Wednesday, January 13, 2021

किसान आंदोलन का हल क्या है?

 

कृषि कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश को लेकर जो प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं, उनमें से ज्यादातर ने अदालत के हस्तक्षेप पर आपत्ति व्यक्त की है। अदालत के रुख से लगता है कि वह सांविधानिक समीक्षा के बजाय राजनीतिक मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहती है, जो अटपटा लगता है। ऐसा लगता है कि जैसे अदालत ने पहले रोज सरकार को फटकार लगाकर किसानों को भरोसे में लेने की कोशिश की और फिर अपने पुराने सुझाव को लागू कर दिया। अदालत ने पिछले महीने सरकार को सलाह दी थी कि आप इन कानूनों को कुछ समय के लिए स्थगित क्यों नहीं कर देते? अनुमान यही है कि सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए अदालत का सहारा लिया है।

आज के इंडियन एक्सप्रेस में प्रताप भानु मेहता ने लिखा है कि यह सांविधानिक कोर्ट है, जो सांविधानिक सवालों पर फैसले नहीं सुनाती, बल्कि राजनीतिक और प्रशासनिक मसलों में पैर अड़ा रही है। खेती से जुड़े मसले जटिल हैं, पर आप इस मामले में किसी भी तरफ हों, पर यह बात समझ में नहीं आती कि किस न्यायिक आधार पर अदालत ने इन कानूनों को स्थगित कर दिया है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ताकत बनने में लंबा सफर

प्रेमवीर दास, बिजनेस स्टैंडर्ड  

पिछले कुछ दिनों में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर लगातार कुछ न कुछ कहा है। देश की विदेश नीति के प्रभारी एवं रणनीतिक मामलों के जानकार दोनों की हैसियत से उनकी कही गई बातें महत्त्वपूर्ण हैं। इस समय देश में जयशंकर की तरह इन मामलों में विशेष जानकारी रखने वाले कुछ गिने-चुने लोग ही हैं। ऐसे में उन्होंने जो कहा है उनसे चार महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहली बात तो यह कि हिंद-प्र्रशांत बीते हुए कल की वास्तविकता थी, न कि आने वाले कल की जरूरत है। दूसरी अहम बात यह है कि अब देश की रक्षा एवं रणनीतिक पहलुओं से जुड़े मामलों में समुद्री क्षेत्र की अहमियत अधिक है। एक और महत्त्वपूर्ण बात उन्होंने यह कही है कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को एक अहम किरदार निभाना चाहिए था और चौथी बात यह है कि भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने हितों का तालमेल समान सोच रखने वाले दूसरे देशों के हितों के साथ बैठाना है।

एक अन्य ध्यान आकृष्ट करने वाला बयान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) ने दिया है। उन्होंने मैरीटाइम थियेटर बनाने की हिमायत की है। ऐसा लगता है कि इसमें मौजूदा पूर्वी एवं पश्चिमी नौसेना कमान के  साथ तीनों सेना की अंडमान एवं निकोबार कमान भी शामिल होंगी। इस थियेटर का आकार कितना होगा फिलहाल यह मालूम नहीं है, लेकिन समुद्र में तमाम बातों की स्वतंत्रता बनाए रखने, व्यापार के लिए सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करने और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (एचएडीआर) पर मोटे तौर पर चर्चा चल रही है। इस लिहाज से किसी शत्रु का नाम या उसकी पहचान नहीं की गई है, लेकिन ऐसा समझा जा रहा है कि चीन और पाकिस्तान पर ही नजरें हैं।

Tuesday, January 12, 2021

लोकतंत्र बनाम आर्थिक सुधार

 


भारत में हाल के हफ्तों में लोकतंत्र एवं सख्त आर्थिक सुधारों के बारे में एक बड़ी बहस ने जन्म लिया है। वित्त के क्षेत्र में सुधारों का मुख्य मार्ग लोकतंत्र की जड़ें गहरी होने से संबद्ध है। दुनिया की दूसरी जगहों, सुधारों के मामले में भारत के शुरुआती अनुभव और वित्तीय आर्थिक नीति के भावी सफर के बारे में भी ऐसा ही देखा गया है। लोकतंत्र का सार यानी सत्ता का प्रसार एवं कानून का शासन बाजार अर्थव्यवस्था के फलने-फूलने के लिए अनुकूल हालात पैदा करते हैं और इसमें वित्त केंद्रीय अहमियत रखता है।

नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी अमिताभ कांत ने कथित तौर पर कहा है कि 'सख्त' सुधार कर पाना भारतीय संदर्भ में काफी मुश्किल है क्योंकि 'हमारे यहां कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है' लेकिन सरकार ने खनन, श्रम एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में ऐसे सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए 'साहस' एवं 'संकल्प' दिखाया है। इस बयान ने एक तूफान खड़ा कर दिया और तमाम आलोचक भारतीय लोकतंत्र के बचाव में आ खड़े हुए जिसके बाद अमिताभ कांत को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में लेख लिखकर यह सफाई देनी पड़ी कि उन्हें गलत समझा गया है।

चुनावों के माध्यम से सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की अवधारणा हमारे दिमाग में गहरी जमी हुई है लेकिन लोकतंत्र निर्वाचित शासक का फैसला करने वाले चुनाव से कहीं अधिक होता है। लोकतंत्र का सार सत्ता के फैलाव, राज्य की सत्ता के मनमाने इस्तेमाल के नियंत्रण और विधि के शासन की राह में राज्य सत्ता को समाहित करने में है। विधि के शासन के तहत निजी व्यक्ति एवं आर्थिक एजेंट इस पर सुरक्षित महसूस करते हैं कि राज्य की बाध्यकारी सत्ता को अप्रत्याशित, नियम-आधारित तरीके एवं निष्पक्ष ढंग से लागू किया जाएगा। इससे निर्माण फर्मों के निर्माण एवं व्यक्तिगत संपत्ति के सृजन में निवेश को बढ़ावा मिलता है। इस तरह लोकतंत्र के अभ्युदय और दशकों की मेहनत से अपनी फर्म खड़ा करने एवं अपनी संपत्ति को देश के भीतर ही बनाए रखने के लिए निजी क्षेत्र के प्रोत्साहन के बीच काफी गहरा संबंध है।

बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें केपी कृष्णन का पूरा आलेख

Monday, January 11, 2021

नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी विभाजन की ओर


नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर पिछले कुछ महीनों से चला आ रहा टकराव अब खुलकर सामने आ गया है। संसद भंग करके नए चुनावों की तारीखों की घोषणा होने के बाद दो तरह की गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। पहली पहल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से हुई है, जिसके तहत एक टीम ने नेपाल जाकर सम्बद्ध पक्षों से मुलाकात की है। दूसरी तरफ पार्टी के दोनों धड़ों ने अपनी भावी रणनीति को लेकर विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। नेपाल की राजनीति में इस समय तीन प्रमुख दल हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी, नेपाली कांग्रेस और जनता समाजवादी पार्टी।

नेपाली संसद में कुल 275 सदस्य होते हैं। राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक 30 अप्रैल को पहले चरण के मतदान होंगे और दूसरे चरण का मतदान 10 मई को होगा। भारत और नेपाल के बीच पिछले कुछ वक्त से तनाव जारी था। पिछले कुछ महीनों से पार्टी दो खेमों में बंटी हुई है। एक खेमे की कमान 68 वर्षीय केपीएस ओली के हाथ में है तो दूसरे खेमे का नेतृत्व पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प दहल कमल 'प्रचंड' कर रहे हैं।

Sunday, January 10, 2021

ट्रंप की हिंसक विदाई से उठते सवाल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहचान सिरफिरे व्यक्ति के रूप में जरूर थी, पर यह भी लगता था कि उनके पास भी मर्यादा की कोई न कोई रेखा होगी। उनकी विदाई कटुता भरी होगी, इसका भी आभास था, पर वह ऐसी हिंसक होगी, इसका अनुमान नहीं था। हालांकि ऐसा कहा जा रहा था कि वे हटने से इनकार कर सकते हैं। उन्हें हटाने के लिए सेना लगानी होगी वगैरह। पर लोगों को इस बात पर विश्वास नहीं होता था।

बहरहाल वैसा भी नहीं हुआ, पर उनके कार्यकाल के दस दिन और बाकी हैं। इन दस दिनों में क्या कुछ और अजब-गजब होगा? क्या ट्रंप को महाभियोगके रास्ते निकाला जाएगा? क्या संविधान के 25वें संशोधन के तहत कार्रवाई की जा सकेगी? क्या उनपर मुकदमा चलाया जा सकता है? क्या उनकी गिरफ्तारी संभव है? ऐसे कई सवाल सामने हैं, जिनका जवाब समय ही देगा। अलबत्ता इतना स्पष्ट है कि ट्रंप पर महाभियोग चलाया भी जाए, तो उन्हें 20 जनवरी से पहले हटाया नहीं जा सकेगा, क्योंकि सीनेट की कार्यवाही 19 जनवरी तक स्थगित है। संशोधन 25 के तहत कार्रवाई करने के लिए उपराष्ट्रपति माइक पेंस और मंत्रिपरिषद को आगे आना होगा, जिसकी संभावना लगती नहीं। दूसरी तरफ यह भी नजर आ रहा है कि ट्रंप की रीति-नीति को लेकर रिपब्लिकन पार्टी के भीतर दरार पैदा हो गई है। फिर भी  कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अमेरिकी लोकतांत्रिक संस्थाएं दुखद स्थिति पर नियंत्रण पाने में सफल हुईं।