, 2021 तक भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपये (313 अरब डॉलर) से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपये (719 अरब डॉलर) हो गई है, जबकि 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक देशवासी आत्यंतिक गरीबी-रेखा के दायरे में आ गए।

अरबपतियों की चाँदी

वैश्विक संदर्भ में रिपोर्ट कहती है कि कोरोना महामारी के दौर में दुनिया ने अरबपतियों की संपदा में अभूतपूर्व वृद्धि होते देखी है। कोविड-19 के संक्रमण के बाद से हरेक 26 घंटे में एक नया अरबपति पैदा हुआ है। दुनिया के 10 सबसे अमीर व्यक्तियों की इस दौरान संपत्ति दोगुनी हो गई, जबकि मार्च, 2020 से नवंबर, 2021 के बीच, कम से कम 16 करोड़ लोग गरीबी में धकेल दिए गए। चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरा ऐसा देश है, जहां अरबपतियों की संख्या सबसे अधिक है। फ्रांस, स्वीडन और स्विट्जरलैंड की तुलना में 2021 में भारत में अरबपतियों की संख्या में 39 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब भारत में बेरोजगारी दर शहरी इलाकों में 15 फीसदी तक है और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली चरमरा रही है। कोरोना संक्रमण के दौर में देश के स्वास्थ्य बजट में 2020-21 के संशोधित अनुमान से 10 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। शिक्षा के आवंटन में 6 फीसदी की कटौती की गई, जबकि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए बजटीय आवंटन कुल बजट के 1.5 फीसदी से 0.6 हो गया। इस असमानता को आर्थिक हिंसा करार दिया गया है, जो तब होती है, जब सबसे अमीर और ताकतवर लोगों के लिए सहूलियत वाली ढांचागत नीतियां बनाई जाती हैं।

Tuesday, January 18, 2022

कोरोना संकट के दौरान भारत ने दुनिया को दिया ‘उम्मीदों का गुलदस्ता’


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि कोरोना संक्रमण काल में भारत ने पूरी दुनिया को ‘उम्मीदों के गुलदस्ते’ जैसा एक खूबसूरत उपहार दिया है, जिसमें भारतीयों का लोकतंत्र पर अटूट विश्वास, 21वीं सदी को सशक्त करने वाली प्रौद्योगिकी, भारतीयों का मिजाज और उनकी प्रतिभा शामिल है। विश्व आर्थिक मंच के दावोस एजेंडा में वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से ‘विश्व की वर्तमान स्थिति’ (स्टेट ऑफ द वर्ल्ड) पर अपने विशेष संबोधन में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि कोरोना के इस समय में भारत ‘वन अर्थ, वन हैल्थ’’ की दृष्टि पर चलते हुए अनेक देशों को जरूरी दवाइयां और टीके देकर करोड़ों जीवन बचा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘आज भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक है।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि जब से कोरोना महामारी की शुरुआत हुई तब से भारत में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में भोजन दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘शायद दुनिया में इस प्रकार का यह सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा। हमारी कोशिश है कि संकट के कालखंड में गरीब से गरीब की चिंता सबसे पहले हो। इस दौरान हमने सुधार पर भी जोर दिया। सुधार के लिए हमारे कदमों को लेकर दुनिया के अर्थशास्त्री भी भरपूर सराहना कर रहे हैं। भारत बहुत मजबूती से आगे बढ़ रहा है।’

व्यवधान पर राजनीतिक-तंज

कोरोना महामारी के कारण वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक वर्चुअल हो रही है। भाषण के दौरान कुछ देर व्यवधान हुआ जिसे लेकर विरोधी दल कांग्रेस और कुछ अन्य लोगों ने तंज कसना शुरू कर दिया। मोदी के दिए भाषण के वीडियो में नजर आता है कि एक जगह वे बार-बार अपनी बाईं ओर देखते हैं, और कुछ सेकेंड की चुप्पी के बाद फ़ोरम के अध्यक्ष क्लॉस श्वाब से पूछते हैं कि क्या उनकी और उनके दुभाषिए की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है? इसके बाद वे अपना भाषण दोबारा देने लगते हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि बीबीसी हिंदी की वैबसाइट ने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भाषण को कवर किया है, नरेंद्र मोदी के भाषण को नहीं। वैबसाइट ने मोदी के भाषण के टेलीप्रॉम्प्टर प्रसंग को जरूर कवर किया है, पर उन्होंने क्या कहा, इसे कवर करने की जरूरत नहीं समझी।

Monday, January 17, 2022

ओमिक्रॉन की धुआँधार तेजी के बाद अब बचाव का रास्ता क्या है?

ताजा खबर है कि ओमिक्रॉन के बाद एक नया वेरिएंट और सामने आया है, जो डेल्टा और ओमिक्रॉन का मिला-जुला रूप है। इसकी खबर सायप्रस से आई है। युनिवर्सिटी ऑफ सायप्रस के बायलॉजिकल साइंसेज़ के प्रोफेसर लेंडियस कोस्त्रीकिस ने इसकी जानकारी दी है, जिसके 25 केस सामने आए हैं। इसका नाम इन्होंने डेल्टाक्रॉन रखा है। बहरहाल यह एकदम शुरूआती जानकारी है, जिसकी पुष्टि अगले कुछ दिनों में होगी। कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि लैब में सैम्पलों की मिलावट से भी ऐसा हो सकता है।

भारत में एक हफ्ते में रोजाना आ रहे संक्रमण दस हजार से बढ़कर एक लाख और फिर देखते ही देखते दो लाख की संख्या पार कर गए हैं। दूसरे दौर के पीक पर यह संख्या चार लाख से कुछ ऊपर तक पहुँची थी। उसके बाद गिरावट शुरू हुई थी। दूसरे देशों में भारत की तुलना में तीन से चार गुना गति से संक्रमण बढ़ रहा है। यह इतना तेज है कि विशेषज्ञों को विश्लेषण करने के लिए पर्याप्त डेटा हासिल करने तक का समय नहीं मिल पाया है। रोजाना तेजी से मानक बदल रहे हैं।

हालात सुधरेंगे या बिगड़ेंगे?

अब तक का निष्कर्ष है कि वेरिएंट बी.1.1.529 यानी ओमिक्रॉन का संक्रमण भले ही तेज है, पर इसका असर कम है। इसका मतलब क्या हुआ?  क्या यह महामारी खत्म होने का लक्षण है या किसी नए वेरिएंट की प्रस्तावना? क्या अगले वेरिएंट का संक्रमण और तेज होगा?  ज्यादातर विशेषज्ञ मानकर चल रहे हैं कि यह पैंडेमिक नहीं एंडेमिक बनकर रहेगा। पिछले दो साल का अनुभव है कि आप मास्क लगाएं, दूरी रखकर बात करें और हाथ धोते रहें, तो बचाव संभव है।

भारत में आईआईटी कानपुर, आईआईटी हैदराबाद तथा कुछ अन्य संस्थाओं के विशेषज्ञ मिलकर गणितीय मॉडल सूत्रपर काम कर रहे हैं। सूत्र का अनुमान है कि इसबार हर रोज की पीक संख्या चार से आठ लाख तक हो सकती है। इससे जुड़े विशेषज्ञ आईआईटी कानपुर के मणीन्द्र अग्रवाल ने कहा है कि इसमें सबसे बड़ी भूमिका दिल्ली और मुम्बई में हो रहे तेज संक्रमण की होगी। इन दोनों शहरों में पीक भी जनवरी के मध्य तक यानी इन पंक्तियों के प्रकाशन तक हो जाना चाहिए, जबकि शेष देश में फरवरी में पीक संभव है।

Sunday, January 16, 2022

आम बजट की चुनौतियाँ और उम्मीदें


संसद का बजट-सत्र 31 जनवरी से शुरू होने जा रहा है। आम बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। दो कारणों से इस बजट के सामने चुनौतियाँ हैं। एक तो महामारी की तीसरी सबसे ऊँची लहर सामने है। दूसरे पाँच राज्यों में चुनाव हैं, जिसके कारण सरकार के सामने अलोकप्रियता से बचने और लोकलुभावन रास्ता अपनाने की चुनौती है। देश का कर-राजस्व बढ़ रहा है, फिर भी जीएसटी अब भी चुनौती बना है। आयकर को लेकर मध्यवर्ग आस लगाए बैठा है। रेल बजट अब आम बजट का हिस्सा होता है। उसे लेकर घोषणाएं संभव हैं। ग्रामीण विकास, खेती, शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और ग्रामीण महिलाओं से जुड़े कार्यक्रम भी सामने आएंगे। ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि कोविड-19 की लहर के दौरान यह सत्र चलेगा कैसे? पर सबसे बड़ी उत्सुकता यह जानने में है कि अर्थव्यवस्था किस दिशा में जा रही है और उत्तर-कोरोना व्यवस्था कैसी होगी? बढ़ती बेरोजगारी को कैसे रोका जाएगा, सामाजिक कल्याण के नए उपाय क्या होंगे और उनके लिए संसाधन कहाँ से आएंगे?

राजस्व-घाटा

सरकार 2021-22 बजट के अनुमानित ख़र्च के ऊपर, 3.3 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यय कर रही है, जिसे ग़रीबों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने, एयर इंडिया का निजीकरण की प्रक्रिया के तहत उसके कर्ज़ की अदायगी, निर्यात को बढ़ावा देने की विभिन्न स्कीमों के तहत प्रोत्साहन उपलब्ध कराने, और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी स्कीम के अंतर्गत ज़्यादा पैसा देने पर ख़र्च किया जा रहा है। रेटिंग एजेंसी इक्रा ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 16.6 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया है, जो जीडीपी का करीब 7.1 फीसदी होगा। राज्यों का राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी के अपेक्षाकृत कम स्तर पर रहने का अनुमान है। इस तरह केंद्र एवं राज्यों का सामान्य राजकोषीय घाटा जीडीपी के करीब 10.4 प्रतिशत तक पहुंचेगा।

बेहतर कर-संग्रह

अर्थव्यवस्था की पहली झलक सत्र के पहले दिन आर्थिक समीक्षा से मिलेगी। सरकार पिछले साल की तुलना में बेहतर स्थिति में है। वित्त मंत्रालय ने पिछले महीने प्रत्यक्ष कर-संग्रह के आंकड़े जारी करते हुए बताया कि 16 दिसंबर तक नेट कलेक्शन 9.45 लाख करोड़ रुपये है। एक साल पहले इसी अवधि में यह 5.88 लाख करोड़ रुपये था। इस तरह 60.8 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। वेतनभोगी और पेंशनधारक आयकर-राहत की आस में बैठे हैं। उन्हें उम्मीद है कि 50,000 रुपये की मानक कटौती की सीमा को 30 से 35 फीसदी तक बढ़ाया जा सकता है। जिन्होंने नई कर-व्यवस्था का विकल्प चुना है, वे स्टैंडर्ड डिडक्शन के लिए पात्र नहीं हैं। कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संबंधी खर्चों को देखते हुए इस सीमा को 30-35 प्रतिशत बढ़ाने की मांग की जा रही है। घर से काम करने के कारण बिजली और इंटरनेट पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है। कोविड मरीजों को भी छूट देने की माँग है।