Tuesday, January 12, 2021

लोकतंत्र बनाम आर्थिक सुधार

 


भारत में हाल के हफ्तों में लोकतंत्र एवं सख्त आर्थिक सुधारों के बारे में एक बड़ी बहस ने जन्म लिया है। वित्त के क्षेत्र में सुधारों का मुख्य मार्ग लोकतंत्र की जड़ें गहरी होने से संबद्ध है। दुनिया की दूसरी जगहों, सुधारों के मामले में भारत के शुरुआती अनुभव और वित्तीय आर्थिक नीति के भावी सफर के बारे में भी ऐसा ही देखा गया है। लोकतंत्र का सार यानी सत्ता का प्रसार एवं कानून का शासन बाजार अर्थव्यवस्था के फलने-फूलने के लिए अनुकूल हालात पैदा करते हैं और इसमें वित्त केंद्रीय अहमियत रखता है।

नीति आयोग के मुख्य कार्याधिकारी अमिताभ कांत ने कथित तौर पर कहा है कि 'सख्त' सुधार कर पाना भारतीय संदर्भ में काफी मुश्किल है क्योंकि 'हमारे यहां कुछ ज्यादा ही लोकतंत्र है' लेकिन सरकार ने खनन, श्रम एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में ऐसे सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए 'साहस' एवं 'संकल्प' दिखाया है। इस बयान ने एक तूफान खड़ा कर दिया और तमाम आलोचक भारतीय लोकतंत्र के बचाव में आ खड़े हुए जिसके बाद अमिताभ कांत को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में लेख लिखकर यह सफाई देनी पड़ी कि उन्हें गलत समझा गया है।

चुनावों के माध्यम से सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की अवधारणा हमारे दिमाग में गहरी जमी हुई है लेकिन लोकतंत्र निर्वाचित शासक का फैसला करने वाले चुनाव से कहीं अधिक होता है। लोकतंत्र का सार सत्ता के फैलाव, राज्य की सत्ता के मनमाने इस्तेमाल के नियंत्रण और विधि के शासन की राह में राज्य सत्ता को समाहित करने में है। विधि के शासन के तहत निजी व्यक्ति एवं आर्थिक एजेंट इस पर सुरक्षित महसूस करते हैं कि राज्य की बाध्यकारी सत्ता को अप्रत्याशित, नियम-आधारित तरीके एवं निष्पक्ष ढंग से लागू किया जाएगा। इससे निर्माण फर्मों के निर्माण एवं व्यक्तिगत संपत्ति के सृजन में निवेश को बढ़ावा मिलता है। इस तरह लोकतंत्र के अभ्युदय और दशकों की मेहनत से अपनी फर्म खड़ा करने एवं अपनी संपत्ति को देश के भीतर ही बनाए रखने के लिए निजी क्षेत्र के प्रोत्साहन के बीच काफी गहरा संबंध है।

बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें केपी कृष्णन का पूरा आलेख

Monday, January 11, 2021

नेपाल में कम्युनिस्ट पार्टी विभाजन की ओर


नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर पिछले कुछ महीनों से चला आ रहा टकराव अब खुलकर सामने आ गया है। संसद भंग करके नए चुनावों की तारीखों की घोषणा होने के बाद दो तरह की गतिविधियाँ तेज हो गई हैं। पहली पहल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से हुई है, जिसके तहत एक टीम ने नेपाल जाकर सम्बद्ध पक्षों से मुलाकात की है। दूसरी तरफ पार्टी के दोनों धड़ों ने अपनी भावी रणनीति को लेकर विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। नेपाल की राजनीति में इस समय तीन प्रमुख दल हैं। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी, नेपाली कांग्रेस और जनता समाजवादी पार्टी।

नेपाली संसद में कुल 275 सदस्य होते हैं। राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक 30 अप्रैल को पहले चरण के मतदान होंगे और दूसरे चरण का मतदान 10 मई को होगा। भारत और नेपाल के बीच पिछले कुछ वक्त से तनाव जारी था। पिछले कुछ महीनों से पार्टी दो खेमों में बंटी हुई है। एक खेमे की कमान 68 वर्षीय केपीएस ओली के हाथ में है तो दूसरे खेमे का नेतृत्व पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष व पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प दहल कमल 'प्रचंड' कर रहे हैं।

Sunday, January 10, 2021

ट्रंप की हिंसक विदाई से उठते सवाल

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहचान सिरफिरे व्यक्ति के रूप में जरूर थी, पर यह भी लगता था कि उनके पास भी मर्यादा की कोई न कोई रेखा होगी। उनकी विदाई कटुता भरी होगी, इसका भी आभास था, पर वह ऐसी हिंसक होगी, इसका अनुमान नहीं था। हालांकि ऐसा कहा जा रहा था कि वे हटने से इनकार कर सकते हैं। उन्हें हटाने के लिए सेना लगानी होगी वगैरह। पर लोगों को इस बात पर विश्वास नहीं होता था।

बहरहाल वैसा भी नहीं हुआ, पर उनके कार्यकाल के दस दिन और बाकी हैं। इन दस दिनों में क्या कुछ और अजब-गजब होगा? क्या ट्रंप को महाभियोगके रास्ते निकाला जाएगा? क्या संविधान के 25वें संशोधन के तहत कार्रवाई की जा सकेगी? क्या उनपर मुकदमा चलाया जा सकता है? क्या उनकी गिरफ्तारी संभव है? ऐसे कई सवाल सामने हैं, जिनका जवाब समय ही देगा। अलबत्ता इतना स्पष्ट है कि ट्रंप पर महाभियोग चलाया भी जाए, तो उन्हें 20 जनवरी से पहले हटाया नहीं जा सकेगा, क्योंकि सीनेट की कार्यवाही 19 जनवरी तक स्थगित है। संशोधन 25 के तहत कार्रवाई करने के लिए उपराष्ट्रपति माइक पेंस और मंत्रिपरिषद को आगे आना होगा, जिसकी संभावना लगती नहीं। दूसरी तरफ यह भी नजर आ रहा है कि ट्रंप की रीति-नीति को लेकर रिपब्लिकन पार्टी के भीतर दरार पैदा हो गई है। फिर भी  कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अमेरिकी लोकतांत्रिक संस्थाएं दुखद स्थिति पर नियंत्रण पाने में सफल हुईं।

Saturday, January 9, 2021

राजनीति के माथे पर वैक्सीन का टीका

भारत सरकार का दबाव रहा हो या फिर मेडिकल साइंस की नैतिकता ने जोर मारा हो वैक्सीन के विकास को लेकर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के प्रमुखों के बीच अनावश्यक ‘तू-तू मैं-मैं’ थम गई है। बावजूद इसके प्रतिरोधी-टीके को लेकर कुछ नए विवाद खड़े हो गए हैं। एक तरफ विवादों की प्रकृति राजनीतिक है, वहीं भारत बायोटेक को मिली आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति पर वैज्ञानिक समुदाय के बीच मतभेद है। सभी बातों को एक साथ मिलाकर पढ़ें, तो लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण की थुक्का-फज़ीहत शुरू हो गई है। यह गलत और आपराधिक है।

क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर में माइक्रोबायोलॉजी की प्रोफेसर गगनदीप कांग ने भारत बायोटेक की वैक्सीन को मिली अनुमति को लेकर अपने अंदेशों को व्यक्त किया है। इसके बाद सरकार और वैज्ञानिक समुदाय की ओर से स्पष्टीकरण आए हैं। इन स्पष्टीकरणों पर नीचे बात करेंगे। अलबत्ता विशेषज्ञों के मतभेदों को अलग कर दें, तो राजनीतिक-सांप्रदायिक और इसी तरह के दूसरे संकीर्ण कारणों से विवाद खड़े करने वालों का विरोध होना चाहिए।

तीव्र विकास

महामारी का सामना करने के लिए वैज्ञानिक समुदाय ने जितनी तेजी से टीकों का विकास किया है, उसकी मिसाल नहीं मिलती है। सभी टीके पहली पीढ़ी के हैं। उनमें सुधार भी होंगे। गगनदीप कांग ने भी दुनिया के वैज्ञानिकों की इस तीव्र गति के लिए तारीफ की है। टीकों के विकास की पद्धतियों की स्थापना बीसवीं सदी में हुई है। इस महामारी ने उन स्थापनाओं में कुछ बदलाव करने के मौके दिए हैं। यह बात विशेषज्ञों के बीच ही तय होनी चाहिए कि टीकों का विकास और इस्तेमाल किस तरह से हो। औषधि विकास के साथ उसके जोखिम भी जुड़े हैं। भारत में हों या विश्व-स्तर पर हों इस काम के लिए संस्थाएं बनी हैं। हमें उनपर भरोसा करना होगा। पर जनता के भरोसे को तोड़ने या उसे भरमाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। इस अभियान में एक मात्र मार्गदर्शक विज्ञान को ही रहने दें।  

Friday, January 8, 2021

जीडीपी में 7.7 फीसदी के संकुचन का अग्रिम अनुमान

 


देश के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) ने 7 जनवरी को इस वित्त वर्ष के लिए राष्ट्रीय आय (जीडीपी) का पहला अग्रिम अनुमान (एफएई) जारी किया, जिसमें केवल कृषि को छोड़कर अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में संकुचन (कांट्रैक्शन) का अनुमान लगाया गया है। एनएसओ के मुताबिक, देश की अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष (2020-21) में 7.7 प्रतिशत के संकुचन का अनुमान है, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4.2 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गई थी। इस संकुचन के लिए कोविड-19 वैश्विक महामारी को मुख्य कारण बताया गया है।

मंत्रालय के अनुसार, '' साल 2020-21 में स्थिर मूल्य (2011-12) पर वास्तविक जीडीपी या जीडीपी 134.40 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है। जबकि 31 मई 2020 को जारी 2019-20 की जीडीपी के अस्थायी अनुमान 146.66 लाख करोड़ रुपये के हैं। इस तरह 2020-21 में वास्तविक जीडीपी में अनुमानतः 7.7 प्रतिशत की गिरावट आएगी।