अमेरिकी थिंकटैंक
फ्रीडम हाउस ने भारत को स्वतंत्र से
‘आंशिक-स्वतंत्र’ देशों की श्रेणी में डाल दिया है। यह रिपोर्ट मानती
है कि दुनियाभर
में स्वतंत्रता का ह्रास हो रहा है, पर उसमें भारत का खासतौर से उल्लेख किया
गया है। फ्रीडम हाउस एक निजी संस्था है और वह अपने आकलन के लिए एक पद्धति का सहारा
लेती है। उसकी पद्धति को समझने की जरूरत है। भारत का श्रेणी परिवर्तन हमारे यहाँ
चर्चा का विषय नहीं बना है, क्योंकि हमने लोकतंत्र और लोकतांत्रिक स्वतंत्रताओं को
महत्व अपेक्षाकृत कम दिया है। हम उसके राजनीतिक पक्ष को आसानी से देख पाते हैं। मेरी
समझ से फ्रीडम हाउस के स्वतंत्रता-सूचकांक के भी राजनीतिक निहितार्थ हैं। बेशक
मानव-विकास, मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों को लेकर देश के भीतर सरकार के आलोचकों
की बड़ी संख्या है, पर स्वतंत्रता हमारी बुनियाद में है।
अंग्रेजी के कुछ अखबारों
को छोड़ आमतौर पर भारतीय मीडिया में इस रिपोर्ट को लेकर ज्यादा विवेचन हुआ नहीं
है। हिंदी के अखबार यों भी गंभीर मसलों पर टिप्पणियाँ करने से बचते हैं। इस
रिपोर्ट से हमारे ऊपर सीधे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, पर संयुक्त राष्ट्र और
मानवाधिकार से जुड़ी संस्थाओं में भारत को निशाने पर लिया जा सकेगा। ऐसा भी नहीं
है कि रिपोर्ट में जिन तथ्यों का उल्लेख किया गया है, वे पूरी तरह आधारहीन हैं, पर
उनसे जो निष्कर्ष निकाले गए हैं, उनमें कई प्रकार के छिद्र हैं।
आंतरिक राजनीति
की प्रतिच्छाया
भारतीय
राष्ट्र-राज्य को निशाने पर लेने वाली इस रिपोर्ट में भारत की आंतरिक राजनीति की
प्रतिच्छाया भी नजर आती है। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र तो है कि भारतीय पुलिस ने
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया है, पर इस बात का
जिक्र नहीं है कि देश की अदालतों ने कई मौकों पर देशद्रोह के आरोपों को लेकर सरकार
के विरुद्ध टिप्पणियाँ की हैं। तबलीगी जमात को लेकर आरोप लगे, पर अदालतों ने न
केवल पुलिस की आलोचना की, साथ ही मीडिया को भी लताड़ बताई है। यह भी सच है कि देश
में अनेक कठोर कानून बने हैं, पर उनके पीछे आतंकवादी गतिविधियों का इतिहास है और
इन कानूनों का सीधा रिश्ता 2014 के राजनीतिक बदलाव से नहीं है।
'फ्रीडम हाउस'
एक अमेरिकी शोध संस्थान है जो हर साल 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड' रिपोर्ट निकालता है। इस रिपोर्ट में दुनिया के अलग-अलग
देशों में राजनीतिक आजादी और नागरिक अधिकारों के स्तर की समीक्षा की जाती है। ताजा
रिपोर्ट में संस्था ने भारत में अधिकारों और आजादी में आई कमी को लेकर गंभीर चिंता
व्यक्त की है। इस रिपोर्ट को देखने और समझने के पहले इसकी अंक पद्धति पर भी एक नजर
डालना उपयोगी होगा। 2021 की रिपोर्ट में 195 देशों और 15 इलाकों में 1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक हुए
घटनाक्रमों का विश्लेषण किया गया है।
पीछे का नजरिया
'फ्रीडम हाउस' की दृष्टि भी भारतीय मीडिया, लेखकों, राजनीति
और अमेरिका तथा अन्य देशों में रहने वाले भारतीयों की दृष्टि से प्रभावित होती है।
क्या भारत का पूरा मीडिया ‘गोदी-मीडिया’ है? क्या मीडिया में
नागरिक-स्वतंत्रता के सवाल उठने बंद हो गए हैं? भारत के बारे में यह दृष्टि सन 1947 के बाद से ही बन रही है। कश्मीर के मामले
को संयुक्त राष्ट्र संघ में लेकर जाने के समय से। भारतीय स्वतंत्रता और खासतौर से
विभाजन से जुड़ी ब्रिटिश राजनीति में भी उसके बीज छिपे हैं। 'फ्रीडम हाउस' के ‘वैबपेज’ पर भारत का नक्शा
इसकी गवाही देता है। उन्होंने जम्मू कश्मीर और लद्दाख को भारत के नक्शे से ही हटा दिया है।